क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-1024
सूरए मुनाफ़ेक़ून आयतें 7 से 11
आइए सबसे पहले सूरए मुनाफ़िक़ून की आयत 7 और 8 की तिलावत सुनते हैं:
هُمُ الَّذِينَ يَقُولُونَ لَا تُنْفِقُوا عَلَى مَنْ عِنْدَ رَسُولِ اللَّهِ حَتَّى يَنْفَضُّوا وَلِلَّهِ خَزَائِنُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَلَكِنَّ الْمُنَافِقِينَ لَا يَفْقَهُونَ (7) يَقُولُونَ لَئِنْ رَجَعْنَا إِلَى الْمَدِينَةِ لَيُخْرِجَنَّ الْأَعَزُّ مِنْهَا الْأَذَلَّ وَلِلَّهِ الْعِزَّةُ وَلِرَسُولِهِ وَلِلْمُؤْمِنِينَ وَلَكِنَّ الْمُنَافِقِينَ لَا يَعْلَمُونَ (8)
इन आयतों का अनुवाद है:
वे ही लोग हैं जो कहते हैं कि अल्लाह के रसूल के पास जो लोग हैं, उन पर ख़र्च न करो ताकि वे (रसूल के आसपास से) तितर-बितर हो जाएं। हालांकि आकाशों और धरती के ख़ज़ाने अल्लाह के लिए हैं, लेकिन मुनाफ़िक़ समझते नहीं।[63:7] वे कहते हैं कि यदि हम मदीना लौटे तो ज़रूर वहां का सबसे सम्मानित समूह, सबसे पस्त समूह को वहां से निकाल देगा। जबकि इज़्ज़त तो अल्लाह, उसके रसूल और मोमिनीन के लिए है, लेकिन मुनाफ़िक़ीन जानते नहीं। [63:8]
पिछले कार्यक्रम में मुनाफ़िक़ों की कुछ बातचीत और व्यवहार संबंधी विशेषताओं की ओर इशारा किया गया था। ये आयतें उनके बारे में कुछ अन्य बिंदुओं पर प्रकाश डालती हैं और कहती हैं:
मुनाफ़िक़ न केवल ख़ुद रसूलुल्लाह के लक्ष्यों की मदद करने से मुकरते हैं, बल्कि विभिन्न बहानों से दूसरों को भी पैगंबर के साथियों की मदद करने से रोकते हैं ताकि वे रसूलुल्लाह के आसपास से दूर हो जाएं।
मक्का से मदीना हिजरत करने वाले मुसलमानों को रिहाइश, कपड़े और भोजन की बहुत तंगी थी, इसलिए मदीना के हर मुसलमान ने किसी न किसी तरह से उनकी मदद की। लेकिन मदीना के मुनाफ़िक़ जो ख़ुद को मुहाजिरों से बेहतर समझते थे, दूसरे मुसलमानों से कहते थे कि उनकी मदद न करें ताकि वे अपने शहर वापस चले जाएं।
मुनाफ़िक़ों का यह ख़याल था कि धन-दौलत होना इज़्ज़त और ताक़त की निशानी है, और ग़रीबी और ज़रूरतमंदी ज़िल्लत और बेइज़्ज़ती की वजह है, जबकि माल और दौलत अमीरों के पास अल्लाह की अमानत है ताकि यह पता चल सके कि वे ज़रूरतमंदों और लाचारों की मदद करते हैं या नहीं? असल में, इंसान की असली इज़्ज़त और ज़िल्लत अल्लाह पर उसके ईमान और उसके आदेशों की पाबंदी पर निर्भर करती है, न कि धनी या ग़रीब होने पर।
इन आयतों से हमने सीखा:
भौतिक तंगी और आर्थिक दबाव मुसलमानों को धार्मिक नेताओं के आसपास से बिखरने का कारण नहीं बनना चाहिए, यह बाहरी दुश्मनों और आंतरिक मुनाफ़िक़ों की मंशा है।
जो लोग हर चीज़ का विश्लेषण सिर्फ़ ताक़त, धन और भौतिक संसाधनों के आधार पर करते हैं, वे भौतिक दुनिया से परे उच्च सच्चाइयों को समझने में असमर्थ हैं।
जो कोई ख़ुद को इज़्ज़त वाला और दूसरों को ज़लील समझता है, वास्तव में उसके अंदर मुनाफ़िक़त के कुछ अंश समा गए हैं।
अगर मोमिनीन अपने ईमान में मज़बूत और स्थिर रहें, तो अल्लाह की तरफ़ से उनकी इज़्ज़त और सरबुलंदी की गारंटी है।
अब आइए सूरए मुनाफ़िक़ून की आयत संख्या 9 से 11 तक की तिलावत सुनते हैं:
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آَمَنُوا لَا تُلْهِكُمْ أَمْوَالُكُمْ وَلَا أَوْلَادُكُمْ عَنْ ذِكْرِ اللَّهِ وَمَنْ يَفْعَلْ ذَلِكَ فَأُولَئِكَ هُمُ الْخَاسِرُونَ (9) وَأَنْفِقُوا مِنْ مَا رَزَقْنَاكُمْ مِنْ قَبْلِ أَنْ يَأْتِيَ أَحَدَكُمُ الْمَوْتُ فَيَقُولَ رَبِّ لَوْلَا أَخَّرْتَنِي إِلَى أَجَلٍ قَرِيبٍ فَأَصَّدَّقَ وَأَكُنْ مِنَ الصَّالِحِينَ (10) وَلَنْ يُؤَخِّرَ اللَّهُ نَفْسًا إِذَا جَاءَ أَجَلُهَا وَاللَّهُ خَبِيرٌ بِمَا تَعْمَلُونَ (11)
इन आयतों का अनुवाद है:
ऐ ईमान वालो! तुम्हारा धन और तुम्हारी संतान तुम्हें अल्लाह की याद से ग़ाफ़िल न कर दें और जो ऐसा करेंगे, तो वही घाटा उठाने वाले हैं। [63:9] और जो कुछ हमने तुम्हें दिया है, उसमें से (अल्लाह की राह में) ख़र्च करो, इससे पहले कि तुम में से किसी एक की मौत आ जाए और वह कहे, हे मेरे रब! तूने मुझे थोड़ी देर और (मौत को टालकर) मोहलत क्यों नहीं दी ताकि मैं सदक़ा (ज़कात) देता और नेक लोगों में शामिल होता। [63:10] और अल्लाह किसी प्राणी की मौत को टालता नहीं जब उसका वक़्त आ जाता है और अल्लाह तुम्हारे कामों से ख़बरदार है। [63:11]
ये आयतें व्यक्ति के अंदर मुनाफ़िक़त की जड़ों की ओर इशारा करती हैं और कहती हैं: एक तरफ़ पत्नी और बच्चों से लगाव और दूसरी तरफ़ धन-दौलत से अत्यधिक जुड़ाव, अल्लाह की याद से ग़ाफ़िल होने और उसके आदेशों को भूल जाने का कारण बनता है, ऐसा कि व्यक्ति बाहर से तो मोमिन नज़र आता है, लेकिन अंदर से कुफ़्र और शिर्क में फंसा हुआ है।
इसलिए अल्लाह मोमिनीन को सलाह देता है कि वे सावधान रहें कि दुनिया के लगाव और जुड़ाव के जाल में न फंस जाएं जिससे वे सच्चाई के रास्ते से भटक जाएं और दुनिया व आख़ेरत में घाटा उठाएं। कोई भी चीज़ या कोई भी व्यक्ति इंसान को अल्लाह और उसके रसूल के आदेशों की पाबंदी से न रोके, चाहे वह उसकी पत्नी और बच्चे हों या पद, ताक़त और धन पाने की उसकी चाहत।
तो इस शैतानी जाल से बचने का रास्ता क्या है? अल्लाह नजात का रास्ता यह बताता है कि ज़िंदगी में ही अपने माल और दौलत का कुछ हिस्सा ख़र्च कर दे ताकि इंसान मौत के बाद अफ़सोस न करे और सदक़ा देने और नेक काम करने के लिए दुनिया में वापस लौटने की ख़्वाहिश न करे। क्योंकि ऐसी ख़्वाहिश पूरी होने वाली नहीं है; जैसे कि मौत का वक़्त भी कभी टलता नहीं।
इन आयतों से हमने सीखा:
मोमिन इंसान अल्लाह को हर चीज़ से बढ़कर और ऊपर समझता है और अगर ज़रूरत पड़े तो वह अल्लाह की राह में अपनी हर चीज़ क़ुर्बान कर देता है, चाहे वह माल-दौलत हो या पत्नी और बच्चे।
इंसान की ज़िंदगी में सबसे बड़ा घाटा जो सभी नुक़सानों की जड़ है, अल्लाह को भूल जाना और उसकी याद से ग़ाफ़िल होना है।
मुनाफ़िक़ों के मुक़ाबले में जो मोमिनों को दूसरों की मदद करने से रोकते हैं, अल्लाह मोमिनों को ख़र्च करने और सदक़ा देने की सलाह देता है ताकि दुनियादारी की भावना जो मुनाफ़िक़त की असल जड़ है, मोमिनों के दिल से निकल जाए।