Jan १९, २०२४ १९:१८ Asia/Kolkata

सूरा ग़ाफ़िर आयतें 26-28

आइए सबसे पहले सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 26 की तिलावत सुनते हैं,

وَقَالَ فِرْعَوْنُ ذَرُونِي أَقْتُلْ مُوسَى وَلْيَدْعُ رَبَّهُ إِنِّي أَخَافُ أَنْ يُبَدِّلَ دِينَكُمْ أَوْ أَنْ يُظْهِرَ فِي الْأَرْضِ الْفَسَادَ (26)

इस आयत का अनुवाद हैः

और फिरऔन कहने लगा मुझे छोड़ दो कि मैं मूसा को तो क़त्ल कर डालूँ, और वो अपने परवरदिगार को तो अपनी मदद के लिए बुला लें (कि उन्हें बचाए) मुझे अन्देशा है कि कहीं तुम्हारे दीन को उलट पुलट कर न रख दे या मुल्क में फ़साद पैदा कर दें। [40:26]

पिछले कार्यक्रम में हमने इस बारे में बात की कि हज़रत मूसा ने फ़िरऔन को अल्लाह की इबादत के रास्ते पर आने और बनी इस्राईल क़ौम का उत्पीड़न बंद करने पर तैयार करने की कोशिश की। इसके बाद यह आयत कहती है कि इस दावत के जवाब में जिसके साथ चमत्कार और ठोस तर्क भी पेश किया गया था फ़िरऔन ने जो घमंड और ग़ुरूर में पड़ा हुआ था अपने आसपास के लोगों और दरबारियों से कहा कि अगर हमने मूसा को छोड़ दिया तो वो आम लोगों को हमारी हुकूमत के ख़िलाफ़ बग़ावत के लिए तैयार करेंगे, लोगों का दीन बदल देंगे और समाज में बुराई और फ़साद फैला दें।

यहां पर फ़िरऔन हज़रत मूसा के क़त्ल के लिए दो वजहें बयान करता है। वह कहता है कि मुझे यह डर है कि मूसा तुम्हारा दीन बदल देंगे या फिर ज़मीन में फ़साद फैला देंगे। अगर हम चुप रहे तो मूसा का दीन मिस्र के लोगों के दिलों की गहराई में उतर जाएगा और मूर्ति पूजा की जगह अनन्य अल्लाह की इबादत प्रचलित हो जाएगी। इसलिए भलाई इसी में है कि जल्द से जल्द उन्हें क़त्ल कर दिया जाए।

अलबत्ता फ़िरऔन की नज़र में दीन का मतलब था ख़ुद उसकी इबादत। फ़िरऔन का दीन तो केवल लोगों को बेवक़ूफ़ बनाने और धोखा देने का ज़रिया था। इसके ज़रिए वह अपने राज और शासन को लोगों की नज़र में एक पवित्र व मुक़द्दस चीज़ बनाकर पेश करता था। फ़िरऔन की नज़र में फ़साद का मतलब यह था कि आम लोग हुकूमत के ख़िलाफ़ बग़ावत करें या समाज में मूर्ति पूजा और अनेकेश्वरवाद को ख़त्म करने की कोशिश करें।

अलबत्ता यह केवल फ़िरऔन नहीं है जिसने सत्य का मुक़ाबला करने के लिए प्रचारिक हथकंडों को इस्तेमाल किया। इतिहास में हमेशा ज़ालिम और अत्याचारी ताक़तें अपने अत्याचार और भ्रष्टाचार का तर्क पेश करने के लिए और अपने पापों को सही ठहराने के लिए झूठे बहाने और इसी तरह के हथकंडे इस्तेमाल करती रही हैं।

फ़िरऔन ने यह सारे बहाने पेश करने के बाद कहा कि अब एक ही चारा बचा है कि मूसा को ख़त्म कर दिया जाए और उनसे कहें कि अगर तुम्हारी बात सही है कि अल्लाह ने तुम्हें भेजा है तो अपने अल्लाह को पुकारो कि वह तुम्हें हमारे चंगुल से निजात दिलाए। अलबत्ता फ़िरऔन के अकसर दरबारी उसकी इस राय से समहत नहीं थे। उन्हें यह एहसास था कि बनी इस्राईल के बीच हज़रत मूसा का बड़ा सम्मान और लोकप्रियता है इसलिए अगर उनको क़त्ल कर दिया गया तो इसका बहुत बुरा असर होगा। हो सकता है कि हर तरफ़ बलवा हो जाए। इसके अलावा अब बहुत सारे लोग हज़रत मूसा के दीन के मानने वाले बन जाएंगे और हालात हुकूमत के कंट्रोल से बाहर निकल जाएंगे।

इस आयत से हमने सीखाः

ज़ालिम और फ़िरऔनी हुकूमतों की शैली सत्य के मार्गदर्शकों को ख़त्म कर देने की थी।

ज़ालिम अपना स्वार्थ इसी में देखते हैं कि मौजूदा हालात ही बाक़ी रहें इनमें बदलाव न आए इसी लिए वे समाज में सुधार के हर काम का विरोध करते थे। वे धार्मिक सुधारकों को बलवा और फ़साद करने वाला कहते थे जो समाज में बिगाड़ पैदा करना चाहते हैं।

ज़ालिम हुकूमतों में अगर हालात शांत हों तो उसकी वजह बेरहमी और दमन की नीतियां होती हैं। यह शांति वास्तविक नहीं होती।

अब आइए सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 27 की तिलावत सुनते हैं,

وَقَالَ مُوسَى إِنِّي عُذْتُ بِرَبِّي وَرَبِّكُمْ مِنْ كُلِّ مُتَكَبِّرٍ لَا يُؤْمِنُ بِيَوْمِ الْحِسَابِ (27)

 

इस आयत का अनुवाद हैः

और मूसा ने कहा कि मैं तो हर सरकश से जो हिसाब के दिन (क़यामत) पर ईमान नहीं रखता, अपने और तुम्हारे परवरदिगार की पनाह चाहता हूं। [40:27]

फ़िरऔन ने क़त्ल कर देने की धमकी दी तो हज़रत मूसा डरे नहीं और बड़े सुकून से उन्होंने कहा कि तुम्हारी धमकियों के मुक़ाबले में मैं अपने और तुम्हारे परवरदिगार की पनाह लेता हूं। जब तक वह न चाहे और इजाज़त न दे तुम कुछ भी नहीं कर सकते। यह वही ख़ुदा है कि जब मैं पैदा हुआ और तुमने मेरे क़त्ल का इरादा किया तो उसके आदेश से मेरी मां ने मुझे संदूक़ में रखा और नील के पानी के हवाले कर दिया, फिर तुमने ख़ुद अपने हाथ से मुझे बचाया और अपनी देखभाल में मेरी परवरिश की।

आज भी वही अल्लाह मेरा मददगार है और मुझे उम्मीद है कि तुम जैसे ज़ालिमों के अत्याचार से वही मुझे बचाएगा। लेकिन अगर उसने इरादा कर लिया है कि मैं इस राह में शहीद हो जाऊं तो मैं शहादत के लिए तैयार हूं, मुझे कोई डर नहीं है। मैं ख़ुद को उसके हवाले कर चुका हूं और मुझे पता है कि जो वह चाहेगा वही होगा तुम्हारे चाहने से कुछ होने वाला नहीं है।

इस आयत से हमने सीखाः

दुश्मन की धमकियों और ख़तरों से नहीं डरना चाहिए, अल्लाह से शरण मांगनी चाहिए क्योंकि सब कुछ अल्लाह के हाथ में है और हमें यह याद रखना चाहिए कि अल्लाह की शक्ति से बढ़कर कोई ताक़त नहीं है।

घमंड और वर्चस्ववादी सोच फ़िरऔनी सोच है। हो सकता है कि यह सोच रखने वाला फ़िरऔन के स्थान पर न हो।

सत्य के सामने घमंड और बग़ावत अल्लाह और क़यामत पर ईमान लाने के मार्ग की रुकावट है।

अब आइए सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 28 की तिलावत सुनते हैं,

وَقَالَ رَجُلٌ مُؤْمِنٌ مِنْ آَلِ فِرْعَوْنَ يَكْتُمُ إِيمَانَهُ أَتَقْتُلُونَ رَجُلًا أَنْ يَقُولَ رَبِّيَ اللَّهُ وَقَدْ جَاءَكُمْ بِالْبَيِّنَاتِ مِنْ رَبِّكُمْ وَإِنْ يَكُ كَاذِبًا فَعَلَيْهِ كَذِبُهُ وَإِنْ يَكُ صَادِقًا يُصِبْكُمْ بَعْضُ الَّذِي يَعِدُكُمْ إِنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي مَنْ هُوَ مُسْرِفٌ كَذَّابٌ (28)

इस आयत का अनुवाद हैः

और फ़िरऔन के ख़ानदान में एक ईमान वाले शख़्स (हिज़कील) ने जो अपने ईमान को छिपाए रहता था (लोगों से कहा) कि क्या तुम लोग ऐसे शख़्स के क़त्ल पर तुले हो जो (सिर्फ़) ये कहता है कि मेरा परवरदिगार अल्लाह है, हालाँकि वह तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से तुम्हारे पास चमत्कार लेकर आया,  अगर ये शख़्स झूठा है तो इसके झूठ का नुक़सान इसी को पहुंचेगा और अगर यह कहीं सच्चा हुआ तो जिस (अज़ाब की) तुम्हें ये धमकी देता है उसमें से कुछ तो तुम लोगों पर ज़रूर आएगा, बेशक ख़ुदा उस शख़्स की हिदायत नहीं करता जो हद से गुज़रने वाला (और) झूठा हो। [40:28]

फ़िरऔन के दरबारियों में फ़िरऔन के ख़ानदान का एक व्यक्ति था जो हज़रत मूसा पर ईमान ला चुका था मगर वह अपना ईमान छिपाता था ताकि संवेदनशील समय में हज़रत मूसा की मदद कर सके। जब उसे पता चला कि फ़िरऔन हज़रत मूसा को क़त्ल करने का इरादा रखता है तो उसने बड़े साहस से आगे बढ़कर अपनी बात रखी और हज़रत मूसा को इस साज़िश से बचा लिया।

उसने फ़िरऔन से बात करते वक़्त यह तर्क दिया कि मूसा का दावा यह है कि अल्लाह हर चीज़ का पैदा करने वाला है, उसी ने कायनात को पैदा किया है, और सारी चीज़ों का संचालन भी उसी के हाथ में है और उसी ने मूसा को अपना पैग़म्बर बनाकर लोगों की हिदायत के लिए भेजा है और उसने अपने इस दावे की सच्चाई साबित करने के लिए चमत्कार भी दिखाया है।

इसलिए अब मूसा के बारे में जल्दबाज़ी में कोई काम करना उचित नहीं है। बल्कि हर काम का अंजाम पहले ही बख़ूबी सोच लेना बेहतर होगा। हिज़क़ील ने आगे कहा कि मूसा की बात दो हालत से बाहर नहीं। या तो वह सच बोल रहे हैं या झूठ बोल रहे हैं। अगर झूठ बोल रहे हैं तो आख़िरकार अपने इस झूठ के जाल में फंसेंगे और ख़मियाज़ा भुगतेंगे और लोगों के बीच बेइज़्ज़त होंगे। लेकिन अगर वह सच बोल रहे हैं और अल्लाह के अज़ाब के बारे में उनकी कुछ ही बातें सही साबित हो गईं तो आप तो मिट्टी में मिल जाएंगे। इसलिए मूसा को क़त्ल करना अक़्लमंदी नहीं है बल्किल बेहतर होगा कि उन्हें क़त्ल करने की कोशिश न की जाए।

इस आयत से हमने सीखाः

मूसा ने फ़िरऔन के ख़तरे से बचने के लिए अल्लाह की शरण ली और अल्लाह ने फ़िरऔन के ख़ानदान के अंदर ही एक इंसान को उनकी मदद के लिए मुहैया कर दिया।

कभी अक़ीदे और ईमान को छिपाना और इस हालत में ज़ालिमों के बीच रह कर उनके ख़तरों और नुक़सान पर रोक लगाने के लिए काम करना अल्लाह पर ईमान से विरोधाभास नहीं रखता।

विरोधियों से बात करते समय नफ़रत और द्वेष को भुला देना चाहिए हमें यह नहीं कहना चाहिए कि केवल हमारी बात ही सही है तुम्हारी बातें ग़लत हैं बल्कि फ़िरऔन के ख़ानदान के मोमिन बंदे की तरह बात करनी चाहिए। उस मोमिन बंदे ने कहा कि मूसा या तो सच बोल रहे हैं या झूठ बोल रहे हैं। अगर सच बोल रहे हैं तो जिन चीज़ों की उन्होंने चेतावनी दी है वह सही हो जाएंगी और अगर उन्होंने झूठ बोला है तो उसका नुक़सान मूसा को उठाना पड़ेगा।

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