Apr २१, २०२५ १६:१८ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-974

सूरए ज़ारियात आयतें 15 से 23

आइये सबसे पहले सूरए ज़ारियात की 15 से लेकर 19 तक की आयतों की तिलावत सुनते हैं,

 

إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي جَنَّاتٍ وَعُيُونٍ (15) آَخِذِينَ مَا آَتَاهُمْ رَبُّهُمْ إِنَّهُمْ كَانُوا قَبْلَ ذَلِكَ مُحْسِنِينَ (16) كَانُوا قَلِيلًا مِنَ اللَّيْلِ مَا يَهْجَعُونَ (17) وَبِالْأَسْحَارِ هُمْ يَسْتَغْفِرُونَ (18) وَفِي أَمْوَالِهِمْ حَقٌّ لِلسَّائِلِ وَالْمَحْرُومِ (19)

इन आयतों का अनुवाद हैः

बेशक परहेज़गार लोग (बहिश्त के) बाग़ों और चश्मों में (आरामदेह ज़िंदगी बसर करते) होगें[51:15]  जो उनका परवरदिगार उन्हें अता करता है ये (ख़ुश ख़ुश) ले रहे हैं ये लोग इससे पहले (दुनिया में) नेकूकार थे[51:16]  (इबादत की वजह से) रात को बहुत ही कम सोते थे[51:17]  और पिछले पहर को अपनी मग़फ़ेरत की दुआएं करते थे [51:18]  और उनके माल में माँगने वाले और न माँगने वाले (दोनों) का हिस्सा था[51:19]  

 पवित्र क़ुरआन में इंसानों की शिक्षा-प्रशिक्षा का एक तरीक़ा अच्छे और बुरे इंसानों के मध्य तुलना है। इससे पहले वाले कार्यक्रम में क़यामत का इंकार करने वालों की ओर संकेत किया गया है। पवित्र क़ुरआन की इन आयतों में अच्छे और सदाचारी लोगों की विशेषताओं के बारे में बात की गयी है। अल्लाह फ़रमाता है कि ये लोग क़यामत में विशेष ईश्वरीय प्रतिदान प्राप्त करेंगे क्योंकि दुनिया में दूसरों के साथ अच्छाई और भलाई करते थे। 

संभव है कि यह कहा जाये कि क़यामत का इंकार करने वाले भी कुछ दूसरों की मदद और उनके साथ नेकी करते हैं परंतु मोमिन पवित्र दिलों के साथ दूसरों के साथ भलाई करते और अल्लाह से संपर्क भी रखते हैं। साथ ही अच्छे व सदाचारी लोग नमाज़ पढ़ते और दुआ करते हैं। दिनों को वे दूसरों के साथ भलाई करने के बारे में सोचते हैं और रातों को अपने और महान ईश्वर के बारे में चिंतन -मनन करते हैं और महान ईश्वर के साथ अपने संबंधों को मज़बूत करते हैं। 

इन आयतों से हमने सीखा

इस दुनिया में गुनाहों से दूषित लज़्ज़तों से अनदेखी करने के नतीजे में परलोक में हमेशा- हमेशा बाक़ी रहने वाली लज़्ज़तें प्राप्त होंगी। 

एक तरफ़ इंसान का महान ईश्वर से संपर्क और उसकी बारगाह में दुआ और दूसरी ओर समाज के ज़रूरतमंदों की सहायता, हमेशा- हमेशा की कामयाबी की तरफ़ परवाज़ के दो पंख हैं और कोई भी एक दूसरे के बिना गंतव्य तक नहीं पहुंचायेगा। रातों के एक भाग को नमाज़ पढ़ने, दुआ करने और अपने पालनहार से संपर्क के लिए विशेष करना परहेज़गार और सदाचारी लोगों की एक विशेषता है। 

महान ईश्वर से तौबा करने और अपने गुनाहों से माफ़ी मांगने का बेहतरीन समय भोर का है। जो कुछ ज़रूरतमंदों और वंचितों को दिया जाता है उनका ही हक़ होता है। क्योंकि अल्लाह ने लोगों के माल में ज़रूरतमंदों और वंचितों का हक़ रखा है। अतः उन पर किसी प्रकार का एहसान नहीं जताना चाहिये। 

आइये अब सूरए ज़ारियात की 20 से लेकर 23 तक की आयतों की तिलावत सुनते हैं।

وَفِي الْأَرْضِ آَيَاتٌ لِلْمُوقِنِينَ (20) وَفِي أَنْفُسِكُمْ أَفَلَا تُبْصِرُونَ (21) وَفِي السَّمَاءِ رِزْقُكُمْ وَمَا تُوعَدُونَ (22) فَوَرَبِّ السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ إِنَّهُ لَحَقٌّ مِثْلَ مَا أَنَّكُمْ تَنْطِقُونَ (23)

इन आयतों का अनुवाद है

और यक़ीन करने वालों के लिए ज़मीन में (क़ुदरते ख़ुदा की) बहुत सी निशानियाँ हैं [51:20]  और ख़ुद तुम में भी हैं तो क्या तुम देखते नहीं[51:21]  और तुम्हारी रोज़ी और जिस चीज़ का तुमसे वादा किया जाता है आसमान में है[51:22]  तो आसमान व ज़मीन के मालिक की क़सम ये (क़ुरान) बिल्कुल ठीक है जिस तरह तुम बातें करते हो[51:23]

इससे पहले वाली आयतें क़यामत के बारे में थीं। ये आयतें महान ईश्वर की पहचान के बारे में हैं। इन आयतों में महान ईश्वर कहता है क्यों इंसान अपनी आंख नहीं खोलता और अपनी और ब्रह्मांड की रचना की महानता के बारें में चिंतन- मनन क्यों नहीं करता

धार्मिक हस्तियों की बातों में इस बात पर बल दिया गया है कि जिसने अपने आपको पहचान लिया उसने अपने पालनहार को पहचान लिया। 

आज शिक्षाकेन्द्रों और विश्वविद्दयालयों में चिकित्सा और मनोवैज्ञानिक आदि क्षेत्रों में दसियों विषयों की शिक्षा दी जा रही है और शोध व अध्ययन किये जा रहे हैं ताकि इंसान के अस्तित्व के विभिन्न आयामों को अधिक से अधिक पहचान सकें। इसके साथ ही यह कहा जा सकता है कि इंसान ने इतनी सारी तरक्की कर लेने के बावजूद आज भी इंसान के अस्तित्व के बहुत से आयामों को नहीं पहचान सका है। 

अपनी मां के पेट से लेकर दुनिया में इंसान के आने और बड़ा होने तक उसके अस्तित्व में आश्चर्य चकित करने वाली क्षमतायें व योग्यतायें नीहित हैं और ये योग्यतायें और क्षमतायें इस बात की सूचक हैं कि इंसान की रचना करने वाले को इंसान की समस्त ज़रूरतों का संपूर्ण ज्ञान था। 

इंसान के शरीर के अंग जैसे आंख, कान, नाक, दांत, दिल, फेफड़ा आदि को समझने के लिए समझदार और विशेषज्ञ की ज़रूरत है ताकि वह इनके काम करने और रचना व बनावट से अवगत हो सके। 

दूसरी ओर जिस ज़मीन पर हम रहते हैं वह सूरज और तारों आदि से बहुत दूरी पर है। इस ज़मीन पर बड़े- बड़े समुद्र, पहाड़ और जंगल हैं और अकल्पनीय भार के साथ ज़मीन अपनी और सूरज की नियत कक्षा में चक्कर लगा रही है। यह सबका सब महान ईश्वर के असीमित ज्ञान का सूचक है और इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि ब्रह्मांड में मौजूद इतनी सूक्ष्म व गूढ़ व्यवस्था अपने आप नहीं हो सकती। अतः कोई इसकी रचना करने वाला अवश्य है। 

वास्तव में ज़मीन एक दानी मां की तरह है जो इंसानों और जानवरों आदि की समस्त ज़रूरतों को पूरा करती है। खेती करने और पेड़ उगने के लिए ज़मीन का नर्म होना ज़रूरी है। इसी प्रकार सख्त पहाड़ों में विभिन्न प्रकार की इंसान की ज़रूरत की खदानें मौजूद हैं। स्पष्ट है कि अगर कोई ग़ौर से इंसान और ब्रह्मांड की रचना में चिंतन- मनन करे तो निश्चित रूप से तत्वदर्शी और सर्वज्ञाता ईश्वर के अस्तित्व को समझ जायेगा और इस बात को भी समझ जायेगा कि उसकी रचना अकारण नहीं हुई है और किसी महत्वपूर्ण उद्देश्य के लिए उसे पैदा किया गया है और निश्चित रूप से वह उद्देश्य इंसान के मर जाने से समाप्त नहीं होता बल्कि इस उद्देश्य में मरने के बाद का जीवन भी शामिल है।

इन आयतों से हम सीखते हैं 

इंसान को अपने पालनहार से परिचित कराने के लिए पवित्र क़ुरआन का एक तरीक़ा ज़मीन पर मौजूद अल्लाह की निशानियों की ओर ध्यान दिलाना है कि इंसान इन निशानियों को देखकर अपनी और समूचे ब्रह्मांड की रचना करने वाले के अस्तित्व को समझ जाता है। रोचक बात यह है कि जितनी दुनिया तरक्की करती जा रही है उतना ही प्रकृति में मौजूद रहस्यों का पता चलता जा रहा है। दूसरे शब्दों में इंसान और ब्रह्मांड की रचना करने वाले का अस्तित्व दिन- प्रतिदिन स्पष्ट होता जाता है। आत्मबोध महान व सर्वसमर्थ ईश्वर के पहचानने का एक बेहतरीन तरीक़ा है। आत्मबोध इंसान को उसके रचयिता तक पहुंचा देता है। 

रोज़ी व आजीविका का स्रोत आसमान है और आसमान और ज़मीन दोनों मिलकर इंसान की रोज़ी को उपलब्ध करते हैं। सूरज का प्रकाश, बादल, हवा और वर्षा बेजान ज़मीन को जीवन प्रदान करते हैं और समस्त प्राणियों का भोजन व खाना उपलब्ध कराते हैं। इंसान जो बात करता है यह खुद महान ईश्वर की एक विशेष व अनमोल नेअमत है और अल्लाह अपनी बातों व वादों के वास्तविक होने के लिए इंसान के बात करने की मिसाल देता है।