May १५, २०२२ १५:१३ Asia/Kolkata

15 मई फ़िलिस्तीनियों के लिए नकबा या त्रासदी दिवस है तो वहीं इस्राईलियों के लिए अवैध ज़ायोनी शासन का स्थापना दिवस, जिसे वे स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाते हैं। यह दिन, ज़ायोनियों द्वारा फ़िलिस्तीनियों को उनके घरों से उजाड़ने और उनके जबरन पलायन का प्रतीक है।

नकबा अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है त्रासदी या तबाही। फ़िलिस्तीनी इस शब्द को उस स्थिति को बयान करने के लिए इस्तेमाल करते हैं, जब ज़ायोनियों ने उनके घरों और फ़िलिस्तीनी इलाक़ों पर जबरन क़ब्ज़ा करके उन्हें पलायन के लिए मजबूर कर दिया था। यह दिन फ़िलिस्तीनियों को लिए किसी क़यामत से कम नहीं था। इस दिन 8 लाख फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों के पहले जत्थे को उनके गांवों और शहरों से बाहर निकाल दिया गया था।

पहले विश्व युद्ध में उस्मानिया सल्तनत की हार के बाद मध्य-पूर्व में फ़िलिस्तीन के नाम से पहचाने जाने वाले क्षेत्र पर ब्रिटेन ने क़ब्ज़ा कर लिया था। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान यूरोप से यहदियों को खदेड़ दिया गया और बड़ी संख्या में उन्होंने फ़िलिस्तीन का रुख़ किया। 1947-48 में ज़ायोनी मिलिशियाओं ने फ़िलिस्तीनियों को निशाना बनाना शुरू किया और बड़े पैमाने पर उनका नरसंहार किया। फ़िलिस्तीन से ब्रिटेन के निकलने की घोषणा के बाद, ज़ायोनी मिलिशियाओं ने अवैध ज़ायोनी शासन की स्थापना की घोषणा कर दी। इन आतंकवादी संगठनों ने लाखों फ़िलिस्तीनियों को मौत के घाट उतार दिया। इस दौरान, ज़ायोनियों ने 400 से ज़्यादा फ़िलिस्तीनी गांवों, क़स्बों और शहरों को ख़ाली करवा लिया, जिसके बाद से मानव इतिहास में लंबे समय से जारी रिफ़्यूजी संकट की शुरूआत हुई, जो आज भी जारी है।

हालिया वर्षों में अमरीका के समर्थन से ज़ायोनी शासन ने अरब और पड़ोसी देशों के साथ संबंधों का सामान्य बनाने की बहुत कोशिश की है, ताकि वह 74 साल के राजनीतिक अलगाव से बाहर निकल सके और अपने अवैध अस्तित्व को मज़बूती प्रदान कर सके। इस्राईल का यह भी प्रयास है कि फ़िलिस्तीन के मुद्दे को अरब और मुस्लिम देश अपनी प्राथमिकता से निकाल दें और इसे हाशिए पर डाल दिया जाए। तुर्की के साथ संबंधों की बहाली और अरब देशों के साथ संबंधों का सामान्यकरण इसी नीति का एक हिस्सा है।

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इसके बावजूद, इस तरह के प्रयासों से न केवल ज़ायोनी शासन सुरक्षित नहीं हुआ, बल्कि फ़िलिस्तीनियों और ज़ायोनियों के बीच झड़पों में वृद्धि हो गई है। इन परिवर्तनों के बाद, फ़िलिस्तीनी इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि अपने अधिकारों की रक्षा के लिए दूसरे देशों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। वास्तव में फ़िलिस्तीनी, संयुक्त राष्ट्र समेत सभी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से निराश हो चुके हैं और इसी तरह वे अरब देशों से भी निराश हो चुके हैं। यही वजह है कि अवैध अधिकृत इलाक़ों में फ़िलिस्तीनी अपनी लड़ाई ख़ुद लड़ रहे हैं और शहादत दे रहे हैं। इसीलिए इस साल नकबा दिवस इस्राईलियों के लिए काफ़ी मंहगा साबित हो रहा है, जिससे ज़ायोनी शासन की कमज़ोरी भी ज़ाहिर हो रही है।

व्यक्तिगत रूप से की जाने वाली फ़िलिस्तीनियों की यह कार्यवाहियां, इस्राईल के सामने एक बड़ी चुनौती पेश कर रही हैं। पिछले पांच महीनों में इस तरह की पांच कार्यवाहियां हुईं, जिनमें 18 ज़ायोनियों की मौत हो गई और दसियों के अन्य घायल हो गए। हालिया हफ़्तों में फ़िलिस्तीनियों की अधिकांश प्रतिरोधी कार्यवाहियां 1948 में क़ब्ज़ा किए गए इलाक़ों में हुई हैं, जिसने ज़ायोनी शासन को अंदर तक झकझोर कर रख दिया है। 20 मार्च को नक़ब के रहने वाले फ़िलिस्तीनी युवक मोहम्मद अबुल क़ियान ने चाक़ू से हमला करके 4 इस्राईलियों को मौत के घाट उतार दिया। 27 मार्च को आयमन अग़बारिया और इब्राहीम अग़बारिया ने अल-ख़ज़रिया इलाक़े में इस्राईल के दो सीमावर्ती गार्डों को मार डाला। 29 मार्च को जेनिन के ज़िया हमारशा नामक फ़िलिस्तीनी ने बेनी बराक इलाक़े में 5 ज़ायोनियों की हत्या कर दी। 7 अप्रैल को तेल-अवीव में जेनिन के ही रहने वाले राद हाज़िम ने 3 इस्राईलियों को मौत के घाट उतार दिया। 29 अप्रैल को वेस्ट बैंक स्थित अवैध ज़ायोनी बस्ती एरियल में एक ज़ायोनी सैनिक को मौत के घाट उतार दिया गया। 5 मई को तेल-अवीव के निकट अल-आद ऑप्रेशन में 3 इस्राईली मारे गए और 10 अन्य घायल हो गए।

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इन अभियानों से संबंधित कुछ बिंदू ध्यान योग्य हैं, जो 74वें नकबा दिवस के मद्देनज़र अधिक महत्वपूर्ण हो गए हैं। इन ऑप्रेशनों में से तीन को उन अरबों ने अंजाम दिया है, जो 1948 के अवैध अधिकृत इलाक़ों में रहते हैं। ज़ायोनी शासन की भेदभावपूर्ण नीतियां और अरबों पर ज़ायोनियों के अत्याचारों ने अवैध अधिकृत इलाक़ों में रहने वाले फ़िलिस्तीनियों को इन हमलों के लिए मजबूर कर दिया है। दूसरे शब्दों में ज़ायोनी शासन को भीतर से और अवैध अधिकृत इलाक़ों में रहने वाले नागरिकों की ही ओर से ख़तरा उत्पन्न हो गया है।

दूसरे यह कि ज़ायोनी शासन की ख़ुफ़िया एजेंसियां इन अभियानों को रोकने में नाकाम रही हैं। इस्राईली सुरक्षा एजेंसियां अभी तक अलःआद ऑप्रेशन को अंजाम देने वाले फ़िलिस्तीनी जियालों को गिरफ़्तार नहीं कर सकी हैं। वास्तव में तेल-अवीव के निकट स्थित अल-आद इलाक़े में होने वाली यह कार्यवाही ज़ायोनी शासन के लिए एक बड़ा झटका है। यह कार्यवाही ख़ुफ़िया एजेंसियों के लिए बड़ी हार है, जो न केवल इस कार्यवाही को नहीं रोक सकी, बल्कि इसमें शामिल लोगों की जानकारी भी नहीं जुटा सकी हैं।

तीसरे यह कि इन कार्यवाहियों और विशेष रूप से अल-आद की कार्यवाही ने इस्राईल के तथाकथित स्वतंत्रता दिवस के जश्न को मातम में बदल दिया है। इस्राईली संसद में यमीना धड़े के प्रमुख नीर ओरबाख़ का कनहा हैः जिस दिन पर हमें गर्व करना था, उस दिन हमें बड़ा दर्द और दुख मिला, हमें अपनी पराजय को महसूस करना चाहिए।

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चौथे यह कि इस तरह के अभियानों से कि जिन्हें रोकना बहुत ही मुश्किल है, ज़ायोनी समाज का चैन और अमन छिन गया है। इस्राईली विदेश मंत्री यायिर लैपिद का भी यही मानना है कि इन हमलों से ज़ायोनी समाज का सुकून छिन गया है और वह भी एक झटके के साथ। इन ख़तरों को देखते हुए अवैध अधिकृत इलाक़ों से यहूदियों का उल्टा पयालन या रिवर्स माइग्रेशन शुरू हो गया है। वास्तव में ज़ायोनी शासन के अवैध अस्तित्व में शांति और सुरक्षा का मुद्दा सबसे महत्वपूर्ण है, ख़ास तौर पर दूसरे देशों से यहां आकर बसने वाले यहूदियों के लिए। लेकिन हालिया वर्षों में इसी मुद्दे पर सबसे ज़्यादा सवाल खड़े किए जा रहे हैं और इसका रंग अब फीका पड़ता जा रहा है।

पाचंवे यह कि इन अभियानों के परिणाम स्वरूप फ़िलिस्तीनियों का साहस बढ़ा है और उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ने का प्रोत्साहन मिला है। फ़िलिस्तीन के प्रतिरोधी गुटों ने कई बार यह चेतावनी दी है कि मस्जिदुल अक़्सा उनके लिए रेड लाइन है और इस पवित्र स्थल पर हर प्रकार के हमले का मुंह तोड़ जवाब दिया जाएगा। कहा जा सकता है कि फ़िलिस्तीन में घटने वाली हालिया कुछ घटनाओं से फ़िलिस्तीनियों के लिए एक नई आशा जगी है। इससे यह भी पता चलता है कि फ़िलिस्तीनी मुद्दा भुलाया नहीं जा सकता है और ख़ुद फ़िलिस्तीनी इसे इस्लामी जगत के केन्द्र में ज़िंदा रखेंगे।

इसके अलावा, फ़िलिस्तीनियों की व्यक्तिगत कार्यवाहियों ने ज़ायोनी शासन के लिए कई दूसरी बड़ी चुनौतियां पेश की हैं। कैथोलिक धर्मगुरु पोप फ्रांसिस अगले महीने अवैध अधिकृत इलाक़ों की यात्रा करने वाले थे, लेकिन इन क्षेत्रों में होने वाली इन कार्यवाहियों ने असुरक्षा की भावना को बढ़ा दिया है, जिसके बाद उनकी इस यात्रा के रद्द होने की संभावना बढ़ गई है। इससे पता चलता है कि अवैध अधिकृत इलाक़े असुरक्षा की समस्या से जूझ रहे हैं।

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इसके अलावा, अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीनी इलाक़ों में फ़िलिस्तीनियों की इन कार्यवाहियों ने नफ़्ताली बेनेत शासन को भारी नुक़सान पहुंचाया है। यह शासन कई ऐसी दलों के गठबंधन से बना है, जिनके आपस में गहरे मतभेद हैं और इससे कई लोगों के बाहर निकलने से यह पतन की कगार पर पहुंच गया है। बेनेत शासन के निकट सूत्रों का कहना है कि यह सरकार अगले एक महीने में गिर सकती है। इस्राईली अख़बार मारियो ने भी भविष्यवाणी की है कि बेनेत कैबिनेट से तीन मंत्री अपने पद से इस्तीफ़ा दे सकते हैं। अगर यह सरकार गिरती है तो इसका मतलब होगा कि ज़ायोनी शासन फिर से एक नए राजनीतिक गतिरोध में फंस गया है।

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