क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-980
सूरए तूर आयतें, 13 से 21
सबसे पहले सूरे तूर की 13 से लेकर 16 तक की आयतों की तिलावत सुनते हैं।
يَوْمَ يُدَعُّونَ إِلَى نَارِ جَهَنَّمَ دَعًّا (13) هَذِهِ النَّارُ الَّتِي كُنْتُمْ بِهَا تُكَذِّبُونَ (14) أَفَسِحْرٌ هَذَا أَمْ أَنْتُمْ لَا تُبْصِرُونَ (15) اصْلَوْهَا فَاصْبِرُوا أَوْ لَا تَصْبِرُوا سَوَاءٌ عَلَيْكُمْ إِنَّمَا تُجْزَوْنَ مَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ (16)
इन आयतों का अनुवाद है
जिस दिन जहन्नम की आग की तरफ़ उनको ढकेल ढकेल ले जाएँगे। [52:13] (और उनसे कहा जाएगा) यही वह जहन्नम है जिसे तुम झुठलाया करते थे। [52:14] तो क्या ये जादू है या तुमको नज़र ही नहीं आता। [52:15] इसी में घुसो फिर सब्र करो या बेसब्री करो (दोनों) तुम्हारे लिए एकसमान हैं तुम्हें तो बस उन्हीं कामों का बदला मिलेगा जो तुम किया करते थे। [52:16]
अल्लाह के पैग़म्बरों का इंकार करने वालों का एक हथकंडा यह था कि जब वे पैग़म्बरों के हाथों चमत्कार देखते थे तो उसे जादू कहते थे। इसी प्रकार वे कहते थेकि नज़रबंद कर देते हैं और आंखों पर पर्दे डाल देते हैं जो कार्य वे करते हैं उसकी हक़ीक़त से हम अवगत न हो पायें।
पवित्र क़ुरआन इन आयतों में कहता है जब वे नरक की आग को अपनी आंखों सेदेखेंगे और उसकी गर्मी का एहसास करेंगे तो उनसे कहा जायेगा कि क्या यह भी जादू है और तुम्हारी नज़रें भूल व ग़लती से उसे आग देख रही हैं?
अल्लाह के पैग़म्बरों के विरोधी द्वेष, दुश्मनी और हठधर्मिता की वजह सेउनसे कहते थे कि हमें नसीहत करो या न करो हम पर कुछ असर होने वाला नहीं है और हम तुम्हारी नसीहतों पर ध्यान देने वाले नहीं हैं। इन आयतों में अल्लाह कहता है किक़यामत में भी उनसे कहा जायेगा कि नरक की आग पर धैर्य करो या धैर्य न करो चीखो - चिल्लाओ कुछ फ़र्क़ पड़ने वाला नहीं है और इस दंड से भागने व बचने का कोई रास्तानहीं है।
इन आयतों से हमने सीखा
हक़ के मुक़ाबले में हठधर्मिता का बहुत सख्त दंड है। क़यामत में दिये जाने वाले दंड का आधार न्याय होगा और वह ख़ुद इंसान के आमाल व कार्य का नतीजा होगा।
धार्मिक मूल्यों का मज़ाक़, क़यामत के दिन ख़ुद मज़ाक़ उड़ाने वाले केमज़ाक़ का कारण बनेगा।
आइये अब सूरे तूर की 17 से 19 तक की आयतों की तिलावत सुनते हैं
إِنَّ الْمُتَّقِينَ فِي جَنَّاتٍ وَنَعِيمٍ (17) فَاكِهِينَ بِمَا آَتَاهُمْ رَبُّهُمْ وَوَقَاهُمْ رَبُّهُمْ عَذَابَ الْجَحِيمِ (18) كُلُوا وَاشْرَبُوا هَنِيئًا بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ (19)
इन आयतों का अनुवाद है
बेशक परहेज़गार लोग बाग़ों और नेमतों में होंगे [52:17] जो (नेमतें) उनके परवरदिगार ने उन्हें दी हैं उनके मज़े ले रहे हैं और उनका परवरदिगार उन्हें दोज़ख़ के अज़ाब से बचाएगा।[52:18] जो जो कारगुज़ारियाँ तुम कर चुके हो उनके बदले में खाओ पियो। [52:19]
पवित्र क़ुरआन की शिक्षा- प्रशिक्षा की एक शैली लोगों को उम्मीद दिलाना और डराना एक साथ रहा है ताकि कोई भी महान व सर्वसमर्थ ईश्वर की असीम रहमत व दया सेनाउम्मीद न हो और दूसरी ओर किसी के दिल में अकारण उम्मीद पैदा न हो जाये।
इससे पहली वाली आयतों में नरक में क़यामत का इंकार करने वाले काफ़िरों केदंड का उल्लेख किया गया था जबकि इन आयतों में स्वर्ग में नेक और अच्छे लोगों को मिलने वाली नेअमतों का वर्णन किया गया है। इन आयतों में महान ईश्वर कहता है किजन्नत में जाने वाले दो कारणों से प्रसन्न हैं एक असंख्य व अनगिनत नेमतों के कारण जो महान ईश्वर ने उन्हें प्रदान की हैं और दूसरे महान ईश्वर की वह रहमत व दया जोउनके गुनाहों व ग़लतियों के माफ़ होने का कारण बनी है और उन्हें नरक और उसके प्रकोप से उन्हें मुक्ति मिली है।
स्वर्गवासी भी नरकवासियों की भांति अपने कर्मों के अंजाम को दुनिया में भीदेखेंगे। अलबत्ता जिस तरह दंड कम और अधिक होगा उसकी तरह नेक काम करने वालों को भी प्रतिदान में कमी और अधिकता का सामना होगा। यानी अगर नेक काम थोड़ा है तो प्रतिदानभी थोड़ा होगा और अगर नेक काम अधिक है तो प्रतिदान भी अधिक होगा।
इन आयतों से हमने सीखा
पवित्रता और सदाचारिता स्वर्ग की कुंजी है। अगर तक़वा नहीं होगा तो अकेले ईमान का भी कोई विशेष फ़ायदा नहीं होगा।
जो इंसान परहेज़गारी की वजह से स्वयं को बुरे व अप्रिय कार्यों से बचाताहै तो महान ईश्वर भी उसे प्रलय के दिन नरक की आग से बचायेगा। स्वर्ग को नेक कार्यों के बदले में दिया जायेगा न बहाने के बदले में। ईरान के प्रसिद्ध शायर साअदी के अनुसारज़हमत व कष्ट के बिना ख़ज़ाना नहीं मिलता।
आइये अब सूरे तूर की आयत नंबर 20-21 की तिलावत सुनते हैं।
مُتَّكِئِينَ عَلَى سُرُرٍ مَصْفُوفَةٍ وَزَوَّجْنَاهُمْ بِحُورٍ عِينٍ (20) وَالَّذِينَ آَمَنُوا وَاتَّبَعَتْهُمْ ذُرِّيَّتُهُمْ بِإِيمَانٍ أَلْحَقْنَا بِهِمْ ذُرِّيَّتَهُمْ وَمَا أَلَتْنَاهُمْ مِنْ عَمَلِهِمْ مِنْ شَيْءٍ كُلُّ امْرِئٍ بِمَا كَسَبَ رَهِينٌ (21)
इन आयतों का अनुवाद है
वो (आराम से) तख़्तों पर टेक लगाएंगे जो बराबर बिछे हुए हैं, और हम बड़ी बड़ी ऑंखों वाली हूरों से उनका ब्याह रचाएँगे। [52:20] और जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और उनकी औलाद ने भी ईमान में उनका साथ दिया तो हम उनकी औलाद को भी उनके दर्जे पर पहुँचा देंगे और हम उनकी कारगुज़ारियों में से कुछ भी कम न करेंगे हर शख़्स का दारोमदार उसके आमाल पर है।[52:21]
महान ईश्वर स्वर्गवासियों को अनगिनत नेअमतों को प्रदान करेगा। ये आयतें उनमें से कुछ दूसरी नेअमतों की ओर संकेत करती हैं। उन कुछ दूसरी नेअमतों से एकअन्य नेअमत यह है कि स्वर्गवासी एक दूसरे से प्रेम और वार्ता करेंगे और स्वर्ग के उचित स्थान पर एक दूसरे के साथ बैठकर वार्ता करेंगे। इसी प्रकार महान ईश्वर स्वर्गवासियोंको बहुत ही सुन्दर और पवित्र हूरें व पत्नियां प्रदान करेगा। दूसरे शब्दों में अच्छे और ईमानदार लोगों को कल्पना से परे सुन्दर हूरें और ईमानदार महिलाओं को बहुतही सुन्दर स्वर्गवासी मर्दों को प्रदान करेगा जो एक दूसरे से प्रेम करेंगे और उनका प्रेम एक दूसरे से शांति का कारण बनेगा। स्वर्ग में ऐसा भी होगा कि इस लोकमें बहुत से ईमानदार मर्द और औरतें एक दूसरे के जीवन साथी हैं और परलोक में भी महान ईश्वर उन्हें एक दूसरे का साथी बना देगा।
नेक और भली संतान भी अपने मां-बाप से मिल जायेगी और उनके साथ रहेगी ताकिएक जन्नती परिवार गठित हो जाये और उनकी ख़ुशी पहले से अधिक हो जाये। अलबत्ता महान ईश्वर अपनी दया से कुछ संतानों के अमल में जो कुछ कमी रह गयी है उसकी भरपाई कर देगा ताकि वे अपने मां- बाप के समान हो सकें और उनके साथ रह सकें।
इन आयतों से हमने सीखा
स्वर्ग में भी सदाचारिता का ध्यान रखा जायेगा और महिला और पुरूष के बीच का संबंध विवाह के परिप्रेक्ष्य में होगा। वहां किसी प्रकार का अवैध संबंध नहीं होगा।
जो लोग इस दुनिया में पराई महिला को देखने से परहेज़ करते हैं और अपनी नज़रें झुका लेते हैं महान ईश्वर इसके बदले में उन्हें स्वर्ग में सुन्दर पत्नियां प्रदान करेगा।
इस्लाम में परिवार गठन का मापदंड ईमान है अतः स्वर्ग में भी नेक संतान और पति- पत्नियां एक दूसरे के साथ रहेंगे। जीवन साथी और संतान की ज़रूरत और इसीप्रकार एक दूसरे से प्रेम इंसान की प्रवृत्ति में रख दी गयी है और स्वर्ग में भी इंसान की इस स्वाभाविक व प्राकृतिक आवश्यकता पर ध्यान दिया गया है।