क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-1026
सूरए तग़ाबुन आयतें 7 से 12
आइए सबसे पहले हम सूरए तग़ाबुन की आयत 7 और 8 की तिलावत सुनते हैं:
زَعَمَ الَّذِينَ كَفَرُوا أَنْ لَنْ يُبْعَثُوا قُلْ بَلَى وَرَبِّي لَتُبْعَثُنَّ ثُمَّ لَتُنَبَّؤُنَّ بِمَا عَمِلْتُمْ وَذَلِكَ عَلَى اللَّهِ يَسِيرٌ (7) فَآَمِنُوا بِاللَّهِ وَرَسُولِهِ وَالنُّورِ الَّذِي أَنْزَلْنَا وَاللَّهُ بِمَا تَعْمَلُونَ خَبِيرٌ (8)
इन आयतों का अनुवाद है:
जिन लोगों ने कुफ़्र किया, उन्होंने यह समझ लिया कि वे कभी पुनर्जीवित नहीं किए जाएंगे। कह दो: हाँ, मेरे परवरदिगार की क़सम! तुम अवश्य पुनर्जीवित किए जाओगे, फिर तुम्हें बताया जाएगा कि तुमने क्या किया। और यह अल्लाह के लिए बहुत आसान है। [64:7] अतः अल्लाह, उसके रसूल और उस नूर (जैसे क़ुरआन) पर ईमान लाओ जिसे हमने उतारा है। और अल्लाह उससे पूरी तरह अवगत है जो तुम करते हो। [64:8]
पिछले कार्यक्रम में काफ़िरों द्वारा पैग़म्बरों के इनकार का उल्लेख किया गया था। ये आयतें क़यामत के इनकार के बारे में बताती हैं: वे अपनी ग़लत धारणा के आधार पर यह सोचते हैं कि मृत्यु के बाद कोई पुनरुत्थान नहीं होगा। इसलिए वे क़यामत की अदालत में उपस्थित होने और अपने किए के लिए जवाबदेह होने के लिए तैयार नहीं होते।
अल्लाह के रसूल को निर्देश दिया जाता है कि वे उन्हें पूरी ताक़त के साथ याद दिलाएं कि निश्चित रूप से तुम क़यामत में उपस्थित किए जाओगे, और दुनिया में तुम्हारे कर्मों का रिकॉर्ड क़यामत की अदालत में तुम्हारे सामने खोला जाएगा जो तुम्हारे दंड या प्रतिफल का आधार होगा।
आयतें आगे इन ग़लत धारणाओं से बाहर निकलने का रास्ता बताती हैं - अल्लाह, उसके रसूल और उस किताब पर ईमान लाना जो अल्लाह की तरफ से नाज़िल हुई है। क़ुरआन कहता है: अल्लाह ने अपने ज्ञान और शक्ति के आधार पर दुनिया को बनाया है और अपनी मख़लूक़ात के कर्मों को पूरी तरह जानता है। इसलिए उसके ज्ञान से कुछ भी बाहर नहीं है और वह तुम्हारे सभी कर्मों से अवगत है।
इन आयतों से हमने सीखा:
मआद यानी दोबारा उठाए जाने का इनकार करने वाले बिना किसी प्रमाण के, केवल अनुमान के आधार पर ग़लत धारणा में पड़ जाते हैं और क़यामत के होने से इनकार करते हैं।
दुनिया कर्म की जगह है और आख़िरत हिसाब की। इंसान के सभी कर्म दुनिया में दर्ज होते हैं और क़यामत में उसके कर्मों के आधार पर उसे प्रतिफल या दंड दिया जाएगा।
क़यामत में मुर्दों का जिलाना और इंसानों को उनके कर्मों की जानकारी देना उस अल्लाह के लिए बहुत आसान है जो इस विशाल दुनिया का रचयिता और पालनहार है।
जो कुफ़्र और शिर्क हठ और सच्चाई से दुश्मनी के कारण हो, वह इंसान को अंधकार की ओर ले जाता है, जबकि कुरआन की आयतें इंसान को अंधकार से निकालकर सच्चाई के नूर की ओर ले जाती हैं।
आइए अब सूरए तग़ाबुन की आयत 9 और 10 की तिलावत सुनते हैं:
يَوْمَ يَجْمَعُكُمْ لِيَوْمِ الْجَمْعِ ذَلِكَ يَوْمُ التَّغَابُنِ وَمَنْ يُؤْمِنْ بِاللَّهِ وَيَعْمَلْ صَالِحًا يُكَفِّرْ عَنْهُ سَيِّئَاتِهِ وَيُدْخِلْهُ جَنَّاتٍ تَجْرِي مِنْ تَحْتِهَا الْأَنْهَارُ خَالِدِينَ فِيهَا أَبَدًا ذَلِكَ الْفَوْزُ الْعَظِيمُ (9) وَالَّذِينَ كَفَرُوا وَكَذَّبُوا بِآَيَاتِنَا أُولَئِكَ أَصْحَابُ النَّارِ خَالِدِينَ فِيهَا وَبِئْسَ الْمَصِيرُ (10)
इन आयतों का अनुवाद है:
उस दिन को याद करो जब अल्लाह तुम्हें (क़यामत में) जमा होने के दिन पर इकट्ठा करेगा - यही (दिन) हसरत और पछतावे का दिन है। जो अल्लाह पर ईमान लाएगा और अच्छे कर्म करेगा, (अल्लाह) उसके बुरे कर्मों को ढांप देगा और उसे ऐसी जन्नतों में दाख़िल करेगा जिनके (पेड़ों के) नीचे नहरें बहती होंगी, जहाँ वे हमेशा रहेंगे। यही बड़ी कामयाबी है। [64:9] और जिन लोगों ने कुफ्र किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वही दोज़ख के रहने वाले हैं, जहाँ वे हमेशा रहेंगे। और वह बहुत बुरा ठिकाना है। [64:10]
ये आयतें क़यामत के दिन की एक विशेषता की ओर इशारा करती हैं जिससे इस सूरे का नाम लिया गया है - और वह है तग़ाबुन यानी इंसान का क़यामत के दिन पछतावा और नुक़सान महसूस करना। अच्छे और नेक इंसान इस बात का पछतावा करेंगे कि उन्होंने और अच्छे काम क्यों नहीं किए, और बुरे कर्म करने वाले अपने बुरे कामों पर पछताएंगे कि उन्होंने ऐसे अपराध क्यों किए।
कुरआन इन आयतों में अल्लाह की कृपा और माफ़ी हासिल करने का रास्ता बताता है - हर तरह के कुफ़्र, शिर्क और निफ़ाक से दूर रहना। क़ुरआन कहता है: जो लोग एक रब पर ईमान रखते हैं और नेक काम करने वाले हैं, अल्लाह उनके बुरे कर्मों को नज़रअंदाज़ करके उन्हें माफ़ कर देगा और उन्हें हमेशा रहने वाली जन्नतों में दाख़िल करेगा।
लेकिन जिन लोगों का कुफ़्र सच्चाई को जानने और समझने के बावजूद उसे झुठलाने और इनकार करने पर आधारित है, वे दोज़ख की आग में फंस जाएंगे और उस अज़ाब से छुटकारे का कोई रास्ता नहीं होगा।
इन आयतों से हमने सीखा:
इससे पहले कि मौक़ा हाथ से निकल जाए और हम क़यामत के दिन पछतावे में पड़ जाएं, सही नीयत से नेक और अच्छे काम करें ताकि क़यामत में उसकी बरकतों से फ़ायदा उठा सकें।
अल्लाह के यहाँ नेक काम का न केवल प्रतिफल है बल्कि यह इंसान के बुरे कर्मों की माफ़ी का कारण भी बनता है।
जन्नत में दाख़िल होने से पहले इंसान को गुनाहों की गंदगी से पाक होना चाहिए। इंसान अल्लाह की कृपा और माफ़ी के कारण या दोज़ख में सज़ा भुगतकर गुनाहों से पाक हो सकता है।
सभी इंसान सुख और ख़ुशी पाने की कोशिश में हैं, लेकिन असली सुख दुनिया में नेक और अच्छे काम करके अल्लाह की जन्नत में दाख़िल होने से मिलता है।
अब आइए सूरए तग़ाबुन की आयत 11 और 12 की तिलावत सुनते हैं:
مَا أَصَابَ مِنْ مُصِيبَةٍ إِلَّا بِإِذْنِ اللَّهِ وَمَنْ يُؤْمِنْ بِاللَّهِ يَهْدِ قَلْبَهُ وَاللَّهُ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمٌ (11) وَأَطِيعُوا اللَّهَ وَأَطِيعُوا الرَّسُولَ فَإِنْ تَوَلَّيْتُمْ فَإِنَّمَا عَلَى رَسُولِنَا الْبَلَاغُ الْمُبِينُ (12)
इन आयतों का अनुवाद है:
कोई भी मुसीबत अल्लाह की इजाज़त के बिना नहीं आती। और जो अल्लाह पर ईमान लाता है, अल्लाह उसके दिल को हिदायत देता है। और अल्लाह हर चीज़ को जानने वाला है।[64:11] और अल्लाह की इताअत करो और रसूल की इताअत करो। फिर अगर तुम मुंह मोड़ोगे तो (तो जान लो कि) हमारे रसूल पर सिर्फ़ स्पष्ट रूप से पैग़ाम पहुंचा देने के अलावा (कोई ज़िम्मेदारी) नहीं है। [64:12]
सभी इंसानों की ज़िंदगी में, चाहे-अनचाहे, मुश्किलें और मुसीबतें आती हैं जो आम तौर पर इंसानों को निराश और बेचैन कर देती हैं। लेकिन जो अल्लाह पर ईमान रखता है, वह जानता है कि इस दुनिया में कुछ भी अल्लाह की इजाज़त और उसके ज्ञान के बिना नहीं होता। इसलिए मुसीबत के वक्त सब्र करता है और जानता है कि अल्लाह उसकी हालत से वाक़िफ़ है और उसके सब्र का प्रतिफल होगा।
मोमिन इंसान मुसीबतों के कारण अल्लाह और उसके रसूल की इताअत से हाथ नहीं खींचता, जबकि कुछ लोग ऐसे नहीं होते। वे आराम के वक़्त अल्लाह की इबादत करते हैं और मुश्किल के वक़्त अल्लाह को अपनी बदक़िस्मती का कारण मानकर नमाज़, रोज़ा और दूसरे धार्मिक फरीज़ों को छोड़ देते हैं।
हालांकि, अल्लाह और रसूल ने भी यह नहीं चाहा कि लोग ज़बरदस्ती उनकी इताअत करें। इसलिए पैग़म्बरों का काम सिर्फ़ अल्लाह का पैग़ाम पहुंचाना है ताकि लोग सच्चाई को समझें और अपनी मर्ज़ी और इच्छा से काम करें।
इन आयतों से हमने सीखा:
जो चीज़ इंसान के दिल को घटनाओं और मुसीबतों के सामने मज़बूत और स्थिर रखती है, वह अल्लाह पर ईमान है। जो अल्लाह पर ईमान रखता है, वह जानता है कि अल्लाह उसकी हालत से पूरी तरह वाकिफ़ है, इसलिए मुश्किलों और मुसीबतों के सामने सब्र, तवक्कुल और उम्मीद नहीं छोड़ता।
सब्र, तवक्कुल, रज़ा और तस्लीम जैसे उच्च अर्थ वाले विचार वह हैं जिनकी ओर मोमिन का दिल हिदायत पाता है और मुसीबतों के सामने मज़बूत और स्थिर खड़ा रहता
है, टूटता नहीं।
पैग़म्बरों का काम सिर्फ़ अल्लाह का पैग़ाम पहुंचाना है। उन्हें लोगों पर ज़बरदस्ती करने का हक़ नहीं है, क्योंकि इंसान आज़ाद पैदा किया गया है। इसलिए वह चाहे तो इताअत कर सकता है और चाहे तो अल्लाह और रसूल के हुक्म से मुंह मोड़ सकता है।