Jun ११, २०१६ १२:३७ Asia/Kolkata

दसवीं शताब्दी के खगोलशास्त्री मोहम्मद बिन मोहम्मद यहिया अबुलवफ़ा बूज़जानी का पहली रमज़ान 328 हिजरी क़मरी को वर्तमान ख़ुरासान के तुरबत जाम शहर के निकट बूज़जान में जन्म हुआ।

दसवीं शताब्दी के खगोलशास्त्री मोहम्मद बिन मोहम्मद यहिया अबुलवफ़ा बूज़जानी का पहली रमज़ान 328 हिजरी क़मरी को वर्तमान ख़ुरासान के तुरबत जाम शहर के निकट बूज़जान में जन्म हुआ। इब्ने नदीम की अल-फ़हरिस्त किताब में बूज़जानी के नाम के उल्लेख से उनके उच्च स्थान का पता चलता है, इसलिए कि वे इब्ने नदीम और अबू रेहान बेरूनी के दौर में जीवन व्यतीत करते थे।

 

बूज़जानी ने गणित की प्राथमिक शिक्षा बूज़जान में अपने चचा और मामू से हासिल की, यह दोनों ही अपने समय के दक्ष गणितज्ञों में से थे। 348 हिजरी में 20 वर्ष की आयु में उच्च शिक्षा की प्राप्ति के लिए वे बग़दाद गए। वे अज़्दुद्दौला के बेटे शरफ़ुद्दौला की सेवा में उपस्थित हुए और अबू सुहैल बीज़न के मार्गदर्शन में शरफ़ुद्दौला द्वारा निर्मित वेधशाला में अध्ययन करने लगे।

 

प्रसिद्ध इतिहासकार जार्ज सार्टन ने दसवीं शताब्दी ईसवी की दूसरी छमाही या चौथी हिजरी शताब्दी की दूसरी छमाही को अबुलवफ़ा का ज़माना क़रार दिया है। यह वह काल था जब यूरोप में युद्ध, खींचतान और टकराव का माहौल था। ऐसा यूरोप जहां दास प्रथा और चर्च की शिक्षा प्रणाली के वर्चस्व ने हर प्रकार की शैक्षिक प्रगति के रास्ते को बंद कर रखा था।

 

पूरब में बग़दाद के ख़लीफ़ा का शासन कमज़ोर हो चला था और लोग भुखमरी का शिकार हो रहे थे। चीन, भारत और जापान में भी शैक्षिक प्रगति रुकी हुई थी। ऐसी परिस्थितियों में ईरान में स्थिति अलग थी। जिस समय अबुलवफ़ा का जन्म हुआ, ख़ुरासान पर सामानियान का शासन था, और वे ईरानी परम्परा और फ़ार्सी साहित्य में रूची रखते थे। इसके अलावा सामानियान अन्य धर्मों के प्रति कट्टर नहीं थे, इसलिए बुद्धिजीवियों के लिए शांति और ज्ञान के विस्तार का वातावरण था। इस काल में किताबों की दुकानों की संख्या में वृद्धि हुई, बड़े पुस्तकालयों का निर्माण हुआ और ईरान भर में बड़े बड़े मदरसों एवं शैक्षिक संस्थानों का विस्तार हुआ। इस काल में अबू रेहान बेरूनी और इब्ने सीना जैसे महान बुद्धिजीवी जीवन व्यतीत करते थे। इस काल में ईरानी गणितज्ञ केवल यूनानी गणितज्ञों के अनुवादक नहीं थे, बल्कि उन्होंने गणित के विकास में अहम भूमिका निभाई।

 

ज्यामिति, गणित और खगोलशास्त्र के विकास में अबुलवफ़ा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। संगीत में भी उन्हें दक्षता प्राप्त थी, लेकिन संगीत में उनकी ख्याति उतनी नहीं थी, जितनी गणित और खगोशास्त्र में थी।

 

अबुलवफ़ा को बग़दाद पहुंचे हुए अभी कुछ ही वर्ष गुज़रे थे कि वे एक प्रसिद्ध बुद्धिजीवी के रूप में पहचाने जाने लगे। बग़दाद में वे खगोलशास्त्र में अध्ययन के अलावा अदालती काम भी करते थे। काफ़ी समय तक वे बग़दाद में एक अस्पताल के प्रमुख भी रहे। अबुलवफ़ा ने बग़दाद के बुद्धिजीवियों के अलावा, अपने समकालीन ईरानी और विदेशी बुद्धिजीवियों के साथ पत्राचार किया। इनमें से अबू अली हुबूबी और अबू रेहान बेरूनी का नाम लिया जा सकता है। अबू हय्यान तौहीदी और अबू नस्र इराक़ी ने उन्हें शेख़ का उपनाम प्रदान किया था।

 

अबुलवफ़ा, अबू रेहान बेरूनी के साथ वैज्ञानिक विचारों का आदान प्रदान करते थे। उदाहरण स्वरूप, जब अबू रेहान ख़्वारेज़्म में थे और अबुलवफ़ा बग़दाद में थे, तो उन्होंने चांद ग्रहण का अध्ययन करके अपने अपने अध्ययनों के निष्कर्षों की तुलना की। अबुलवफ़ा ने उक़लीदस, ख़्वारेज़्मी, दयोफ़ान्ट और बतलमयूस जैसे विभिन्न ईरानी और यूनानी बुद्धिजीवियों की रचनाओं की व्याख्या की है और ख़ुद भी ज्योमिति में नए नए शोध किए हैं।

 

अबुलवफ़ा ने त्रिकोण के साइज़ की पैमाइश के लिए हेरॉन संबंध के समतुल्य एक संबंध का पता लगाया, जिसमें ऊंचाई के बिना कोणों की लम्बाई का पता लगाया जाता है। उन्होंने इसे अबू अली हुबूबी को भेजा था। हालांकि त्रिकोणों में अबुलवफ़ा का सबसे बड़ा कारनामा टान्जेंट लाइन या स्पर्श रेखा का अविष्कार था।

 

अबुलवफ़ा की चार मूल रचनाएं हैं। पहली किताब लेखाकारों को हिसाब किताब की जानकारी उपलब्ध कराती है, दूसरी किताब में उद्योगपतियों की आवश्यकता के अनुसार ज्यामिति की जानकारी है। अलमजस्ती और ज्यामिति निमय। पहली दोनों किताबों में गणित के स्पष्ट उदाहरण पेश किए गए हैं।

 

अबुलवफ़ा ने अपने व्यवहारिक गणित के पहले दो भागों को केवल तर्क से विशेष किया है, उसके बाद तीसरे भाग से सातवें भाग तक सैद्धांतिक एवं प्रायौगिक गणति को पेश किया है। ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि यह किताब 272 से 367 हिजरी क़मरी के बीच लिखी गई है। जैसा कि ख़ुद लेखक ने कहा है कि यह किताब अज़्दुद्दौला के लिए लिखी गई है। उन्होंने किताब के पहले अध्याय में गणित के सैद्धांतिक नियमों की समीक्षा की है और नए अर्थों को जैसे कि विभिन्न प्रकार के फ़्रैकशन्स या अंशों को ख़ास नियमों एवं तालिकाओं द्वारा बयान किया है। उन्होंने एक ऐसी शैली को परिचित करवाया कि जिसकी सहायता से पूर्व शैलियों की तुलना में फ़्रैकशन को तेज़ी से सामान्य बनाया जा सकता है। किताब के दूसरे अध्याय में पहली बार इस्लामी जगत में गणित के इतिहास में नकारात्मक अंक का प्रयोग किया और उसे दैन अर्थात ऋण का नाम दिया।

 

ज्योमिति प्रयोगों की किताब में शुरू में ज्यामितिक इमारतों के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों के बारे में बात की गई है और उसके बाद निर्माण से संबंधित ज्यामितीय नियमों की व्याख्या की गई है और उसके बाद अधिक जटिल आकारों के बारे में बताया गया है। अबुलवफ़ा ने हर स्थान पर तर्क द्वारा और अनेक शैलियों द्वारा समस्या का समाधान बताया है। वे अपने समाधानों के महत्व को समझते थे।

 

अबुलवफ़ा ने अपनी इस किताब में वायु आकारों पर भी ध्यान दिया है। विशेष रूप से ग्लोब पर आकार बनाकर उन्होंने विभिन्न समस्याओं का समाधान निकाला है। उन्होंने गुलदोज़ी, क़ालीन की बुनाई और टाइलिंग में इस्तेमाल होने वाले ज्यामिति आकारों पर ध्यान दिया है।

 

अबुलवफ़ा के अद्वीतिय कार्यों में से एक अलमजस्ती या अलकामिल नामक उनकी किताब है, जिसे बतलमयूस या टॉलेमी के अलमजेस्त के आधार पर लिखा है। कुछ इतिहासकारों के दृष्टिकोण के विपरीत यह किताब टॉलेमी की किताब का नया रूप नहीं है। ऐसी संभावना है कि उनकी किताब ज़ीज कि जिसकी कोई प्रति बाक़ी नहीं रही है, वह वही अलमजस्ती है। हालांकि अबू रेहान बेरूनी ने उन्हें दो अलग अलग प्रतियां बताया है। अबुलवफ़ा ने अपनी इस किताब में आकाशीय परिवर्तनों के लिए जो जानकारी ज़रूरी है, उसकी व्याख्या की है, वास्तव में उनकी किताब त्रिकोणों को पूर्ण रूप से स्थापित करती है।

 

अबुलवफ़ा के प्रयासों के सम्मान के लिए चंद्रमा की एक सतह का नाम उनके नाम पर रखा गया है। 388 हिजरी क़मरी में बग़दाद में उनका निधन हो गया।                    

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