Jul १३, २०२५ १७:१८ Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-1005

सूरए हदीद आयतें ,10 से 15

 

सबसे पहले हम सूरए हदीद की आयत नंबर 10 और 11 की तिलावत सुनते हैं,

وَمَا لَكُمْ أَلَّا تُنْفِقُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَلِلَّهِ مِيرَاثُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ لَا يَسْتَوِي مِنْكُمْ مَنْ أَنْفَقَ مِنْ قَبْلِ الْفَتْحِ وَقَاتَلَ أُولَئِكَ أَعْظَمُ دَرَجَةً مِنَ الَّذِينَ أَنْفَقُوا مِنْ بَعْدُ وَقَاتَلُوا وَكُلًّا وَعَدَ اللَّهُ الْحُسْنَى وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرٌ (10) مَنْ ذَا الَّذِي يُقْرِضُ اللَّهَ قَرْضًا حَسَنًا فَيُضَاعِفَهُ لَهُ وَلَهُ أَجْرٌ كَرِيمٌ (11)

इन आयतों का अनुवाद है:

और तुमको क्या हो गया कि (अपना माल) ख़ुदा की राह में ख़र्च नहीं करते हालॉकि सारे आसमान व ज़मीन का मालिक व वारिस ख़ुदा ही है तुममें से जिस शख़्स ने (मक्का) फ़तह होने से पहले (अपना माल) ख़र्च किया और जेहाद किया (और जिसने बाद में किया) वह बराबर नहीं उनका दर्जा उन लोगों से कहीं बढ़ कर है जिन्होंने बाद में ख़र्च किया और जेहाद किया और (यूँ तो) ख़ुदा ने नेकी और सवाब का वादा तो सबसे किया है और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे ख़ूब वाक़िफ़ है[57:10] कौन ऐसा है जो ख़ुदा को ख़ालिस नियत से क़र्जुल हसना दे तो ख़ुदा उसके लिए (अज्र को) दूना कर दे और उसके लिए बहुत क़ीमती बदला (जन्नत) है ही[57:11]   

पिछले कार्यक्रम में यह बताया गया था कि अल्लाह पर ईमान लाने के कुछ आवश्यक तक़ाज़े हैं और उनमें से एक है माल को छोड़ देना और अल्लाह के रास्ते में ख़र्च करना। ये आयतें दो बातों पर ज़ोर देती हैं:

पहली यह कि जो लोग संकट और ख़तरे की स्थिति में अपनी जान व माल से गुज़र जाते हैं और इस्लाम और मुसलमानों की मदद करते हैं, वे अल्लाह के नज़दीक उन लोगों से बेहतर हैं जो उस स्थिति में ख़र्च और जिहाद करते हैं जब मुसलमान ताक़त की स्थिति में होते हैं।

दूसरी यह कि जो कुछ तुम अल्लाह के रास्ते में ख़र्च करते हो, वह वास्तव में अल्लाह के पास सुरक्षित छोड़ा जाता है और अल्लाह क़यामत के दिन उसका कई गुना बदला देगा।

या जो कुछ तुम ज़रूरतमंदों को क़र्ज के रूप में देते हो, अल्लाह उसे तुमसे ले लेता है और मानो तुमने अल्लाह को क़र्ज दिया हो, न कि ज़रूरतमंदों को।

इन आयतों से हम सीखते हैं:

मुस्लिम योद्धाओं को आर्थिक सहायता देना और ज़ालिमों के ख़िलाफ़ जिहाद और संघर्ष में भाग लेना, अल्लाह पर ईमान का एक आवश्यक तत्व है।

कठिन और ख़तरनाक परिस्थितियों में कर्तव्य निभाना, सामान्य परिस्थितियों के बराबर नहीं है और जितनी कठिन परिस्थितियाँ होंगी, कार्य का मूल्य और बदला उतना ही अधिक होगा।

कार्य का बाहरी रूप, अल्लाह के बदले का मापदंड नहीं है। कभी-कभी लोगों के कार्य एक जैसे दिख सकते हैं, लेकिन उन्हें समान बदला नहीं मिलता। क्योंकि अल्लाह अपने बंदों के कार्यों का बदला उनकी नीयत और उद्देश्य के आधार पर देता है।

खर्च करने के साथ-साथ, क़र्ज देना ज़रूरतमंदों की समस्याओं को दूर करने का इस्लाम का एक और तरीक़ा है। क़र्ज में कई बरकतें हैं। जैसे समाज में धन का संतुलन, लोगों के बीच सहयोग और एकजुटता की भावना का विकास, लोगों की इज़्ज़त की रक्षा और उन्हें दीवालिया होने से बचाना।

 

अब हम सूरए हदीद की आयत 12 और 13 की तिलावत सुनते हैं:

يَوْمَ تَرَى الْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ يَسْعَى نُورُهُمْ بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَبِأَيْمَانِهِمْ بُشْرَاكُمُ الْيَوْمَ جَنَّاتٌ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا ذَلِكَ هُوَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ (12) يَوْمَ يَقُولُ الْمُنَافِقُونَ وَالْمُنَافِقَاتُ لِلَّذِينَ آَمَنُوا انْظُرُونَا نَقْتَبِسْ مِنْ نُورِكُمْ قِيلَ ارْجِعُوا وَرَاءَكُمْ فَالْتَمِسُوا نُورًا فَضُرِبَ بَيْنَهُمْ بِسُورٍ لَهُ بَابٌ بَاطِنُهُ فِيهِ الرَّحْمَةُ وَظَاهِرُهُ مِنْ قِبَلِهِ الْعَذَابُ (13)

 

इन आयतों का अनुवाद हैः

जिस दिन तुम मोमिन मर्द और मोमिन औरतों को देखोगे कि उन (के ईमान) का नूर उनके आगे आगे और दाहिने तरफ़ चल रहा होगा तो उनसे कहा जाएगा तुमको बशारत हो कि आज तुम्हारे लिए वह बाग़ है जिसके नीचे नहरें जारी हैं जिनमें हमेशा रहोगे यही तो बड़ी कामयाबी है [57:12] उस दिन मुनाफ़िक मर्द और मुनाफ़िक औरतें ईमान वालों से कहेंगे (मेहरबानी की) एक नज़र हमारी तरफ़ भी करो कि हम भी तुम्हारे नूर से कुछ रौशनी हासिल करें तो (उनसे) कहा जाएगा कि तुम अपने पीछे (दुनिया में) लौट जाओ और (वहीं) किसी और नूर की तलाश करो फिर उनके बीच में एक दीवार खड़ी कर दी जाएगी जिसमें एक दरवाज़ा होगा (और) उसके अन्दर की जानिब तो रहमत है और बाहर की तरफ़ अज़ाब  [57:13]

ये आयतें क़यामत के दिन सच्चे मोमिनों की स्थिति की ओर इशारा करती हैं और कहती हैं: क़यामत के दिन लोगों का ईमान नूर के रूप में प्रकट होगा। यह नूर मोमिनों के आगे और दाईं ओर तेज़ी से चलता नज़र आएगा और उन्हें बेहतरीन जन्नत की ओर ले जाएगा।

बेशक यह नूर जो ईमान और अच्छे कर्मों से पैदा होता है, हर व्यक्ति के ईमान और अच्छे कर्मों के स्तर के अनुसार अलग-अलग होता है। जिनका ईमान मज़बूत होगा, उनका नूर अधिक दूरी तक रोशनी फैलाएगा और जो ईमान में कमज़ोर होंगे, उन्हें कम नूर मिलेगा।

लेकिन कुफ्र और निफ़ाक़ जो पूर्ण अंधकार है, क़यामत के दिन बाहरी अंधकार के रूप में प्रकट होगा। इसीलिए, मुनाफ़िक़ लोग जो दिल से ईमान नहीं रखते और बाहरी रूप से और सिर्फ़ ज़बान से ख़ुद को मोमिन दिखाते हैं, क़यामत के दिन कुफ़्र और निफ़ाक़ के अंधकार में होंगे और नूर की तलाश कर रहे होंगे। वे मोमिनों से गिड़गिड़ाएंगे कि वे उन्हें अपने नूर में से कुछ दे दें, ताकि उनके नूर की रोशनी में वे रास्ता पा सकें।

लेकिन जवाब नकारात्मक होगा। उनसे कहा जाएगा कि अपने पीछे की ओर लौट जाओ और नूर हासिल करो।

तुम्हें इस नूर को उस दुनिया से हासिल करना था जिसे तुमने पीछे छोड़ दिया। क़यामत का दिन, अमल और नूर हासिल करने का दिन नहीं है।

उस समय अचानक इन दोनों समूहों के बीच एक दीवार खड़ी कर दी जाएगी जिसमें एक दरवाज़ा होगा, लेकिन इस विशाल दीवार या इस दरवाज़े के दोनों ओर पूरी तरह अलग-अलग हालत होगी। इसके अंदर रहमत होगी और बाहर अज़ाब।

बहरहाल, वहां लोगों के वो अमल जो उन्होंने दुनिया में किए हैं, प्रकट होंगे और उनका निर्णय जहन्नमी होने या जन्नती होने के संदर्भ में स्पष्ट हो जाएगा।

 

इन आयतों से हमने सीखा:

औरत और मर्द नैतिक और आध्यात्मिक पूर्णता प्राप्त करने में या नैतिक बुराइयों जैसे निफ़ाक़ और दोहरे चरित्र में एक समान हैं और इस मामले में औरत और मर्द में कोई अंतर नहीं है।

कयामत के दिन ईमान का नूर प्रकट होगा और मोमिनों को हमेशा की जन्नत की ओर ले जाएगा।

जो लोग दुनिया में अज्ञान, शिर्क और निफ़ाक़ के अंधकार से बाहर नहीं निकले, वे आख़ेरत में भी अंधकार में रह जाएंगे।

ईमानदार और मुनाफ़िक़ लोग दुनिया में एक साथ रहते हैं और एक-दूसरे से अलग नहीं पहचाने जाते, लेकिन क़यामत के दिन लोगों का अंदरूनी हाल ज़ाहिर हो जाएगा और उनके बीच फ़ासला हो जाएगा।

 

अब हम सूरए हदीद की आयत 14 और 15 की तिलावत सुनते हैं:

يُنَادُونَهُمْ أَلَمْ نَكُنْ مَعَكُمْ قَالُوا بَلَى وَلَكِنَّكُمْ فَتَنْتُمْ أَنْفُسَكُمْ وَتَرَبَّصْتُمْ وَارْتَبْتُمْ وَغَرَّتْكُمُ الْأَمَانِيُّ حَتَّى جَاءَ أَمْرُ اللَّهِ وَغَرَّكُمْ بِاللَّهِ الْغَرُورُ (14) فَالْيَوْمَ لَا يُؤْخَذُ مِنْكُمْ فِدْيَةٌ وَلَا مِنَ الَّذِينَ كَفَرُوا مَأْوَاكُمُ النَّارُ هِيَ مَوْلَاكُمْ وَبِئْسَ الْمَصِيرُ (15)

 

इन आयतों का अनुवाद है:

(तो मुनाफ़ेक़ीन, मोमिनीन से पुकार कर कहेंगे  क्यों भाई) क्या हम कभी तुम्हारे साथ न थे तो मोमिनीन कहेंगे थे तो ज़रूर मगर तुम ने तो ख़ुद अपने आपको बला में डाला और (हमारे हक़ में गर्दिशों के) मुन्तज़िर रहै और (दीन में) शक किया और तुम्हें (तुम्हारी) तमन्नाओं ने धोखे में रखा यहाँ तक कि ख़ुदा का हुक्म आ पहुँचा और एक बड़े दग़ाबाज़ (शैतान) ने ख़ुदा के बारे में तुमको फ़रेब दिया [57:14] तो आज न तो तुमसे कोई मुआवज़ा लिया जाएगा और न काफ़िरों से तुम सबका ठिकाना (बस) जहन्नुम है वही तुम्हारे वास्ते सज़ावार है और (क्या) बुरी जगह है [57:15]

मुनाफिक लोग ईमान वालों से पूछेंगे: क्या हम तुम्हारे साथ नहीं थे?! फिर ऐसा क्या हुआ कि तुम अचानक हमसे अलग हो गए?!

ईमान वाले जवाब देंगे: हाँ, हर जगह साथ थे — गली, बाज़ार, काम की जगहों और अन्य जगहों पर — लेकिन तुमने अपने रास्ते हमसे अलग कर लिए थे और आस्था व कर्म के मामले में हमसे कोसों दूर थे।

आगे की आयतें पाँच ऐसे कारणों की ओर इशारा करती हैं जिनकी वजह से लोग जहन्नम  में जाते हैं:

पहला, दुनिया की आज़माइशों और फसादों में फँस जाना, जो इंसान को कुफ़्र और निफ़ाक़ की ओर ले जाता है।

दूसरा, अपने कर्तव्यों को निभाने में लापरवाही और ईमान वालों के लिए ढिलाई बरते जाने की उम्मीद रखना।

तीसरा, धार्मिक विश्वासों के प्रति शंका और संदेह की स्थिति में बने रहना।
चौथा, दुनियावी ख़्वाहिशों और लंबी-लंबी उम्मीदों में उलझ जाना।
पाँचवां, ख़ुदा के सामने घमंड करना।

दुनिया में कुछ गुनाहों का दंड बदला जा सकता है या माफ़ किया जा सकता है, लेकिन क़यामत के दिन न तो कोई दंड माफ़ किया जा सकेगा और न ही दुनिया की दौलत, औलाद या जान-पहचान वाला किसी के काम आ सकेगा।

इन आयतों से हमने सीखाः

बहुत से दोस्त, सहकर्मी और रिश्तेदार जो पूरी ज़िंदगी साथ रहते हैं, क़यामत के दिन हर कोई अपने कर्मों के अनुसार सज़ा या इनाम पाएगा। दुनिया की मोहब्बत और दूर-दूर की उम्मीदों में उलझ जाना, ख़ुदा और क़यामत पर शक करने और ग़लत घमंड की वजह बनता है।

जो इंसान ख़ुदा की सरपरस्ती से बाहर हो जाता है, वह शैतान की सरपरस्ती में चला जाता है और उसका अंजाम जहन्नम होता है।