Jan १०, २०२४ १६:१५ Asia/Kolkata

ग़ाफ़िर, आयतें 7-9

सूरए ग़ाफ़िर आयत संख्या

الَّذِينَ يَحْمِلُونَ الْعَرْشَ وَمَنْ حَوْلَهُ يُسَبِّحُونَ بِحَمْدِ رَبِّهِمْ وَيُؤْمِنُونَ بِهِ وَيَسْتَغْفِرُونَ لِلَّذِينَ آَمَنُوا رَبَّنَا وَسِعْتَ كُلَّ شَيْءٍ رَحْمَةً وَعِلْمًا فَاغْفِرْ لِلَّذِينَ تَابُوا وَاتَّبَعُوا سَبِيلَكَ وَقِهِمْ عَذَابَ الْجَحِيمِ (7(

इस आयत का अनुवाद हैः

जो (फ़रिश्ते) अर्श को उठाए हुए हैं और जो उस के इर्दगिर्द (तैनात) हैं (सब) अपने परवरदिगार की तारीफ़ के साथ तसबीह करते हैं और उस पर ईमान रखते हैं और मोमिनों के लिए बख़शिश की दुआएं माँगा करते हैं कि परवरदिगार तेरी रहमत और तेरा ज्ञान हर चीज़ पर छाया हुआ हैतो जिन लोगों ने (सच्चे) दिल से तौबा कर ली और तेरे रास्ते पर चले उनको बख़्श दे और उनको जहन्नम के अज़ाब से बचा ले। [40:7]

क़ुरआन की आयतों के अनुसार फ़रिश्ते इस कायनात के कामों का अंजाम देने वाली रचनाएं हैं और बहुत से मामलों में वे इंसानों और अल्लाह के बीच माध्यम का रोल अदा करते हैं। यह आयत इंसानों और फ़रिश्तों के बीच संबंध के एक नए पहलू का उल्लेख करते हुए कहती है कि अल्लाह के ख़ास फ़रिश्ते जो कायनात के संचालन के केन्द्र में यानी अर्शे परवरदिगार पर मौजूद हैं, वे ख़ुद भी अल्लाह की हम्द तसबीह करते रहते हैं और साथ ही ईमान वालों के लिए दुआएं करते हैं और अल्लाह से उनके लिए तौबा करते हैं। उनकी बातें इस तरह की होती हैं कि परवरदिगार तू इन बंदों की गुनाहों का ज्ञान रखता है और दूसरी ओर तेरी कृपा का दामन बहुत विशाल है तो तौबा करने वालों के गुनाहों को माफ़ कर दे और उन्हें जहन्नम के अज़ाब में डाले जाने से बचा ले।

दरअस्ल यह आयत मोमिन बंदों को बशारत देती है कि अर्शे परवरदिगार को उठाए रखने वाले फ़रिश्ते जो सृष्टि की सबसे ताक़तवर रचनाओं में गिने जाते हैं वे तुम्हारी मदद के लिए हैं। वे लगातार तुम्हारे लिए इस्तेग़फ़ार करते रहते हैं और अल्लाह से दुआ करते हैं कि तुम्हें क्षमा कर दे और अपनी असीम कृपा की छाया में ले ले। परवरदिगार उनकी ग़लतियों को माफ़ कर दे और जहन्नम के अज़ाब से उन्हें निजात दे दे। वे इस दुनिया में तुम्हारी कामयाबी और आख़ेरत में मग़फ़ेरत की दुआ करते हैं और यह मोमिन इंसानों के लिए सबसे बड़ी ढारस है।

इंसान के अंदर यह एहसास कि कायनात और वजूद इसी भौतिक संसार तक सीमित नहीं है बल्कि कायनात में एक अदृश्य शक्ति मौजूद है जो ईमान वालों का सहारा बनती है, उसके के लिए कठिनाइयों और तकलीफ़ों से भरी इस दुनिया में बहुत बड़ी ढारस है। यह एहसास इंसान के अंदर उम्मीद, उत्साह और अल्लाह की राह पर टिके रहने का हौसला पैदा करता है।

इस आयत से हमने सीखाः

यह चीज़ बड़ी उत्साहजनक है कि अल्लाह के ख़ास फ़रिश्ते मोमिन बंदों के लिए तौबा करते हैं और उनकी मदद करते हैं। इससे धर्म की राह पर चलने वालों को हौसला और मनोबल मिलता है।

दूसरों के लिए दुआ करना एक अच्छी परम्परा है। हमें फ़रिश्तों से सीख लेनी चाहिए और उनकी तरह दूसरों के लिए दुआ करनी चाहिए और अल्लाह से दूसरों के लिए नेकी और भलाई की प्रार्थना करनी चाहिए।

अल्लाह और फ़रिश्तों से इंसान के संपर्क का ज़रिया ईमान और नेक अमल है। अगर यह रिश्ता मज़बूत होगा तो इंसान दुनिया और आख़ेरत में तबाही से बच जाएगा।

सूरए ग़ाफ़िर आयत संख्या 8 और

رَبَّنَا وَأَدْخِلْهُمْ جَنَّاتِ عَدْنٍ الَّتِي وَعَدْتَهُمْ وَمَنْ صَلَحَ مِنْ آَبَائِهِمْ وَأَزْوَاجِهِمْ وَذُرِّيَّاتِهِمْ إِنَّكَ أَنْتَ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ (8) وَقِهِمُ السَّيِّئَاتِ وَمَنْ تَقِ السَّيِّئَاتِ يَوْمَئِذٍ فَقَدْ رَحِمْتَهُ وَذَلِكَ هُوَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ (9(

इन आयतों का अनुवाद हैः

हमारे पालने वाले इन को सदाबहार बाग़ों में जिनका तूने उन से वादा किया है दाख़िल कर और उनके बाप दादाओं और उनकी बीवियों और उनकी औलाद में से जो लोग नेक हों उनको (भी बख्श दे) बेशक तू ही शक्तिशाली (और) हिकमत वाला है [40:8] और उनको हर किस्म की बुराइयों से महफ़ूज़ रख और जिसको तूने उस दिन (क़यामत) के अज़ाबों से बचा लिया उस पर तूने बड़ा रहम किया और यही तो बड़ी कामयाबी है। [40:9]

पिछली आयत में फ़रिश्तों की तरफ़ से इंसानों के लिए अल्लाह से तौबा किए जाने की बात कही गई अब यह आयत इसके आगे कहती है कि फ़रिश्ते सिर्फ़ यह दुआ नहीं मांगते कि अल्लाह मोमिन बंदो के गुनाह माफ़ कर दे और उन्हें अज़ाब से महफ़ूज़ रखे बल्कि यह दुआ भी करते हैं कि यह मोमिन बंदे अपने परिवार के साथ हमेशा जन्नत की दिलनशीं वादियों में रहें।

अलबत्ता यहां तात्पर्य उन परिवारजनों से है जो जन्नत में जाने की लियाक़त रखते होंगे क्योंकि क़यामत में रिश्तेदारी और नातेदारी की बुनियाद पर कोई भी व्यक्ति अपने परिवार के साथ नहीं जा सकता बल्कि केवल ईमान और नेक अमल की बुनियाद पर ही जन्नत में क़दम रख पाना संभव होगा।

अलबत्ता यह उम्मीद है कि अगर जन्नत के लोग अल्लाह से दुआ करें कि उनके मां बाप, जीवनसाथी और बच्चे उनके साथ रहें तो अल्लाह उनमें से जो भी सक्षम होगा उसे अपनी कृपा से क्षमा करके जन्नत में पहुंचा दे और उन्हें एक साथ रख दे। यह चीज़ अल्लाह की गरिमा और तत्वदर्शिता से भी मेल खाती है।

अल्लाह ने क़ुरआन की एक अन्य आयत में वादा किया है कि हम मोमिन बंदों की बच्चों और नस्ल को जन्नत में उनके पूर्वजों से मिला देंगे। यह वादा अल्लाह की नज़र में परिवार के महत्व को ज़ाहिर करता है।

आयतें इसके बाद मोमिन बंदों के लिए फ़रिश्तों की दुआ के विषय को आगे बढ़ाते हुए कहती हैं कि फ़रिश्ते मोमिन बंदों के लिए दुनिया और आख़ेरत में बुराइयों से दूरी की दुआ करेंगे और यह मोमिन बंदों पर अल्लाह की ख़ास निगाहे करम की निशानी है। दरअस्ल लक्ष्य यह है कि सच्चे ईमान वाले बंदों को सम्मान के साथ जन्नत में ले जाया जाए।

ज़ाहिर है कि अगर किसी इंसान के हक़ में फ़रिश्ते दुआ करने लगें और वह जहन्नम से निजात पाकर जन्नत में चला जाए तो कल्याण और मुक्ति के सबसे महान दर्जे पर पहुंच सकता है और इंसान इससे बढ़कर किसी दर्जे के बारे में तसव्वुर भी नहीं कर सकता।

इन आयतों से हमने सीखाः

दूसरों के लिए दुआ फ़रिश्तों और अल्लाह के ख़ास बंदों की शैली है। गुमराही में पड़ जाने वाले इंसानों की आलोचना और बुराई करने के बजाए उनके लिए अल्लाह की बारगाह में माफ़ी की दुआ करते हैं।

जब तक इंसान गुनाह की गंदगी से पाक नहीं हो जाता उस वक़्त तक जन्नत में प्रवेश नहीं कर सकता।

महान कल्याण भौतिक और आध्यात्मिक बुराइयों से सुरक्षित रहने की स्थिति में ही हासिल होगा।

टैग्स