Jan १९, २०२४ १९:०२ Asia/Kolkata

सूरा ग़ाफ़िर, आयत 13-15

आइए पहले सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 13 और 14 की तिलावत सुनते हैं,

هُوَ الَّذِي يُرِيكُمْ آَيَاتِهِ وَيُنَزِّلُ لَكُمْ مِنَ السَّمَاءِ رِزْقًا وَمَا يَتَذَكَّرُ إِلَّا مَنْ يُنِيبُ (13) فَادْعُوا اللَّهَ مُخْلِصِينَ لَهُ الدِّينَ وَلَوْ كَرِهَ الْكَافِرُونَ (14)

इन आयतों का अनुवाद हैः

वही तो है जो तुमको (अपनी क़ुदरत की) निशानियाँ दिखाता है और तुम्हारे लिए आसमान से रोज़ी नाज़िल करता है और नसीहत तो बस वही हासिल करता है जो (उसकी तरफ़) पलटता है [40:13] तो तुम लोग ख़ुदा की इबादत को ख़ालिस करके उसी को पुकारो चाहे कुफ़्फ़ार बुरा ही मानें। [40:14]

पिछले कार्यक्रम में क़यामत के दिन काफ़िरों और शिर्क करने वालों की दुर्दशा के बारे में बताया गया। यह आयतें इसी क्रम में बात को आगे बढ़ाते हुए तौहीद और उसकी निशानियों की बात करती हैं। आयतें कहती हैं कि अल्लाह के एक और अनन्य होने की निशानियां उसकी पैदा की हुई चीज़ों में ज़ाहिर हैं जो तुम्हारे इर्द गिर्द फैली हुई हैं जिन्हें तुम हर दन देखते हो और उनसे सरोकार भी रखते हो। दूसरे शब्दों में यह कहना चाहिए कि अल्लाह की निशानियां कायनात के चप्पे चप्पे पर ज़ाहिर हैं। आसमान व ज़मीन, पहाड़ा, मैदानी इलाक़े, नदियां, अनेक प्रकार के पानी के जानवर, आसमान के परिंदे और ज़मीन पर रहने वाले जानवर सब के सब वह निशानियां हैं जो तुम्हारी नज़रों से पोशीदा नहीं हैं। इसके आगे आयत कहती है कि वही आसमान से तुम्हारे लिए रोज़ी नाज़िल करता है। उसकी सबसे अहम निशानियों में जो सारी वनस्पतियों, जानवरों और इंसानों की ज़िंदगी का स्रोत है बारिश की जीवनदायक बूंदें और सूरज की रौशनी है। यह दोनों ही चीज़ें आसमान से मिलती हैं और इनके बग़ैर ज़मीन पर जीवन का सिलसिला ख़त्म हो जाएगा।

कायनात में अल्लाह की इतनी सारी निशानियां होने के बावजूद वे आंखें और दिल कुछ नहीं देख पाते जिन पर पर्दा पड़ा होता है। दरअस्ल इन आयतों को देखकर वही लोग संभलते हैं जो अल्लाह की तरफ़ पलटने का इरादा रखते हैं। वे ख़ुद को सही रास्ते पर लाते हैं और अपने दिल व जान को हर गंदगी से बचाते हैं। बड़ी मशहूर कहावत है कि जो सो रहा है उसे तो आवाज़ देकर जगाया जा सकता है लेकिन जो सोने का नाटक कर रहा है और जागने का इरादा नहीं रखता उसको लाख पुकारा जाए वह जागने वाला नहीं है।

आयत में आगे कहा गया है कि अब जब तुम्हें पता चल गया कि कायनात की व्यवस्था चलाने में अल्लाह का कोई शरीक नहीं है उसी तरह इबादत में किसी को उसका शरीक नहीं बनाया जा सकता। अपना दीन विशुद्ध रखो और क़ानून बनाने की प्रक्रिया में किसी को अल्लाह का शरीक न बनाओ। बेशक तुम्हारा यह अमल काफ़िरों को बुरा लगेगा मगर तुम हरगिज़ डरो नहीं और अल्लाह के लिए अपना दीन बिल्कुल विशुद्ध रखो चाहे काफ़िरों को यह बात बुरी ही क्यों न लगे।

इन आयतों से हमने सीखाः

हमारे इर्द गिर्द फैली दुनिया में अल्लाह की निशानियां हर जगह मौजूद हैं। ज़रूरत बस इतनी है कि हम दिल की नज़र से अपने आसपास की दुनिया को देखें और इन रचनाओं को देखकर रचनाकार का आभास करें।

हर प्राणी की रचना अल्लाह की निशानियों में है इसी तरह उनका जीवन जारी रहने के लिए रोज़ी का इंतेज़ाम भी अल्लाह की अहम निशानियों में है।

दीन को हर तरह के अंधविश्वास और कुरीतियों व ग़लत परम्पराओं से दूर रखना, दीन विरोधी नियमों को ख़त्म करना सच्चे ईमान की निशानी है।

अक़ीदे के विषय में हम दूसरों को ख़ुश और आश्वस्त करने की फ़िक्र में न रहें सत्य और सच्चाई को दिल से क़ुबूल करें और उस पर अमल करें चाहे काफ़िरों को यह बात बुरी ही क्यों न लगे।

अब सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 15 की तिलावत सुनते हैं,

رَفِيعُ الدَّرَجَاتِ ذُو الْعَرْشِ يُلْقِي الرُّوحَ مِنْ أَمْرِهِ عَلَى مَنْ يَشَاءُ مِنْ عِبَادِهِ لِيُنْذِرَ يَوْمَ التَّلَاقِ (15)

इस आयत का अनुवाद हैः

वह दर्जे बुलंद करने वाला है और अर्श का मालिक है, वह अपने बन्दों में से जिस पर चाहता है अपने हुक्म से रूह (वहि लाने वाले फ़रिश्ते) को  नाज़िल करता है ताकि (लोगों को) मुलाक़ात (क़यामत) के दिन से डराएं। [40:15]

यह आयत अल्लाह की कुछ विशेषताओं को बयान करती है और पिछली आयत के ही क्रम में जो विशुद्ध दीन पर ताकीद करती है, यह आयत कहती है कि मोमिन बंदे अपने दीन में जितने मुख़लिस और विशुद्ध रहेंगे उनका दर्जा उतना ही ऊंचा होता जाएगा ख़ुद पैग़म्बरों के सिलसिले में भी यही है कि जिन पैग़म्बरों ने बड़ी परीक्षाओं में कामयाबी हासिल की और अपना इख़लास ऊंचाइयों पर पहुंचाया उन्हें ज़्यादा ऊंचा स्थान हासिल हुआ। बेशक अल्लाह हर इंसान को उसकी निष्ठा और इख़लास के अनुसार दर्जा प्रदान करता है।

इसके बाद आयत कहती है कि अल्लाह अर्श का मालिक है। उसका प्रभुत्व पूरी कायनात पर छाया हुआ है, उसके वर्चस्व को कोई चुनौती देने वाला नहीं है।

पिछली आयतों में कायनात की रचना में अल्लाह की निशानियों की निशानदेही की गई अब यह आयत कायनात के संचालन की बात करती है और कहती है कि अल्लाह ने इंसानों को उनके हाल पर छोड़ नहीं दिया है बल्कि उन्हें रोज़ी देने के साथ ही जो वह सारे प्राणियों को प्रदान करता है, इंसानों के लिए रूहानी रोज़ी भी निर्धारित की है। इस रोज़ी का ज़रिया फ़रिश्ते और पैग़म्बर बनते हैं जिनके माध्यम से अल्लाह लोगों को सचेत और ख़बरदार करता है कि क़यामत का दिन आने वाला है।

दरअस्ल क़यामत का दिन मुलाक़ात का दिन है। इस दिन इंसान अपने परवरदिगार से मुलाक़ात करेगा अलबत्ता यह मुलाक़ात शरीर को देखने के अर्थ में नहीं है क्योंकि अल्लाह तो निराकार है। इस दिन सत्य और असत्य अपने सारे अनुयाइयों के साथ मिलेंगे। यह अच्छे और भले लोगों की मुलाक़ात का दिन होगा। यह इंसान और उसके कर्मों की मुलाक़ात का दिन होगा। इस दिन ज़ालिम का सामना मज़लूम से कराया जाएगा जिससे कभी मिलने का उसने तसव्वुर भी न किया होगा। बेशक सारे पैग़म्बरों और आसमानी किताबों को भेजने का मक़सद यह है कि अल्लाह के बंदों को क़यामत के दिन के बारे में ख़बरदार किया जाए।

इस आयत से हमने सीखाः

दीन का रास्ता बुलंदियों और परिपूर्णता की तरफ़ ले जाने वाला रास्ता है। इस रास्ते पर जो भी संघर्ष करता है अल्लाह उसे बुलंदियों पर पहुंचाता है।

वहि लाने वाला फ़रिश्ता अल्लाह का फ़रमान उस तक पहुंचाता है जिसके बारे में अल्लाह उसे हुक्म देता है।

पैग़म्बर अल्लाह के चुनिंदा लोग हैं अल्लाह अपने इल्म के आधार पर उन्हें चुनता है।

पैग़म्बर हमदर्दी के तहत इंसानों को उस ख़तरे से आगाह करते हैं जो उनकी ज़िंदगी के रास्ते में मौजूद हैं। जो भी इन चेतावनियों पर तवज्जो देता है वह ख़ुशक़िस्मत होता है जो उपेक्षा करता है तबाह हो जाता है।

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