Dec ०२, २०२४ १५:४४ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-904

सूरए शूरा 1-6

आइए पहले सूरए शूरा की आयत संख्या 1 से 4 तक की तिलावत सुनते हैं, 

حم (1) عسق (2) كَذَلِكَ يُوحِي إِلَيْكَ وَإِلَى الَّذِينَ مِنْ قَبْلِكَ اللَّهُ الْعَزِيزُ الْحَكِيمُ (3) لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ وَهُوَ الْعَلِيُّ الْعَظِيمُ (4)

 

इन आयतों का अनुवाद हैः

हा मीम [42:1]  ऐन सीन काफ़ [42:2] (ऐ रसूल) ग़ालिब व ज्ञानी ख़ुदा तुम्हारी तरफ़ और जो (पैग़म्बर) तुमसे पहले गुज़रे उनकी तरफ यूँ ही वहि भेजता रहता है। जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है सब कुछ उसी का है। [42:3] और वह तो (बड़ा) महान (और) अज़ीम है। [42:4]

क़ुरआन के दूसरे 28 सूरों की तरह यह सूरा भी मुक़त्तेआत कहे जाने वाले अक्षरों से शुरू हुआ है। हम इससे पहले बता चुके हैं कि इन सूरों में मुक़त्तेआत अक्षरों के बाद क़ुरआन की बात शुरू होती है। मानो अल्लाह यह कहना चाहता है कि यह किताब इन्हीं अक्षरों से मिलकर बनी है और तुम्हारे पास है। अगर तुम्हारे पास यह क्षमता है तो इसी जैसी किताब पेश कर दो। दरअस्ल क़ुरआन के चमत्कार होने का एक सुबूत यह भी है कि अल्लाह ने इन्हीं अक्षरों और शब्दों से जो आम तौर लोगों के इस्तेमाल में रहते हैं ऐसी महान किताब और आयतें बना दीं कि उसके जैसी किताब कोई इंसान पेश नहीं कर सकता।

इस सूरे में मुक़त्तेआत अक्षरों के बाद अल्लाह कहता है कि हे पैग़म्बर जिस तरह हमने तुम पर अपना विशेष संदेश वहि नाज़िल किया उसी तरह तुमसे पहले के पैग़म्बरों पर भी वहि नाज़िल की गई है। उसी अल्लाह ने तुम्हारे लिए वहि के ज़रिए यह क़ुरआन भेजा है जिसने पहले के पैग़मबरों पर इंसानों की हिदायत के लिए वहि भेजी। तो हर जगह वहि का स्रोत एक ही है और वहि में बताए जाने वाले उसूल और नियम भी सारे पैग़म्बरों के लिए एक ही तरह के होते हैं। अलबत्ता अल्लाह की तदबीर का तक़ाज़ा है कि वहि और उसकी शिक्षाएं हमेशा इंसान के उत्थान के लिए अनुकूल हों।

आयतों में आगे इस बिंदु की तरफ़ संकेत किया गया है कि जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है सब अल्लाह के अख़तियार में है। जिस ख़ुदा ने कायनात को पैदा किया है और जिसके अख़तियार में आसमान, ज़मीन और हर चीज़ है उसी ने इंसानों की हिदायत और उनके जीवन के सभी मामलों को सही रूप से चलाने के लिए किताब और शरीयत भेजी है। इस तरह शरीयत और प्रकृति का पैदा करने वाला अल्लाह ही है। यानी इंसानों और वस्तुओं को पैदा करने वाले और उनके लिए नियम व शिक्षाएं तय करने वाले में कोई अंतर नहीं दोनों ही काम अल्लाह ने किए हैं।

इन आयतों से हमने सीखाः

सारे पैग़म्बर एक ही स्रोत से जुड़े हुए हैं और एक ही हस्ती से संदेश और वहि हासिल करते हैं। इसलिए उनके मिशन और पैग़ाम के उसूल समान हैं। इस तरह शुरू और बाद के पैग़म्बरों के बीच कोई अंतर नहीं है।

वहि महान व सर्वज्ञानी अल्लाह की तरफ़ से आती है और उसकी शिक्षाओं पर अमल करने से इंसान को इज़्ज़त और दृढ़ता प्राप्त होती है।

वहि का स्रोत अल्लाह का ज्ञान और हिकमत है। इसीलिए क़ुरआन में कही गई बातें बहुत मज़बूत और स्थायी हैं उनमें कोई त्रुटि नहीं है।

इंसान की ज़िंदगी के लिए क़ानून बनाने योग्य वही है जिसने इंसनों और कायनात को पैदा किया है।

 

अब आइए सूरए शूरा की आयत संख्या 5 और 6 की तिलावत सुनते हैं,

تَكَادُ السَّمَاوَاتُ يَتَفَطَّرْنَ مِنْ فَوْقِهِنَّ وَالْمَلَائِكَةُ يُسَبِّحُونَ بِحَمْدِ رَبِّهِمْ وَيَسْتَغْفِرُونَ لِمَنْ فِي الْأَرْضِ أَلَا إِنَّ اللَّهَ هُوَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ (5) وَالَّذِينَ اتَّخَذُوا مِنْ دُونِهِ أَولِيَاءَ اللَّهُ حَفِيظٌ عَلَيْهِمْ وَمَا أَنْتَ عَلَيْهِمْ بِوَكِيلٍ (6)

इन आयतों का अनुवाद हैः

(उनकी बातों से) क़रीब है कि सारे आसमान (उसकी हैबत के मारे) अपने ऊपर वार से फट पड़ें और फ़रिश्ते तो अपने परवरदिगार की तारीफ़ के साथ तसबीह करते हैं और जो लोग ज़मीन में हैं उनके लिए (गुनाहों की) माफ़ी माँगा करते हैं। सुन रखो कि ख़ुदा ही यक़ीनन बड़ा बख़्शने वाला मेहरबान है।[42:5] और जिन लोगों ने ख़ुदा को छोड़ कर (दूसरों को) अपना सरपरस्त बना रखा है ख़ुदा उनकी निगरानी कर रहा है (ऐ रसूल) तुम उनके ज़िम्मेदार नहीं हो(कि उन्हें ईमान लाने पर मजबूर करो।)। [42:6]

पिछली आयतों में अल्लाह के ख़ास पैग़ाम वहि के बारे में बात हुई। अब यह आयतें  कहती हैं कि अल्लाह के कलाम और वहि का वैभव इतना ज़्यादा है कि अगर उसे आसमानों पर उतारा जाता तो आसमान फट जाते। जैसा कि सूरए हश्र की आयत नम्बर 21 में हम पढ़ते हैं कि अगर क़ुरआन पहाड़ पर नाज़िल होता तो अल्लाह के डर से वह टुकड़े टुकड़े हो जाता। अल्लाह के फ़रिश्ते पैग़म्बरों पर उतरने वाली वहि के लिए जिससे इंसानों की हिदायत होती है, अल्लाह की नितांत तस्बीह और उसका गुणगान करते हैं। वे उन इंसानों के लिए जिनसे किसी ग़लती की संभावना रहती है इस्तेग़फ़ार करते हैं। इसलिए कि वे जानते हैं कि अल्लाह बख़्शने वाला और मेहरबान है और उसकी परम्परा बंदों के गुनाहों को माफ़ कर देने की है ताकि उनके लिए अल्लाह की तरफ़ वापसी का रास्ता खुला रहे।

अलबत्ता ज़ाहिर है कि उन्हीं लोगों के गुनाह माफ़ किए जाएंगे जो जान बूझकर गुनाह नहीं करते वरना ज़िद्दी गुनहगारों के गुनाह माफ़ होने की कोई वजह नहीं है।

आयतों का अगला हिस्सा इसी बिंदु की तरफ़ इशारा करता है और कहता है कि इंसानों का एक समूह अल्लाह और उसके पैग़म्बर को अपना सरपरस्त मानने के बजाए और उनका अनुसरण करने के बजाए दूसरों की शरण में जाते हैं और अपने जीवन पर उनका प्रभुत्व स्वीकार करते हैं। यह लोग दरअस्ल कुफ़्र और बहुईश्वरवाद में ग्रस्त हैं और पैग़म्बरों की बात नहीं मानते।

ज़ाहिर है कि पैग़म्बर ख़ुद को इंसानों की हिदायत का ज़िम्मेदार मानते हैं और उनकी कामना यह होती है कि सारे इंसान हिदायत पा जाएं और अल्लाह के रास्ते पर चलना शुरू कर दें। जब वे देखते हैं कि कुछ लोग अल्लाह के रास्ते से विमुख हैं तो उन्हें दुख होता है। इसलिए अल्लाह इन आयतों में पैग़म्बरे इस्लाम से कहता है कि तुम यह न समझो कि तुम सारे इंसानों के ज़िम्मेदार हो और उन्हें हर हाल में हिदायत का रास्ता स्वीकार करना है। तुम उनके कर्मों के लिए जवाबदेह नहीं हो और उन्हें मजबूर करने के लिए नहीं भेजे गए हो। अल्लाह ने इंसानों को आज़ाद पैदा किया है और उन्हें इरादा और अख़तियार दिया है कि अपना रास्ता ख़ुद चुनें।

हर किसी को अपने चयन के नतीजे का सामना करना होगा। क्योंकि अल्लाह उन सब का पैदा करने वाला है और उनके हर अमल पर नज़र रखता है। जो भी बुरे और अनुचित कर्मों में पड़ेगा दुनिया और आख़ेरत में अपने कर्मों का ख़मियाज़ा भुगतेगा। जो भी सही रास्ते पर चलेगा और अच्छा अमल करेगा वह उसका बदला पाएगा।

इन आयतों से हमने सीखाः

कुछ इंसानों के दिल पत्थर से भी ज़्यादा सख़्त होते हैं। क़ुरआन अगर आसमानों पर नाज़िल किया जाता तो उनके टुकड़े हो जाते मगर ज़िद्दी इंसान के दिल पर अल्लाह की बातों का असर नहीं होता और वे उसके सामने समर्पित नहीं होना चाहते।

दुआ के समय हम धरती के हर प्राणी के लिए दुआ करें और उनके लिए अल्लाह से क्षमा की दुआ मांगें जिस तरह फ़रिश्ते धरती पर रहने वाले प्राणियों के लिए दुआ करते हैं।

अल्लाह पर ईमान से यह चीज़ मेल नहीं खाती कि किसी अन्य के प्रभुत्व को स्वीकार किया जाए।

पैग़म्बर को अल्लाह का पैग़ाम इंसानों तक पहुंचाने के लिए चुना गया है उनकी यह ज़िम्मेदारी नहीं है कि इंसानों को हक़ और सत्य को स्वीकार करने पर मज़बूर करें।