क़तर संकट के तुरंत समाधान की ज़रूरत नहीं हैः ब्रिटेन
पश्चिम एशिया के संवेदनशील क्षेत्र और फार्स खाड़ी के देशों के मध्य मतभेद व तनाव सदैव हस्तक्षेप करने वाली विदेशी शक्तियों के हित में रहा है।
ब्रिटेन के विदेशमंत्री बोरिस जॉनसन ने कतर और फार्स खाड़ी के कुछ दूसरे पड़ोसी देशों के मध्य संकट के तुरंत समाधान को कठिन बताया है।
ब्रिटेन के विदेशमंत्री कतर और फार्स खाड़ी के देशों के मध्य मतभेद व संकट के समाधान की बात ऐसी स्थिति में कर रहे हैं जब कतर और सऊदी अरब तथा उसके घटकों के मध्य मतभेद प्रतिदिन पहले से अधिक होते जा रहे हैं और इस स्थिति का जारी रहना सबसे अधिक कुछ पश्चिमी देशों सहित क्षेत्रीय खिलाड़ियों के हित में है।
पश्चिम एशिया के संवेदनशील क्षेत्र और फार्स खाड़ी के देशों के मध्य मतभेद व तनाव सदैव हस्तक्षेप करने वाली विदेशी शक्तियों के हित में रहा है।
ब्रिटेन लगभग एक शताब्दी से फूट डालो और राज करो नीति अपना कर क्षेत्र में शासन कर रहा है और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन साम्राज्य का पतन हो जाने के बाद यही नीति पूरी शक्ति के साथ लोक लुभावन नारों की आड़ में अमेरिकियों ने जारी रखा यहां तक कि वर्ष 1979 में इस्लामी क्रांति के सफल हो जाने के बाद अमेरिका और ब्रिटेन ने अपने हितों को साधने के लिए ईरानोफोबिया को अपनी नीति बना ली।
इस समय सऊदी अरब और उसके घटकों द्वारा क़तर से संबंध तोड़े जाने और उसका परिवेष्टन किये हुए लगभग एक महीने का समय हो रहा है।
इस अवधि में कतरवासियों ने दर्शा दिया है कि आर्थिक और राजनीतिक कठिनाइयों के बावजूद वे अपनी संप्रभुता की भेंट सऊदी अरब के हितों पर नहीं चढ़ाना चाहते।
सऊदी अरब ने वर्तमान संकट के समाधान के लिए क़तर के सामने 13 शर्तें रखी थीं जिसे दोहा ने रद्द कर दिया है।
कतर की ओर से इस प्रकार के दृष्टिकोण का अपनाया जाना सऊदी अरब के समर्थक अमेरिका और ब्रिटेन को पसंद नहीं आयेगा। इस आधार पर रियाज़ और दोहा के मध्य मध्यस्थ की भूमिका निभाने वाले ब्रिटेन के विदेशमंत्री ने इस संकट के तुरंत समाधान न किये जाने की आवश्यकता पर बल दिया है। MM