Nov १६, २०२२ १९:३७ Asia/Kolkata

ज़ोमर आयतें 24-28

 

أَفَمَنْ يَتَّقِي بِوَجْهِهِ سُوءَ الْعَذَابِ يَوْمَ الْقِيَامَةِ وَقِيلَ لِلظَّالِمِينَ ذُوقُوا مَا كُنْتُمْ تَكْسِبُونَ (24)

इस आयत का अनुवाद हैः

तो क्या जो शख़्स क़यामत के दिन अपने मुँह को बड़े अज़ाब की ढाल बनाएगा (नजात पाने वाले के बराबर हो सकता है?) और ज़ालिमों से कहा जाएगा कि तुम (दुनिया में) जो कुछ करते थे अब उसका मज़ा चखो। [39:24]

पिछले कार्यक्रम की आख़िरी आयत में हिदायत पाने वाले और गुमराह हो जाने वाले दो समूहों का ज़िक्र किया गया। अब इस आयत में इसी विषय को आगे बढ़ाते हुए इन दोनों समूहों की तुलना और क़यामत में उनके अंजाम का उल्लेख किया गया है। आयत कहती है कि क्या वह व्यक्ति जो अपने चेहरे को ढाल बनाकर अल्लाह का अज़ाब ख़ुद से दूर करने की कोशश कर रहा है उस व्यक्ति के बराबर हो सकता है जो पूरी तरह सुरक्षा और सुकून के माहौल में है? उस दिन जहन्नमी ज़ालिमों की हालत इतनी दर्दनाक होगी कि अपने चेहरे को ढाल बनाएंगे क्योंकि उनके हाथ पांव ज़ंजीरों में बंधे होंगे।

हालांकि क़यामत में पापी इंसान के शरीर के सारे अंग आग में जल रहे होंगे लेकिन चेहरे का अलग से ख़ास तौर पर ज़िक्र इंसान के अंगों में चेहरे के ख़ास महत्व की वजह से किया गया है। इसलिए कि इंसान की पहिचान भी चेहरे की मदद से होती है। दूसरी बात यह है कि बदन के किसी अन्य अंग की तुलना में चेहरे का जल जाना बहुत बड़ी और तकलीफ़देह बात है।

आयत इसके आगे कहती है कि क़यामत में गुनहगारों से कहा जाएगा कि तुम लोग दुनिया में अपने बुरे कर्मों को भुगतो और देखो कि तुम्हारे अमल का कितना बुरा अंजाम तुम्हारे सामने आया है। यह आयत यह नहीं कहती कि अपने कर्मों की सज़ा झेलो बल्कि कहती है कि अपने कर्मों को भुगतो। बिल्कुल उस बावर्ची की तरह जो ख़राब खाना पकाए तो सज़ा के तौर पर उससे कहा जाए कि तुम ख़ुद अपना पकाया खाना खाओ और देखो कि क्या पकाया है?

क़यामत में अपने अमल को देखना और अपने कर्मों का सामना करना वह चीज़ है जिसे धार्मिक उपदेशों में कर्मों के शारीरिक रूप धारण करने का नाम दिया गया है। इसका मतलब यह है कि इंसान अपने कर्मों को साकार रूप में देखेगा और उसे भुगतेगा। यानी अल्लाह को अलग से कुछ और सज़ा देने की ज़रूरत ही नहीं है।

इस आयत से हमने सीखाः

जहन्नम का अज़ाब और सज़ा दुनिया में इंसान के कर्मों का ही नतीजा है जो भस्म कर देने वाली आग के रूप में उसके सामने आएगा।

इंसान क़यामत में अपने उन कर्मों को देखेगा जो उसने दुनिया में किए हैं।

अब आइए सूरए ज़ोमर की आयत संख्या 25 और 26 की तिलावत सुनते हैं,  

كَذَّبَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ فَأَتَاهُمُ الْعَذَابُ مِنْ حَيْثُ لَا يَشْعُرُونَ (25) فَأَذَاقَهُمُ اللَّهُ الْخِزْيَ فِي الْحَيَاةِ الدُّنْيَا وَلَعَذَابُ الْآَخِرَةِ أَكْبَرُ لَوْ كَانُوا يَعْلَمُونَ (26)

इन आयतों का अनुवाद हैः

जो लोग उनसे पहले गुज़र गए उन्होंने भी (पैग़म्बरों को) झुठलाया तो उन पर अज़ाब इस तरह आ पहुँचा कि उन्हें ख़बर भी न हुई [39:25] तो खुदा ने उन्हें (इसी) दुनिया की ज़िन्दगी में रुसवाई की लज्ज़त चखा दी और आख़ेरत का अज़ाब तो यक़ीनन उससे कहीं बढ़कर है, काश ये लोग यह बात जानते [39:26]

यह आयत दुनिया में काफ़िरों की हालत के बारे में बात करते हुए कहती है कि इतिहास में जिन लोगों ने पैग़म्बरों और उनके आसमानी उपदेशों को झुठलाया, इसी दुनिया में भी उन पर अल्लाह का अज़ाब नाज़िल हुआ। कुछ लोग ऐसे हैं जिन्होंने ज़ाहिरी तौर पर अज़ाब भुगता है और कुछ वे हैं जिन्हें अज़ाब के ग़ैर भौतिक आयामों को भुगतना पड़ा है।

कुछ अज़ाब ऐसे हैं जो शारीरिक पहलू वाले होते हैं जैसे हज़रत नूह की क़ौम और हज़रत लूत की क़ौम या फिर फ़िरऔन और क़ारून जैसे लोगों को मिलने वाला अज़ाब। वहीं कुछ अज़ाब ऐसे हैं जिनका मनोवैज्ञानिक और आत्मिक आयाम होता है। मिसाल के तौर पर आज के विकसित समाजों के पास बेपनाह सुख सुविधाएं हैं लेकिन फिर भी वे अवसाद की बीमारी से बुरी तरह परेशान हैं। जो इंसान अल्लाह से दूर हो जाता है उसे दुनिया में कोई भी चीज़ संतुष्ट नहीं कर सकती। कुछ समय बाद वह अवसाद से ग्रसित हो जाता है।

इन आयतों से हमने सीखाः

गुनहगारों के बुरे कर्मों के कुछ नतीजे तो दुनिया में ही ज़ाहिर होने लगते हैं और कुछ नतीजे आख़ेरत में सामने आएंगे। इसी तरह कुछ अज़ाब शारीरिक हैं और कुछ मनोवैज्ञानिक और आत्मिक हैं।

कुछ अज़ाब दुनिया में ज़ाहिर हो जाते हैं लेकिन क़यामत में मिलने वाली सज़ा बहुत अधिक कठोर होगी, उसका दायरा भी बड़ा होगा और उसका समय भी बहुत लंबा होगा।

ज़ालिमों और अपराधियों को सज़ा देना अल्लाह के लिए आसान है और वह उन्हें उस जगह से भी अज़ाब दे सकता है जिसके बारे में उन लोगों ने कभी सोचा भी नहीं होगा।

अब आइए सूरए ज़ोमर की आयत संख्या 27 और 28 की तिलावत सुनते हैं,

وَلَقَدْ ضَرَبْنَا لِلنَّاسِ فِي هَذَا الْقُرْآَنِ مِنْ كُلِّ مَثَلٍ لَعَلَّهُمْ يَتَذَكَّرُونَ (27) قُرْآَنًا عَرَبِيًّا غَيْرَ ذِي عِوَجٍ لَعَلَّهُمْ يَتَّقُونَ (28)

 

इन आयतों का अनुवाद हैः

और हमने तो इस क़ुरान में लोगों के (समझाने के) वास्ते हर तरह की मिसाल बयान कर दी है ताकि ये लोग नसीहत हासिल करें [39:27]  (हम ने तो साफ़ और सरल) एक अरबी क़ुरान (नाज़िल किया) जिसमें ज़रा भी पेचीदगी नहीं शायद वे लोग परहेज़गार बन जाएं। [39:28]

 

यह आयतें एक बार फिर क़ुरआन की विशेषताओं के बारे में बहस करती हैं और इस आसमानी किताब की व्यापकता की ओर इशारा करती हैं। आयतें कहती हैं कि यह क़ुरआन जिसका लक्ष्य लोगों की हिदायत करना है, उसमें वे सारी चीज़ें बयान कर दी गई हैं जिनका इंसान की हिदायत और कल्याण में कोई रोल हो सकता है। हक़ीक़त में क़ुरआन एक नूर है जो हमेशा चमकता है और रास्ता दिखाता है।

सृष्टि की व्यवस्था और उसकी हैरतअंगेज़ विशेषताओं पर तवज्जो, ज़िंदगी के सही रास्ते को तय करने के लिए स्पष्ट और ठोस क़ानून, भले लोगों की बेहतरीन ज़िंदगी और ज़ालिमों का बुरा अंजाम, मौत के बाद की दुनिया, क़यामत की बड़ी अदालत। इन विषयों और नजात व कल्याण के लिए इंसान को जिन जानकारियों की ज़रूरत है उन सबके बारे में क़ुरआन में बड़ी साफ़ और स्पष्ट मिसालें दी गई हैं ताकि लोग होश में आ जाएं और ग़फ़लत की नींद से जागें।

इसके बाद क़ुरआन की कुछ और विशेषताओं को बयान करते हुए कहा गया है कि इस किताब की भाषा बड़ी स्पष्ट, भली और दिल में उतर जाने वाली है। इसकी आयतें आपस में समन्वित और उनका पैग़ाम बहुत साफ़ है। इसमें किसी तरह की पेचीदगी नहीं है और न ही कोई विरोधाभास और टकराव है।

आख़िर में यह कहना चाहिए कि इन सारी विशेषताओं और ख़ासियतों वाले क़ुरआन को नाज़िल करने का मक़सद यह है कि इंसान परहेज़गार बनें और गुनाहों और बुरे कामों से दूर हो जाएं।

इन आयतों से हमने सीखाः

क़ुरआन एक संपूर्ण और समग्र किताब है, इंसान को सफल जीवन और नजात के लिए जिन चीज़ों की भी ज़रूरत है वह सब इसमें बयान कर दी गई हैं।

कभी उपमा और मिसालों के साथ बयान की गई बात तर्क वितर्क से ज्यादा असर करती है। इसीलिए क़ुरआन ने लोगों को समझाने के लिए मिसालों और उपमाओं की ज़बान इस्तेमाल की है।

क़ुरआन की ज़बान बिल्कुल स्पष्ट, सरल और उसका संदेश साफ़ है। यह किताब हर तरह के विरोधाभास और टकराव से सुरक्षित है।