फ़िलिस्तीनी बच्चों का सिस्टमैटिक जनसंहार, दुनिया की ख़ामोशी और इस्राईल के अपराधों को उजागर करने के लिए ईरान ने उठाया बड़ा क़दम???
दुनिया के कलैंडर में किसी भी राष्ट्र ने फ़िलिस्तीनी राष्ट्र जितना दुख और दर्द सहन नहीं किया और जितना इस राष्ट्र पर ज़ुल्म के पहाड़ तोड़े गये उतना किसी भी राष्ट्र के ख़िलाफ़ ज़ुल्म नहीं हुआ।
फ़िलिस्तीनी राष्ट्र 70 साल से अधिक समय से इस्राईल के विभिन्न अपराधों का सामना कर रहा है। फ़िलिस्तीनी राष्ट्र पर ऐसे समय में या ऐसे काल में यह अत्याचार हो रहे हैं कि यह काल इतिहास के हर काल से ज़्यादा मानवाधिकारों की रक्षा का दम भरता है और मानवाधिकारों की रक्षा के नारे लगाता है।
अक्तूबर की पहली तारीख़, उन कटु दिनों में से एक है जब फ़िलिस्तीनी जनता की मज़लूमियत और उनका दुख दर्द अपने चरम पर पहुंच गया और फ़िलिस्तीन में ज़ायोनियों के अपराधों और उनकी दुश्मनी भी अपने चरम पर पहुंच गयी। यह दिन एक और वजह से दुनिया के इतिहास में हमेशा के लिए हमेशा के लिए अमर हो गया है। फ़िलिस्तीनी बच्चों के जनसंहार में ज़ायोनियों की क्रूरता और उसके अपराधों अमरीका और यूरोप में मानवाधिकारों के दावेदारों की चुप्पी अंतर्राष्ट्रीय टेलीवीजन के कैमरे के सामने हो रही है।
पहली अक्तूबर 2000 को अलअक़सा इंतेफ़ाज़ा या दूसरे इंतेफ़ाज़ा के पहले ही दिन, टेलीवीजन से 12 वर्षीय फ़िलिस्तीनी युवा का वीडियो जारी हुआ जो अपने पिता के पीछे छिपा हुआ था और इस्राईली सैनिकों की फ़ायरिंग से ख़ुद को बचा रहा था। यह घटना हिला देने वाली थी जिसको फ़्रांसीसी चैनल-2 के कैमरामैन ने अपने कैमरे में रिकार्ड किया और उसके बाद यह वीडियो चैनल से प्रासारित हुआ और यह वीडियो बच्चे की शहादत का दृश्य पेश करने के बाद ख़त्म हो गया।
इस फ़िलिस्तीनी नौजवान को इस्राईली सेना के स्नाइपरों ने गोली मार दी। बताया जाता है कि इस्राईली सैनिकों ने इस नौजवान फ़िलिस्तीनी को मारने के लिए उसके सिर को निशाना बनाया । यह घटना ऐसे समय में घटी जब दुनियाभर के संचार माध्यम इस घटना को कवरेज दे रहे थे। इस शहादत ने मुहम्मद अद्दूरा को प्रतिरोध का प्रतीक और बेगुनाह फ़िलिस्तीनी बच्चों का दिन क़रार दे दिया।
यही वजह है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान की संसद मजलिसे शूराए इस्लामी ने पहली अक्तूबर के दिन को फ़िलिस्तीनी नौजवानों और बच्चों से सहृदयता व्यक्त करने और उनसे सहानुभूति प्रकट करने के दिन के रूप में पास किया है। वर्ष 1948 में फ़िलिस्तीन की धरती के अतिग्रहण के समय से अब तक प्राप्त होने वाले आंकड़ों के आधार पर ज़ायोनी शासन अब तक हर प्रकार के अंतर्राष्ट्रीय नियमों और क़ानूनों का उल्लंघन करता रहा है और उसने फ़िलिस्तीनी नौजवानों और बच्चों के हक़ में अपराध करके इस बारे में पाए जाने वाले कन्वेन्शनों का भी उल्लंघन किया है।
ज़ायोनी शासन ने पिछले 70 साल के दौरान हज़ारों फ़िलिस्तीनी बच्चों को सीधे या गोली मार कर मौत के घाट उतार दिया है या उन्हें बुरी तरह घायल कर दिया। इस्राईली सैनिकों की कार्यवाही में बड़ी संख्या में फ़िलिस्तीनी अपंग हुए हैं या उन्होंने अपने शरीर का कोई महत्वपूर्ण अंग गंवा दिया है। यही नहीं अब भी इस्राईल की जेलों में सैकड़ों फ़िलिस्तीनी बच्चे बंद हैं और बहुत ही कठिन परिस्थितियों में जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
दुनिया में इस्राईल बहुत ही व्यवस्थित ढंग से और बहुत ही त्रासदीपूर्ण ढंग से बच्चों के अधिकारों का हनन कर रहा है। इंतेफ़ाज़ा की शुरुआत से अक्तूबर 2019 की समाप्ति तक 3000 से अधिक फ़िलिस्तीनी बच्चे शहीद हुए और दसियों हज़ार अन्य घायल हुए। इस आंकड़े के आधार पर 16 दिसम्बर 2016 से जब से अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने बैतुल मुक़द्दस को इस्राईल की राजधानी क़रार दिया था तब से लेकर 2019 की समाप्ति तक, 114 फ़िलिस्तीनी बच्चे शहीद हो चुके हैं और हज़ारों लोग घायल हो चुके हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव की वार्षिक रिपोर्ट के आधार पर 2020 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1031 हिंसा के मामले दर्ज किए जिनमें 340 बच्चों के ख़िलाफ़ भीषण हिंसा के मामले दर्ज किए गये थे। इन 340 मामलों में 11 बच्चे मारे गये थे 324 अपंग हो गये थे और 361 को बंदी बना लिया गया था जबकि इस्राईली सैनिकों ने 30 स्कूलों और अस्पतालों पर हमले किए थे।
भरपूर समर्थन की वजह से इन प्रस्तावों पर अभी तक कोई अमल नहीं हो सका है बल्कि ज़्यादातर प्रस्तावों को तो अमरीका ने सुरक्षा परिषद में भी वीटो कर दिया और इस तरह से उसने इस्राईल से अपनी दोस्ती का सबूत भी पेश कर दिया।
अमरीका द्वारा इस्राईल के इसी व्यापक समर्थन की वजह से ज़ायोनी शासन और अधिक दुस्साहस हो गया है और वह न केवल संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों पर अमल नहीं करता बल्कि इसके विपरीत अपने अपराधों और करतूतों का सिलसिला जारी रखे हुए है। फ़िलिस्तीन के मुहम्मद अलद्दूरा की हृदय विदारक शहादत के दृश्य से पूरी दुनिया के लोगों की भावनाओं को भड़का दिया लेकिन अभी फ़िलिस्तीन की धरती पर प्रतिदिन इस प्रकार के अपराध अंजाम दिए जा रहे हैं। अब भी फ़िलिस्तीनी बच्चे हेलीकाप्टरों और युद्धक विमानों के हमलों और बमबारियों तथा तोपख़ाने की ताबड़तोड़ गोले की वजह से अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं।
इस्राईल के मीज़ाइल हमले में चार महीने के दुधमुहे बच्चे ईमान हज्जू की शहादत ने पूरी दुनिया की भावनाओं को फिर से भड़का दिया और इसकी वजह से पोप फ़्रांसिस ने जब सीरिया का दौरा किया तो उन्होंने अपने बयान में इस त्रासदीपूर्ण घटना का उल्लेघ किया। दुनिया ने कभी भी यह दृश्य नहीं देखा कि 18 महीने की बेटी का फ़िलिस्तीन के ध्वज में लिपटा उसका शव उसका बाप उठाए हुए है और क़ब्रिस्तान की ओर जा रहा है ताकि अपने जिगर के टुकड़े को दफ़्ना सके, यह दृश्य आज भी दुनिया को याद है और वह इसको कभी भी नहीं भूल सकती।
फ़िलिस्तीनी बच्चों के शव दुनियावासियों के हैरत में डाल देते हैं लेकिन ज़ायोनी हर दिन नये नये अपराध अंजाम देते रहे हैं। यही कारण है कि ईरान के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ज़ायोनी शासन को बच्चों के हत्यारा शासन के रूप में याद करते हैं और उन्होंने इस शासन के लिए इस शब्द को बहुत ही सूझबूझकर चुना है। चार हज़ार फ़िलिस्तीनी बच्चों की शहादत और प्रदर्शनों के दौरान 2700 बच्चों का घायल होना, गिरफ़्तारी और जांच पड़ताल के दौरान होने वाली झड़पें, गिरफ़्तार होने वाले 50 हज़ार फ़िलिस्तीनी बच्चे, इस्राईल की जेल में बंद 160 फ़िलिस्तीनी बच्चे जिनमें से 95 प्रतिशत को विभिन्न प्रकार की यातनाएं दी जाती हैं।
इस्राईल की कार्यवाहियों की वजह से अब तक 45 हज़ार फ़िलिस्तीनी बच्चे अपंग हो चुके हैं। इस्राईली शासन को यह पता है कि फ़िलिस्तीन की अगली नस्ल ज़्यादा जागरूक, एकजुट और अत्याचार का विरोधय करने वाली है, इसीलिए उसने फ़िलिस्तीन की अगली पीढ़ी को निशाना बना रखा है। वर्ष 1948 में फ़िलिस्तीन के अतिग्रहण के समय से इस्राईल की नस्लभेदी जंग का शिकार ज़्यादातर बच्चे ही होते रहे हैं जबकि अमरीका और यूरोप की ओर से इस्राईल के व्यापक समर्थन की वजह से संयुक्त राष्ट्र संघ बचाव की मुद्रा में है और वह आजतक इस शासन के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं कर सका है।
आज इस्राईल के अपराधों पर दुनिया ख़ामोश है और इसी ख़ामोशी ने ज़ायोनी शासन को अधिक दुस्साहसी बना दिया है, फ़िलिस्तीनियों पर रोज़ अत्याचार हो रहे हैं लेकिन पश्चिम के तथाकथित मानवाधिकार रक्षक अर्थपूर्ण ख़ामोशी अख्तियार किए हुए हैं, इसीलिए दुनिया के हर मुसलमान को, हर इंसान को, हर स्वतंत्रता प्रेमी को अपने दायित्वों पर अमल करते हुए फ़िलिस्तीनियों के समर्थन के लिए उठ खड़े होना चाहिए।
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