Jan १९, २०२४ १९:२४ Asia/Kolkata

सूरा ग़ाफ़िर आयतें 34-37

आइए पहले सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 34 की तिलावत सुनते हैं,

وَلَقَدْ جَاءَكُمْ يُوسُفُ مِنْ قَبْلُ بِالْبَيِّنَاتِ فَمَا زِلْتُمْ فِي شَكٍّ مِمَّا جَاءَكُمْ بِهِ حَتَّى إِذَا هَلَكَ قُلْتُمْ لَنْ يَبْعَثَ اللَّهُ مِنْ بَعْدِهِ رَسُولًا كَذَلِكَ يُضِلُّ اللَّهُ مَنْ هُوَ مُسْرِفٌ مُرْتَابٌ (34)

इस आयत का अनुवाद हैः

और (इससे) पहले यूसुफ़ भी तुम्हारे पास चमत्कार लेकर आए थे तो जो लाए थे तुम लोग उसमें हमेशा शक ही करते रहे यहाँ तक कि जब उन्होने वफ़ात पायी तो तुम कहने लगे कि अब उनके बाद ख़ुदा हरगिज़ कोई रसूल नहीं भेजेगा जो हद से गुज़रने वाला और शक करने वाला है ख़ुदा उसे यू हीं गुमराही में छोड़ देता है [40:34]

पिछले कार्यक्रम में हमने बताया कि फ़रऔन के ख़ानदान और दरबार के भीतर मौजूद मोमिन इंसान ने हज़रत मूसा के क़त्ल की योजना को नाकाम बनाने के लिए अलग अलग तरीक़े इस्तेमाल किए। इस आयत में बताया गया है कि उस मोमिन इंसान ने हज़रत युसुफ़ के इतिहास का ज़िक्र किया और कहा कि हज़रत युसुफ़ अल्लाह के रसूल थे जिनका ज़माना तुम्हारे इस दौरे से बहुत ज़्यादा दूर नहीं है। उनके पास अपनी पैग़म्बरी साबित करने के लिए बहुत कुछ था। मगर खेद की बात है कि अधिकतर लोगों ने ग़लत और तर्कहीन बहाने पेश करके उनकी बात मानने से इंकार किया। जबकि उनकी दलीलें बहुत ठोस, स्पष्ट और समझ में आने वाली थीं।

उनकी मौत के बाद भी लोगों को यही लग रहा था कि अब अल्लाह का कोई रसूल नहीं आएगा और वो मनमानी करेंगे, अपनी हवस मिटाएंगे और अपने दूसरे कुकर्म निश्चिंत होकर अंजाम देंगे।

ज़ाहिर है कि इस तरह के लोग सत्य बात सुनने और स्वीकार करने पर तैयार नहीं होते बल्कि अपनी मनमानी और इच्छाएं पूरी करने की कोशिश में रहते हैं। इसके नतीजे में वे ख़ुद को अल्लाह के मार्गदर्शन से महरूम कर लेते हैं। पैग़म्बरों और उनकी शिक्षाओं के बारे में यह रवैया सरासर ज़्यादती है और इससे लोग गुमराह होते हैं।

ज़ाहिर है कि शक और संदेह बुद्धि और ज्ञान का तक़ाज़ा होता है लेकिन हमेशा शक में पड़े रहना और बदगुमानी में फंसे रहना दुरुस्त नहीं है। अगर ऐसा हुआ तो इंसान भ्रम की बीमारी पाल लेता है और यह इंसान के बौद्धिक और मानसिक विकास के रास्ते की रुकावट है।

इस आयत से हमने सीखाः

पिछली क़ौमों के बर्ताव, विचार और रुजहान बाद की नस्लों पर अपना असर डालते हैं। इसलिए उन क़ौमों के इतिहास की जानकारी हासिल करके बाद की नस्लों के बर्ताव और रुजहान का अनुमान लगाया जा सकता है। इसी हक़ीक़त के मद्देनज़र फ़िरऔन के ख़ानदान के मोमिन इंसान ने फ़िरऔन और उसके साथियों से कहा कि अगर आज तुम मूसा पर ईमान नहीं लाते तो अतीत में तुम हज़रत युसुफ़ पर भी ईमान नहीं लाए थे।

शक और संदेह के नतीजे में अगर इंसान शोध और अध्ययन करे तब तो यह शक मूल्यवान है लेकिन अगर शक हर हाल में बना रहे और बदगुमानी पैदा कर दे तो यह मुसीबत बन जाता है।

दुनिया और आख़ेरत में गुमराही उन लोगों को मिलने वाली सज़ा है जो अपनी मनमानी और इच्छाओं के कारण अकारण ही पैग़म्बरों के ठोस व स्पष्ट तर्कों के ख़िलाफ़ अड़े रहे और उनका विरोध करते रहे।

अब आइए सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 35 की तिलावत सुनते हैं,

الَّذِينَ يُجَادِلُونَ فِي آَيَاتِ اللَّهِ بِغَيْرِ سُلْطَانٍ أَتَاهُمْ كَبُرَ مَقْتًا عِنْدَ اللَّهِ وَعِنْدَ الَّذِينَ آَمَنُوا كَذَلِكَ يَطْبَعُ اللَّهُ عَلَى كُلِّ قَلْبِ مُتَكَبِّرٍ جَبَّارٍ (35)

इस आयत का अनुवाद हैः

जो लोग बग़ैर इसके कि उनके पास कोई दलील आई हो ख़ुदा की आयतों में (ख्वाह मख्वाह) झगड़े किया करते हैं वे ख़ुदा के नज़दीक और ईमान वालों के नज़दीक सख़्त नफ़रत के क़ाबिल हैं, यूँ ख़ुदा हर घमंडी सरकश के दिल पर अलामत लगा देता है [40:35]

पिछले आयतों की बात को आगे बढ़ाते हुए यह आयत उन लोगों की चर्चा करती है जो हर हाल में शक में पड़े रहते हैं और कोई भी हक़ बात क़ुबूल करने पर तैयार नहीं होते। आयत कहती है कि यह लोग सिर्फ़ बहस करते हैं उनकी नीयत सिर्फ़ बहस करना है हक़ बात को समझना और स्वीकार करना नहीं।

इसलिए आप उन्हें लाख समझाते रहिए वे आपकी बातों पर ग़ौर करने के बजाए बिना किसी तर्क के हक़ बात को नकारते रहेंगे। यह लोग बहस के ज़रिए यह कोशिश करते हैं कि ख़ुद को बड़ा तर्कसंगत ज़ाहिर करें लेकिन हक़ीक़त में वे घमंड और ज़िद में पड़े हुए हैं। इसलिए आप कोई भी दलील पेश कर दीजिए वे क़ुबूल नहीं करेंगे और कोई न कोई बहाना ढूंढ कर उसे ख़ारिज कर देंगे। बेशक ग़लत बहस करना और अल्लाह की निशानियों का तर्कहीन रूप से विरोध करना ख़तरनाक परिणाम का सबब बनता है इसमें से एक परिणाम बहस करने वाले की गुमराही है। क्योंकि हक़ बात का विरोध और उसे क़ुबूल न करने पर अड़ जाना इंसान की सोच पर अंधकार का पर्दा डाल देता है। फिर वह सही और ग़लत का अंतर नहीं समझ पाता।

इस आयत से हमने सीखाः

बहस व तकरार इल्मी बहस का एक तरीक़ा है लेकिन उसके लिए जो वास्तविकता की तलाश में है, उसके लिए नहीं जो बिना दलील और तर्क के बात करता है और घमंड और ज़िद में दूसरों की बात नकारता रहता है।

ईमान वालों को तर्कहीन बहस का आदी नहीं होना चाहिए बल्कि उन्हें इतना सूझबूझ वाला होना चाहिए और उनकी बातें इतनी तार्किक होनी चाहिंए कि दूसरों को भी यह पता चल जाए कि ईमान वालों के बीच में केवल तर्क और दलील के साथ ही बात की जा सकती है।

अब आइए सूरए ग़ाफ़िर की आयत संख्या 36 और 37 की तिलावत सुनते हैं,

وَقَالَ فِرْعَوْنُ يَا هَامَانُ ابْنِ لِي صَرْحًا لَعَلِّي أَبْلُغُ الْأَسْبَابَ (36) أَسْبَابَ السَّمَاوَاتِ فَأَطَّلِعَ إِلَى إِلَهِ مُوسَى وَإِنِّي لَأَظُنُّهُ كَاذِبًا وَكَذَلِكَ زُيِّنَ لِفِرْعَوْنَ سُوءُ عَمَلِهِ وَصُدَّ عَنِ السَّبِيلِ وَمَا كَيْدُ فِرْعَوْنَ إِلَّا فِي تَبَابٍ (37)

 

इन आयतों का अनुवाद हैः

और फिरऔन ने (अपने वज़ीर से) कहा ऐ हामान हमारे लिए एक महल बनवा दे ताकि (उस पर चढ़ कर) उन ज़रियों तक पहुँच जाऊ [40:36] (यानि) आसमानों तक पहुंचने के इन ज़रियों से मूसा के ख़ुदा को झांक कर देख लूँ और मैं तो उसे यक़ीनन झूठा समझता हूँ, और इसी तरह फ़िरऔन की बदकिरदारयाँ उसको भली करके दिखा दी गयीं थीं और वह सत्य के रास्ते से रोक दिया गया था, और फ़िरऔन की तद्बीर तो बस बिल्कुल तबाह करने वाली थीं [40:37]

बहरहाल उस संवेदनशील समय में उस बहादुर मोमिन इंसान ने यानी फ़िरऔन के ख़ानदान से तअल्लुक़ रखने वाले मोमिन इंसान ने बहुत बड़ा काम कर दिया और अलग अलग तरीक़ों से कोशिश की कि लोगों को समझाए। आख़िरकार उसकी समझदारी भरी बातों  ने फ़िरऔन पर असर डाला और हज़रत मूसा को क़त्ल कर देने का फ़िरऔन का इरादा कमज़ोर पड़ गया। इसके बाद फ़िरऔन ने हज़रत मूसा के क़त्ल का फ़ैसला बाद के लिए टाल दिया।

इसके बावजूद फ़िरऔन का घमंड ख़त्म नहीं हुआ। उसने अपनी शैतानी हरकतें जारी रखते हुए नया काम यह किया कि उसने बहुत ऊंचा स्तंभ बनाने का आदेश दिया ताकि ऊपर जाकर हज़रत मूसा के अल्लाह के बारे में जानकारी हासिल करे।

ज़ाहिर सी बात है कि फ़िरऔन की इस हरकत का मक़सद लोगों को गुमराह करना था। हज़रत मूसा ने यह दावा नहीं किया था कि मेरा अल्लाह आसमान पर मौजूद है और उसे देखा और छुआ जा सकता है कि कोई ऊंचाई पर जाता और वहां जाकर उस अल्लाह को देखता और उसकी बातें सुनता। फ़िरऔन की यह कोशिश थी कि अपनी इन विवादित हरकतों और शोर शराबे से आम लोगों को प्रभावित करे। वह चाहता था कि लोगों का ज़ेहन हज़रत मूसा की पैग़म्बरी के विषय की तरफ़ से हट जाए और वे हज़रत मूसा का साथ न दें।

दरअस्ल लोगों को गुमराह करने की यह शैली फ़िरऔन की घटिया शैली थी। दरअस्ल फ़िरऔन की गुमराही की अस्ली वजह यह थी कि घमंड और मनमानी की वजह से उसे उसके बुरे काम भी अच्छे नज़र आते थे। नतीजा यह हुआ कि वह सत्य बात स्वीकार करने पर तैयार न हुआ, उसके सारे मंसूबे नाकाम हुए और वह तबाह हो गया।

इन आयतों से हमने सीखाः

जो लोग तर्क और दलील क़ुबूल नहीं करते वे कोशिश करते हैं कि शोर शराबा करके माहौल को अपने पक्ष में कर लें।

ताक़त का प्रदर्शन और लोगों को गुमराह करना ज़ालिम और सरकश हुकूमतों की शैली है ताकि अपनी राय और सोच आम लोगों पर थोप सकें।

ग़ुरूर और घमंड के नतीजे में इंसान अपने बुरे कामों को अच्छा समझने लगता है फिर वह अपने सुधार पर कभी तवज्जो नहीं दे पाता।

सरकश ताक़तें हमेशा ईमान वालों के रास्ते में रुकावट डालती हैं लेकिन अगर मोमिन इंसान मज़बूत इरादे के हों और सत्य के मार्ग पर अडिग रहें तो आख़िर में विजय उन्हीं की होगी और ज़ालिमों को नुक़सान उठाना पड़ेगा।

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