Jan १९, २०२४ १९:११ Asia/Kolkata

सूरा ग़ाफ़िर, आयतें 21-25

आइए सबसे पहले सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 21 और 22 की तिलावत सुनते हैं,

أَوَلَمْ يَسِيرُوا فِي الْأَرْضِ فَيَنْظُرُوا كَيْفَ كَانَ عَاقِبَةُ الَّذِينَ كَانُوا مِنْ قَبْلِهِمْ كَانُوا هُمْ أَشَدَّ مِنْهُمْ قُوَّةً وَآَثَارًا فِي الْأَرْضِ فَأَخَذَهُمُ اللَّهُ بِذُنُوبِهِمْ وَمَا كَانَ لَهُمْ مِنَ اللَّهِ مِنْ وَاقٍ (21) ذَلِكَ بِأَنَّهُمْ كَانَتْ تَأْتِيهِمْ رُسُلُهُمْ بِالْبَيِّنَاتِ فَكَفَرُوا فَأَخَذَهُمُ اللَّهُ إِنَّهُ قَوِيٌّ شَدِيدُ الْعِقَابِ (22)

इन आयतों का अनुवाद हैः

क्या उन लोगों ने ज़मीन पर चल फिर कर नहीं देखा कि जो लोग उनसे पहले थे उनका अन्जाम क्या हुआ (हालाँकि) वह लोग ताक़त (शान और उम्र सब) में और ज़मीन पर अपनी निशानियाँ (यादगार इमारतें) वग़ैरह छोड़ जाने में भी उनसे कहीं बढ़ चढ़ के थे तो ख़ुदा ने उनके गुनाहों की वजह से उनको धर दबोचा, और ख़ुदा (के ग़ज़ब से) उनको कोई बचाने वाला भी न था। [40:21] ये इस सबब से कि उनके पैग़म्बर उनके पास स्पष्ट और रौशन चमत्कार ले कर आए इस पर भी उन लोगों ने न माना तो ख़ुदा ने उन्हें धर पकड़ा, इसमें तो शक ही नहीं कि वह शक्तिशाली (और) सख़्त अज़ाब वाला है। [40:22]

पिछले कार्यक्रम में क़यामत के दिन गुनहगारों के अंजाम और उन्हें दी जाने वाली सज़ा के बारे में बताया गया। अब यह आयतें लोगों को पिछली क़ौमों का इतिहास पढ़ने की दावत देती हैं। आयतें कहती हैं कि यह लोग उन क़ौमों के बारे में जो दुनिया में अलग अलग जगहों पर बसती थीं, विचार नहीं करते? क्या उन्होंने नहीं देखा कि गुनाहों की वजह से इन क़ौमों का क्या अंजाम हुआ? कि उन्हें सबक़ मिले और उन क़ौमों के रास्ते पर चलने से परहेज़ करें।

यह आयत इंसानों को संबोधित करते हुए कहती है कि अगर वे ज़मीन में अलग अलग स्थानों की सैर करें तो महलों और इमारतों को देखेंगे जो अतीत काल की हैं और उनके खंडहर बाक़ी बचे हैं। किसी समय बड़े ताक़वर  लोग और ज़ालिम हुक्मरां इन इमारतों और महलों में रहते थे और लोगों पर राज करते थे। मगर आज उनका कोई नामो निशान नहीं रहा। उनके महलों और इमारतों के केवल खंडहर बचे हैं।

पिछली जातियों के एतिहासिक अवशेषों को देखकर हमें सबक़ मिलता है कि हम यह समझ सकें कि ज़ालिमों को एक दिन मिट जाना है चाहे वे ताक़त के चरम बिंदु पर ही क्यों न विराजमान हों और उनके पास बहुत अधिक संसाधन क्यों न मौजूद हों। आयतें आगे जाकर कहती हैं कि हमने लोगों की हिदायत और सही रास्ता दिखाने की ज़िम्मेदारी पूरी कर दी है उनके पास अपने पैग़म्बरों को भेज दिया लेकिन वे सत्य बात स्वीकार करने के बजाए कुफ़्र के ही रास्ते पर चलते रहे और सत्य का विरोध करते रहे। नतीजतन दुनिया में भी अल्लाह के दंड की चपेट में आए हालांकि वे सोच भी नहीं सकते थे कि कोई ताक़त उनका वर्चस्व ख़त्म कर सकती है।

इन आयतों से हमने सीखाः ज़मीन की सैर और सफ़र इस नीयत से करना कि सबक़ सीखने का मौक़ा मिले, क़ुरआन के आदेश के मुताबिक़ है।

पिछली क़ौमों के इतिहास का अध्ययन आज की दुनिया में सही जीवन गुज़ारने के लए ज़रूरी और विवेकपूर्ण काम है।

हमें अपने व्यापक आर्थिक, वैज्ञानिक, औद्योगिक या सामरिक संसाधनों पर इतराना नहीं चाहिए क्योंकि अल्लाह के इरादे के सामने इन सारी चीज़ों की कोई हक़ीक़त ही नहीं है।

अल्लाह का अज़ाब केवल आख़ेरत के लिए विशेष नहीं है बल्कि कभी अल्लाह ज़ालिमों को इसी दुनिया में अपने दंड का कुछ मज़ा चखा देता है।

अल्लाह जब तक हर बहाने की गुंजाइश ख़त्म नहीं कर देता उस समय तक अज़ाब नहीं देता।

अब आइए सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 23 और 24 की तिलावत सुनते हैं,

وَلَقَدْ أَرْسَلْنَا مُوسَى بِآَيَاتِنَا وَسُلْطَانٍ مُبِينٍ (23) إِلَى فِرْعَوْنَ وَهَامَانَ وَقَارُونَ فَقَالُوا سَاحِرٌ كَذَّابٌ (24)

इन आयतों का अनुवाद हैः

और हमने मूसा को अपनी निशानियाँ और रौशन दलीलें देकर [40:23] फ़िरऔन और हामान और क़ारून के पास भेजा तो वे लोग कहने लगे कि (ये तो) एक बड़ा झूठा (और) जादूगर है।[40:24]

यह आयतें दुनिया में ही दिए जाने वाले अल्लाह के दंड के एक नमूने का ज़िक्र करते हुए कहती हैं कि अल्लाह ने हज़रत मूसा को चमत्कार के साथ भेजा के फ़िरऔन जैसे ज़ालिम बादशाह, उसके वज़ीर हामान और क़ारून जैसे दौलतमंद व्यक्ति की हिदायत करें।

अल्लाह की मदद से हज़रत मूसा करिश्माती काम करते थे जो परालोक से उनके संपर्क की निशानी होते थे। चमत्कार दिखाने के साथ ही हज़रत मूसा बड़े ठोस तर्क भी पेश करते थे। मगर उनके जवाब में सरकश फ़िरऔनी लोगों का यह जवाब होता था कि इनके सारे चमत्कार जादूगरी के अलावा कुछ नहीं हैं और अल्लाह की ओर से नबी बनाकर भेजे जाने का उनका दावा झूठा है।

अलबत्ता तारीख़ गवाह है कि कुफ़्र और ज़ुल्म के क्षेत्र के सरग़ना हमेशा इस कोशिश में रहे कि झूठ फैलाकर और आरोप लगाकर अल्लाह के सच्चे बंदों को झूठा साबित करें और उनकी बातों को बेअसर बना दें। इसी तरह हज़रत मूसा को ज़िम्मेदारी दी गई कि ख़ूंख़ार और ज़ालिम शासकों के अत्याचार पर अंकुश लगाएं और समाज को न्याय के आधार पर चलाने की भूमि तैयार करें।

स्वाभाविक है कि अगर हज़रत मूसा का पैग़ाम स्वीकार कर लिया जाता तो फ़िरऔन और उसके कारिंदे अपनी ताक़त का ग़लत इस्तेमाल न कर पाते और अवाम को अपने अत्याचार का निशाना न बना पाते। इसलिए उन्होंने अपने ग़लत हितों और स्वार्थों के लिए हज़रत मूसा का शिद्दत के साथ विरोध शुरू कर दिया।

इन आयतों से हमने सीखाः

पैग़म्बरों को केवल इसलिए नहीं भेजा गया कि लोगों को अल्लाह की इबादत की तरफ़ बुलाएं, उन्हें भेजने का एक लक्ष्य ज़ुल्म और अत्याचार पर अंकुश लगाना और ज़ालिमों की नकेल कसना भी था।

कभी ताक़त और दौलत के चलते इंसान अल्लाह के सामने अकड़ने लगता है और अवाम के अधिकारों को कुचलना शुरू कर देता है।

पैग़म्बरों का चमत्कार बिल्कुल स्पष्ट और सबकी समझ में आने वाला होता था। मगर सरकशी की वजह से ज़ालिम शासक उनकी बातों को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होते थे।

अब आइए सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 25 की तिलावत सुनते हैं,

فَلَمَّا جَاءَهُمْ بِالْحَقِّ مِنْ عِنْدِنَا قَالُوا اقْتُلُوا أَبْنَاءَ الَّذِينَ آَمَنُوا مَعَهُ وَاسْتَحْيُوا نِسَاءَهُمْ وَمَا كَيْدُ الْكَافِرِينَ إِلَّا فِي ضَلَالٍ (25)

इस आयत का अनुवाद हैः

ग़रज़ जब मूसा उन लोगों के पास हमारी तरफ़ से सच्चा दीन ले कर आये तो वे बोले कि जो लोग उनके साथ ईमान लाए हैं उनके बेटों को तो मार डालो और उनकी औरतों को (दासियां बनाने के लिए) ज़िन्दा रहने दो और काफ़िरों की तद्बीरें तो गुमराही और भ्रांति के अलावा कुछ नहीं करतीं। [40:25]

बहरहाल जब फ़िरऔन और उसका वज़ीर हामान हज़रत मूसा की दलीलों और ठोस तर्कों के सामने लाजवाब हो गए तो उन्होंने हज़रत मूसा को शिकस्त देने के लिए कई चालें सोचीं। यह आयत उनकी कुछ शैतानी चालों का ज़िक्र करती है। सबसे पहले तो उन्होंने यह तय किया कि हज़रत मूसा पर ईमान लाने वालों और उनका साथ देने वालों में पुरुषों और जवानों को क़त्ल कर दिया जाए और उनकी महिलाओं को दासियां बना लिया जाए। उनका मक़सद हज़रत मूसा के साथियों को बुरी तरह कुचल देना था। ताकि कोई उन पर ईमान लाने की हिम्मत न करे और अगर कोई ईमान लाए तो उसे पूरी तरह मिटा दिया जाए।

अलबत्ता इतिहास में ज़ालिम शासकों की यह कार्यशैली रही है। उन्होंने समाज के जवानों को या तो बहका दिया या उनका दमन कर डाला। मगर हज़रत मूसा के मामले में फ़िरऔन के सारे हथकंडे और सारी चालें उनका मिशन रोक न सकीं बल्कि बनी इस्राईल क़ौम ताक़तवर होती चली गई और उन्होंने फ़िरऔन और उसके साथियों का डटकर मुक़ाबला करने का रास्ता चुना।

इस आयत से हमने सीखाः

क़त्ल करना, क़ैदी बनाना, इतिहास में ज़ालिमों और साम्राज्यवादी ताक़तों की शैली रही है इन हथकंडों को देखकर ईमान वालों के इरादे और यक़ीन में कोई कमज़ोरी नहीं आनी चाहिए।

दुश्मन जंग, ख़ूंरेज़ी या अन्य तरीक़ों से भ्रष्टाचार वग़ैरा फैलाकर युवा पीढ़ी को बर्बाद करते हैं।

दुश्मन हमेशा सत्य की राह पर चलने वालों के विरोध में साज़िशें रचते हैं लेकिन अगर ईमान वाले धर्म की मदद करना चाहते हैं तो दुश्मनों की सारी चालें नाकाम हो जाती हैं और आख़िरकार फ़तह सत्य और ईमान वालों की होती है। यह अल्लाह का वादा है।

 

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