नई ग़ुलामीः पलायनकर्ता को आकर्षित करने के पीछे यूरोप का लक्ष्य, बहुत सस्ता श्रमबल
(last modified 2024-08-01T13:42:21+00:00 )
Aug ०१, २०२४ १९:१२ Asia/Kolkata
  • नई ग़ुलामीः पलायनकर्ता को आकर्षित करने के पीछे यूरोप का लक्ष्य, बहुत सस्ता श्रमबल

पार्सटुडे- यूरोप पलायन करने शरणार्थियों को सस्ती और कम मज़दूरी देना यूरोप में पलायनकर्ताओं के दुरुपयोग का मात्र एक छोटा सा नमूना है।

अधिकांश पलायनकर्ता रोज़ी-रोटी और अच्छे जीवन की उम्मीद में यूरोप की ओर पलायन करते हैं परंतु वे इस बात से चिंतित हैं कि अगर कम मज़दूरी मिलने के विषय का रहस्योद्घाटन हो गया तो काम करने का उन्हें जो वीज़ा दिया गया है काम पूरा होने पर उन्हें यूरोपीय देशों से निकाल दिया जायेगा।

 

पार्सटुडे की रिपोर्ट के अनुसार International Labor Organization ने इसी संबंध में घोषणा की है कि यूरोपीय देशों में जो काम ज़बरदस्ती कराये जाते हैं उनमें आधे से अधिक कामों से जो आमदनी होती है वह नॉर्मल या नॉर्मल से बहुत अधिक होती है और पलायनकर्ता मज़दूर तीन गुना अधिक ख़तरे में हैं।

 

Centre for Social Justice और ब्रिटेन में Justice and Care संस्था की रिपोर्ट के अनुसार युद्धों, प्रतिबंधों और विश्व में विभिन्न प्रकार के दबावों से ग़ुलाम बनाने वाले नेटवर्कों की चांदी हो जाती है इस प्रकार से कि जंग आदि से प्रभावित होकर पलायन करने वाले लोग अमेरिका और यूरोप में बहुत कम मज़दूरी पर काम करने पर विवश होते हैं और सालाना अरबों डॉलर का मुनाफ़ा काम कराने वालों की जेब में जाता है।

 

पार्सटुडे की रिपोर्ट के अनुसार जर्मनी ने पलायनकर्ताओं से ज़बरदस्ती और कम से कम पर मज़दूरी पर काम कराने का कार्यक्रम आरंभ कर रखा है।

 

जर्मनी के इस कार्यक्रम के आलोचक बल देकर कहते हैं कि जर्मनी पलायनकर्ताओं का प्रयोग ग़ुलामों की तरह कर रहा है ताकि वह दक्षिणपंथी अतिवादी, पलायनकर्ताओं और शरणार्थियों की जो आलोचना करते हैं इस मामले से मज़दूर कम होने की समस्या का समाधान कर सके।

 

इस रिपोर्ट के अनुसार जर्मनी के पूर्वी प्रांत THURINGEN में पलायनकर्ताओं और शरणार्थियों को आम मज़दूरों की अपेक्षा एक तिहाई मज़दूरी दी जाती है और उनसे पेड़ों की कटाई और स्टेडियम की साफ़- सफ़ाई जैसे काम कराये जाते हैं और ब्रिटेन में भी पलायनकर्ता मज़दूरों की स्थिति कोई विशेष भिन्न नहीं है।

 

इसी संबंध में ब्रिटेन की गार्डियन पत्रिका ने इस देश के एक विश्वसनीय विश्वविद्यालय की रिपोर्ट के आधार पर लिखा है कि ब्रिक्स के बाद यानी यूरोपीय यूनियन से ब्रिटेन के निकल जाने के बाद ब्रिटेन को श्रमबल की कमी का सामना है और इस संकट का सामना व मुक़ाबला करने के लिए लंदन पहले की अपेक्षा इस समय बड़ी आसानी से पलायनकर्ताओं के लिए वर्कवीज़ा जारी कर रहा है और इससे नई ग़ुलामी के ख़तरे में वृद्धि हो गयी है।

 

फ्रांस में भी काम करने वाले पलायनकर्ताओं की स्थिति भिन्न नहीं है और उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है। यूरो न्यूज़ की रिपोर्ट के अनुसार French National Institute of Statistics and Economic Studies का अध्ययन इस बात का सूचक है कि फ्रांस में जो पलायनकर्ता और पलायनकर्ताओं के पोते व नाती काम करते हैं उनमें से अधिकांश सीमित समय तक काम करते हैं और काम के बदले उन्हें मज़दूरी भी कम दी जाती है और काम की स्थिति भी कठिन है यानी बुरी स्थिति व हालात में उन्हें काम करना पड़ता है।

 

French National Institute of Statistics and Economic Studies के अध्ययन के अनुसार पलायनकर्ताओं के कुछ गिरोह विशेषकर जो मोरक्को और दक्षिण अफ्रीक़ी मूल के हैं वे कम मज़दूरी पर काम करते हैं और फ्रांस में पलायन करने वालों के मध्य उनके पलायनकर्ता पूर्वजों की अपेक्षा उनमें बेरोज़गारी भी बहुत अधिक है। MM

कीवर्ड्सः नया साम्राज्य, यूरोपीय साम्राज्य, पलायनकर्ताओं के ख़िलाफ़ भेदभाव, यूरोप में पलायनकर्ताओं की स्थित व दशा, यूरोप में काम

हमारा व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए क्लिक कीजिए

हमारा टेलीग्राम चैनल ज्वाइन कीजिए

हमारा यूट्यूब चैनल सब्सक्राइब कीजिए!

ट्वीटर पर हमें फ़ालो कीजिए 

फेसबुक पर हमारे पेज को लाइक करें। 

टैग्स