क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-978
सूरए ज़ारियात आयतें 52 से 60
आइये अब सूरए ज़ारियात की आयत नंबर 52 और 53 की तिलावत सुनते हैं
كَذَلِكَ مَا أَتَى الَّذِينَ مِنْ قَبْلِهِمْ مِنْ رَسُولٍ إِلَّا قَالُوا سَاحِرٌ أَوْ مَجْنُونٌ (52) أَتَوَاصَوْا بِهِ بَلْ هُمْ قَوْمٌ طَاغُونَ (53)
इन आयतों का अनुवाद हैः
इसी तरह उनसे पहले लोगों के पास जो पैग़म्बर आता तो वह उसको जादूगर कहते या दीवाना (बताते) [51:52] क्या ये लोग एक दूसरे को ऐसी बात की वसीयत करते आए हैं (नहीं) बल्कि ये लोग हैं ही सरकश [51:53]
पिछले कार्यक्रम में हमने देखा कि फ़िरऔन ने हज़रत मूसा पर जादूगर या पागल होने का आरोप लगाया ताकि लोगों को उनसे दूर कर सके। ये आयतें कहतीहैं कि केवल हज़रत मूसा नहीं थे जिन पर यह आरोप लगाया बल्कि पूरे इतिहास में समस्त ईश्वरीय पैग़म्बरों पर आरोप लगाया गया।
यह कार्य विभिन्न क़ौमों के मध्य इस प्रकार प्रचलित हो गया कि मानो हरक़ौम ने दूसरी क़ौम से वसीयत कर दी थी कि इस प्रकार का आरोप लगाये और इस काम में कमी न करे जबकि ऐसा नहीं था बल्कि हक़ के मुक़ाबले में उद्दंडता वइंकार की भावना कारण बनी कि वह अच्छे और नेक लोगों को लोगों के मध्य से हटाने के लिए इस प्रकार का काम करें। अगर वे पैग़म्बरों को लोगों के मध्य से हटाने व ख़त्मकरने में सक्षम नहीं थे तो समाज में उनकी हस्ती की हत्या करने की कोशिश करते थे।
इन आयतों से हमने सीखा
विरोधियों की ज़बान और उनके बुरा- भला कहने से न तो डरना चाहिये और न ही पीछे हटना चाहिये। क्योंकि ईश्वरीय पैग़म्बरों को भी हमेशा विभिन्न प्रकार केनिराधार आरोपों का सामना रहा है और वे कभी भी झूठे और निराधार आरोपों से थक कर पीछे नहीं हटे।
मानवता की सीमा से आगे बढ़ जाना वास्तविकता को समझने और पैग़म्बरों केमुक़ाबले में खड़ा होने का कारण बनता है यहां तक कि इंसान पैग़म्बरों को जादूगर या पागल कहता है।
आइये अब सूरए ज़ारियात की आयत नंबर 54 और 55 की तिलावत सुनते हैं
فَتَوَلَّ عَنْهُمْ فَمَا أَنْتَ بِمَلُومٍ (54) وَذَكِّرْ فَإِنَّ الذِّكْرَى تَنْفَعُ الْمُؤْمِنِينَ (55)
इन आयतों का अनुवाद हैः
तो (ऐ रसूल) तुम इनसे मुँह फेर लो तुम पर तो कुछ इल्ज़ाम नहीं है [51:54] और नसीहत किए जाओ क्योंकि नसीहत मोमिनीन को फ़ायदा देती है [51:55]
पिछले कार्यक्रम में बताया गया कि पूरे इतिहास में विरोधियों औरदुश्मनों ने पैग़म्बरों पर जादूगर या पागल होने का आरोप लगाया ताकि इस प्रकार उनके चमत्कारों और असाधारण कार्यों के महत्व को मूल्यहीन दर्शा कर अल्लाह के साथ उनकेसंपर्क का इंकार कर सकें।
ये आयतें पैग़म्बरे इस्लाम को संबोधित करते हुए कहती हैं आपने लोगों के मार्गदर्शन के दायित्व को सही तरह से अंजाम दिया और आप आलोचना के पात्र नहीं हैंतो इन लोगों से मुंह मोड़ लीजिये और उन्हें उनकी हाल पर छोड़ दीजिये कि इनकी हिदायत व मार्गदर्शन की उम्मीद नहीं है क्योंकि वे वास्तविकता को पहचानना और क़बूलकरना नहीं चाहते हैं।
अलबत्ता लोगों को डराना और उन्हें सावधान करना पैग़म्बरों का अस्ली दाइत्व व ज़िम्मेदारी है और जो लोग वास्तविकता को पहचानना और उन पर ईमान लानाचाहते हैं वे पैग़म्बरों की नसीहतों से लाभ उठाते और हिदायत पा जाते हैं।
इन आयतों से हमने सीखाः
पैग़म्बरों का दायित्व लोगों का मार्गदर्शन है परंतु उसका परिणाम उनके हाथ में नहीं है। जो लोग ईमान नहीं लाते हैं उनके संबंध में पैग़म्बरों की कोईज़िम्मेदारी नहीं है। हमें सबके ईमान लाने की उम्मीद नहीं रखनी चाहिये। हमें अपनी ताक़त व शक्ति उन पर अधिक ख़र्च करना चाहिये जिनके ईमान लाने की संभावना अधिक हो। अच्छी बात और नसीहत को क़बूल करना अहले ईमान की अलामत है और जिनके अंदरयह विशेषता नहीं है उन्हें अपने ईमान के सही होने की समीक्षा करना चाहिये।
आइये अब सूरए ज़ारियात की आयत नंबर 56 से 58 तक की तिलावत सुनते हैं
وَمَا خَلَقْتُ الْجِنَّ وَالْإِنْسَ إِلَّا لِيَعْبُدُونِ (56) مَا أُرِيدُ مِنْهُمْ مِنْ رِزْقٍ وَمَا أُرِيدُ أَنْ يُطْعِمُونِ (57) إِنَّ اللَّهَ هُوَ الرَّزَّاقُ ذُو الْقُوَّةِ الْمَتِينُ (58)
इन आयतों का अनुवाद है
और मैने जिनों और आदमियों को इसी मक़सद से पैदा किया कि वे मेरी इबादत करें [51:56] न तो मैं उनसे रोज़ी का तालिब हूँ और न ये चाहता हूँ कि मुझे खाना खिलाएँ [51:57] ख़ुदा ख़ुद बड़ा रोज़ी देने वाला शक्तिशाली (और) मज़बूत है [51:58]
पिछली आयतें उन चीज़ों के बारे में थी जिनको याद दिलाना अहले ईमान केलिए लाभदायक है। ये आयतें कहती हैं कि एक विषय इंसान की रचना का उद्देश्य है और यह वह विषय है जिस पर इंसान को हमेशा ध्यान देना चाहिये और इस विषय से निश्चेतना वग़फ़लत इंसान की गुमराही का कारण बनती है।
स्पष्ट है कि इंसान की रचना और उसके पैदा करने का उद्देश्य एक है और महान व सर्वशक्तिमान ईश्वर को उसकी रचना व पैदा करने की कोई ज़रूरत नहीं थी। वास्तव मेंइंसान की रचना का उद्देश्य उसकी परिपूर्णता व कमाल है। ये आयतें इंसान को उसके कमाल की राह दिखाती और बताती हैं कि अल्लाह की बंदगी इंसानी कमाल व परिपूर्णता कामार्ग है।
अलबत्ता इबादत के दो आयाम व पहलु हैं। एक इबादत का विशेष अर्थ है यानी इबादत के कार्यों को अंजाम देना जैसे नमाज़, रोज़ा और हज आदि जबकि इबादत का दूसराअर्थ व्यापक है और उसमें इंसान के जीवन के समस्त आयाम व पहलु शामिल हैं। इन अर्थों में कि इंसान के समस्त फ़ैसलों और चयनों को महान ईश्वर की प्रसन्नता केपरिप्रेक्ष्य में होना चाहिये और हर उस चीज़ से दूर रहना व परहेज़ करना चाहिये जिसमें उसकी प्रसन्नता न हो।
स्वाभाविक है कि अगर इंसान अपने जीवन के समस्त आयामों में महान ईश्वर कोदृष्टि में रखे तो जो तुच्छ व पस्त इच्छायें होती हैं उनसे दूरी करेगा और जो मात्र कमाल है यानी समूचे ब्रह्मांड का रचयिता तो उसका सामाप्यि प्राप्त करने की कोशिशकरेगा और महान ईश्वर का सामिप्य कमाल का शिखर बिन्दु है जिसे इंसान प्राप्त कर सकता है।
इन आयतों से हमने सीखा
इंसान और जिन्नात को पैदा करने का मूल उद्देश्य महान ईश्वर की इबादत है।यानी दोनों की रचना का समान उद्देश्य है।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि महान को बंदों की इबादत व उपासना की कोई ज़रूरत नहीं है बल्कि हम इंसानों को उसकी इबादत की ज़रूरत है और महान ईश्वर कीबंदगी के माध्यम से हम आध्यात्मिक कमाल तक पहुंच सकते हैं।
हलाल आजीविका कमाने के लिए प्रयास करना इंसान की ज़िम्मेदारी है पर इस बात को नहीं भूलना चाहिये कि रोज़ी व आजीविका का स्रोत महानईश्वर है।
आइये अब सूरए ज़ारियात की आयत नंबर 59 और 60 की तिलावत सुनते हैं
فَإِنَّ لِلَّذِينَ ظَلَمُوا ذَنُوبًا مِثْلَ ذَنُوبِ أَصْحَابِهِمْ فَلَا يَسْتَعْجِلُونِ (59) فَوَيْلٌ لِلَّذِينَ كَفَرُوا مِنْ يَوْمِهِمُ الَّذِي يُوعَدُونَ (60)
इन आयतों का अनुवाद है
तो (इन) ज़ालिमों के वास्ते भी अज़ाब का कुछ हिस्सा है जिस तरह उनके साथियों के लिए हिस्सा था तो इनको हम से जल्दी न करनी चाहिए [51:59] तो जिस दिन का इन काफ़िरों से वादा किया जाता है उस दिन उनके लिए तबाही है [51:60]
ये सूरए ज़ारियात की अंतिम आयते हैं और इन आयतों में इस सूरए के निचोड़ व सारांश को बयान किया गया है। इस सूरए में संक्षेप में जिन क़ौमों के अंजाम की ओरसंकेत किया गया है खेद के साथ कहना पड़ता है कि उन्होंने एलाही दूतों और पैग़म्बरों के निमंत्रण को इंकार किया। उन्हें इसी दुनिया में अज़ाबे एलाही कासामना हुआ और परलोक में भी अज़ाबे एलाही का सामना होगा।
पैग़म्बरों के विरोधी हमेशा अपने समय के पैग़म्बरों से सवाल करते थे कि क़यामत कब आयेगी और चूंकि पैग़म्बर क़यामत के आने के समय को नहीं जानते थे इसलिए लोग अस्लक़यामत के होने पर ही प्रश्न चिन्ह लगाते और सवाल उठाते थे। अतः पवित्र क़ुरआन कहता है कि उतावनापन न करो और इस बात से निश्चिंत रहो कि अल्लाह का वादा पूरा होकररहेगा और वह दिन अवश्य आयेगा जो तुम्हारे लिए बहुत सख़्त होगा और उस दिन से भागने या पलटने का कोई रास्ता नहीं होगा।
इन आयतों से हमने सीखा
इंसान की रचना और उसके पैदा करने का उद्देश्य अल्लाह की बंदगी है और कोईइंसान इस उद्देश्य को भूल जाये तो उसने बहुत बड़ा अत्याचार किया।
महान ईश्वर के प्रेम और दंड का आधार उसका असीमित ज्ञान व हिकमत है और हम जो जल्दी और उतावलापनकरते हैं उससे महान ईश्वर की इच्छा में कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला है।
इंसान के अंजाम का आधार उसका अमल है। अतः कुफ्र और अत्याचार का अंजाम लोक- परलोक में महान ईश्वर का दंड है।