Sep १५, २०२५ १८:५० Asia/Kolkata
  • क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-1025

सूरए तग़ाबुन आयतें 1से 6

पिछले कार्यक्रम में सूरए मुनाफ़िक़ून की व्याख्या समाप्त होने के बाद, इस कार्यक्रम में हम सूरए तग़ाबुन की आयतों की तफ़्सीर शुरू करेंगे। यह सूरा 18 आयतों वाला है और मदीना में नाज़िल हुआ। इसकी आयतों का मुख्य विषय सृष्टि और मनुष्य के रचनाकार यानी अल्लाह पर ध्यान केन्द्रित कराना और क़यामत के दिन के लिए तैयारी करना है ताकि इंसान उस दिन घाटे में न रहे। 

 

आइए सबसे पहले हम सूरए तग़ाबुन की आयत नंबर 1 और 2 की तिलावत सुनते हैं

بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ

يُسَبِّحُ لِلَّهِ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ (1) هُوَ الَّذِي خَلَقَكُمْ فَمِنْكُمْ كَافِرٌ وَمِنْكُمْ مُؤْمِنٌ وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ بَصِيرٌ (2)

इन आयतों का अनुवाद है

 

अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान, निहायत रहम वाला है। 

 

आकाशों और धरती में जो कुछ भी है, वह अल्लाह की तस्बीह करता है। बादशाही उसी की है और सारी तारीफ़ उसी के लिए है और वह हर चीज़ पर क़ादिर है।  [64:1] वही है जिसने तुम्हें पैदा किया, फिर तुम में से कोई काफ़िर है और कोई मोमिन। और अल्लाह तुम्हारे सभी कर्मों को देखने वाला है।[64:2] 

 

सूरए तग़ाबुन, क़ुरआन के कुछ अन्य सूरों की तरह, अल्लाह की हम्द और तस्बीह से शुरू होता है। हालाँकि, तस्बीह हमेशा हम्द से पहले आती है। तस्बीह में हम अल्लाह को हर कमी, नादानी और ज़ुल्म से पाक और बरी मानते हैं, जबकि हम्द में हम उसकी बनाई हुई महान रचना और उसके अनगिनत एहसानों के लिए उसका शुक्र अदा करते हैं। 

ब्रह्मांड की सभी चीज़ें, अपनी हालत और ज़बान से, अल्लाह की हम्द और तस्बीह करती हैं और एक अकेले अल्लाह के इल्म, क़ुदरत और पूरी हुकूमत पर गवाही देती हैं। लेकिन इंसानों में से कुछ लोग वह अख़्तियार और इरादा इस्तेमाल करते हैं जो अल्लाह ने उन्हें दिया है, लेकिन ब्रह्मांड के साथ क़दम नहीं मिलाते। यानी वह अल्लाह की हम्द और तस्बीह करने को तैयार नहीं होते और उसके वजूद को भी नहीं मानते। 

 

इन आयतों से हमने सीखा

 

क़ुरआन की संस्कृति में, ब्रह्मांड की सभी चीज़ें, चाहे वह पत्थर, पेड़-पौधे या जानवर हों, एक तरह की समझ रखते हैं और उसके आधार पर वह सृष्टि के मालिक को पहचानते हैं और उसकी तस्बीह करते हैं। 

 कुछ इंसान ब्रह्मांड के साथ तालमेल नहीं रखते; वह अल्लाह पर ईमान नहीं लाते और उसके एहसानों का शुक्र अदा नहीं करते। 

 अल्लाह वह बादशाह है जो हर चीज़ पर क़ादिर है, जबकि इंसानी बादशाह बहुत सी चीज़ों से मजबूर होते हैं। 

 इंसान एक मुख़्तार प्राणी है, मजबूर नहीं। 

 

अब आइए सूरए तग़ाबुन की आयत नंबर 3 और 4 की तिलावत सुनते हैं

 

خَلَقَ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ بِالْحَقِّ وَصَوَّرَكُمْ فَأَحْسَنَ صُوَرَكُمْ وَإِلَيْهِ الْمَصِيرُ (3) يَعْلَمُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَيَعْلَمُ مَا تُسِرُّونَ وَمَا تُعْلِنُونَ وَاللَّهُ عَلِيمٌ بِذَاتِ الصُّدُورِ (4)

 

इन आयतों का अनुवाद है

 

उसने आकाशों और धरती को हक़ के साथ पैदा किया और (मां के गर्भ में) तुम्हारी सूरत बनाई और तुम्हारी सूरत को अच्छा बनाया और उसी की तरफ़ सबको लौटना है।[64:3] वह जानता है जो कुछ आकाशों और धरती में है और जो तुम छुपाते हो और जो ज़ाहिर करते हो, वह भी जानता है। और अल्लाह सीने के भेदों को भी जानने वाला है।[64:4] 

 

क़ुरआन की कई आयतों में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि दुनिया और इंसान की रचना इल्म, हिकमत और एक मक़सद के साथ हुई है, क्योंकि अल्लाह बेमतलब और बेकार काम नहीं करता। अल्लाह के काम में कोई बातिल चीज़ नहीं होती, सब हक़ और इंसाफ़ पर आधारित है। इसमें इंसान का एक ख़ास मक़ाम है और अल्लाह ने उसे बेहतरीन सूरत और सीरत (चरित्र) के साथ पैदा किया है। 

 

बेशक, इंसान की रचना बहुत ही अजीब और हैरतअंगेज़ है और इसमें हर तरह की कलाकारी, बारीकी और डिज़ाइन शामिल है। यह याद रखना चाहिए कि अल्लाह ने इंसान को एक मामूली पानी (नुतफ़े) से पैदा किया और एक अंधेरी और तारीक जगह (माँ के पेट) में उसे पाला-पोसा और उस पर सबसे अच्छी और ख़ूबसूरत सूरत प्रदान की। 

 

दिलचस्प बात यह है कि इंसान के शरीर के सभी अंग, जैसे सिर, चेहरा, आँखें, हाथ, पैर और दूसरे अंग, सही और उचित जगह पर लगे हैं और उनका संयोजन और तनासुब या अनुपात इंसान के शरीर, ख़ासकर उसके चेहरे की ख़ूबसूरती का कारण बना है। 

जिस तरह अल्लाह ब्रह्मांड का मूल है, उसी तरह सबकी वापसी उसी की तरफ़ है और कोई भी चीज़ इस निर्धारित रास्ते से बाहर नहीं है। 

उसने रचना के बाद इंसान और दुनिया को अकेला नहीं छोड़ा, बल्कि हमेशा उन पर नज़र रखता है और उनकी हिफ़ाज़त करता है। कोई चीज़ उसके इल्म से बाहर नहीं है और वह इंसानों के ज़ाहिर और छुपे कामों के साथ-साथ उनके दिल के इरादों को भी जानता है। 

 

इन आयतों से हमने सीखा

 

ब्रह्मांड की रचना कोई संयोग या बिना मंसूबे के हो जाने वाली चीज़ नहीं है, बल्कि एक निर्धारित प्रोग्राम और मक़सद के साथ यह दुनिया और इसके सभी प्राणी, जिनमें इंसान भी शामिल है, पैदा किए गए हैं। 

 दुनिया की शुरुआत और अंत अल्लाह है और दुनिया एक इलाही मंज़िल की तरफ़ बढ़ रही है। 

 अल्लाह इंसान के छुपे कामों के साथ-साथ उसके ख़्यालात, इरादों और सीने के राज़ भी जानता है। 

 अगर इंसान जान ले कि वह इस दुनिया में अकेला नहीं है, बल्कि उसके सभी काम हर वक़्त अल्लाह की नज़र में हैं, तो वह गुनाह और बुराइयों से दूर रहेगा और अच्छे काम करने की ज़्यादा कोशिश करेगा। 

 

अब आइए सूरए तग़ाबुन की आयत नंबर 5 और 6 की तिलावत सुनते हैं

 

أَلَمْ يَأْتِكُمْ نَبَأُ الَّذِينَ كَفَرُوا مِنْ قَبْلُ فَذَاقُوا وَبَالَ أَمْرِهِمْ وَلَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ (5) ذَلِكَ بِأَنَّهُ كَانَتْ تَأْتِيهِمْ رُسُلُهُمْ بِالْبَيِّنَاتِ فَقَالُوا أَبَشَرٌ يَهْدُونَنَا فَكَفَرُوا وَتَوَلَّوْا وَاسْتَغْنَى اللَّهُ وَاللَّهُ غَنِيٌّ حَمِيدٌ (6)

 

 

इन आयतों का अनुवाद है

 

क्या तुम्हारे पास उन लोगों का समाचार नहीं पहुँचा जो पहले कुफ़्र कर चुके हैं? फिर उन्होंने अपने कर्मों का बुरा नतीजा चखा और उनके लिए (आख़ेरत में) दर्दनाक अज़ाब है। [64:5] यह (अज़ाब) इसलिए है कि उनके पास उनके रसूल खुली दलीलों के साथ आए, तो उन्होंने कहा: 'क्या (हमारे जैसा ही एक) इंसान हमें हिदायत देगा?' तो उन्होंने कुफ़्र किया और मुँह मोड़ लिया और अल्लाह (उनकी इबादत और ईमान से) बेपरवाह है। और अल्लाह बेपरवाह, तारीफ़ के लायक़ है। [64:6]

 

 

पिछली आयतों में कुछ इंसानों के कुफ़्र का ज़िक्र हुआ था; ये आयतें उनके कुफ़्र की जड़ की तरफ़ इशारा करती हैं और फ़रमाती हैं: वह रसूलों की शिर्क और मूर्तिपूजा से बचने के बारे में साफ़ और दलील से भरी बातें सुनते थे और उनके चमत्कार देखते थे, लेकिन ईमान न लाने के बहाने ढूँढ़ते थे। 

इसलिए कभी वे कहते थे: हम उन रसूलों की पैरवी नहीं करेंगे जो हमारी तरह इंसान हैं। उनमें ऐसी क्या ख़ूबी है कि वह हमारे नेता बनें और हम उनकी पैरवी करें? और कभी यह भी कहते थे: क्या अल्लाह को हमारे ईमान लाने और हमारी इबादत और इताअत की ज़रूरत है

दरअसल, तकब्बुर और ग़ुरूर और कभी-कभी ख़ुद को बेहतर समझने की भावना के कारण वह हक़ की बात को क़बूल नहीं करते थे और ख़ुद को उस हिदायत से महरूम कर लेते थे जो रसूलों के ज़रिए उन तक पहुँचती थी। इस कुफ़्र और इनकार की सज़ा, जो हठ और ज़िद पर आधारित थी, दुनिया में ही उन्हें मिल गई और आख़िरत में भी वह अज़ाब में गिरफ़्तार होंगे। 

 

इन आयतों से हमने सीखा

 

क़ुरआन में पिछली क़ौमों के इतिहास का अध्ययन करने और उनके अंजाम से सबक़ लेने की ताकीद की गई है। 

 कुछ काम ऐसे होते हैं कि इंसान उनकी सज़ा का कुछ हिस्सा दुनिया में ही चख लेता है, हालाँकि पूरी सज़ा क़यामत में मिलेगी। 

 उन काफ़िरों को सज़ा मिलती है जिन्होंने हक़ की बात सुनी और समझी, लेकिन तकब्बुर और ग़ुरूर की वजह से उसका विरोध किया और हक़ की बात मानने से इनकार कर दिया।