Apr २१, २०२५ १६:०९ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-973

सूरए ज़ारियात आयतेंए , 1 से 14

सूरए क़ाफ़ के बारे में हमारी चर्चा समाप्त हुई जिसके बाद अब हम सूरए ज़ारियात की तिलावत, उसका अनुवाद और उसकी संक्षिप्त व्याख्या आरंभ कर रहे हैं। यह सूरा मक्का में नाज़िल हुआ है। इस सूरे में आरंभ व अंत यानी क़यामत, ब्रह्मांड में अल्लाह की निशानियां, कुछ पैग़म्बरों की कहानियां और अतीत की कुछ गुमराह क़ौमों के अंजाम का उल्लेख है।  

तो आइये सबसे पहले सूरए ज़ारियात की पहली से छठी तक की आयतों की तिलावत सुनते हैं,

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ

وَالذَّارِيَاتِ ذَرْوًا (1) فَالْحَامِلَاتِ وِقْرًا (2) فَالْجَارِيَاتِ يُسْرًا (3) فَالْمُقَسِّمَاتِ أَمْرًا (4) إِنَّمَا تُوعَدُونَ لَصَادِقٌ (5) وَإِنَّ الدِّينَ لَوَاقِعٌ (6)


इन आयतों का अनुवाद है

अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान रहम करने वाला है।

उन हवाओं की क़सम जो (चीज़ों को) उड़ा कर तितर बितर कर देती हैं [51:1]  और (उन बादलों की क़सम जो) पानी का बोझ उठाते हैं [51:2]   फिर उन कश्तियों की क़सम जो आहिस्ता आहिस्ता चलती हैं [51:3]  उन फ़रिश्तों की क़सम जो (कामों को) तक़सीम करते हैं [51:4]  कि तुम से जो वादा किया जाता है बिल्कुल सच्चा है [51:5]  और (आमाल की) जज़ा का दिन ज़रूर आएगा[51:6]  

पवित्र क़ुरआन का यह सूरा कुछ दूसरे सूरों की भांति कुछ क़समों के साथ आरंभ होता है। 

इस सूरए में अल्लाह ने बादल और हवा जैसी प्राकृतिक चीज़ों की क़सम खाई है। हवा वह चीज़ है जिसके बिना ब्रह्मांड का कोई भी प्राणी ज़िन्दा नहीं रह सकता चाहे वह इंसान हो या पशु- पक्षी। इसी प्रकार इस सूरए में अल्लाह ने बादलों की भी क़सम खाई है। बादल वह चीज़ है जो ज़मीन के विभिन्न भागों में वर्षा करता है और उसकी वर्षा के परिणाम में मुर्दा ज़मीनें ज़िन्दा हो जाती हैं और पेड़ों और वनस्पतियों आदि में जान आ जाती है। 

अल्लाह ने इस सूरए में उन नावों व जहाज़ों की क़सम खाई है जो पानी पर तैरते हैं और हवा के चलने की वजह से यात्रियों और वस्तुओं को दुनिया के विभिन्न भागों व क्षेत्रों में पहुंचाते हैं। 

अल्लाह इस सूरए में उन फ़रिश्तों की भी क़सम खाता है जो अल्लाह के आदेश से पूरी दुनिया में इंसानों और ग़ैर इंसानों में रोज़ी बांटते हैं। 

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इंसानों, जानवरों और वनस्पतियों आदि की ज़िन्दगी के लिए वर्षा बहुत ज़रूरी और अतिआवश्यक है। हवायें बादलों को इधर- उधर करने और वनस्पतियों व वृक्षों के निषेचन व Fertilization में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। 

नावों और जहाज़ों की भी इंसानों की ज़िन्दगी में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। आज दुनिया की बहुत सी वस्तुओं का निर्यात समुद्री मार्गों से होता है। ज़मीनी और हवाई रास्तों की तुलना में समुद्री रास्ते बहुत सस्ते होते हैं। 

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि अल्लाह ने जो हवाओं बादलों और जहाज़ों की जो क़सम खाई है वह इंसानों के जीवन के संचालन में अल्लाह की हिकमत व शक्ति का सूचक है और क़यामत का इंकार करने वाले यह जान जायें कि अल्लाह ने इंसानों को पैदा करने के बाद उन्हें उनके हाल पर नहीं छोड़ा है। अल्लाह ने इंसानों को अकारण पैदा नहीं किया है। उनकी पैदाइश का उद्देश्य इस ब्रह्मांड के बाद स्पष्ट हो जायेगा और पूरे मानव इतिहास में पैग़म्बरों और ईश्वरीय दूतों व संदेशकों ने इसकी सूचना दी है। 

इन आयतों से हमने सीखा

अल्लाह ने बादलों, हवाओं और वर्षा जैसी प्राकृतिक चीज़ों की जो क़सम खाई है उसका एक उद्देश्य, प्राकृतिक चीज़ों में जो नियम व व्यवस्था मौजूद है उसके बारे में चिंतन- मनन के लिए इंसानों को प्रोत्साहित करना है और इन चीज़ों में मौजूद क़ानून और व्यवस्था अल्लाह को पहचानने की भूमिका है और अल्लाह भौतिक और ग़ैर भौतिक कारकों से इस ब्रह्मांड का संचालन कर रहा है। 

आश्चर्य की बात यह है कि हम इंसान इनके- उनके वादे पर विश्वास कर लेते हैं मगर अल्लाह का जो वादा निश्चित है और वह होकर रहेगा उस पर हमें विश्वास नहीं है और हम उसके बारे में असमंजस का शिकार हैं।  

आइये अब सूरए ज़ारियात की सातवीं से 9वीं तक की आयतों की तिलावत सुनते हैं,

وَالسَّمَاءِ ذَاتِ الْحُبُكِ (7) إِنَّكُمْ لَفِي قَوْلٍ مُخْتَلِفٍ (8) يُؤْفَكُ عَنْهُ مَنْ أُفِكَ (9)

इन आयतों का अनुवाद है

और आसमान की क़सम जिसमें (ख़ुबसूरती और) बड़ी राहें हैं [51:7]  कि (ऐ अहले मक्का) तुम लोग (क़ुरआन के बारे में) मुख्तलिफ़ बेजोड़ बातों में पड़े हो [51:8]  कि जो (हक़ से ) फिरा उससे गुमराह होगा। [51:9]  

अल्लाह ने इन आयतों में आसमानों की महानता की क़सम खाई है। इन आसमानों में अरबों आकाश गंगायें और तारे हैं और ये तारे अंधेरी रातों में रौशन चेराग़ की भांति पूरे आसमान में चमकते व जगमाते हैं मगर क़यामत का इंकार करने वाले आसमान, ज़मीन, तारे, वर्षा, हवा और अल्लाह ने इंसानों की हिदायत के लिए

जो पैग़म्बरों और ईश्वरीय दूतों को भेजा उन सबकी अनदेखी करते हुए प्रलय के बारे में असमंजस का शिकार और उसका इंकार करते हैं और विभिन्न बहानों से पैग़म्बरों और उनकी शिक्षाओं पर सवाल उठाते हैं। अलबत्ता क़यामत का इंकार करने वालों के पास कोई ठोस तर्क नहीं है। दूसरे शब्दों में उनका दृष्टिकोण आधार रहित और उसमें विरोधाभास है मगर उसके मुक़ाबले में हक़ का एक ही रास्ता है और उसका आधार ठोस तर्क है। 

स्पष्ट है कि जो हक़ को पहचाने के बाद उसका अनुसरण न करे वह गुमराह है और उसकी इस गुमराही में वृद्धि होगी। 

इन आयतों से हमने सीखा 

क़यामत का इंकार करने वालों की बातों का कोई ठोस तर्क नहीं है। अतः उनकी बातों में कभी- कभी  विरोधाभास भी होता है। सच और हक़ का एक ही रास्ता होता है जबकि गुमराही के बहुत रास्ते होते हैं। 

हर गुनाह दूसरे गुनाह की भूमिका बनता है और उससे वापसी का मार्ग तौबा है। 

आइये सूरए ज़ारियात की 10वीं से चौदहवीं तक की आयतों की तिलावत सुनते हैं

قُتِلَ الْخَرَّاصُونَ (10) الَّذِينَ هُمْ فِي غَمْرَةٍ سَاهُونَ (11) يَسْأَلُونَ أَيَّانَ يَوْمُ الدِّينِ (12) يَوْمَ هُمْ عَلَى النَّارِ يُفْتَنُونَ (13) ذُوقُوا فِتْنَتَكُمْ هَذَا الَّذِي كُنْتُمْ بِهِ تَسْتَعْجِلُونَ (14)   

इन आयतों का अनुवाद है

अटकलें दौड़ाने वालों को मौत आए[51:10]  जो ग़फलत में भूले हुए (पड़े) हैं [51:11] पूछते हैं कि जज़ा का दिन कब होगा [51:12]  वह दिन है जब इनको (जहन्नुम की) आग में जलाया [51:13] जाएगा  (और उनसे कहा जाएगा) अपने अज़ाब का मज़ा चखो ये वही है जिसकी तुम जल्दी मचाया करते थे[51:14]  

पवित्र क़ुरआन की ये आयतें कहती हैं कि क़यामत का इंकार करने वालों की बातें निराधार हैं और उनकी बातों का आधार केवल गुमान और अटकलें हैं और सोचते हैं कि वे समझदार हैं। 

क़यामत का इंकार करने वाले आमतौर पर पैग़म्बरों और ईमानदार लोगों से एक सवाल यह करते थे कि क़यामत  कब आयेगी? वे सोचते थे कि चूंकि अहले ईमान क़यामत के आने के समय को नहीं जानते हैं इसलिए क़यामत नाम की कोई चीज़ नहीं है जबकि इस प्रकार का विचार सही नहीं है। मिसाल के तौर पर भूकंप आने के समय की जानकारी का न होना इस बात की दलील नहीं है कि भूकंप नाम की कोई चीज़ नहीं है। 

क़यामत का इंकार करने वाले जब तक अपनी आंख से नरक की दहकती आग को नहीं देख लेंगे तब तक क़यामत पर विश्वास व ईमान नहीं लायेंगे और अपनी ग़लत व निराधार आस्था की वजह से अहले ईमान का मज़ाक़ उड़ाने से बाज़ नहीं आयेंगे। 

इन आयतों से हमने सीखा 

धर्म के बारे में आधारहीन व तर्करहित बातें अल्लाह की रहमत से दूरी का कारण हैं। अगर हम इस बात से अवगत नहीं हैं कि क़यामत किस तरह और कब आयेगी तो यह क़यामत के न होने की दलील नहीं है। इसी प्रकार इस बात को क़यामत के इंकार का बहाना नहीं बनाना चाहिये।