Jan १९, २०२४ १९:०७ Asia/Kolkata

सूरा ग़ाफ़िर आयतें 16-20

आइए पहले सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 16 और 17 की तिलावत सुनते हैं,

يَوْمَ هُمْ بَارِزُونَ لَا يَخْفَى عَلَى اللَّهِ مِنْهُمْ شَيْءٌ لِمَنِ الْمُلْكُ الْيَوْمَ لِلَّهِ الْوَاحِدِ الْقَهَّارِ (16) الْيَوْمَ تُجْزَى كُلُّ نَفْسٍ بِمَا كَسَبَتْ لَا ظُلْمَ الْيَوْمَ إِنَّ اللَّهَ سَرِيعُ الْحِسَابِ (17)

इन आयतों का अनुवाद हैः

जिस दिन वे लोग ज़ाहिर हो जाएंगे (और) उनकी कोई चीज़ ख़ुदा से पोशीदा नहीं रहेगी (और आवाज़ आएगी) आज किसकी बादशाहत है? ख़ास ख़ुदा की जो अनन्य (और) ग़ालिब है। [40:16] आज हर शख़्स को उसके किए का बदला दिया जाएगा, आज किसी पर कुछ भी ज़ुल्म न किया जाएगा बेशक ख़ुदा बहुत जल्द हिसाब लेने वाला है। [40:17]

पिछले कार्यक्रम की आख़िरी आयत में इस बिंदु का उल्लेख किया गया कि अल्लाह ने आसमानी किताबों और पैग़म्बरों के ज़रिए क़यामत के दिन की जानकारियां बंदों को दे दी हैं। अब यह आयतें क़यामत के दिन का चित्रण करते हुए कुछ विशेषताओं का ज़िक्र कर रही हैं। यह आयतें कहती हैं कि उस दिन पर्दे हट जाएंगे और सारी चीज़े बेनक़ाब होकर सामने आ जाएंगी। सब के कर्म पत्र खोल दिए जाएंगे और लोगों की अंदरूनी हक़ीक़त भी सामने आ जाएगी। कोई भी चीज़ पोशीदा नहीं रहेगी।

दुनिया में भी कोई चीज़ अल्लाह से तो पोशीदा नहीं है मगर फिर भी इंसान इस भ्रम में रहता है कि कुछ चीज़ें वह अल्लाह से छिपा सकता है मगर क़यामत के दिन सबको पता चल जाएगा कि हक़ीक़त में अल्लाह से कोई भी चीज़ छिपी नहीं है, सारे इंसानों के सारे कर्म पूरे विस्तार के साथ दर्ज किए गए हैं।

क़यामत में सारे इंसान अपने पूरे वजूद और सारी हक़ीक़तों के साथ क़यामत के विशाल मैदान में हाज़िर होंगे। कोई भी चीज़ पोशीदा नहीं रहेगी। यक़ीनन वह बड़ा अजीब और दिल दहला देने वाला दृष्य होगा।

उस दिन अल्लाह की निरंकुश बादशाहत होगी। बेशक दुनिया में भी सब कुछ अल्लाह के अख़तियार में है लेकिन क़यामत में यह बादशाहत बहुत स्पष्ट रूप में नज़र आएगी। वहां ज़ालिम और सरकश लोगों का कोई बस नहीं चलेगा। क़यामत में हर चीज़ पर अल्लाह का इस तरह वर्चस्व होगा कि इंसानों के हाथ पांव और अंग भी उनके अपने अख़तियार में नहीं होंगे। जब भी अल्लाह चाहेगा इंसान के हाथ पांव और अन्य अंग ख़ुद उस इंसान के ख़िलाफ़ गवाही देंगे।

वह दिन कर्मों की सज़ा या इनाम मिलने का दिन है। जिसने कुछ उपलब्धि हासिल की है उस दिन उसका नतीजा देखेगा। दर हक़ीक़त दुनिया में हमारी सोच और हमारे अमल का हमारी रूह पर गहरा असर होता है जो क़यामत तक बाक़ी रहता है और क़यामत के दिन उसी के आधार पर सज़ा या इनाम दिया जाएगा।

दुनिया में ज़ुल्म बहुत ज़्यादा है और इंसान अधिक लाभ और आनंद हासिल करने के लिए एक दूसरे पर ज़ुल्म करते हैं लेकिन क़यामत में किसी के पास दूसरे पर ज़ुल्म करने की सकत नहीं होगी क्योंकि उस दिन बादशाहत अल्लाह की होगी और अल्लाह अपने बंदों पर हरगिज़ ज़ुल्म नहीं करता। बल्कि हर किसी को उसके कर्म के आधार पर सज़ा या इनाम देगा और यह काम बहुत तेज़ी से अंजाम दिया जाएगा।

दुनयावी अदालतों में तो इंसाफ़ मिलने में वर्षों और महीनों लग जाते हैं मगर क़यामत में बंदों की शिकायतों और कर्मों की समीक्षा आनन फ़ानन में पूरी होगी और हर किसी को पता चल जाएगा कि उसे क्या सज़ा मिलनी है और क्या इनाम दिया जाने वाला है। इसका मतलब यह है कि क़यामत में पापियों को एक क्षण की भी मोहलत नहीं मिलेगी।

 

इन आयतों से हमने सीखाः

इस भूल में नहीं रहना चाहिए कि हम अल्लाह से भी कुछ छिपा सकते हैं। क्योंकि क़यामत के दिन तो सारे राज़ बेनक़ाब होकर सामने आ जाएंगे कुछ छिपाने या इंकार करने की गुंजाइश नहीं रहेगी।

क़यामत में कोई भी हिसाब किताब से बचेगा नहीं दुनिया में हमारे कर्म के आधार पर अल्लाह हमें सज़ा या इनाम देगा। आरज़ूओं, रिश्तेदारियों या इस प्रकार की अन्य चीज़ों का असर नहीं होगा।

अल्लाह कायनात की सबसे बड़ी शक्ति है और उसके समान कोई भी नहीं है मगर वह किसी पर भी हरगिज़ ज़ुल्म नहीं करता।

अब आठए सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 18 से 20 तक की तिलावत सुनते हैं,

وَأَنْذِرْهُمْ يَوْمَ الْآَزِفَةِ إِذِ الْقُلُوبُ لَدَى الْحَنَاجِرِ كَاظِمِينَ مَا لِلظَّالِمِينَ مِنْ حَمِيمٍ وَلَا شَفِيعٍ يُطَاعُ (18) يَعْلَمُ خَائِنَةَ الْأَعْيُنِ وَمَا تُخْفِي الصُّدُورُ (19) وَاللَّهُ يَقْضِي بِالْحَقِّ وَالَّذِينَ يَدْعُونَ مِنْ دُونِهِ لَا يَقْضُونَ بِشَيْءٍ إِنَّ اللَّهَ هُوَ السَّمِيعُ الْبَصِيرُ (20)

इन आयतों का अनुवाद हैः

 (ऐ रसूल) तुम उन लोगों को उस दिन से डराओ जो अनक़रीब आने वाला है जब लोगों के कलेजे घुट घुट के (मारे डर के) मुँह को आ जाएंगें (उस वक्त) न तो सरकशों का कोई सच्चा दोस्त होगा और न कोई ऐसा सिफारिशी जिसकी बात मान ली जाए। [40:18] ख़ुदा तो ऑंखों की ख़यानत की नज़र को भी जानता है और उन बातों को भी जो (लोगों के) सीनों में पोशीदा हैं। [40:19] और ख़ुदा ठीक ठीक हुक्म देता है, और उसके सिवा जिनकी ये लोग इबादत करते हैं वे तो कुछ भी हुक्म नहीं दे सकते, इसमें शक नहीं कि ख़ुदा सुनने वाला, देखने वाला है। [40:20]

क़यामत के दिन का दृष्य बयान करते हुए यह आयतें आगे कहती हैं कि यह न सोचो कि क़यामत का दिन दूर है कि निश्चिंत होकर जो दिल में आए किया जा सकता है। जान लो कि क़यामत नज़दीक है और तुम्हें अपने हर कर्म का हिसाब देना पड़ेगा।

क़यामत वह दिन है जिसके ख़ौफ़ और डर से कलेजा मुंह को आ जाएगा, दिल पर वो बेचैनी छा जाएगी कि मानो वह सीना फाड़कर बाहर निकल आने की कोशिश कर रहा होगा। यह बातें क़यामत के दिन के बेहद कठिन हालात का आभास कराती हैं।

लोगों के बीच बदनामी और अल्लाह के कठोर हिसाब का सामना करना और भयानक सज़ा झेलने के डर से लोग इतने बेचैन और सहमे हुए होंगे कि उस हालत को किसी भी तरह बयान करना संभव नहीं है। उनके वजूद में दुख और पीड़ा भर जाएगी, उनकी ज़बानें गूंगी हो जाएंगी कुछ बयान करने की उनमें सकत नहीं रहेगी। वह अल्लाह के इंसाफ़ का पटल होगा वहां किसी को हंगामा और शोर शराबा करने की इजाज़त नहीं होगी।

इतने सख़्त हालात में हर किसी को उम्मीद होगी कि कोई प्रभावशाली इंसान या दोस्त मदद के लिए आ जाए मगर क़ुरआन कहता है कि कोई दोस्त और सिफ़ारिश करने वाला नहीं होगा जो उस कठिन घड़ी में मदद करे यहां तक कि उसे तसल्ली भी देने वाला कोई नहीं होगा। क्योंकि हर इंसान अपने हिसाब किताब में बुरी तरह उलझा होगा तो दूसरे के लिए कैसे कुछ कर पाएगा।

इन आयतों में आगे अल्लाह के इल्म की बात की गई है कि जिन जगहों पर तुम्हारी कन्खियों के इशारे दूसरों की  नज़र से पोशीदा रहते हैं और तुम इस ख़याल में रहते हो कि किसी ने तुम्हारी यह नज़र देखी नहीं अल्लाह वहां भी तुम्हारी उस ग़लत नज़र को देख रहा होता है। उसे तुम्हारे मन की बातों और इरादों व जज़्बों तक की पूरी जानकारी है।

आंख की ख़यानत कई तरह की हो सकती है। पराई औरत को ग़लत नज़र से देखना, या किसी को उपहास की नज़र से देखना, या किसी को तौहीन की नज़र से देखना। यह सब आंख की ख़यानते हैं।

यक़ीनन अगर इंसान को यक़ीन हो कि क़यामत में इन सारी चीज़ों को बड़ी बारीकी से हिसाब लिया जाएगा  यहां तक कि नज़र, सोच और जज़्बात पर भी गहरी निगरानी है तो वह अपने अंदर तक़वा और परहेज़गारी के उसूलों का पालन करेगा।

बेशकर अल्लाह जो हमारी आंखों के इशारों, सीने के राज़ों और हमारी सोच से आगाह है क़यामत के दिन लोगों के अमल का फ़ैसला करेगा। उस दिन फ़ैसला केवल उसी के अख़तियार में होगा और वह इंसाफ़ के मुताबिक़ ही फ़ैसला करेगा। चूंकि अल्लाह के अलावा दूसरों को इतना व्यापक ज्ञान नहीं है, केवल ज़ाहिरी रूप ही उनकी नज़र के सामने है इसलिए वे फ़ैसला करते समय हो सकता है कि नाइंसाफ़ी कर दें और किसी के साथ ज़्यादती हो जाए।

इन आयतों से हमने सीखाः

क़यामत का दरवाज़ा कि जो मौत है, बहुत नज़दीक है, उसे दूर न समझें बल्कि ख़ुद को उसके लिए तैयार करें ।

क़यामत के दिन के हिसाब किताब का ख़ौफ़ एक तरफ़ और अपने पिछले कर्मों का अफ़सोस और पछतावा दूसरी तरफ़ गुनहगाहरों की बड़ी बुरी स्थिति होगी मगर वह इस पर शोर शराबा भी नहीं कर पाएंगे।

क़यामत का दिन पापियों के अकेले पड़ जाने का दिन होगा। क़रीबी दोस्त और प्रभावशाली लोग भी गुनाहगारों की मदद नहीं कर पाएंगे। उस दिन किसी को किसी की फ़िक्र नहीं होगी।

यह अक़ीदा कि अल्लाह हमारी नीयतों और जज़्बात से भी बाख़बर है इंसान को ज़ुल्म, सितम और बुरे कामों से रोकता है और यह एहसास बहुत अच्छा नियंत्रक साधन है।

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