Mar २०, २०२४ १०:१४ Asia/Kolkata
  • पश्चिम ऐसे चीन को पंसद करता है!
    पश्चिम ऐसे चीन को पंसद करता है!

चीन में प्राचीन काल से ही अफ़ीम का उपयोग दवाओं के रूप में किया जाता रहा है।

चीन के साथ अपने व्यापार में ईस्ट इंडिया कंपनी इस नतीजे पर पहुंची कि वह अपने व्यापार में चीनी पक्ष को चांदी के बदले यह सामग्री दे सकती है।

चूंकि चीन में ग़ैर-औषधीय या ग़ैर दवाओं के उपयोगों के लिए अफ़ीम का उपयोग अवैध था इसीलिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने चीन में अफ़ीम के व्यापार के लिए स्वतंत्र कंपनियों को मध्यस्थों के रूप में इस्तेमाल किया ताकि चीनी सम्राट की कड़ी प्रतिक्रिया का सामना न करना पड़े।

इस तरह ईस्ट इंडिया कंपनी ने चीन को अफ़ीम की तस्करी से ख़ुद को पीछे रखने का प्रयास किया।

वर्ष 1820 और 1828 के बीच, ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा चीन में आयातित अफ़ीम की मात्रा तीन गुना हो गई और 1832 में दोगुना होकर लगभग 1500 टन तक पहुंच गयी।

ब्रिटिश साम्राज्य को जिसने अटलांटिक महासागर में अपने विस्तार के शुरुआती वर्षों में तम्बाकू नामक एक अन्य नशीले पौधे का उपयोग किया था, उस समय यह एहसास हुआ कि वह चीनी जनता को पोस्ते नामक एक अन्य अन्य पौधे की लता में फंसा कर चीन पर नियंत्रण करने के लिए इसको एक हथकंडे के रूप में प्रयोग कर सकता है।

एक अनुमान के अनुसार वर्ष 1830 तक, लगभग 4 से 12 मिलियन चीन के लोग अफ़ीम की लत में जकड़ चुके थे।

19वीं सदी के मध्य में चीन द्वारा अफ़ीम व्यापार पर कड़े प्रतिबंध लगाने के बाद, ब्रिटेन, जिसका इस व्यापार में बड़ा हित था, 1839 में चीन के साथ युद्ध के मैदान में कूद पड़ा। इस युद्ध को प्रथम अफ़ीम युद्ध के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में ब्रिटेन की जीत से चीन में अफ़ीम के आयात में वृद्धि हो गई।

जुलाई वर्ष 1842 में, ब्रिटिश सैनिकों ने चीन में अनाज के आयात के लिए बड़ी नहर के रास्ते को बंद कर दिया। बीजिंग को अकाल की धमकी दी गई और चीन के राजा डाओगुआंग को ब्रिटेन के साथ समझौता करने पर मजबूर किया गया।  नानजिंग समझौता उनके लिए अपमानजनक था क्योंकि चीन को पहले ज़ब्त की गई अफ़ीम के लिए भारी मुआवज़ा भी देना पड़ा था।

3  मार्च, 1857 को ब्रिटेन और फ्रांस ने चीन के ख़िलाफ़ दूसरे युद्ध का एलान कर दिया और इस तरह दूसरा अफीम युद्ध शुरू हुआ जो 1860 तक जारी रहा और इसमें भी चीन की सैन्य हार हुई। इस युद्ध के दौरान, अन्य विश्व शक्तियां ब्रिटेन और फ्रांस का साथ दे रही थीं।

द्वितीय अफ़ीम युद्ध की समाप्ति के लिए होने वाले समझौते के आधार पर, उस समय की चीनी सरकार, जिसके पास पर्याप्त सैन्य शक्ति नहीं थी, चीन के साथ ब्रिटिश अफ़ीम व्यापार को वैध बनाने पर सहमत हुई, जिसके परिणामस्वरूप चीनियों की अफ़ीम की लत और अधिक बढ़ गई।

इस समझौते के अनुसार, चीनी सरकार को अपनी बंदरगाहों को तत्कालीन शक्तियों के लिए खोलने, इन देशों के आयात पर सीमा शुल्क न लगाने, उत्तरी अमेरिका (कनाडा और संयुक्त राज्य अमेरिका) और उपनिवेशों में "कुशल और सस्ते" चीनी श्रमिकों के पलायन को रोकने पर सहमत होना पड़ा जबकि इस बात पर भी सहमति बनी कि उनके सैन्य जहाज़ चीन के बंदरगाहों में धड़ल्ले से प्रवेश कर सकते थे और साथ ही ईसाई धर्म के प्रचारकों की गतिविधियों में बाधा नहीं डाली जानी चाहिए और कोई भी अनुबंध अंग्रेज़ी भाषा में ही लिखा जाना चाहिए।

विलियम जार्डिन, एक ब्रिटिश अफ़ीम व्यापारी था जिसने उस समय कहा था कि जहां तक मुझे पता है, अफ़ीम का व्यवसाय सबसे विश्वसनीय और सम्मानजनक व्यवसाय है जिसमें एक सज्जन व्यक्ति शामिल हो सकता है।

इस विषय पर और अधिक रोशनी डालने के लिए आप इन तस्वीरों को देख सकते हैं...(AK)

 

चीनी नागरिक उन नशों की तल में जकड़े हुए जिसमें पश्चिम ने उन्हें फंसाया
चीनी हल्क़ों में नशे की लत
पश्चिम द्वारा फैलाए गये नशे का शिकार चीनी नागरिक
19वीं शताब्दी के अंत और 20वीं शताब्दी के आरंभ में चीन में फैला अफ़ीम का जाल
वर्ष 1838 में प्रतिवर्ष 40 हज़ार अफ़ीम की पेटी चीन पहुंचाई जाती थी

 

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