हैम्बर्ग मस्जिद बंद, नो फ़ॉर इस्लामे मुहम्मदी, यस फ़ॉर रिलिज्ज़ एक्ट्रीमिज़म
(last modified 2024-08-07T12:31:37+00:00 )
Aug ०७, २०२४ १८:०१ Asia/Kolkata
  • हैम्बर्ग मस्जिद बंद, नो फ़ॉर इस्लामे मुहम्मदी, यस फ़ॉर रिलिज्ज़ एक्ट्रीमिज़म
    हैम्बर्ग मस्जिद बंद, नो फ़ॉर इस्लामे मुहम्मदी, यस फ़ॉर रिलिज्ज़ एक्ट्रीमिज़म

पार्सटुडे- इस्लामिक कल्चर एंड कम्युनिकेशन ऑर्गनाइज़ेशन के प्रमुख मोहम्मद मेहदी ईमानीपुर ने एक लेख में जर्मन सरकार द्वारा हैम्बर्ग में इस्लामिक सेंटर को बंद करने को इज़राइल के झूठे प्रोपेगैंडों में आने की जर्मनी की कमज़ोरी का संकेत क़रार दिया है।

इस्लामिक कल्चर एंड कम्युनिकेशन ऑर्गनाइज़ेशन के प्रमुख मोहम्मद मेहदी ईमानीपुर ने जर्मन सुरक्षा बलों के अप्रचलित हमले की समीक्षा की और सरकार द्वारा हैम्बर्ग इस्लामिक सेंटर को बंद करने के एलान की समीक्षा एक लेख में की।

पार्सटुडे के अनुसार, उन्होंने इस कार्रवाई को इस यूरोपीय देश में मानवाधिकारों, फ़्रीडम आफ़ स्पीच और नागरिकता अधिकारों की खुलती पोल क़रार दिया और लिखा:

हैम्बर्ग के इस्लामिक सेंटर और उसकी गतिविधियों की प्रवृत्ति के बारे में जर्मनी में मीडिया और आधिकारिक केंद्रों द्वारा किए गए झूठे और अजीबो ग़रीब औचित्य और बयान, निश्चित रूप से यथार्थवादी, स्वतंत्रता प्रेमियों और सही मन वाले लोगों के दिमाग़ को पर्दे के पीछे की सच्चाई से अनजान नहीं रख सकते।  

इस बारे में, कुछ बिंदु हैं जिन पर विचार करने की ज़रूरत है:

 

हैम्बर्ग इस्लामिक सेंटर, धार्मिक एकता और एकजुटता का प्रतीक

 

पहला बिंदु हैम्बर्ग इस्लामिक सेंटर के गौरवपूर्ण इतिहास और जर्मनी में इसके स्थान को ज़ाहिर करता है।

इस केंद्र की स्थापना हैम्बर्ग के मुसलमानों और धार्मिक लोगों के एक ग्रुप के अनुरोध पर की गई थी और सात दशकों से अधिक समय से इसने अन्य ईश्वरीय धर्मों और कई जर्मन नागरिकों के साथ शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण बातचीत के साथ अपना प्रभावी और सफल जीवन जारी रखा है। धर्म गुरुओं ने स्वीकार किया है कि इस सेन्टर को जर्मनी में धार्मिक संवाद और धार्मिक एकजुटता के महत्वपूर्ण केंद्रों में माना जाता है।

हैम्बर्ग इस्लामिक सेंटर की रचनात्मक गतिविधियों की समीक्षा इस दावे का सच्चा सबूत है। इन हालात में, हालिया बेशर्मी से भरी कार्रवाई, आध्यात्मिकता और धर्म की ओर रुझान रखने वालों के लिए धार्मिक एकता और एकजुटता और रचनात्मक चर्चा के स्पष्ट विरोध का एक नमूना है।

 

जर्मन की गठबंधन सरकार और ज़ायोनी ड्रामा

 

दूसरा बिंदु वर्तमान समय में जर्मन की गठबंधन सरकार के दृष्टिकोण को ज़ाहिर करता है। इससे पहले, हैम्बर्ग के इस्लामिक सेंटर के खिलाफ अवास्तविक दावे किए गए थे और इसे बंद करने का आधार तैयार किया गया था।

लेकिन मौजूदा गठबंधन सरकार उस ड्रामे के कार्यान्वयन में तेजी लाने की ज़िम्मेदार है जिसे तैयार करने के लिए ज़ायोनी लॉबी और अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन की सुरक्षा संस्थाएं ज़िम्मेदार हैं। इसलिए, हमें कहानी की वास्तविकता और उसके बारे में झूठे दावों के बीच समझदारी से अंतर करना चाहिए।

जर्मनी में आधिकारिक पार्टियां और संस्थाएं, हैम्बर्ग इस्लामिक सेंटर को बंद करने को क़ानूनी और आंतरिक प्रक्रिया का परिणाम मानने की कोशिश कर रही हैं जबकि ऐसा दावा मामले की सच्चाई से जनता के ध्यान को भटकाने और उनकी राय को ग़लत दिशा देने की एक मिसाल है।

इस समय, झूठे प्रोपेगैंडे एक अवसर पैदा करने और बच्चों के हत्यारे ज़ायोनी शासन के दबाव को कम करने का एक साधन हैं, ऐसी स्थिति में जब इस शासन का क्रूर चेहरा दुनिया में पहले से कहीं अधिक सामने आ चुका है।

 

इज़राइल के गोल पोस्ट में जर्मनी के राजनीतिक खेल की क़ीमत

 

तीसरी बात यह है कि अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन के गोल पोस्ट पर जर्मन पार्टियों का खेलना, बर्लिन के लिए हमेशा महंगा साबित हुआ है लेकिन इस साथ ही इसकी क़ीमत पहले से कहीं ज़्यादा होगी। ग़ज़ा नरसंहार के ख़िलाफ़ फ़िलिस्तीनियों की रक्षा में जर्मन नागरिकों के व्यापक और उत्साही प्रदर्शनों को बर्लिन की विदेश नीति के समकालीन इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है।

यहां पर, जर्मन अधिकारियों ने न केवल ज़ायोनी लॉबी से अपना रास्ता अलग करने का सबसे अच्छा मौक़ा खो दिया, बल्कि ग़ज़ा के जल्लादों और फ़िलिस्तीन के अवैध क़ब्ज़ेदारों के गोल पोस्ट में खेलना जारी रखते हुए, उन्होंने अपने और जर्मन नागरिकों के बीच मौजूद खाई को और भी गहरा कर दिया है।

 

हैम्बर्ग इस्लामिक सेंटर के बंद होने के परिणाम

 

चौथा बिंदु हैम्बर्ग इस्लामिक सेंटर को बंद करने के संबंध में जर्मन सरकार द्वारा लिए गए निर्णय के परिणामों से जुड़ा हुआ है। हम बुधवार 24 जुलाई के दिन को "ब्लैक बुधवार" या ब्लैक वेडनेस डे कहते हैं क्योंकि एक केंद्र या संस्थान से हटकर परे, अरबों लोगों की नज़रों के सामने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की हत्या कर दी गई थी।

दुनिया भर में लोगों को पहले से कहीं अधिक जिस बात की चिंता है, वह है मैक्रो-ट्रेंड और मेटाटेक्स्ट, जिसके तहत इस तरह की कार्रवाई को उचित ठहराया जाता है और दुनिया में कहीं भी और किसी भी बहाने से इसको दोहराया जा सकता है। कुछ लोग सोच सकते हैं कि जर्मन सरकार की हालिया कार्रवाई का लक्ष्य, इस्लामी गणतंत्र ईरान और इस्लामी क्रांति का नज़रिया और विचार है लेकिन ऐसा विचार ग़लत है। हैम्बर्ग इस्लामिक सेंटर को बंद करना 21वीं सदी में ईश्वरीय धर्मों के अनुयायियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, मानवाधिकार और रचनात्मक संवाद के सिद्धांत के ख़िलाफ कार्रवाई समझा जाता है।

अगर इस कार्रवाई के सामने चुप्पी साध ली जाए या कुछ धार्मिक हस्तियां इसे एक साधारण मसला और सीमित निर्णय मान लेती हैं तो वे बहुत बड़ी ग़लत पर हैं। पश्चिम में धर्म-विरोध ने खुद को विभिन्न रूपों में दुनिया के सामने पेश किया है जैसे कि अनेक धर्मों की पवित्र पुस्तकों को जलाना, प्रवृत्ति के मूल्यों को मिटाना, परिवार संस्था पर हमला करना, बेतुकेपन और अप्राकृतिक सुखवाद को मज़बूत करना और इन मामलों पर समझाने बुझाने के किसी भी प्रयास की पश्चिम की ओर से निंदा की जाती है।

इसलिए, हर धर्म और सभ्यता जो मनुष्य को अपने आप में और उसके अंतर्निहित मूल्यों की सुरक्षा के लिए अपनी ओर बुलाती है, यूरोप में छिपी हुई शक्ति संस्थानों की ब्लैक लिस्ट में शामिल होती है। इस प्रक्रिया को धर्मों के बीच एकता और एकजुटता के साथ समाप्त करना आवश्यक है जो निश्चित रूप से दुनिया के धर्मगुरुओं से हैम्बर्ग इस्लामिक सेंटर को बंद करने के फ़ैसले पर स्टैंड लेने के सबसे उद्देश्यपूर्ण तरीक़ों में एक होगा।

 

कीवर्ड्ज़: हैम्बर्ग इस्लामिक सेंटर, जर्मनी में शिया मुसलमान, जर्मनी में इस्लाम, जर्मनी में इस्लामोफ़ोबिया (AK)

 

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