इस्राईल के समर्थन के लिए बर्लिन का बिना शर्त समर्थन और जर्मनी के सॉफ़्ट पॉवर में गिरावट, बर्लिन, तेल अवीव के लिए बना क़ुर्बानी का बकरा
(last modified Thu, 06 Jun 2024 14:02:04 GMT )
Jun ०६, २०२४ १९:३२ Asia/Kolkata
  • इस्राईल के समर्थन के लिए बर्लिन का बिना शर्त समर्थन और जर्मनी के सॉफ़्ट पॉवर में कमी, बर्लिन, तेल अवीव के लिए बना क़ुर्बानी का बकरा
    इस्राईल के समर्थन के लिए बर्लिन का बिना शर्त समर्थन और जर्मनी के सॉफ़्ट पॉवर में कमी, बर्लिन, तेल अवीव के लिए बना क़ुर्बानी का बकरा

पार्सटुडे - "इस्राईल" के लिए "जर्मनी" के बिना शर्त समर्थन और फ़िलिस्तीनियों के दुखदर्द के बारे में उसके दोहरे रवैये ने पश्चिम एशिया में इस देश के सॉफ़्ट पॉवर को कमज़ोर कर दिया है।

जर्मनी, जो दशकों से इस्राईल को अरब दुनिया के साथ मिलाने की कोशिश कर रहा था, इस इलाक़े में काफ़ी सॉफ़्ट पॉवर हासिल करने में कामयाब भी रहा था, लंबे समय से व्यापार और आर्थिक संबंधों में मध्यस्थ के रूप में पहचाना अपनी एक ख़ास पहचान बना चुका है।

लेकिन अब पश्चिम एशिया की हालत बिल्कुल ही अलग हो गयी है, फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध के लिए समर्थन बढ़ रहा है और कई अरब देश ग़ज़ा पर इस्राईल के हमलों को "नरसंहार युद्ध" मानते हैं और इसकी निंदा करते हैं।

इस्राईल के लिए जर्मनी का ठोस और निर्णायक समर्थन और जर्मनी की अंतर्राष्ट्रीय छवि की तबाही

जर्मनी, जिसके दिमाग़ पर होलोकॉस्ट का भूत सवार था, शुरू में ग़ज़ा पर इस्राईल के हमले का समर्थन करता रहा है।

इसकी वजह यह है कि तूफ़ान अल-अक्सा ऑप्रेशन की शुरुआत के साथ ही ग़ज़ा में युद्ध के लिए जर्मनी की निर्णायक और मानवता विरोधी प्रतिक्रिया की वजह से पहले से ज़्यादा दुनिया में इस देश की विश्वसनीयता पर बट्टा लग गया।

پنج7  अक्टूबर, 2023 और तूफ़ान अल-अक़्सा ऑप्रेशन की शुरुआत के पांच दिन बाद, जर्मन चांसलर ओलाफ शुल्त्स ने एक बयान में ग़ज़ा में नए युद्ध के बारे में अपने देश की नीति को स्पष्ट रूप से पेश किया और कहा: इस समय, केवल जर्मनी के लिए एक जगह है और वह है "इस्राईल के साथ"।

जर्मनी, जिसने नवम्बर 2023 तक इस्राईल के लिए अपने हथियारों का निर्यात लगभग दस गुना बढ़ा दिया है, अब अमेरिका के बाद युद्ध की शुरुआत के बाद से इस्राईल को हथियारों का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता देश बन गया है।

इस्राईल के संबंध में जर्मनी के पक्षपातपूर्ण रवैये की वजह से ट्यूनीशिया जैसे कुछ अरब देशों में यह हाल हो गया है कि इस देश में पहली बार बच्चों के हत्यारे शासन के लिए बर्लिन के समर्थन के ख़िलाफ विरोध प्रदर्शन हुए।

पिछले साल अक्टूबर में, ट्यूनीशिया में जर्मनी के राजदूत "पीटर प्रोगेल" के ट्यूनीशिया के उपनगरीय क्षेत्र में नए हाई स्कूल के उद्घाटन समारोह में दिया गया बयान विवादों का शिकार हो गया था।

मामला यह है कि इस कार्यक्रम के दौरान, ट्यूनीशिया के शिक्षामंत्री ने ग़ज़ा के साथ एकजुटता का एलान किया और फिर "प्रोगेल" ने इस्राईलियों को मज़लूम और पीड़ित क़रार दिया।

कुछ दिनों बाद प्रदर्शनकारी जर्मन दूतावास के सामने एकत्र हुए और इस जर्मन राजनयिक के इस्तीफ़े की मांग की।

इस्राईल के प्रति जर्मनी के समर्थन की वजह से पश्चिम एशिया में इस देश की कई संस्थाएं उसके नियंत्रण में चली गयी हैं।

इस संबंध में "फॉरेन पॉलिसी" ने पांच पश्चिम एशियाई देशों में चलने  वाली छह जर्मन संस्थानों के नौ कर्मचारियों का साक्षात्कार दुनिया के सामने पेश किया।

साक्षात्कारकर्ताओं का मानना था कि ग़ज़ा युद्ध में जर्मनी के सख़्त रुख़ की वजह से भागीदारों और स्थानीय समुदायों के साथ उनकी कामकाजी स्थिति ख़तरे में पड़ गयी है।

पश्चिम एशिया में जर्मन संस्थानों के पुराने कर्मचारी स्वीकार करते हैं कि वेस्ट बैंक पर इस्राईल का क़ब्ज़ा, अपारथाइड की एक मिसाल है और जर्मनी की विदेश नीति, इस्राईल-फिलिस्तीनी संघर्ष की वास्तविकताओं से बहुत ही दूर है।

इन संस्थानों के कर्मचारियों का कहना है कि फ़िलिस्तीनियों के साथ इस्राईल के बर्ताव के बारे में "अपारथाइड" और "नरसंहार" जैसे शब्दों का इस्तेमाल उनके सहयोगियों के बीच आम बात है। जर्मन सरकार "अपारथाइड" और "नरसंहार" को अस्वीकार करती है और इन्हें यहूदी विरोधी मानती है।

यहूदी विरोधी भावनाओं से लड़ने के बहाने फ़िलिस्तीनी समर्थक छात्रों का दमन

"जीआईज़ेड" (GIZ) (जर्मन अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एजेंसी) के कुछ कर्मचारियों ने भी "फॉरेन पॉलिसी" को बताया कि इस युद्ध में जर्मनी की भागीदारी से इस संस्था के भीतर बहुत ही ग़ुस्सा और घृणा पैदा हो गई है।

 इस संबंध में पश्चिम एशिया में काम करने वाले कई जर्मन संगठनों ने अपनी पहचान बनाए रखने और क्षेत्र में अपने स्थानीय कर्मचारियों और भागीदारों की सुरक्षा के लिए गुप्त रूप से सार्वजनिक कार्यक्रमों में शामिल होने से इनकार कर दिया है, रिपोर्टों को जारी करने पर रोक लगा दी है या अपना लोगो ही जो इस्राईल के समर्थक हैं, बदल दिया है।

2020  में कराए गये वाशिंगटन अरब सेंटर के सर्वेक्षण के अनुसार, अधिकांश अरबों का जर्मनी की विदेश नीति के बारे में सकारात्मक नज़रिया था लेकिन जनवरी 2023 में दोहा इंस्टीट्यूट द्वारा जारी एक अन्य सर्वेक्षण के अनुसार, 16 अरब देशों में 75 प्रतिशत जवाब देने वालों का ग़ज़ा युद्ध के बारे में जर्मनी की पोज़ीशन पर नकारात्मक नज़रिया है।

कीवर्ड्स: जर्मनी, इस्राईल, पश्चिम एशिया, अपारथाइड, नरसंहार

 

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