Jan १९, २०२४ १८:०७ Asia/Kolkata

ग़ाफ़िर, आयतें 10-12

सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 10 

إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا يُنَادَوْنَ لَمَقْتُ اللَّهِ أَكْبَرُ مِنْ مَقْتِكُمْ أَنْفُسَكُمْ إِذْ تُدْعَوْنَ إِلَى الْإِيمَانِ فَتَكْفُرُونَ (10)

इस आयत का अनुवाद हैः

(हाँ) जिन लोगों ने कुफ़्र अख़तियार किया उनसे पुकार कर कह दिया जाएगा कि जितना तुम (आज) अपने आप से बेज़ार हो उससे बढ़कर ख़ुदा तुमसे बेज़ार था जब तुम ईमान की तरफ़ बुलाए जाते थे तो कुफ्र करते थे। [40:10]

पिछले कार्यक्रम में मोमिन और पाकीज़ा बंदों के लिए अल्लाह की असीम कृपा और रहमत के बारे में बात हुई। अब यह आयतें उन लोगों से अल्लाह की नाराज़गी और आक्रोश की बात करती हैं जो ज़िद और अड़ियलपन की वजह से सत्य के ख़िलाफ़ काम करते हैं और हक़ व सत्य को जानने के बावजूद ईमान नहीं लाते।

काफ़िर जब क़यामत में अपने अमल का अंजाम देखेंगे तो बहुत दुखी और शर्मिंदा होंगे और इसी पीड़ा में पेच व ताब खाएंगे। अपनी भी मलामत करेंगे कि उन्होंने यह रास्ता क्यों चुन लिया और अपने मार्गदर्शकों और साथियों की भी आलोचना करेंगे जिन्होंने उन्हें गुमराही के रास्ते पर ढकेला।

क़यामत के दिन वे लोग जो ईमान नहीं लाए अपने आप से बड़ी नफ़रत महसूस करेंगे लेकिन जहन्नम के कारिंदे उनसे कहेंगे कि तुम ज़िद्दी काफ़िरों से अल्लाह की नफ़रत इस बेज़ारी से कहीं ज़्यादा है जो तुम्हें अपने आप से हो रही है। क्योंकि तुम्हें अल्लाह के दूत सत्य के रास्ते की तरफ़ बुलाते रहे मगर तुम जान बूझ कर और ज़िद में पड़कर सत्य के रास्ते पर नहीं चले। अल्लाह की हिदायत के प्रकाश से ख़ुद को दूर रखा और कुफ़्र व इंकार का रास्ता अपनाया। यही नहीं जिन लोगों को अल्लाह ने हिदायत के लिए भेजा  तुमने उनका मज़ाक़ उड़ाया और अपमान किया।

इस आयत से हमने सीखाः

हक़ व सत्य का विरोध करना और अल्लाह के दूतों के ख़िलाफ़ काम करना अल्लाह को नाराज़ कर देता है जिस पर बाद में सज़ा दी जाएगी।

अल्लाह अगर किसी को सज़ा देता है तो इससे पहले उन्हें सुधरने और सत्य के रास्ते पर चलने के सारे ज़रिए मुहैया करा चुका होता है ताकि उनके पास बहाना न रह जाए।

अब आइए सूरए ग़ाफ़िर की आयतं संख्या 11 की तिलावत सुनते हैं,

قَالُوا رَبَّنَا أَمَتَّنَا اثْنَتَيْنِ وَأَحْيَيْتَنَا اثْنَتَيْنِ فَاعْتَرَفْنَا بِذُنُوبِنَا فَهَلْ إِلَى خُرُوجٍ مِنْ سَبِيلٍ (11)

इस आयत का अनुवाद हैः

वे लोग कहेंगे कि ऐ हमारे परवरदिगार तू हमको दो बार मार चुका और दो बार ज़िन्दा कर चुका तो अब हम अपने गुनाहों का एक़रार करते हैं तो क्या (जहन्नम से) निकलने का भी कोई रास्ता है। [40:11]

एक तथ्य जिसका काफ़िर हमेशा इंकार करते हैं मौत के बाद की दुनिया और क़यामत का हिसाब किताब है। उनका अक़ीदा है कि मौत के साथ ही इंसान का वजूद पूरी तरह ख़त्म हो जाएगा और कुछ भी बाक़ी नहीं बचेगा। लेकिन जब वे क़यामत का दिन देखेंगे  जहां ग़फ़लत के पर्दे हट चुके होंगे और हक़ीक़त सारे इंसानों की आंख के सामने होगी तब काफ़िर इक़रार करेंगे कि उन्होंने ग़लत और बेबुनियाद तरीक़े से ठोस हक़ीक़त का इंकार कर दिया जिसकी ख़बर पैग़म्बरों ने दी थी। अब वे अपनी ग़लती का इक़रार करते हुए कहेंगे कि परवरदिगार तूने एक बार नहीं बल्कि दो बार हमें मौत दी और दो बार ज़िंदा किया एक मौत तो उस वक़्त आई जब दुनिया का जीवन ख़त्म हुआ और हमारे शरीर का अंत हो गया इस मौत के बाद हमें अल्लाह ने बरज़ख़ की ज़िंदगी प्रदान की। दूसरी मौत तब आई जब पूरी कायनात ख़त्म हुई। इसके बाद अल्लाह ने क़यामत के दिन हमें फिर ज़िंदा किया।

इस तरह आयत से यह बात साफ़ हो जाती है कि दो मौत से तात्पर्य दुनियावी ज़िंदगी के अंत में आने वाली मौत और बरज़ख़ की ज़िदंगी की समाप्ति पर आने वाली मौत है। दो बार ज़िंदा करने से तात्पर्य दुनिया की ज़िंदगी के आख़िर में मौत के बाद बरज़ख़ में ज़िंदा किया जाना और इसके बाद क़यामत में ज़िंदा किया जाना है।

बहरहाल काफ़िर इस हक़ीक़त का इक़रार करके अल्लाह से यह चाहेंगे कि उनकी पिछली ग़लतियों को माफ़ कर दे और दुनिया में वापस पलटा दे ताकि वे अपने बुरे अमल की भरपाई करें या कम से कम जहन्नम की आग से निजात दे दे। हालांकि क़यामत के दिन इस पछतावे का कोई फ़ायदा नहीं होगा और जहन्नम से निकलने और पलट कर दुनिया में आने का कोई रास्ता नहीं होगा।

इस आयत से हमने सीखाः

क़यामत के दिन गुनहगार आरज़ू करेंगे कि दुनिया में लौटने का मौक़ा मिल जाए। तो जब तक हम दुनिया में हैं अपनी बुराइयों पर तौबा कर लें और पिछली ग़लतियों की भरपाई करें और कुछ इस तरह जीवन गुज़ारें कि हमें इस तरह की आरज़ू न करनी पड़े जो पूरी न होने वाली हो।

जो लोग मौत के बाद की ज़िंदगी का इंकार करते हैं वे दो मौत के बाद दो बार जीवित होने का अनुभव करेंगे एक तो बरज़ख़ की शुरुआत में और दूसरे क़यामत के दिन।

अब आइए सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 12 की तिलावत सुनते हैं,

ذَلِكُمْ بِأَنَّهُ إِذَا دُعِيَ اللَّهُ وَحْدَهُ كَفَرْتُمْ وَإِنْ يُشْرَكْ بِهِ تُؤْمِنُوا فَالْحُكْمُ لِلَّهِ الْعَلِيِّ الْكَبِيرِ (12)

इस आयत का अनुवाद हैः

ये (सज़ा) इसलिए कि जब केवल ख़ुदा पुकारा जाता था तो तुम इन्कार करते थे और अगर उसके साथ शिर्क किया जाता था तो तुम मान लेते थे तो (आज) ख़ुदा की हुकूमत है जो आलीशान (और) महान है। [40:12]

यह आयत कहती है कि कुफ़्र की शुरुआत शिर्क से होती है। इस तरह से कि कुछ लोग जो इंसानों और कायनात से जुड़े विषयों की सही समीक्षा नहीं कर पाते और यह नहीं समझ पाते कि सारे मामलों का संचालन अल्लाह के हाथ में है वे कहते हैं कि अल्लाह ने ही हमें पैदा किया है लेकिन पैदा करने के बाद हमें हमारे हाल पर छोड़ दिया है। अब हमें अपने विषयों और दुनिया के संचालन के लिए अल्लाह के अलावा दूसरे विकल्प खोजने होंगे।

दूसरे शब्दों में यह कहना चाहिए कि वे अल्लाह के वजूद का तो इंकार नहीं करते लेकिन कायनात का परवरदिगार उसे नहीं मानते। वे ख़ुद को अल्लाह के स्थान पर बिठा देते है। वे अपने लिए और दूसरों के लिए क़ानून बनाते हैं। वे कभी कभी जेहालत और नादानी में अंधविश्वास में पड़ जाते हैं और कुछ चीज़ों को बहुत ख़ास और इबादत के लायक़ मान लेते हैं मानो इन चीज़ों का कायनात के संचालन में बुनियादी रोल हो। जैसे सितारों की पूजा करने वाले और मूर्तियों की पूजा करने वाले यही सोच रखते हैं। इस सोच के साथ अगर उन्हें दुनिया में दोबारा भेज दिया जाए तो फिर दुनिया में वे वही करेंगे जो पहले कर रहे थे। उनके रवैए में कोई सुधार होने वाला नहीं है।

इस आयत से हमने सीखाः

तौहीद या एकेश्वरवाद में निष्ठा, हर तरह के शिर्क से दूरी क़यामत में इंसान की निजात का रास्ता है।

हमने बताया कि शिर्क में इंसान यह तो मानता है कि कायनात का पैदा करने वाला अल्लाह है लेकिन उसका मत यह होता है कि कायनात के संचालन में दूसरी बहुत सी हस्तियां हैं जो रोल निभाती हैं। मगर सच्चाई तो यह है कि पूरी तरह कुफ़्र भी अल्लाह का इंकार है और शिर्क भी अल्लाह के इंकार के बराबर है और यह दोनों ही इंसान को जहन्नम के अज़ाब में झोंक देंगे।

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