Jun ०९, २०२५ १६:५५ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-997

सूरए रहमान आयतें, 46 से 61

आइए सबसे पहले सूरए रहमान की आयत संख्या 46 से 53 तक की तिलावत सुनते हैं,

وَلِمَنْ خَافَ مَقَامَ رَبِّهِ جَنَّتَانِ (46) فَبِأَيِّ آَلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ (47) ذَوَاتَا أَفْنَانٍ (48) فَبِأَيِّ آَلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ (49) فِيهِمَا عَيْنَانِ تَجْرِيَانِ (50) فَبِأَيِّ آَلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ (51) فِيهِمَا مِنْ كُلِّ فَاكِهَةٍ زَوْجَانِ (52) فَبِأَيِّ آَلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ (53)

इन आयतों का अनुवाद हैः

और जो शख़्स अपने परवरदिगार के सामने खड़े होने से डरता रहा उसके लिए दो दो बाग़ हैं [55:46] तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की कौन कौन सी नेमत से इन्कार करोगे [55:47] दोनों बाग़ घने ताज़ा दरख़्तों से भरे हुए हैं [55:48] फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन किन नेमतों को झुठलाओगे    [55:49]इन दोनों में दो चश्में जारी होंगें।  [55:50] तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन किन नेमतों से मुकरोगे  [55:51] इन दोनों बाग़ों में सब मेवे दो दो क़िस्म के होंगे [55:52] तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन किन नेमत से इन्कार करोगे [55:53]

पिछले कार्यक्रम में क़यामत के दिन अपराधियों की सज़ा के बारे में चर्चा थी। ये आयतें स्वर्गवासियों के इनाम का उल्लेख करती हैं और स्वर्ग के कुछ अद्भुत, आनंददायक वरदानों को गिनाती हैं। लेकिन आम आयतों के तरीक़े के विपरीत, जहाँ ईमान और अच्छे कर्म को स्वर्ग में प्रवेश का आधार बताया जाता है, यहाँ ईमान के नतीजे यानी अल्लाह के आदेशों की अवमानना के ख़ौफ़ की ओर इशारा किया गया है। 

यह बताना ज़रूरी है कि कुछ लोग अल्लाह की इबादत नरक के डर से करते हैं, तो कुछ स्वर्ग की आशा में। लेकिन सच्चे मोमिन वे हैं जो अल्लाह की इसलिए इबादत करते हैं क्योंकि वह अल्लाह है, और उसकी नाफ़रमानी से डरते हैं। हालाँकि, यह डर उसकी महानता की वजह से है, उसकी पाकीज़ा ज़ात की वजह से नहीं। क्योंकि परवरदिगार की पाक ज़ात डर का कारण नहीं है। जब इंसान उस असीम और अनंत महानता के बारे में सोचता है, तो उसे भय का एहसास होता है।   

अल्लाह से डरने वाले लोग इसलिए डरते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि अल्लाह उनके हर काम को देख रहा है, हर समय, बुरे कर्म करते वक़्त भी, और उनकी हर अनुचित बात सुन रहा है। जैसे एक बच्चा अपने पिता से डरता है कि कहीं वह उसे कोई ग़लत काम करते हुए न देख ले, भले ही पिता उसे सज़ा न दे। ख़ैर, अल्लाह का डर ही अपराध और गुनाह से बचने का सबब बनता है। अल्लाह के नेक बंदों को उससे इतनी शर्म आती है कि वे हर नापसंदीदा काम से दूर रहते हैं, भले ही वह गुनाह न हो। 

जो कोई इस मुकाम तक पहुँच जाता है, अल्लाह भी उसका इनाम बढ़ा देता है और स्वर्ग में न सिर्फ़ एक, बल्कि दो बाग़, या शायद उससे भी ज़्यादा, उसके लिए तैयार करता है। ये बाग़ झरनों और नदियों से सिंचे होते हैं और हर तरह के फल स्वर्गवासियों के लिए आसानी से उपलब्ध होते हैं। 

इन आयतों से हम सीखते हैं

अल्लाह अपने बंदों पर मेहरबान है और उसकी पाक ज़ात डर का कारण नहीं। लेकिन उसकी महान हैसियत और इस विशाल सृष्टि के रब व ख़ालिक़ के रूप में पहचान, ईमान वालों को अपने व्यवहार और वाणी पर नियंत्रण रखने और गुनाह व नाफ़रमानी से डरने की प्रेरणा देती है। 

स्वर्ग की नेमतों की भरमार और विविधता ऐसी है कि वहाँ रहने वालों को हमेशा आनंद ही आनंद रहता है, और वे कभी ऊब या थकान महसूस नहीं करते। 

अब हम सूरए अर-रहमान की आयत 54 से 61 की तिलावत सुनेंगे:

مُتَّكِئِينَ عَلَى فُرُشٍ بَطَائِنُهَا مِنْ إِسْتَبْرَقٍ وَجَنَى الْجَنَّتَيْنِ دَانٍ (54) فَبِأَيِّ آَلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ (55) فِيهِنَّ قَاصِرَاتُ الطَّرْفِ لَمْ يَطْمِثْهُنَّ إِنْسٌ قَبْلَهُمْ وَلَا جَانٌّ (56) فَبِأَيِّ آَلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ (57) كَأَنَّهُنَّ الْيَاقُوتُ وَالْمَرْجَانُ (58) فَبِأَيِّ آَلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ (59) هَلْ جَزَاءُ الْإِحْسَانِ إِلَّا الْإِحْسَانُ (60) فَبِأَيِّ آَلَاءِ رَبِّكُمَا تُكَذِّبَانِ (61)

इन आयतों का अनुवाद हैः

यह लोग उन फ़र्शों पर जिनके असतर अतलस के होंगे तकिये लगाकर बैठे होंगे तो दोनों बाग़ों के मेवे हाथ की पहुंच में होंगे। [55:54] तो तुम दोनों अपने मालिक की किन किन नेमतों को न मानोगे [55:55] इसमें पाक दामन ग़ैर की तरफ़ ऑंख उठा कर न देखने वाली औरतें होंगी जिनको उन से पहले न किसी इन्सान ने हाथ लगाया होगा और न जिन ने [55:56] तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन किन नेमतों को झुठलाओगे [55:57]  वो गोया याक़ूत व मूँगे की तरह हैं [55:58] तो तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन किन नेमतों से मुकरोगे [55:59] भला नेकी का बदला नेकी के सिवा कुछ और भी है [55:60] फिर तुम दोनों अपने परवरदिगार की किन किन नेमतों को झुठलाओगे [55:61]

पिछली आयतों में स्वर्ग के कुछ वरदानों का ज़िक्र था, जैसे कि स्वर्गवासियों का ख़ूबसूरत बाग़ों में रहना, झरनों के किनारे बैठना और तरह-तरह के फलों का आनंद लेना। इन आयतों में आगे स्वर्गवासियों की हालत बयान की गई है कि वे पूरी तरह आराम और सुरक्षित महसूस करते हुए, मस्ती से तख़्त पर टेक लगाए हुए होंगे। फिर उन बाग़ों का वर्णन है जहाँ फल आसानी से उनकी पहुँच में होंगे। 

इसके बाद कहा गया है कि मोमिन स्वर्ग में अकेले नहीं होंगे, बल्कि अल्लाह ने उनके लिए पाक-साफ़, नर्मदिल और खूबसूरत हूरें तैयार की हैं जो उनकी साथी और दोस्त बनेंगी। ये हूरें इतनी प्यारी और आकर्षक होंगी कि स्वर्गवासी उनके साथ पूरी तरह से खुश रहेंगे और उनका आनंद दोगुना हो जाएगा। 

अल्लाह इन स्वर्गीय साथियों के बारे में बताता है कि वे सिर्फ़ अपने जोड़े (पति) की तरफ़ देखेंगी और किसी और की ओर नज़र नहीं उठाएँगी। ये स्त्रियाँ अपने पति से पहले किसी और के साथ नहीं रही होंगी और सिर्फ़ उन्हीं से इश्क़ करेंगी। हालाँकि स्वर्ग में बुरी नज़र या ग़लत रिश्तों जैसे गुनाहों की कोई गुंजाइश नहीं है, शायद ये आयतें दुनिया की उन मोमिन औरतों के गुण बता रही हैं जिनकी वजह से वे स्वर्ग की हक़दार बनती हैं। 

इन आयतों के अंत में एक बड़ा सिद्धांत बताया गया है कि अल्लाह के यहाँ कोई अच्छा काम बेकार नहीं जाता। वह नेक लोगों को बेहतरीन इनाम देता है—दुनिया में दुनिया के हिसाब से और आख़ेरत में आख़ेरत के हिसाब से। स्वर्ग, अल्लाह का उन लोगों पर एहसान है जो ख़ुद भी दूसरों के साथ अच्छा करते हैं। 

इन आयतों से हम सीखते हैं:

जो दुनिया में हराम लुत्फ़ से अपनी नज़रें बचाता है, अल्लाह उसके लिए आख़ेरत में बेहतरीन लुत्फ़ का इंतज़ाम करता है। 

पाकीज़गी, ख़ूबसूरती और नर्मदिली स्वर्ग में जाने वाले साथियों की ख़ासियत है। और जो औरतें इन गुणों को अपनाती हैं, वे दुनिया में ही अपने घर को स्वर्ग बना सकती हैं। 

हमें अल्लाह से सीखना चाहिए—जिसने हमारे साथ अच्छा किया, हम भी उसके साथ अच्छा करें और किसी के एहसान को कभी न भूलें।