ख़लीफ़ये क़ुल्लाबी-5
हमने कहा था कि एक रात को हारून रशीद ने अपने वज़ीर जाफ़र बरमकी के साथ भेस बदलकर शहर घुमने का फैसला किया।
हमने कहा था कि एक रात को हारून रशीद ने अपने वज़ीर जाफ़र बरमकी के साथ भेस बदलकर शहर घुमने का फैसला किया। उनके साथ तलवार चलाने में दक्ष मसरूर नामक व्यक्ति भी था। हारून रशीद इस प्रकार से नगर के लोगों की हालत जानना चाहता था। जब वे दजला नदी में नाव से घूम फिर रहे थे तो उन्होंने ऐसे व्यक्ति को देखा जिसने अपना परिचय ख़लीफा के रूप में कर रखा था। हारून रशीद जब नक़ली ख़लीफ़ा को देखने में सफल हो गया तो उसने उसकी नाव का पीछा किया और नक़ली ख़लीफ़ा के स्थान का पता लगा लिया पर उन सबको रक्षकों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और उन सबने अपने आपको व्यापारी बताया। नक़ली ख़लीफ़ा उन सबको अपने साथ महल ले गया और उन सबके लिए शाहाना दस्तरखान लगाने का आदेश दिया। खाने के बाद संगीत बजाई गयी जिसके दौरान नक़ली ख़लीफा कई बार बेहोश हो गया। वह अपने कपड़ों को फाड़ता था और सेवक दूसरे वस्त्र पहनाते थे। वस्त्र बदलने के दौरान हारून रशीद ने देखा कि उसके शरीर पर कोड़े मारे जाने के निशान व घाव हैं।
उसने इस बात को अपने मंत्री जाफ़र बरमकी से उसके कान में धीरे से बता दिया। नक़ली ख़लीफ़ा ने हारून रशीद और जाफ़र बरमको को कानाफूसी करते देख लिया। उसने कानाफूसी का कारण पूछा। जाफर बरमकी ने हारून रशीद के आदेश से कोड़े के घाव का कारण पूछा। नक़ली ख़लीफ़ा ने सबसे पहले ख़लीफ़ा और उसके साथियों के प्रति आदरभाव व्यक्त किया और कहा मैंने इन लोगों को आरंभ से ही पहचान लिया है। उसके बाद उसने अपने जीवन की घटना बयान करने की अनुमति मांगी। हारून रशीद ने जवान युवा की ओर देखा और कहा हे अच्छे आचरण वाले युवा अपने जीवन की घटना बयान कर हम सुनने के लिए तैयार हैं। जवान युवा ने कहा मेरे स्वामी जैसाकि आप समझ गये कि मैं ख़लीफ़ा नहीं हूं और मैंने झूठ ही अपना नाम ख़लीफ़ा रख लिया है क्योंकि इसकी वजह से मैं जो भी चाहता हूं कर सकता हूं। मेरा वास्तविक नाम मोहम्मद अली है और मैं जौहरी अर्थात सुनार अली का बेटा हूं। शायद आप मेरे पिता को पहचानते हों। क्योंकि वह शहर के गणमान्य व्यक्ति थे। उन्होंने अपने मरने के बाद मेरे लिए बहुत सारा धन छोड़ा जिसमें हीरा -जवाहेरात भी शामिल हैं। मैंने भी अपने पिता के रास्ते को अपनाया और मैं भी हीरा- जवाहेरात बेचने लगा और उस संपत्ति में दिन- प्रतिदिन वृद्धि हो गयी। रात- दिन पैसा कमाने की सोच में लगा रहा। मेरी अच्छी आवाज़ भी थी और बीन भी बजाता था। मेरी आवाज़ की प्रसिद्धि दूर- दूर तक फैल गयी। एक दिन मैं अपनी दुकान के अंदर बैठा था कि एक महिला घोड़े पर सवार होकर वहां आयी। वह बहुत मूल्यवान वस्त्र धारण किये हुए थी और उसके साथ जो दासियां थीं उससे ज्ञात था कि वह नगर के किसी प्रतिष्ठित घर की थी। वह अपने घोड़े से नीचे उतरी और तुरंत उसने मुझसे पूछा कि मोहम्द अली जौहरी तुम हो? मैंने कहा जी हां। उसने कहा मुझे गले का सुन्दर हार चाहिये जो मेरे योग्य हो। मैंने कहा जो कुछ इस दुकान में है उसे आपको दिखाता हूं जिसे भी आप पसंद करेंगी उसे गर्व से आपकी सेवा में पेश करूंगा।
दुकान में बहुत से सुन्दर हार थे एक के बाद दूसरे सुन्दर हार दिखाने ले गया और उसे दिखाया परंतु उसने किसी को भी पसंद नहीं किया उसने कहा तुम्हारे पास जो बेहतरीन हार है वह मुझे दिखाओ। मैं एक छोटा और बहुत ही मूल्यवान हार ले आया और उसे दिखाया। यह वह हार था जिसे मेरे पिता ने एक लाख सिक्के में ख़रीदा था और मैं नहीं सोचता था कि बग़दाद में कोई इस हार को ख़रीद सकेगा। उसने जैसे ही उस हार को देखा कहा यही हार मुझे चाहिये। काफी समय से इस प्रकार के जवाहेरात की खोज में थी उसे तुम कितने में बेचेगो? मैंने कहा मेरे पिता ने कई साल पहले एक लाख सिक्के में ख़रीदा था। उसने कहा कि मैं इसकी क़ीमत से 15 हज़ार सिक्के अधिक दूंगी। मैंने कहा मोहतरमा यह मेरे लिए गर्व की बात है कि आप मेरी दुकान से ख़रीद रही हैं और आप इसका जो फायदा दे रही हैं मैं उसे स्वीकार नहीं करूंगा। उसने कहा हे जवान संकोच से काम लेने की कोई बात नहीं है। मैं इस हार के बदले तुम्हें एक लाख 15 हज़ार सिक्के दूंगी परंतु इस समय मेरे पास पर्याप्त पैसा नहीं है। तू मेरे साथ मेरे घर चल वहां पर मैं पूरे पैसे दे दूंगी। मैंने भी हार उसे दे दिया और उसके बाद दुकान बंद कर दी और उसके और उसकी दासियों के साथ चल पड़ा।
गली के बाद गली तय करता हुआ नगर में उसके भव्यशाली मकान तक पहुंचा। मकान देखने से ही लग रहा था कि बग़दाद के किसी गणमान्य व्यक्ति का मकान है पंरतु नहीं जानता था कि यह किसका घर है और इस महिला का उससे क्या संबंध है। बहरहाल वह महिला अपने मकान में प्रविष्ट हुई और मैं कुछ देर तक दरवाज़े पर खड़ा रहा। कुछ देर के बाद एक दासी आयी और उसने कहा मेरी मालेकिन ने कहा है कि मकान के अंदर आओ मैं भी मकान के अंदर चला गया। दलान से गुज़र कर घर के चौड़े प्रांगड में पहुंचा। जैसे ही प्रांगड में कदम रखा मैंने उसी महिला को देखा उसने अपने चेहरे से नक़ाब हटा दिया और उसका सुन्दर चेहरा चौदहवीं के चांद की तरह चमक रहा था। वह अपने गले में सुन्दर हार भी पहने हुए थी उसने कहा काफी समय से मैं तुम पर नज़र रखे थी उसने बहुत प्यारे अंदाज में मुझसे अपना प्यार दिखाया और कहा जानते हो मैं कौन हूं? मैंने कहा मोहतरमा मैं इतना जानता हूं कि आप किसी शरीफ और गणमान्य व्यक्ति के घर की हैं।
उसने कहा मेरा नाम दुनिया है और मैं ख़लीफा के मंत्री जाफ़र बरमकी की बहन हूं। जवान युवा ने जैसे ही यह कहा जाफर बरमकी बेचैन हो गया उसने आपत्ति करनी चाही परंतु हारून रशीद ने उसे रोक दिया और कहा जाफर चुप रहो ताकि यह जवान पूरी घटना बयान कर सके। मंत्री ने उसके आदेश का पालन किया और वह चुप हो गया। नक़ली ख़लीफा ने कहा दुनिया ने मुझसे कहा तुम मुझसे विवाह करोगे? मैंने कहा दुनिया जी आप गणमान्य परिवार की हैं और मैं एक जौहरी का बेटा हूं। मैं कहां और आप कहां? उसने कहा हे मोहम्मद अली बहाना मत बनाओ। अगर तुम मुझसे विवाह नहीं करना चाहते हो तो इससे अधिक तुमसे दिल न लगाऊं और अगर मुझे योग्य समझते हो तो बता दो ताकि मैं आदेश दूं अभी निकाह पढ़ने वाले और गवाहों को बुलाया जाये और हमारा विवाह हो जाये। मैंने भी सहर्ष स्वीकार कर लिया।