ग़ज़्ज़ा में महिलाओं और बच्चों की स्थिति देखक यूएन एजेंसियों की फिर निकली चीख़, अपने बच्चों की जीवित रखने के लिए माएं रह रही हैं भूखी!
संयुक्त राष्ट्र की तीन एजेंसियों की प्रमुखों ने, फ़िलिस्तीनी क्षेत्र ग़ज़्ज़ा में, महिलाओं और लड़कियों द्वारा भुगती जा रही ग़ैर-आनुपातिक तकलीफ़ों को बुधवार को सुरक्षा परिषद में रेखांकित किया है। उन्होंने बेहद कमज़ोर लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, एक सामूहिक कार्यावही किए जाने और युद्ध की चपेट में आईं महिलाओं और लड़कियों के लिए दीर्घकालीन शान्ति के लिए प्रतिबद्धता का आग्रह भी किया है।
प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, संयुक्त राष्ट्र संघ की तीन एजेंसियां, जिसमें लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण के लिए सक्रिय यूएन एजेंसी "यूएन वीमैन" की मुखिया सीमा बहौस, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनीसेफ) की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसैल और प्रजनन स्वास्थ्य के लिए सक्रिय यूएन एजेंसी (यूएनएफ़पीए) की मुखिया नतालिया कानेम शामिल हैं, उन्होंने सुरक्षा परिषद को सम्बोधित करते हुए, ग़ज़्ज़ा में मानवीय युद्ध विराम और बन्धकों की रिहाई के लिए, इस्राईल और हमास के बीच हुए समझौते का स्वागत किया और एक दीर्घकालीन शान्ति समझौते की ज़रूरत को भी रेखांकित किया। उन्होंने सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव-2712 की महत्ता पर भी ज़ोर दिया, जो गत सप्ताह पारित किया गया था। इस प्रस्ताव में, ग़ज़्ज़ा में आम लोगों की ज़िन्दगियों को संरक्षण मुहैया कराने के लिए, पूरे ग़ज़्ज़ा क्षेत्र में, तत्काल और विस्तारित मानवीय युद्धविराम लागू किए जाने की बात कही गई है।
सीमा बहौस ने सुरक्षा परिषद को सम्बोधित करते हुए, ग़ज़्ज़ा में हिंसा की सघनता व गम्भीरता और वहाँ की आबादी पर इसके विनाशकारी प्रभाव को रेखांकित किया, विशेष रूप में महिलाओं व लड़कियों पर। अनुमानों के अनुसार, ग़ज़्ज़ा में जो लगभग 14 हज़ार लोगों की मौतें हुई हैं, उनमें लगभग 70 प्रतिशत संख्या महिलाओं और बच्चों की है। उन्होंने गर्भवती महिलाओं के लिए और उनम महिलाओं के लिए भी गहन चिन्ता व्यक्त की जिन्हें बिना चिकित्सा सामग्री, दर्दनिवारक, ऐनिस्थीसिया, या पानी के बिना ही, ऑपरेशन के ज़रिए अपने बच्चों को जन्म देना पड़ा है। सीमा बहौस ने कहा, “इसके बावजूद, वह महिलाएं अपने बच्चों, बीमारों, वृद्धजन की देखभाल करना जारी रखे हुए हैं, उन्हें दूषित जल में शिशु आहार तैयार करना पड़ रहा है, उन्हें इसलिए भूखा रहना पड़ता है, ताकि उनके बच्चे एक और दिन जीवित रह सकें, भारी भीड़ वाले आश्रय स्थलों में, अनेक तरह के जोखिमों का सामना करते हुए।”
यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसैल ने बच्चों पर, इस संकट के अत्यन्त गम्भीर को रेखांकित करते हुए ध्यान दिलाया कि 46 दिनों में, 5 हज़ार 300 से अधिक बच्चों की मौतों होने की ख़बरें हैं, जो ग़ज़्ज़ा में हुई कुल मौतों की लगभग 40 प्रतिशत संख्या है। उन्होंने कहा, “यह अभूतपूर्व है। अन्य शब्दों में कहें तो ग़ज़्ज़ा पट्टी, बच्चों के लिए, दुनिया भर में, सबसे ख़तरनाक स्थान है।” कैथरीन रसैल ने कहा कि जो बच्चे इस युद्ध में जीवित बच रहे हैं, उनकी ज़िन्दगियाँ, बार-बार के हृदय विदारक हादसों का सामना करने के कारण, अपरिवर्तनीय रूप में बदल जाएंगी। उन्होंने कहा, “उनके आसपास हिंसा और उथल-पुथल, ऐसा विषैला दबाव बनाएगी, जो उनके शारीरिक व संज्ञानात्मक विकास में हस्तक्षेप करेगा।” यूएन प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी – UNFPA की मुखिया नतालिया कानेम ने भी सुरक्षा परिषद को सम्बोधित करते हुए, बन्द होते अस्पतालों और स्वास्थ्य देखभाल के गम्भीर अभाव पर ज़ोर दिया। इस स्थिति के कारण गर्भवती महिलाएं और हाल ही में बच्चों को जन्म देने वाली महिलाओं को जोखिम में धकेल दिया है। उन्होंने कहा, “एक ऐसे क्षण में, जब एक नया जीवन शुरू हो रहा हो, जोकि आनन्द व प्रसन्नता का एक क्षण हो, मगर वो क्षण मृत्यु व विनाश, भयावहता और डर की काली छाया की चपेट में सिमट रहा है।” (RZ)
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