क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-1022
सूरए जुमा आयतें 6 से 11
आइए सबसे पहले हम सूरए जुमा की आयत नंबर 6 से 8 तक की तिलावत सुनते हैं:
قُلْ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ هَادُوا إِنْ زَعَمْتُمْ أَنَّكُمْ أَوْلِيَاءُ لِلَّهِ مِنْ دُونِ النَّاسِ فَتَمَنَّوُا الْمَوْتَ إِنْ كُنْتُمْ صَادِقِينَ (6) وَلَا يَتَمَنَّوْنَهُ أَبَدًا بِمَا قَدَّمَتْ أَيْدِيهِمْ وَاللَّهُ عَلِيمٌ بِالظَّالِمِينَ (7) قُلْ إِنَّ الْمَوْتَ الَّذِي تَفِرُّونَ مِنْهُ فَإِنَّهُ مُلَاقِيكُمْ ثُمَّ تُرَدُّونَ إِلَى عَالِمِ الْغَيْبِ وَالشَّهَادَةِ فَيُنَبِّئُكُمْ بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ (8)
इन आयतों का अनुवाद है:
कह दीजिए: ऐ यहूदियो! अगर तुम यह दावा करते हो कि तुम्हीं अल्लाह के विशेष बंदे हो, दूसरे लोग नहीं, तो अगर तुम सच्चे हो तो मौत की इच्छा करो (ताकि अल्लाह के विशेष इनाम पा सको जो उसने अपने प्रिय लोगों के लिए निर्धारित किया है) [62:6], लेकिन वे अपने पिछले कर्मों की वजह से कभी भी मौत की इच्छा नहीं करेंगे, और अल्लाह ज़ालिमों को अच्छी तरह जानता है।[62:7] (ऐ रसूल!) कह दीजिए: जिस मौत से तुम भागते हो, वह तुमसे ज़रूर मिलेगी। फिर तुम ग़ैब, और देखी हुई चीज़ों के जानने वाले (अल्लाह) की तरफ़ पलटाए जाओगे, तो वह तुम्हें तुम्हारे किए हुए कामों से अवगत करा देगा।[62:8]
पिछले कार्यक्रम में उन यहूदियों की बात हो रही थी जिन्होंने अपनी आसमानी किताब तौरैत की शिक्षाओं को छोड़ दिया था और सिर्फ़ उसके बाहरी रूप का सम्मान करते थे। ये आयतें कहती हैं कि फिर भी वे ख़ुद को अल्लाह की चुनी हुई क़ौम समझते थे और ख़ुद को हर तरह की सज़ा से मुक्त मानते थे। ये आयतें उनसे कहती हैं: अगर तुम अपने इन दावों में सच्चे हो और ऐसा विश्वास रखते हो, तो तुम्हें दुनिया से इतना लगाव क्यों है और मौत से इतना डर क्यों लगता है?
अगर तुम अल्लाह के दोस्त हो, तो तुम्हें मौत का इंतज़ार करना चाहिए ताकि जल्द से जल्द अल्लाह से मिल सको और उसके ख़ास इनाम पा सको। जैसे हज़रत अली (अ.) ने कहा था: मुझे मौत से उतना ही लगाव है जितना एक बच्चे को अपनी माँ के सीने से होता है। लेकिन गुनहगार और अपराधी कभी भी मौत की इच्छा नहीं करते, क्योंकि वे जानते हैं कि उन्होंने दुनिया में क्या-क्या बुरे काम किए हैं और अल्लाह उनके सारे कर्मों को जानता है। बेशक मौत इंसान के हाथ में नहीं है, जैसे किसी इंसान की पैदाइश उसके अपने हाथ में नहीं है, और हर किसी को क़यामत में जवाबदेही के लिए तैयार रहना चाहिए।
इन आयतों से हमने सीखा:
मौत के लिए तैयार रहना, दीनदारी और ख़ुदापरस्ती के दावेदारों के ईमान को परखने का सबसे अच्छा ज़रिया है।
दीनदारी की एक बड़ी ख़राबी यह है कि इंसान ख़ुद को अल्लाह का विशेष बंदा समझे और इस बात पर दूसरों पर गर्व करे।
मौत के डर और उससे भागने की जड़, इंसान के बुरे और नापसंदीदा काम हैं, इसलिए पाक और नेक लोग मौत से नहीं डरते।
अब आइए सूरए जुमा की आयत संख्या 9 से 11 तक की तिलावत सुनते हैं:
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آَمَنُوا إِذَا نُودِيَ لِلصَّلَاةِ مِنْ يَوْمِ الْجُمُعَةِ فَاسْعَوْا إِلَى ذِكْرِ اللَّهِ وَذَرُوا الْبَيْعَ ذَلِكُمْ خَيْرٌ لَكُمْ إِنْ كُنْتُمْ تَعْلَمُونَ (9) فَإِذَا قُضِيَتِ الصَّلَاةُ فَانْتَشِرُوا فِي الْأَرْضِ وَابْتَغُوا مِنْ فَضْلِ اللَّهِ وَاذْكُرُوا اللَّهَ كَثِيرًا لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ (10) وَإِذَا رَأَوْا تِجَارَةً أَوْ لَهْوًا انْفَضُّوا إِلَيْهَا وَتَرَكُوكَ قَائِمًا قُلْ مَا عِنْدَ اللَّهِ خَيْرٌ مِنَ اللَّهْوِ وَمِنَ التِّجَارَةِ وَاللَّهُ خَيْرُ الرَّازِقِينَ (11)
इन आयतों का अनुवाद है:
ऐ ईमान लाने वालो! जब जुमा के दिन नमाज़ के लिए बुलावा दिया जाए तो अल्लाह के ज़िक्र की तरफ़ दौड़ो और ख़रीद-फ़रोख़्त छोड़ दो, यह तुम्हारे लिए बेहतर है अगर तुम समझो। [62:9]फिर जब नमाज़ ख़त्म हो जाए तो धरती में फैल जाओ और अल्लाह का फ़ज़्ल तलाश करो और अल्लाह को ख़ूब याद करो ताकि तुम नजात पा जाओ।[62:10] और (कुछ लोग) जब कोई व्यापार या मनबहलाव देखते हैं तो (नमाज़ की पंक्तियों से) बिखर कर उसकी तरफ़ चले जाते हैं और तुम्हें (ख़ुतबा पढ़ते हुए) खड़ा छोड़ देते हैं। (उनसे) कहो: जो (फ़ज़्ल और बरकत) अल्लाह के पास है वह मनबहलाव और व्यापार से बेहतर है और अल्लाह सबसे अच्छा रोज़ी देने वाला है। [62:11]
रसूले ख़ुदा के ज़माने में एक जुमा के दिन जब हज़रत नमाज़े जुमा का ख़ुतबा पढ़ रहे थे, तो एक व्यापारी कारवां मदीना में दाख़िल हुआ और उसने अपने आने की ख़बर ढोल-नगाड़ों से दी। ज़्यादातर नमाज़ियों ने यह सोचकर कि कहीं उनकी मनपसंद चीज़ें ख़त्म न हो जाएं और वे हाथ से न निकल जाएं, रसूल को ख़ुतबा पढ़ते हुए अकेला छोड़ दिया और सामान ख़रीदने के लिए कारवां की तरफ़ दौड़ पड़े।
इन आयतों में ऐसे व्यवहार की निंदा करते हुए नमाज़-ए-जुमा के महत्व पर ज़ोर दिया गया है और कहा गया है: दीनदारी की एक निशानी यह है कि नमाज़ और अल्लाह के ज़िक्र के वक़्त दुनियावी कामों को छोड़ दिया जाए। ईमान वाला इंसान ख़रीद-फ़रोख़्त जैसे कामों को नमाज़ पर तरजीह नहीं देता, बल्कि अज़ान की आवाज़ सुनते ही रोज़मर्रा के काम छोड़कर जल्दी से नमाज़ की पंक्तियों में शामिल हो जाता है।
आज के समय में भी दुख की बात है कि बहुत से ईमान के दावेदार दुनियावी कामों को धार्मिक कर्तव्यों पर तरजीह देते हैं, जैसे कि नमाज़ को टाल देते हैं। जबकि क़ुरआन कहता है: तुम्हारी दुनिया और आख़ेरत की भलाई इसी में है कि तुम नमाज़ को दूसरे कामों पर प्राथमिकता दो और नमाज़ की वजह से दूसरे कामों को टाल दो।
इन आयतों से हमने सीखा:
जुमा और जमाअत की नमाज़ में शामिल होना ईमान की निशानियों में से एक है।
किसी भी काम या व्यस्तता को लोगों के जुमा की नमाज़ में शामिल होने में रुकावट नहीं बनना चाहिए। जुमा की नमाज़ के समय बाज़ार, कारोबार और व्यापार को अस्थायी रूप से बंद कर देना चाहिए ताकि दुनियावी प्रलोभन लोगों को इस महत्वपूर्ण धार्मिक समारोह में शामिल होने से न रोकें।
दीन इंसानों की दुनियावी ज़िंदगी के ख़ेलाफ़ नहीं है। इसलिए यह जुमा की नमाज़ ख़त्म होने के बाद उन्हें हलाल रोज़ी कमाने और मेहनत करने की सलाह देता है।
असली कामयाबी अल्लाह के आदेशों को पूरा करने से ही मिलती है जो इंसान की दुनिया और आख़ेरत दोनों को बेहतर बनाती है।