Jan १९, २०२४ १९:२१ Asia/Kolkata

सूरा ग़ाफ़िर आयतें 29-33

आइए पहले सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 29 की तिलावत सुनते हैं,

يَا قَوْمِ لَكُمُ الْمُلْكُ الْيَوْمَ ظَاهِرِينَ فِي الْأَرْضِ فَمَنْ يَنْصُرُنَا مِنْ بَأْسِ اللَّهِ إِنْ جَاءَنَا قَالَ فِرْعَوْنُ مَا أُرِيكُمْ إِلَّا مَا أَرَى وَمَا أَهْدِيكُمْ إِلَّا سَبِيلَ الرَّشَادِ (29)

इस आयत का अनुवाद हैः

ऐ मेरी क़ौम आज तो (बेशक) तुम्हारी बादशाहत है (और) मुल्क में तुम्हारा ही बोल बाला है लेकिन (कल) अगर ख़ुदा का अज़ाब हम पर आ जाए तो हमारी कौन मदद करेगा फ़िरऔन ने कहा मैं तो वही बात समझाता हूँ जो मैं ख़़ुद समझता हूँ और वही राह दिखाता हूँ जिसमें भलाई है। [40:29]

पिछले कार्यक्रम में हमने बताया कि फ़िरऔन के दरबार में एक मोमिन इंसान ने कोशिश की कि अपनी तर्कपूर्ण बातों से हज़रत मूसा को क़त्ल होने से बचाए। उसकी बातों के एक हिस्से का हमने ज़िक्र किया था। वह शख़्स फ़िरऔन से आगे कहता है कि तुम मिस्र की विशाल धरती पर आज हुकूमत कर रहे हो और हर पहलू से हालात तुम्हारे क़ाबू में हैं, मूसा तुम्हारे ख़िलाफ़ कुछ नहीं कर सकते। लेकिन अगर उन्हें तुमने क़त्ल कर दिया और उनकी बातें सच निकलीं तो फिर यक़ीनन अल्लाह का अज़ाब तुम्हें अपनी चपेट में लेगा और तुम्हारा सारा साम्राज्य तुम्हारे हाथ से निकल जाएगा। तो जो भी करना चाहते हो उसके संभावित अंजाम के बारे में पहले अच्छी तरह सोच लो।

शायद इन बातों का फ़िरऔन के साथ मौजूद लोगों पर असर हुआ और उनके तेवर ढीले पड़े। मगर फ़िरऔन का मन नहीं बदला और वह अब भी यही ज़िद कर रहा था कि मूसा को क़त्ल कर दिया जाए। इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है, सही रास्ता यही है जो मैं कह रहा हूं। अलबत्ता सारे ज़ालिमों और तानाशाहों का यही स्वभाव रहा है कि ख़ुद को सबसे अक़्लमंद समझते थे और केवल अपनी सोच के मुताबिक़ काम करते थे।

इस आयत से हमने सीखाः

अपनी आज की ताक़त और शक्ति पर इतराना नहीं चाहिए क्योंकि अगर अल्लाह ने इरादा कर लिया तो हम सब कुछ गवां देंगे।

बुरे लोगों को चेतावनी देना और बुरे कामों से रोकना ईमान वालों की ज़िम्मेदारी है चाहे यह बुरे लोग फ़िरऔन जैसे ताक़तवर इंसान ही क्यों न हों।

चेतावनियों पर ध्यान न देना और अपने को समसे ज़्यादा अक़्लमंद समझना फ़िरऔनी मेज़ाज है। यह इंसान की आत्म मुग्धता की निशानी है चाहे वह इंसान फ़िरऔन के स्थान पर न हो।

अब आइए सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 30  और 31 की तिलावत सुनते हैं,

وَقَالَ الَّذِي آَمَنَ يَا قَوْمِ إِنِّي أَخَافُ عَلَيْكُمْ مِثْلَ يَوْمِ الْأَحْزَابِ (30) مِثْلَ دَأْبِ قَوْمِ نُوحٍ وَعَادٍ وَثَمُودَ وَالَّذِينَ مِنْ بَعْدِهِمْ وَمَا اللَّهُ يُرِيدُ ظُلْمًا لِلْعِبَادِ (31)

इन आयतों का अनुवाद हैः

तो जो शख्स (दर पर्दा) ईमान ला चुका था कहने लगा, भाईयों मुझे तो तुम्हारी निस्बत भी दूसरी उम्मतों की तरह बुरे दिन का अन्देशा है [40:30] (कहीं तुम्हारा भी वही हाल न हो) जैसा कि नूह की क़ौम और आद समूद और उनके बाद वाले लोगों का हाल हुआ और ख़ुदा तो बन्दों पर ज़ुल्म करना चाहता ही नहीं। [40:31]

फ़िरऔन वैसे तो हज़रत मूसा को क़त्ल कर देने की अपनी बात पर अड़ा हुआ था मगर फ़िरऔन के ख़ानदान के मोमिन शख़्स ने अपनी मेहनत जारी रखी। उसने गुज़रे लोगों के अंजाम का ज़िक्र किया इस उम्मीद पर कि शायद फ़िरऔन और उसके साथी इस तरह ग़फ़लत से जाग जाएंगे और अपने फ़ैसले पर पुनरविचार करेंगे।

उसने कहा कि तुम लोग नूह की क़ौम और आद व समूद क़ौमों इसी तरह उनके बाद आने वाली क़ौमों के अंजाम से आगाह हो। तुम्हें मालूम है कि यह क़ौमें पुरानी सभ्यता की मालिक थीं लेकिन चूंकि कुफ़्र और सरकशी पर अड़ी हुई थीं तो आख़िरकार उनका अंजाम क्या हुआ और किस तरह तबाह हो गईं। हज़रत नूह की क़ौम विनाशकारी तूफ़ान से, आद नामक क़ौम तेज़ आंधी से और समूद क़ौम विध्वंसक बिजली से तबाह हो गई।

मुझे डर है कि मिस्री क़ौम कहीं इन्हीं क़ौमों जैसे अंजाम की चपेट में न आ जाए। अलबत्ता उन क़ौमों के साथ जो कुछ हुआ वह उनके कर्मों का नतीजा था, उन्होंने बुरे कर्म किए और पैग़म्बरों को झुठलाया, उन्हें क़त्ल किया। वरना अल्लाह अपने बंदों पर हरगिज़ ज़ुल्म नहीं करता। क्योंकि उसने अपने बंदों को पैदा किया है, उन्हें बेपनाह नेमतों से नवाज़ा है और हमेशा उनके साथ मुहब्बत और दया का बर्ताव किया है मगर बंदों ने जब सरकशी और विरोध नहीं छोड़ा तो उन्हें अपने कर्मों का ख़मियाज़ा भुगतना पड़ा।

इन आयतों से हमने सीखाः

बीते ज़माने के लोगों के अंजाम पर ग़ौर करना आगे का रास्ता समझने में इंसान की मदद करता है और इस बिंदु पर क़ुरआन ने भी बड़ी ताकीद की है।

अगर ग़लत आस्थाएं और व्यवहार इंसान की आदत बन जाए तो वह गहरी खाई की कगार पर पहुंच जाता है और ख़तरनाक अंजाम का ख़तरा उसके सर पर आ पहुंचता है। जैसाकि पिछले ज़मानों की कुछ क़ौमों ने ग़लत आस्थाओं और कर्मों को आदत बना लिया था और हमेशा सत्य व हक़ का इंकार करती थीं।

कभी दुनयावी मुसीबतें अल्लाह के अज़ाब का नतीजा होती हैं और उनकी वजह ख़ुद हमारे कर्म होते हैं।

अब आइए सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 32 और 33 की तिलावत सुनते हैं,

وَيَا قَوْمِ إِنِّي أَخَافُ عَلَيْكُمْ يَوْمَ التَّنَادِ (32) يَوْمَ تُوَلُّونَ مُدْبِرِينَ مَا لَكُمْ مِنَ اللَّهِ مِنْ عَاصِمٍ وَمَنْ يُضْلِلِ اللَّهُ فَمَا لَهُ مِنْ هَادٍ (33)

इन आयतों का अनुवाद हैः

और ऐ हमारी क़ौम मुझे तो तुम्हारे बारे में क़यामत के दिन का डर है [40:32] जिस दिन तुम पीठ फेर कर (जहन्नुम) की तरफ़ चल खड़े होगे तो ख़ुदा के (अज़ाब) से तुम्हें बचाने वाला न होगा, और जिसको ख़ुदा गुमराही में छोड़ दे उसकी कोई हिदायत करने वाला नहीं। [40:33]

फ़िरऔन के ख़ानदान का मोमिन शख़्स अपनी चेतावनी जारी रखते हुए फ़िरऔन और उसके दरबार के लोगों से कहता है कि अगर पिछली क़ौमों की तरह तुम्हारे ऊपर भी अल्लाह का अज़ाब नाज़िल हो गया तो कोई जगह एसी नहीं जहां वह फ़रार होकर जाए, शरण ले और अपनी जान बचाए, अल्लाह के अज़ाब से बचे। उस दिन तुम एक दूसरे को पुकारोगे, एक दूसरे से मदद मांगोगे लेकिन यह आवाजें कोई सुनेगा नहीं क्योंकि हर किसी को अपनी फ़िक्र होगी कोई किसी दूसरे की मदद करने की स्थिति में नहीं होगा।

उस दिन केवल उसी को नजात मिलेगी जिसने अल्लाह की हिदायत का रास्ता अपनाया होगा और पैग़म्बरों से मिलने वाली शिक्षाओं को अपने जीवन का आदर्श बनाया होगा। ज़ाहिर है कि जो भी इसके अलावा किसी अन्य रास्ते पर गया होगा गुमराही में पड़ जाएगा और अल्लाह की हिदायत से महरूम हो जाएगा।

इन आयतों में बंदों की गुमराही को अल्लाह से जोड़ा गया है लेकिन हक़ीक़त यह है कि गुमराही इंसान के बुरे कर्मों और ग़लत चयन का नतीजा होगी जिसके नतीजे में यह हुआ कि अल्लाह ने इंसान को उसके हाल पर छोड़ दिया। दूसरे शब्दों में यह कहना चाहिए कि अल्लाह किसी को भी सत्य के रास्ते से गुमराह नहीं करता बल्कि काफ़िर और गुनहगार लोग अपने कुफ़्र और गुनाह में डूब जाने की वजह से हिदायत से अपनी महरूमी और तबाही की गहराई में गिर जाने का रास्ता तैयार करते हैं। उस बच्चे की तरह जो अपने पिता के हाथ से अपना हाथ छुड़ा लेता है और फिर ज़मीन पर गिर पड़ता है।

इन आयतों से हमने सीखाः

दुराचारियों को उनके बुरे अंजाम के बारे में सचेत करना मोमिन और भले लोगों की ज़िम्मेदारी है। जिस तरह मेहरबान मां बाप अपने बच्चों को सावधान करते हैं कि वे आग के क़रीब जा रहे हैं और बच्चे को यह काम करने से रोक देते हैं।

हिदायत और गुमराही अल्लाह के हाथ में है हालांकि इसकी भूमिका बंदा तैयार करता है।

हिदायत और गुमराही के बीच कोई तीसरा रास्ता नहीं है जो भी हिदायत का रास्ता नहीं चुनता गुमराही में पड़ जाता है इन दोनों के दरमियान कोई बीच का रास्ता नहीं है।

 

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