Apr २९, २०२५ १५:०४ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-981

सूरए तूर आयतें, 22 से 31

आइए सबसे पहले सूरए तूर की आयत नंबर 22 से 24 तक की तिलावत सुनते हैं,

 

 

وَأَمْدَدْنَاهُمْ بِفَاكِهَةٍ وَلَحْمٍ مِمَّا يَشْتَهُونَ (22) يَتَنَازَعُونَ فِيهَا كَأْسًا لَا لَغْوٌ فِيهَا وَلَا تَأْثِيمٌ (23) وَيَطُوفُ عَلَيْهِمْ غِلْمَانٌ لَهُمْ كَأَنَّهُمْ لُؤْلُؤٌ مَكْنُونٌ (24)                                                               

 

इन आयतों का अनुवाद हैः

और जिस क़िस्म के मेवे और गोश्त का उनका जी चाहेगा हम उन्हें बढ़ाकर अता करेंगे [52:22]  वहाँ एक दूसरे से शराब का जाम ले लिया करेंगे जिसमें न कोई बेहूदगी है और न गुनाह [52:23]  (और ख़िदमत के लिए) नौजवान लड़के उनके आस पास चक्कर लगाया करेंगे वह (हुस्न व जमाल में) गोया एहतियात से रखे हुए मोती हैं। [52:24]  

पिछले प्रोग्राम में स्वर्ग की नेमतों का जिक्र था। ये आयतें आगे कुछ खाने-पीने की चीज़ों का वर्णन करते हुए कहती हैं  स्वर्ग में हर तरह के फल मौजूद हैं, और जो भी फल स्वर्गवासी चाहें, वह उन्हें मिलेगा। यह दुनिया के विपरीत है, जहाँ हर फल एक खास मौसम या क्षेत्र में ही मिलता है। 

फलों के अलावा, तरह-तरह के प्रोटीनयुक्त भोजन जैसे पक्षियों का मांस, समुद्र की मछलियाँ और जंगल के जानवर—जो कुछ भी स्वर्गवासी चाहेंगे, वह उनके लिए उपलब्ध होगा। कोई पाबंदी नहीं होगी।  ज़ाहिर है, खाने के साथ पीने की चीज भी ज़रूरी है। स्वर्ग में एक ऐसी शराब होगी जिसे स्वर्गवासी आपस में घूम-घूमकर पिएँगे और उससे पूरी तरह लुत्फ़ उठाएँगे। लेकिन यह शराब दुनिया की शराब जैसी नहीं होगी, जो नशा, बेहूदी बातों और गुनाहों की तरफ़ ले जाती है।  स्वर्ग के खूबसूरत सेवक हमेशा स्वर्गवासियों की सेवा के लिए तैयार रहेंगे। वे उनकी हर ज़रूरत बिना किसी कमी के पूरी करेंगे, ताकि उन्हें कभी किसी चीज़ की कमी महसूस न हो। 

 

इन आयतों से हमने सीखा  

स्वर्ग के खाने-पीने की चीज़ें विविध और अनगिनत हैं, और वे स्वर्गवासियों की इच्छा के अनुसार होंगी, ताकि वे उन्हें चाव से खा-पी सकें और कभी उबाऊपन महसूस न हो। 

जो लोग दुनिया में बेकार और गंदी बातों से दूर रहते हैं, वे क़यामत के दिन ऐसे स्वर्ग में जाएँगे जहाँ के लोग भी इन बुराइयों से पाक होंगे। 

 स्वर्ग की शराब दुनिया की शराब जैसी नहीं है—न वह नशा लाती है, न बेकार बातें कराती है, और न ही गुनाह की तरफ़ ले जाती है। 

 

अब हम सूरए तूर की आयत नंबर 25 से 28 की तिलावत सुनेंगे


وَأَقْبَلَ بَعْضُهُمْ عَلَى بَعْضٍ يَتَسَاءَلُونَ (25) قَالُوا إِنَّا كُنَّا قَبْلُ فِي أَهْلِنَا مُشْفِقِينَ (26) فَمَنَّ اللَّهُ عَلَيْنَا وَوَقَانَا عَذَابَ السَّمُومِ (27) إِنَّا كُنَّا مِنْ قَبْلُ نَدْعُوهُ إِنَّهُ هُوَ الْبَرُّ الرَّحِيمُ (28)                                 

ترجمه این آیات چنین است:                                                                                                                                                                                                     इन आयतों का अनुवाद है:

और एक दूसरे की तरफ़ रूख़ करके (लुत्फ़ की) बातें करेंगे[52:25]  (उनमें से कुछ) कहेंगे कि हम इससे पहले अपने घर में (ख़ुदा से बहुत) डरा करते थे [52:26]  तो ख़ुदा ने हम पर बड़ा एहसान किया और हमको (जहन्नम की) लू के अज़ाब से बचा लिया [52:27]   इससे पहले हम उनसे दुआएँ किया करते थे बेशक वह एहसान करने वाला मेहरबान है [52:28]  

 

ये आयतें स्वर्गवासियों के आपसी वार्तालाप का वर्णन करती हैं। वे अपने अतीत के बारे में बात करते हैं कि कैसे दुनिया में उन्होंने अच्छे कर्म किए, जिनकी वजह से अल्लाह ने उन्हें स्वर्ग का वरदान दिया।  इस सवाल का सबसे महत्वपूर्ण जवाब यह है कि उन्होंने अपने परिवार के प्रति सच्ची चिंता और मेहरबानी दिखाई। उन्होंने माता-पिता, पति/पत्नी और बच्चों के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को ईमानदारी से निभाया और पूरी कोशिश की कि वे सच्चाई के रास्ते से भटके नहीं। उन्होंने न केवल खुद को गुनाहों से बचाया, बल्कि अपने बच्चों को भी ईमानदार और नेक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 

 

स्वाभाविक है कि यह सच्ची मेहरबानी और परवाह अल्लाह की रहमत को आकर्षित करती है। इसी रहमत की वजह से उनका पूरा परिवार स्वर्ग में उनके साथ जगह पाता है और सभी जहन्नम की आग से बच जाते हैं। 

 इन आयतों से हमने सीखाः 

स्वर्ग और नरक हमारे अपने हाथों में है। हमारे दुनिया के कर्म ही हमें क़यामत के दिन इन दोनों में से किसी एक की तरफ़ ले जाएँगे। 

परिवार के प्रति सच्ची चिंता और अच्छी परवरिश स्वर्ग की चाबी है। यह गुण न केवल इंसान को, बल्कि उसके बच्चों को भी स्वर्ग का हक़दार बनाता है। 

स्वर्गवासी स्वर्ग को अल्लाह का एहसान मानते हैं, न कि अपने छोटे-मोटे अमल का बदला, क्योंकि अल्लाह की नेमतों के आगे उनके कर्म कुछ भी नहीं हैं। 

 

अब में सूरए तूर की 29वीं से 31वीं तक की आयतों की तिलावत सुनते हैं,

 

فَذَكِّرْ فَمَا أَنْتَ بِنِعْمَةِ رَبِّكَ بِكَاهِنٍ وَلَا مَجْنُونٍ (29) أَمْ يَقُولُونَ شَاعِرٌ نَتَرَبَّصُ بِهِ رَيْبَ الْمَنُونِ (30) قُلْ تَرَبَّصُوا فَإِنِّي مَعَكُمْ مِنَ الْمُتَرَبِّصِينَ (31)                                                                 

 

इन आयतों का अनुवाद इस प्रकार है

तो (ऐ रसूल) तुम नसीहत किए जाओ तो तुम अपने परवरदिगार के फज़्ल से न ज्योतिषी हो और न मजनून। [52:29]  क्या (तुमको) ये लोग कहते हैं कि (ये) शायर हैं (और) हम तो उसके बारे में ज़माने के हवादिस का इन्तेज़ार कर रहे हैं [52:30]  तुम कह दो कि (अच्छा) तुम भी इन्तेज़ार करो मैं भी अपनी विजय का इन्तेज़ार करता हूँ।[52:31]

पिछली आयतों में स्वर्ग की नेमतों का वर्णन करने के बाद, अब अल्लाह पैगंबर से कहता है: "लोगों को ये बातें याद दिलाते रहो और क़यामत की याद दिलाओ, ताकि दुनिया की चकाचौंध उन्हें आख़ेरत से भटका न दे।

लेकिन मुशरिकों ने पैगम्बर को ज्योतिषी कहकर बदनाम किया। वे कहते थे कि वह भविष्य की बातें करता है, जैसे ज्योतिषी लोग करते हैं, और जिन्नों से जुड़ा हुआ है, जिनसे वह भविष्य की ख़बरें लेता है। 

लेकिन अल्लाह कहता है: "पैगम्बर का भविष्य जानना वह्य (ईश्वरीय संदेश) की वजह से है, न कि जादू-टोने या जिन्नों की वजह से। वह न ज्योतिषी है, न शायर। उनकी बातें अल्लाह का कलाम हैं, न कि उनके अपने विचार। यह धर्म उनके जाने के बाद ख़त्म नहीं होगा और न ही कोई दूसरा ज्योतिषी या शायर उनकी जगह लेगा।

इन आयतों से हमने सीखाः

 

 नबियों के विरोधी हमेशा उन पर झूठे आरोप जैसे कवि, ज्योतिषी होने का आरोप लगाकर लोगों को उनसे दूर करने की कोशिश करते थे। 

इस्लाम के दुश्मनों ने सोचा था कि पैगंबर के बाद इस्लाम ख़त्म हो जाएगा, लेकिन अल्लाह ने चाहा कि यह धर्म हमेशा चमकता रहे। आज भी हम देखते हैं कि सारी साज़िशों के बावजूद इस्लाम दुनिया में फैल रहा है।