Apr २९, २०२५ १४:४४ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-979

सूरए तूर आयतें, 1 से 12

पिछले कार्यक्रम में सूरए ज़ारियात की आयतों का अनुवाद और उनकी व्याख्या समाप्त हो गयी और अब सूरए तूर की आयतों का अनुवाद और उनकी आसान व्याख्या आरंभ कर रहे हैं। यह सूरा मक्के में नाज़िल हुआ और मक्का में नाज़िल होने वाले पवित्र क़ुरआन के अधिकांश मक्की सूरों की भांति इस सूरे की अधिकांश आयतों का केन्द्र बिन्दु क़यामत और अच्छे व बुरे लोगों का अंजाम है।

तो आइये सबसे पहले सूरए तूर की पहली से चौथी तक की आयतों की तिलावत सुनते हैं,

         بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ

وَالطُّورِ (1) وَكِتَابٍ مَسْطُورٍ (2) فِي رَقٍّ مَنْشُورٍ (3) وَالْبَيْتِ الْمَعْمُورِ (4)

इन आयतों का अनुवाद है

अल्लाह के नाम से जो सबसे दयावान और मेहरबान है

(कोहे) तूर की क़सम [52:1]   और उस लिखी हुई किताब की [52:2]   जो क़ुशादा वरक़ में है [52:3]  और उस आबाद घर की।[52:4]   

पवित्र क़ुरआन का यह सूरा भी कुछ दूसरे सूरों की भांति कुछ क़समों से आरंभ होता है। इस सूरे की क़समें दो प्रकार की हैं। एक प्रकार की क़समों का संबंध पवित्र धार्मिक मामलों व शिक्षाओं से है जबकि दूसरी क़समों का संबंध प्राकृतिक चीज़ों से है।  जिन आयतों का ज़िक्र किया गया उनमें तीन महत्वपूर्ण बातों व कार्यों की ओर संकेत किया गया।

एक तूर पर्वत की ओर। यह वह पर्वत है जहां से हज़रत मूसा को तौरैत मिली। दूसरे उन आसमानी किताबों की ओर संकेत किया गया है जो हज़रत मूसा और दूसरे पैग़म्बरों पर नाज़िल हुई हैं और उनके अनुयाइयों व चाहने वालों के मध्य फ़ैल गयी हैं, और तीसरे काबे की ओर संकेत किया गया है जो ज़मीन में एकेश्वरवाद का केन्द्र है और इसका पुनर्निर्माण हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने किया है। यह काबा पूरे इतिहास में वह जगह रहा है जो एकेश्वरवादियों और हाजियों की उपस्थिति से आबाद रहा है।

इन आयतों से हमने सीखा

किताब की क़सम खाना किताब और उसके लिखने के उच्च महत्व व मूल्य का सूचक  है वह भी अज्ञानता के काल में और अनपढ़ लोगों के मध्य।

अतीत के पैग़म्बरों की शिक्षाओं और उनके नामों को ज़िन्दा रखना समस्त आसमानी धर्मों का दायित्व है और यह किसी एक धर्म से विशेष नहीं है।

आसमानी किताबों को बेहतरीन चीज़ों पर लिखा जाना चाहिये और बड़े पैमाने पर उसे विस्तृत किया जाना चाहिये ताकि हमेशा उसके संदेश लोगों की पहुंच में रहें।

आइये अब सूरे तूर की 5 से 8 तक की आयतों की तिलावत सुनते हैं।

وَالسَّقْفِ الْمَرْفُوعِ (5) وَالْبَحْرِ الْمَسْجُورِ (6) إِنَّ عَذَابَ رَبِّكَ لَوَاقِعٌ (7) مَا لَهُ مِنْ دَافِعٍ (8)

इन आयतों का अनुवाद है

और ऊँची छत (आसमान) की [52:5]  और जोश व ख़रोश वाले समन्दर की [52:6]  कि तुम्हारे परवरदिगार का अज़ाब बेशक आकर रहेगा [52:7]  (और) उसको कोई रोकने वाला नहीं [52:8]  

पिछली आयतों में कुछ चीज़ों की क़सम खाई गयी है उसी बात को जारी रखते हुए इन आयतों में दो महत्वपूर्ण चीज़ों की क़सम खाई गयी है। एक ऊंचे और भव्य आसमान की। आज इंसान बहुत प्रगति कर चुका है और आधुनिकतम टेलेस्कोप का निर्माण किया जा चुका है फ़िर भी इंसान आसमान के बहुतेरे आयामों का पता नहीं लगा पाया है और आये दिन नयी-नयी आकाशगंगाओं की खोज होती जा रही है।

दूसरी महत्वपूर्ण चीज़ जिसकी इन आयतों में क़सम खाई गयी है ठाठें मारता समुद्र है। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यह समुद्र उबलने वाली चीज़ से बना है और वह उबलने वाली चीज़ ज़मीन की गहराई में है जबकि कुछ अन्य विद्वानों का मानना है कि तात्पर्य यही ज़मीन पर मौजूद सागर व महासागर हैं। इन घटनाओं के बाद क़यामत आयेगी जो अपराधियों और अत्याचारियों के लिए बहुत कठिन होगी। उस वक़्त ईश्वरीय प्रकोप से न तो भागने का कोई रास्ता होगा और न ही उसे रोकने का कोई रास्ता होगा।

इन आयतों से हमने सीखा

प्रकृति में मौजूद अल्लाह की आयतों का अध्ययन और उसमें चिंतन- मनन करके हम क़यामत बरपा करने की उसकी शक्ति को समझ सकते हैं।

दुनियाई दंड क्षणिक हैं अस्ली दंड क़यामत में है और उससे बचने का कोई रास्ता नहीं है।

आइये अब सूरए तूर की 9 से 12 तक की आयतों की तिलावत सुनते हैं।

يَوْمَ تَمُورُ السَّمَاءُ مَوْرًا (9) وَتَسِيرُ الْجِبَالُ سَيْرًا (10) فَوَيْلٌ يَوْمَئِذٍ لِلْمُكَذِّبِينَ (11) الَّذِينَ هُمْ فِي خَوْضٍ يَلْعَبُونَ (12)

 इन आयतों का अनुवाद है

जिस दिन आसमान चक्कर खाने लगेगा [52:9]  और पहाड़ उड़ने लगेंगे [52:10]   तो उस दिन झुठलाने वालों की तबाही है [52:11]  जो लोग बातिल में पड़े मस्त हैं [52:12]

ये आयतें क़यामत के अवसर पर आसमान और ज़मीन की हालत की ओर संकेत करती और कहती हैं जो सिस्टम आकाश गंगाओं के मध्य मौजूद है वह दरहम–बरहम हो जायेगा। तारे अपनी कक्षा से हट जायेंगे और सब एक दूसरे से टकरा जायेंगे और उनके टकराने से आसमान धुंएं से भर जायेगा।

जिस ज़मीन पर हम हैं वह बहुत ही तीव्र गति से चल रही है इसके बावजूद वह बहुत शांत है, इस प्रकार से कि आज भी बहुत से लोग यह मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि ज़मीन चल रही है और शांतिपूर्ण ढंग से उस पर ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं परंतु क़यामत के अवसर पर पहाड़ अपनी जगह से उखड़ कर चलने लगेंगे। इस प्रकार से कि ये आयतें इस बिन्दु की ओर संकेत करती हैं कि क़यामत के समय नयी दुनिया नई व्यवस्था के साथ अस्तित्व में आयेगी। यह वह समय होगा जब इंसान को अपने अमल के नतीजों का सामना होगा। यह वह दिन होगा जब क़यामत का इंकार करने वाले निश्चेतना की नींद से जाग जायेंगे और अपनी ग़लती को समझ जायेंगे परंतु उस वक्त समझने का फ़ायदा क्या होगा? क़यामत की निशानियां देखने, अज़ाब को क़बूल करने, शर्मिन्दा होने और क़यामत के बारे में जो आधारहीन बातें कही थीं उन सबको तथ्य के रूप में सामने देखने के बाद क्या फ़ायदा होगा। अब इन चीज़ों के क़बूल करने से उनकी किसी समस्या का समाधान नहीं होगा।

इन आयतों से हमने सीखा

क़यामत आने पर ब्रह्मांड में जो व्यवस्था मौजूद है वह ख़त्म हो जायेगी।

क़यामत से पहले इस दुनिया के स्थान पर नई दुनिया अस्तित्व में आ जायेगी और उस दुनिया के क़ानून इस भौतिक संसार की दुनिया से भिन्न होंगे।

क़यामत का इंकार करने वालों के पास कोई तार्किक प्रमाण नहीं है। क़यामत का इंकार करने में उनकी बातें निराधार हैं जो स्वयं को और दूसरों को व्यस्त रखने के लिए अपनी ज़बान से कहते हैं।