Jan १९, २०२४ १९:५४ Asia/Kolkata

सूरा ग़ाफ़िर आयतें 77-81

आइए पहले सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 77 की तिलावत सुनते हैं,

فَاصْبِرْ إِنَّ وَعْدَ اللَّهِ حَقٌّ فَإِمَّا نُرِيَنَّكَ بَعْضَ الَّذِي نَعِدُهُمْ أَوْ نَتَوَفَّيَنَّكَ فَإِلَيْنَا يُرْجَعُونَ (77)

इस आयत का अनुवाद हैः

तो (ऐ रसूल) तुम सब्र करो ख़ुदा का वादा यक़ीनन सच्चा है तो जिस (अज़ाब) की हम उन्हें धमकी देते हैं अगर हम तुमको उसमें से कुछ दिखा दें या तुम को (इसके पहले ही) दुनिया से उठा लें तो ( इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, आख़िरकार) उनको हमारी तरफ़ लौट कर आना है। [40:77]

यह आयत पैग़म्बरे इस्लाम और उनके अनुयाइयों को संयम और दृढ़ता के साथ विरोधियों की यातनाओं का मुक़ाबला करने की दावत देती है और कहती है कि विरोधियों के इंकार और उनकी तरफ़ से खड़ी की जाने वाली रुकावटों की वजह से हौसला कम नहीं होना चाहिए बल्कि इसके विपरीत जैसे जैसे ज़बान से और अमली तौर पर उनका विरोध बढ़ता जाए अल्लाह की राह में आपकी दृढ़ता और प्रतिरोध भी उतना ही बढ़ता रहे ताकि वक़्त गुज़रने के साथ धीरे धीरे आपको उन पर विजय मिल जाए।

अल्लाह के वादे के मुताबिक़ हक़ का इंकार करने वालों को इसी दुनिया में अज़ाब का मज़ा चखाया जाएगा मगर यह नहीं समझना चाहिए कि उनके कर्मों की सज़ा उन्हें निश्चित रूप से इसी दुनिया में मिल जाएगी। अल्लाह का वादा सच्चा है इसमें शक की गुंजाइश नहीं है। उसने जो वादा कर दिया वह सच होकर रहेगा चाहे उस समय हम जीवित हों या इस दुनिया से जा चुके हों। बहरहाल कर्मों की संपूर्ण सज़ा तो क़यामत में मिलेगी। वहां सारे इंसान मौजूद होंगे और एक दूसरे को मिलने वाली सज़ा या प्रतिफल को देखेंगे।

इस आयत से हमने सीखाः

दीन पर अमल करने की वजह से इंसानों को जिन तकलीफ़ों का सामना करना पड़ता है उन पर उन्हें संयम बरतना चाहिए। यह दीनदारी की एक पहचान है, कठिनाइयों और परेशानियों की वजह से दीन और उसकी जीवनदायक शिक्षाओं को छोड़ना नहीं चाहिए।

गुनहगारों को मिलने वाली सज़ा में देरी अल्लाह की हिकमत की वजह से है इससे अल्लाह के वादे और एलान में किसी शक और संदेह में नहीं पड़ना चाहिए।

अब आइए सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 78 की तिलावत सुनते हैं,

وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا رُسُلًا مِنْ قَبْلِكَ مِنْهُمْ مَنْ قَصَصْنَا عَلَيْكَ وَمِنْهُمْ مَنْ لَمْ نَقْصُصْ عَلَيْكَ وَمَا كَانَ لِرَسُولٍ أَنْ يَأْتِيَ بِآَيَةٍ إِلَّا بِإِذْنِ اللَّهِ فَإِذَا جَاءَ أَمْرُ اللَّهِ قُضِيَ بِالْحَقِّ وَخَسِرَ هُنَالِكَ الْمُبْطِلُونَ (78)

इस आयत का अनुवाद हैः

और तुमसे पहले भी हमने बहुत से पैग़म्बर भेजे उनमें से कुछ तो ऐसे हैं जिनके हालात हमने तुमसे बयान कर दिए, और कुछ ऐसे हैं जिनके हालात तुमसे नहीं दोहराए और किसी पैग़म्बर की ये मजाल न थी कि ख़ुदा के अख़्तियार दिए बग़ैर कोई चमत्कार दिखा सकें फिर जब ख़ुदा का हुक्म (अज़ाब) आ पहुँचा तो ठीक ठीक फ़ैसला कर दिया गया और अहले बातिल ही घाटे में रहे। [40:78]

पिछली आयत के बाद जिसमें पैग़म्बर को संयम और दृढ़ रहने की दावत दी गई अब इस आयत में अल्लाह पैग़म्बर को तसल्ली देता है और उनसे कहता है कि तुमसे पहले भी बहुत से पैग़म्बर आए और वो भी इसी तरह की परेशानियों का शिकार हुए मगर इसके बावजूद सत्य और हक़ की राह पर डटे रहे। अलबत्ता हमने उनमें से कुछ की परेशानियों के बारे में आपको बताया है, उनमें सब की परेशानियां आपको नहीं बताई हैं। सत्य से असत्व का टकराव पूरी तारीख़ में मौजूद रहा है यह किसी ख़ास दौर तक सीमित नहीं है। हमेशा घमंडी और ग़ुरूर में चूर लोगों का एक समूह सत्य के ख़िलाफ़ खड़ा हो जाता था और हक़ बात स्वीकार करने पर तैयार नहीं होता था। कुछ थे जो इतने पर नहीं रुके बल्कि सत्य और हक़ के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलकर खड़े हो गए और सत्य का संदेश लाने वालों को यातनाएं देने और क़त्ल कर देने की कोशिश करने लगे ताकि सत्य और हक़ को जड़ से उखाड़ दें।

वे दरअस्ल ज़िद्दी और बहानेबाज़ी करने वाले लोग हैं जो हर दिन कोई नया शिगोफ़ा छोड़ देते हैं। यही सब कुछ पहले के पैग़म्बरों के ज़माने में भी होता रहा। लोग उनसे नए नए चमत्कार की मांग करते थे और चाहते थे कि पैग़म्बर उनकी मर्ज़ी के हिसाब से चमत्कार दिखाएं। जबकि चमत्कार तो अल्लाह के अख़्तियार में है पैग़म्बरों के अख़्तियार में नहीं। पैग़म्बर कोई जादूगर तो होता नहीं जो अभ्यास करके जादूगारी दिखाने लगा हो। बल्कि वो तो अल्लाह की मर्ज़ी के अनुसार और अल्लाह की शक्ति की मदद से चमत्कार दिखाते हैं।

दूसरे शब्दों में इस तरह कहना चाहिए कि चमत्कार लोगों के मार्गदर्शन के लिए और पैग़म्बरों की सत्यता को प्रमाणित करने के लिए होता है इसलिए नहीं कि आए दिन लोग पैग़म्बर से मांग करें और वो लोगों की मांग और मर्ज़ी के हिसाब से चमत्कार दिखाते रहें।

आयत के आख़िरी हिस्से में इस बात पर ताकीद की गई है कि यह ज़िद्दी और गुमराह लोगों का क़यामत के दिन न्यायपूर्वक हिसाब किताब किया जाएगा। उस दिन वापसी के रास्ते बंद हो जाएंगे और ज़ालिमों की चीख़ पुकार का कोई असर नहीं होगा। उस वक़्त असत्य के रास्ते पर चलने वालों को नुक़सान उठाना पड़ेगा और उन्हें अच्छी तरह पता चल जाएगा कि उन्हें हर पहलू से घाटा उठाना पड़ा है। उन्हें पता चलेगा कि उनकी सारी पूंजी लुट चुकी है जबकि इसके बदले उनके हाथ कुछ नहीं लगा है बल्कि अल्लाह का प्रकोप उन्हें झेलना पड़ रहा है।

इस आयत से हमने सीखाः

पिछले ज़मानों की क़ौमों के इतिहास के अध्ययन पर क़ुरआन ने ताकीद की है ताकि हम सत्य के रास्ते पर मज़बूत क़दमों से डटे रहें और मुश्किलें और परेशानियां देखकर हम मायूस और ढीले न पड़ जाएं।

पैग़म्बरों के चमतकार अल्लाह के हुक्म से होते हैं लोगों की मांग के मुताबिक़ नहीं।

अस्ली घाटा क़यामत के दिन होने वाला है दुनिया में नहीं। दुनिया परस्त लोग इस भूल में न रहें कि उनकी अपार दौलत उनकी कामयाबी और ख़ुशक़िस्मती की निशानी है। क्योंकि दुनिया तो गुज़र जाने वाली है और हमेशा रहने वाले लोक में असत्य का रास्ता अपनाने वालों का हाथ बिल्कुल ख़ाली होगा।

अब आइए सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 79 से 81 तक की तिलावत सुनते हैं,

اللَّهُ الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ الْأَنْعَامَ لِتَرْكَبُوا مِنْهَا وَمِنْهَا تَأْكُلُونَ (79) وَلَكُمْ فِيهَا مَنَافِعُ وَلِتَبْلُغُوا عَلَيْهَا حَاجَةً فِي صُدُورِكُمْ وَعَلَيْهَا وَعَلَى الْفُلْكِ تُحْمَلُونَ (80) وَيُرِيكُمْ آَيَاتِهِ فَأَيَّ آَيَاتِ اللَّهِ تُنْكِرُونَ (81)

इन आयतों का अनुवाद हैः

ख़ुदा ही तो वह है जिसने तुम्हारे लिए मवेशी पैदा किए ताकि तुम उनमें से किसी पर सवार हो और किसी को खाओ। [40:79] और तुम्हारे लिए उनमें (और भी) फ़ायदे हैं और ताकि तुम उन पर (चढ़ कर) अपने दिली मक़सद तक पहुँचो और उन पर और कश्तियों पर सवार फिरते हो [40:80] और वह तुमको अपनी (क़ुदरत की) निशानियाँ दिखाता है तो तुम ख़ुदा की किन किन निशानियों को न मानोगे। [40:81]

इस सूरे में बार बार अल्लाह की तरफ़ से इंसानों को दी गई नेमतों का ज़िक्र किया गया है और इंसान को कुफ़्र और शिर्क से दूर रहने और अल्लाह की इबादत करने की दावत दी गई है। यह नेमतें मवेशियों के रूप में मौजूद नेमतों और उनसे इंसान को मिलने वाले फ़ायदे का ज़िक्र करती हैं। आयत कहती है कि अल्लाह ने कुछ जानवरों को तुम्हारे इस्तेमाल के लिए पैदा किया है जिनमें गाय, भेड़ और ऊंट जैसे जानवर हैं जिनका गोश्त इंसान खाता है वरना इंसान को यह अनुमति न होती कि वो बेगुनाह जानवर को ज़िबह करे।

जानवरों का गोश्त खाने के अलावा कुछ जानवरों को सूखे और तपते हुए मरुस्थल में सवारी के लिए इस्तेमाल किया जाता है। रोचक बात यह है कि आज यात्रा के साधनों में बड़े पैमाने पर होने वाली वृद्धि के बावजूद कुछ इलाक़े ऐसे हैं जहां से गुज़रने के लिए सबसे बेहतरीन माध्यम जानवर ही है। रेतीले इलाक़ों और पहाड़ी इलाक़ों में जानवर बहुत कारगर साबित होते हैं।

बहरहाल सवारी के लिए या सामान ढोने के लिए जानवरों का इस्तेमाल इंसान पर अल्लाह की मेहरबानी का नतीजा है ज़मीन पर वही काम करते हैं जो पानी में नाव करती है। इन मवेशियों के दूसरे भी बहुत से फ़ायदे हैं। इंसान को इनसे दूध, खाल ऊन और दूसरी चीज़ें मिलती हैं। इसके अलावा इंसान घूमने और तफ़रीह के लिए भी जानवरों का इस्तेमाल करता है। यह जानवर ज़मीन पर सफ़र का साधन है। इसी आयत में नाव की तरफ़ भी इशारा किया गया है। यानी अल्लाह ने सहरा और समुद्र दोनों जगह सफ़र करने और सामान ढोने का साधन इंसानों को दे दिया है ताकि वो आसानी से अपनी मंज़िल तक पहुंचे।

इस आयत के आख़िर में कहा गया है कि अल्लाह हमेशा अपनी निशानियां आपको दिखाता है और आप जहां भी देखिए इसकी निशानियां साफ़ नज़र आती हैं। जब यह निशानियां सबके लिए बिल्कुल स्पष्ट हैं तो फिर क्यों कुछ लोग इंकार करते हैं। हक़ीक़त यह है कि इंसान अल्लाह की नेमतों की क़द्र नहीं करता बल्कि अलग अलग वजहों से उनका इंकार करने पर तुल जाता है।

इन आयतों से हमने सीखाः

ज़मीन और उस पर मौजूद बाक़ी चीज़ें अल्लाह ने इंसान के लिए पैदा की हैं। अल्लाह ने इंसान को इजाज़त दी है कि वह सही ढंग से उनका इस्तेमाल करे।

हालांकि जानवरों की ताक़त इंसान से ज़्यादा होती है लेकिन अल्लाह ने उन्हें इंसानों के लिए राम कर दिया है और यह अल्लाह का लुत्फ़ है।

नाशुक्री इंसानों की आम आदत है। लोग अल्लाह की नेमतों से फ़ायदा उठाते हैं मगर फिर भी नाशुक्री करते हैं उसका आज्ञापालन करने पर तैयार नहीं होते।

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