क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-982
सूरए तूर आयतें, 32 से 40
आइए सबसे पहले सूरए तूर की आयत नंबर 32 से 34 तक की तिलावत सुनते हैं,
أَمْ تَأْمُرُهُمْ أَحْلَامُهُمْ بِهَذَا أَمْ هُمْ قَوْمٌ طَاغُونَ (32) أَمْ يَقُولُونَ تَقَوَّلَهُ بَلْ لَا يُؤْمِنُونَ (33) فَلْيَأْتُوا بِحَدِيثٍ مِثْلِهِ إِنْ كَانُوا صَادِقِينَ (34)
इन आयतों का अनुवाद हैः
क्या उनकी अक्लें उन्हें ये (बातें) बताती हैं या ये लोग हैं ही सरकश [52:32] क्या ये लोग कहते हैं कि उन्होंने (मुहम्मद ने) क़ुरान ख़ुद गढ़ लिया है बात ये है कि ये लोग ईमान ही नहीं रखते [52:33] तो अगर ये लोग सच्चे हैं तो ऐसा ही कलाम बना तो लाएँ [52:34]
पिछले कार्यक्रम में, हमने उन अशोभनीय बातों की चर्चा की थी जो पैगंबर-ए-इस्लाम के विरोधी उनके बारे में किया करते थे। ये आयतें पूछती हैं: "क्या तुम्हारी सदबुद्धि तुम्हें इस तरह की बकवास करने पर उकसाती है कि तुम अल्लाह के पैगम्बर को, जो तुम्हें दलील और तर्क के साथ समझाते हैं, ज्योतिषी शायर और मजनून कहने लगो? इन बातों का कोई और तर्क नहीं, सिर्फ अहंकार और हक़ के सामने बगावतहै!
तुम उन पर यह इल्ज़ाम लगाते हो कि वह अपनी तरफ़ से बातें गढ़कर अल्लाह के नाम पर पेश करते हैं। अगर ऐसा है, तो तुम भी ऐसा ही कोई कलाम ले आओ! दिखा दो कि जो वह कहते हैं वह ग़लत है, और दूसरे भी उनकी तरह का कलाम बना सकते हैं।
इन आयतों से हमने सीखा:
कुफ़्र और इनकार की असली जड़ हक़ के सामने घमंड और बग़ावत है, न कि तर्क या विचार।
पैग़म्बरों के विरोधी लोग उन पर झूठे इल्ज़ाम लगाकर लोगों को उनकी पैरवी से रोकते थे।
क़ुरआन, पैगम्बर की रिसालत की सच्चाई का एक स्पष्ट मोजिज़ा (चमत्कार) है—अगर विरोधी सच्चे हैं, तो ऐसी ही कोई किताब ले आएं!
आइए अब सूरए तूर की आयत संख्या 35 और 36 की तिलावत सुनते हैं,
أَمْ خُلِقُوا مِنْ غَيْرِ شَيْءٍ أَمْ هُمُ الْخَالِقُونَ (35) أَمْ خَلَقُوا السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ بَل لَا يُوقِنُونَ (36)
इन आयतों का अनुवाद हैः
क्या ये लोग किसी के (पैदा किये) बग़ैर ही पैदा हो गए हैं या यही लोग (मख़लूक़ात के) पैदा करने वाले हैं [52:35] या इन्होने ही सारे आसमान व ज़मीन पैदा किए हैं (नहीं) बल्कि ये लोग यक़ीन की तलाश में ही नहीं हैं [52:36]
इन आयतों में 'कारण और परिणाम' (कॉज़लिटी) के सिद्धांत द्वारा अल्लाह के अस्तित्व का प्रमाण दिया गया है। यह सिद्धांत कहता है कि कोई भी चीज़ बिना कारण के पैदा नहीं होती। कोई भी चीज़ स्वयं अपना कारण नहीं बन सकती, इसलिए हर चीज़ को अपने से अलग एक कारण की जरूरत होती है।
चूंकि पूरी सृष्टि - आकाश और धरती की हर चीज़ - इसी नियम के अंतर्गत आती है, इसलिए अंततः हमें एक ऐसे मूल कारण तक पहुंचना होगा जो स्वयं किसी और का परिणाम न हो। वरना यह अनंत श्रृंखला बन जाएगी जो तार्किक रूप से असंभव है।
इसका मतलब यह है कि कोई इंसान यह दावा नहीं करता कि वह बिना कारण अपने आप पैदा हो गया। न ही कोई कहता है कि उसने खुद को पैदा किया। ये दोनों बातें तर्कसंगत रूप से असंभव हैं। इंसान एक पैदा की गई वस्तु है, और हर मख़लूक़ को एक ख़ालिक़ की ज़रूरत होती है। जो इंसान पहले था ही नहीं, वह अपने अस्तित्व का कारण कैसे बन सकता है? इस प्रकार, सृष्टिकर्ता का होना एक स्वाभाविक और तार्किक सत्य है जिसे मक्का के मूर्तिपूजक भी मानते थे और इनकार नहीं करते थे।
इन आयतों से हमने सीखाः
क़ुरान सवालों के ज़रिए इंसान को सोचने पर मजबूर करता है
सच्चाई की तलाश करने वाले को उसका विवेक सही रास्ता दिखाता है
इंसान न तो अपना रचयिता है, न आकाशों और धरती का
स्वयं और सृष्टि पर विचार करने से इंसान ईश्वर तक पहुंचता है।
अब हम सूरए तूर की आयत 37 से 40 की तिलावत सुनते हैं,
أَمْ عِنْدَهُمْ خَزَائِنُ رَبِّكَ أَمْ هُمُ الْمُسَيْطِرُونَ (37) أَمْ لَهُمْ سُلَّمٌ يَسْتَمِعُونَ فِيهِ فَلْيَأْتِ مُسْتَمِعُهُمْ بِسُلْطَانٍ مُبِينٍ (38) أَمْ لَهُ الْبَنَاتُ وَلَكُمُ الْبَنُونَ (39) أَمْ تَسْأَلُهُمْ أَجْرًا فَهُمْ مِنْ مَغْرَمٍ مُثْقَلُونَ (40)
इन आयतों का अनुवाद हैः
क्या तुम्हारे परवरदिगार के ख़ज़ाने इन्हीं के पास हैं या यही लोग हाकिम हैं। [52:37] या उनके पास कोई सीढ़ी है जिस पर (चढ़ कर आसमान से) सुन आते हैं जो सुन आया करता हो तो वह कोई स्पष्ट दलील पेश करे [52:38] क्या ख़ुदा की बेटियाँ हैं और तुम लोगों के लिए बेटे। [52:39] या तुम उनसे (तबलीग़े रिसालत की) उजरत माँगते हो कि ये लोग कर्ज़ के बोझ से दबे जाते हैं [52:40]
पिछली आयतों के सिलसिले में, ये आयतें भी पैगंबर के विरोधियों से सवाल करती हैं कि अगर तुम मानते हो कि न तो अपने और न ही इस दुनिया के रचयिता हो, तो क्या दुनिया के मामलों का प्रबंधन, इंसानों की ज़िम्मेदारी और रोज़ी-रोटी बांटने का अधिकार तुम्हें दिया गया है? क्या तुम ये उम्मीद करते हो कि अल्लाह तुम्हारी मर्ज़ी के अनुसार ही पैगंबर चुने? या फिर जिसे तुम चाहो, उसे ही सामाजिक पदों पर नियुक्त करे?
इसके साथ ही यह सवाल भी है कि क्या उनके पास आसमान तक पहुँच है जहाँ से वे दुनिया के प्रबंधन या लोगों की हिदायत के लिए वह्य (ईश्वरीय संदेश) प्राप्त कर सकें? क्या उनके पास कोई सबूत है उन बेबुनियाद अफवाहों का जो वे अल्लाह पर थोपते हैं? जैसे कि यह अफ़वाह कि फ़रिश्ते अल्लाह की बेटियाँ हैं? या फिर क्या पैग़म्बर ने उनसे अपनी पैग़म्बरी के बदले कोई ऐसा पारिश्रमिक माँगा है जो उनके लिए देना मुश्किल हो? जवाब स्पष्ट है कि इन सभी सवालों का जवाब "न" है। विरोधियों के पास न तो कोई ठोस तर्क है, न ही सच्चाई को स्वीकार करने की इच्छा। वे सिर्फ सच से भाग रहे हैं।
इन आयतों से हमने सीखाः
अगर विरोधियों के पास कोई तार्किक बात हो, तो हमें उसे सुनने के लिए तैयार रहना चाहिए – ज़िद और हठधर्मी से बचना चाहिए।
जो लोग अल्लाह की "बेटियाँ होने" जैसे झूठे आरोप लगाते हैं, वे पैग़म्बरों पर भी झूठे इल्ज़ाम लगाने से नहीं हिचकिचाते।
दीन की दावत देते समय हमें पैग़म्बरों की तरह ही दुनियावी मामलों या लोगों से पैसे माँगने से बचना चाहिए, क्योंकि इससे दावत का असर कम होता है और लोगों पर बोझ पड़ता है। हाँ, अगर लोग ख़ुद मदद या तोहफ़ा देना चाहें, तो उसे लेने में कोई हर्ज़ नहीं।