Jan ०५, २०२४ १५:०७ Asia/Kolkata

अफ़ग़ान तालिबान सरकार के प्रवक्ता ने अफ़ग़ानिस्तान से एक प्रतिनिधिमंडल की पाकिस्तान यात्रा की पुष्टि की और कहा है कि इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के अधिकारी विवादों के समाधान, विशेषकर डूरंड रेखा पर सीमा विवादों पर चर्चा करेंगे।

काल्पनिक "डूरंड" लाइन और सीमा सुविधाओं की स्थापना जैसे मुद्दों पर पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच कई वर्षों से मतभेद चले आ रहे हैं और दोनों ही पक्ष एक-दूसरे पर आतंकवाद का समर्थन करने का भी आरोप लगाते रहे हैं।

वास्तव में "डूरंड" सीमा रेखा भारतीय उपमहाद्वीप पर ब्रिटिश सम्राज्यवादी काल का एक अवशेष है जिसका अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के बीच रेखांकन, एक गहरे ऐतिहासिक मतभेद का आधार है जो पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच संबंधों को उस तरह से बढ़ने नहीं देता जैसा संबंधों को होना चाहिए।

यह सीमा 1893 में मोहम्मद उमर गुलाबी और अब्दुल रहमान खान के समय मोर्टिमर डूरंड के नेतृत्व में अफ़ग़ानिस्तान और ब्रिटिश भारत के बीच निर्धारित की गई थी।

यह ऐसी हालत में है कि जब पिछले दो वर्षों में इस मुद्दे पर घातक सीमा संघर्ष कई बार दोनों देशों के लिए समस्या बन चुका है।

तालिबान सरकार के प्रवक्ता ज़बीहउल्लाह मुजाहिद ने अपने ताजा बयान में इस्लामाबाद के साथ सीमा विवादों को सुलझाने के लिए काबुल के प्रयासों पर ज़ोर देते हुए कहा कि दोनों पक्षों के बीच क़ंधार के गवर्नर और तालिबान सरकार के रक्षा मंत्रालय के रणनीतिक सूचना के डिप्टी मुल्ला शीरीन आखुंद की अध्यक्षता में संयुक्त समन्वय समिति की छठी बैठक हुई।

तालिबान के प्रवक्ता ज़बीहुल्लाह मुजाहिद ने कहा कि पिछली बैठकों के बाद इस बैठक में दोनों देशों के बीच डूरंड रेखा पर लगातार हो रहे संघर्षों के समाधान और सीमा के दोनों ओर के निवासियों के लिए सुविधाओं के प्रावधान के संबंध में निर्णय लिए जाएंगे।

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के दोबारा सत्ता में आने के बाद से दो वर्षों तक पाकिस्तान सरकार ने हमेशा यह दावा किया है कि तहरीके तालिबान पाकिस्तान के सदस्यों ने अफ़ग़ानिस्तान से उनके देश के खिलाफ घातक हमले किए हैं। इस दावे को अफ़ग़ान तालिबान सरकार ने बारम्बार खारिज किया है। तालिबान सरकार का कहना है कि अपनी सीमाओं को सुरक्षित करने में असमर्थता के लिए पाकिस्तानी अधिकारी अफ़ग़ानिस्तान पर दोष न मढ़ें।

अफ़ग़ान तालिबान का मानना ​​है कि पाकिस्तान ने सीमा पर पाकिस्तान तहरीके तालिबान के तत्वों की मौजूदगी के फ़र्ज़ी मुद्दे का इस्तेमाल करके काबुल सरकार पर दबाव डालने के लिए पाकिस्तान में रहने वाले 17 लाख अफ़ग़ान शरणार्थियों को निर्वासित करने की योजना बनाई है।

पाकिस्तान सरकार ने पिछले दो महीनों में "डूरंड" सीमा रेखा के दोनों ओर सीमावासियों की आवाजाही को रोककर सीमावासियों के लिए कठिन परिस्थितियां भी पैदा कर दी हैं।

ऐसे में पिछले दो वर्षों के दौरान डूरंड रेखा पर सीमा सुविधाएं और चौकियां स्थापित करने के पाकिस्तान के प्रयासों को बारम्बार तालिबान के सीमा सुरक्षा बलों की ओर से जवाबी कार्यवाही का सामना करना पड़ा और इन संघर्षों से दोनों पक्षों को भारी नुकसान भी हुआ है।

अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान दोनों ने पिछले दशकों में एक-दूसरे के ख़िलाफ शत्रुता को बढ़ावा देने के लिए बहुत सारे पैसे ख़र्च किए हैं जिसकी वजह से दोनों देशों को भारी नुक़सान उठाना पड़ा है।  

इसीलिए काबुल और इस्लामाबाद के लिए एकमात्र उचित तरीका यह है कि वे इस क़ानूनी और ऐतिहासिक मुद्दे को समाप्त करने और ब्रिटिश साम्राज्यवाद की भयावह विरासत को हटाने के लिए जल्द से जल्द कार्रवाई करें।

यही वजह है कि पाकिस्तान के साथ सीमा विवादों पर चर्चा के लिए अफ़ग़ान तालिबान की तत्परता की हालिया घोषणा, यदि इस्लामाबाद मामले को गंभीरता से लेता है तो द्विपक्षीय संबंधों में तनाव को कम करने और इस ऐतिहासिक सीमा विवाद को सुलझाने के लिए आधार बन सकता है इसीलिए दोनों पक्षों को इस अवसर से बेहतरीन तरीक़े से लाभ उठाना चाहिए। (AK)

 

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