Jun ०९, २०२५ १६:५२ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-996

सूरए रहमान आयतें, 31 से 45

आइए सबसे पहले सूरए रहमान की आयत संख्या 31 से 36 तक की तिलावत सुनते हैं,

سَنَفْرُغُ لَكُمْ أَيُّهَا الثَّقَلَانِ (31) فَبِأَيِّ آَلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ (32) يَا مَعْشَرَ الْجِنِّ وَالْإِنْسِ إِنِ اسْتَطَعْتُمْ أَنْ تَنْفُذُوا مِنْ أَقْطَارِ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ فَانْفُذُوا لَا تَنْفُذُونَ إِلَّا بِسُلْطَانٍ (33) فَبِأَيِّ آَلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ (34) يُرْسَلُ عَلَيْكُمَا شُوَاظٌ مِنْ نَارٍ وَنُحَاسٌ فَلَا تَنْتَصِرَانِ (35) فَبِأَيِّ آَلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ (36)

इन आयतों का अनुवाद हैः

ऐ दोनों गिरोहो! हम अनक़रीब तुम्हारा हिसाब शुरू करेंगे। [55:31] तो तुम दोनों अपने पालने वाले की किस किस नेमत को न मानोगे [55:32] ऐ गिरोह जिन व इन्स अगर तुममें क़ुदरत है कि आसमानों और ज़मीन के किनारों से (होकर कहीं) निकल (कर मौत या अज़ाब से भाग) सको तो निकल जाओ (मगर) तुम तो बग़ैर असाधारण क़ूवत और ग़लबे के निकल ही नहीं सकते। [55:33]  तो तुम अपने परवरदिगार की किस किस नेमत को झुठलाओगे। [55:34]  ) तुम दोनो पर उस दिन आग का शोला और पिघला हुआ तांबा छोड़ दिया जाएगा, तो तुम दोनों एक दूसरे की मदद नहीं कर सकोगे। [55:35] फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेमत से इन्कार करोगे। [55:36]

पिछली आयतों में दुनिया में अल्लाह की कुछ नेमतों का ज़िक्र था। ये आयतें क़यामत के दिन अमल के हिसाब-किताब के विषय में बात करती हैं और इंसान व जिन्न को संबोधित करते हुए कहती हैं कि "अल्लाह की बनाई हुई सभी रचनाओं में से तुम दोनों (इंसान और जिन्न) ही हो जिन्हें अक़्ल, समझ और साथ ही इरादा व आज़ादी जैसी नेमतें दी गई हैं। इसी वजह से तुम्हारा महत्व और वज़न दूसरों से ज़्यादा है, और क़यामत में तुम्हारा हिसाब लिया जाएगा। 

अपने कर्मों पर नज़र रखो और ये गुमान न करो कि तुम्हारी ताक़त अल्लाह की ताक़त पर भारी पड़ जाएगी या तुम आसमानों की सीमाओं को पार करके अल्लाह के राज्य से बाहर निकल जाओगे। हाँ, अगर अल्लाह तुम्हें ऐसी शक्ति और इजाज़त दे दे, तो तुम धरती की गहराइयों और आसमानों की ऊँचाइयों तक पहुँच सकते हो। 

जहन्नम की आग, उसका धुआँ और लपटें तुम्हें इस तरह घेर लेंगी कि न तो तुम ख़ुद को बचा पाओगे और न ही कोई दूसरा तुम्हें उससे निकाल सकेगा। इसलिए अभी से अपने भविष्य के बारे में सोचना शुरू कर दो।

इन आयतों से हमने सीखाः

समझ और इरादे की नेमत, ज़िम्मेदारी लाती है, इंसान और जिन्न, इन दो बड़ी नेमतों (अक़्ल और अख़्तियार) के साथ ज़िम्मेदार भी हैं और उन्हें अपने कर्मों का अल्लाह के सामने जवाब देना होगा। 

इंसान की दिखावटी ताक़त उसे घमंडी न बनाए, इंसान को अपनी वैज्ञानिक उन्नति पर इतराना नहीं चाहिए और न ही ये समझना चाहिए कि वह ब्रह्मांड पर राज कर सकता है या बिना अपने रब की इजाज़त के कुछ भी कर सकता है। 

जिन्न भी दोज़ख की आग से प्रभावित होंगे, हालाँकि जिन्न आग से बने हैं, लेकिन वे भी जहन्नम की आग से बच नहीं पाएँगे। शायद दुनिया और आख़ेरत की आग का स्वभाव अलग-अलग है। 

आइए अब सूरए अर-रहमान की आयत नंबर 37 से 40 की तिलावत सुनते हैं,

فَإِذَا انْشَقَّتِ السَّمَاءُ فَكَانَتْ وَرْدَةً كَالدِّهَانِ (37) فَبِأَيِّ آَلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ (38) فَيَوْمَئِذٍ لَا يُسْأَلُ عَنْ ذَنْبِهِ إِنْسٌ وَلَا جَانٌّ (39) فَبِأَيِّ آَلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ (40)

इन आयतों का अनुवाद हैः

फिर जब आसमान फट कर (क़यामत में) तेल की तरह लाल हो जाऐगा [55:37]  तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेमत से मुकरोगे  [55:38] तो उस दिन न तो किसी इन्सान से उसके गुनाह के बारे में पूछा जाएगा न किसी जिन से [55:39] तो तुम दोनों अपने मालिक की किस किस नेमत को न मानोगे [55:40]  

पिछली आयतों की बात को आगे बढ़ाते हुए ये आयतें क़यामत के शुरुआती दृश्यों की ओर इशारा करते हुए फ़रमाती हैं "धरती और आसमान पर छाई हुई ये व्यवस्था यानी कायनात का निज़ाम इस दुनिया के अंत में टूटकर बिखर जाएगा। पूरे ब्रह्मांड में भयानक घटनाएँ घटेंगी। वो सारे गैलेक्सी और आसमानी पिंड, जो अभी अपने-अपने निर्धारित मार्गों पर चल रहे हैं, अपनी कक्षाओं से भटक जाएँगे और टूटकर पिघले हुए लावे और धधकते पदार्थों की तरह बहने लगेंगे। 

फिर एक नई व्यवस्था क़ायम होगी—इंसान मिट्टी से निकलकर मैदान-ए-हश्र में पेश होगा। क़यामत के दिन इंसान कई मंज़िलों और पड़ावों से गुज़रेगा। एक मंज़िल पर उससे सवाल-जवाब और हिसाब होगा। दूसरे पड़ाव पर उसके मुँह पर मुहर लगा दी जाएगी और उसके अंग खुद गवाही देंगे। लेकिन यहाँ आयत नंबर 39 में उस पड़ाव की बात हो रही है जहाँ किसी से कोई सवाल नहीं पूछा जाएगा, क्योंकि वहाँ हर इंसान के अमल और गुनाहों का रिकॉर्ड साफ़-साफ़ खुल चुका होगा। कोई इनकार नहीं कर पाएगा, इसलिए सवाल-जवाब की ज़रूरत ही नहीं होगी।

इन आयतों से हमने सीखाः

क़यामत का नेज़ाम, दुनिया के नेज़ाम से अलग है, क़यामत का आना प्रकृति के नियमों में एक बड़ा उलट-फेर लाएगा, इसलिए दुनिया के क़ानूनों को आख़ेरत पर लागू नहीं किया जा सकता। 

गुनाह, अल्लाह की नेमतों को झुठलाने जैसा है: जिन्न भी इंसान की तरह इरादा और अख़्तियार रखते हैं, इसलिए वे भी गुनाह कर सकते हैं। 

आइए अब हम सूरए अर-रहमान की आयत नंबर 41 से 45 तक की तिलावत सुनते हैं,

يُعْرَفُ الْمُجْرِمُونَ بِسِيمَاهُمْ فَيُؤْخَذُ بِالنَّوَاصِي وَالْأَقْدَامِ (41) فَبِأَيِّ آَلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ (42) هَذِهِ جَهَنَّمُ الَّتِي يُكَذِّبُ بِهَا الْمُجْرِمُونَ (43) يَطُوفُونَ بَيْنَهَا وَبَيْنَ حَمِيمٍ آَنٍ (44) فَبِأَيِّ آَلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ (45)

इन आयतों का अनुवाद हैः

गुनाहगार लोग तो अपने चेहरों ही से पहचान लिए जाएँगे तो पेशानी के बाल और पाँव से पकड़े जाएंगे (और जहन्नम में डाल दिये जाएँगे) [55:41] आख़िर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेमत से इन्कार करोगे [55:42]  यही वह जहन्नुम है जिसे गुनाहगार लोग झुठलाया करते थे [55:43] ये लोग दोज़ख़ और खौलते हुए पानी के दरमियान (बेक़रार  दौड़ते) चक्कर लगाते फिरेंगे। [55:44] तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किस किस नेअमत को न मानोगे [55:45]

सामान्य रूप से क़यामत की एक ख़ास बात यह है कि उस दिन इंसान की अंदरूनी हक़ीक़त बाहर आ जाएगी। उसके विचार और कर्म जिन्होंने उसके अंदरूनी व्यक्तित्व को आकार दिया है, उसके चेहरे पर साफ़ झलकने लगेंगे। पाक-साफ़ और नेक लोग खुश और मुस्कुराते हुए होंगे, जबकि अपराधी और ज़ालिम बेचैन और परेशान नज़र आएंगे। 

पिछली आयतों में गुनहगारों के क़यामत में पेश होने और उनसे उनके जुर्म के बारे में सवाल न किए जाने की बात थी। ये आयतें इसकी व्याख्या करते हुए फ़रमाती हैं: "ऐसे लोगों से सवाल करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि उनके जुर्म और गुनाह के निशान उनके चेहरों पर साफ़ दिखाई दे रहे होंगे और उन्हें झुठलाया नहीं जा सकेगा। इसलिए दोज़ख के फरिश्ते उन्हें अपमान और ज़िल्लत के साथ जहन्नम में झोंक देंगे।"

इन आयतों से हमने सीखाः

जिन लोगों ने क़यामत का इनकार किया और सिर से पैर तक अल्लाह के हुक्म के खिलाफ़ चले, उन्हें क़यामत के दिन सिर और पैर से पकड़कर आग में झोंक दिया जाएगा। यह उनकी सबसे बड़ी ज़िल्लत और अपमान को दिखाता है। 

गुनाह करना और क़यामत को झुठलाना आपस में जुड़े हुए हैं। एक दूसरे को बढ़ावा देते हैं, जिससे अपराध और बिगाड़ और फैलता है।