Aug ३१, २०१६ १५:५९ Asia/Kolkata

ऐतिहासिक प्रमाण इस बात के सूचक हैं कि प्राचीन काल से अब तक ईरानी बहुत ही सुन्दर और अच्छे सिले हुए कपड़े वस्त्र के रूप में धारण करते थे और इस संबंध में प्राचीन बुनाई को बहुत अधिक ख्याति प्राप्त थी।

ईरान की प्राचीन बुनाई से जो चीज़ बची है वह बुनाई यंत्र हैं जो देश के बहुत से शहरों के कारख़ानों में अब भी अपनी सुन्दरता के रंग बिखेर रहे हैं और कलाकार इन यंत्रों के माध्यम से सुन्दर और मनमोहक कपड़े बुनते हैं। चूंकि यज़्द, काशान, किरमान, ख़ूज़िस्तान, गीलान, माज़न्दरान, आज़रबाइजान, कुर्दिस्तान और किरमानशाह जैसे प्रांतों में प्राचीन शैलियों में ही कपड़ों की बुनाई की जाती है।

ईरान की पारंपरिक हस्त बुनाई का आधार दो धागों के ताने बाने होते हैं और विभिन्न रूपों में ढलते हैं और बुनाई में विविधता का कारण बनते हैं। धागे किस प्रकार के हों यह भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। ऊनी, रेशमी, रूई से बने धागे तथा सूत, कृत्रिम सूत और धातु वाले सूत, इसकी बुनाई में महत्वपूर्ण होते हैं। वे सूत या रेशे हैं जिन्हें प्राकृतिक रूप से (जानवरों एवं पौधों) नहीं बल्कि कृत्रिम रूप से निर्मित किया जाता है। सामान्य रूप से कहा जाय तो सूत बनाने वाले पदार्थ को किसी पतले छिद्र से बलात भेजकर सूत का निर्माण किया जाता है। ईरान में हाथ से बुने कपड़े विभिन्न प्रकार के होते हैं जिनमें बरक, तिर्मे, जाजीम, एबा, मख़मल, मौज और ताफ़्ता की ओर संकेत किया जा सकता है।

 

सिल्क रोड, ईरान के केन्द्रीय मरुस्थल के किनारे से गुज़रता है और इस मार्ग में यज़्द शहर पड़ता है। प्राचीन काल से ही यज़्द, अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण शहर समझा जाता था तथा वस्तुओं का आदान प्रदान, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण कपड़ा और हाथ से बुनी हुई वस्तुएं शामिल होती हैं, इसी क्षेत्र में होता है। तिर्मे की बुनाई, यज़्द के मरुस्थलीय प्रांत का प्रसिद्ध हस्तउद्योग है जो इस क्षेत्र के पश्चिमी लोगों के इतिहास को बयान करता है। यज़्द की जामे मस्जिद की दहलीज़ पर स्थित एक शिलालेख से यह समझ में आता है कि यज़्द शहर की जनता शताब्दियों से इस काम में व्यस्त रही है।

इस्लाम के काल से पहले भी यज़्द, ईरान के ज़रतुश्तियों का एक बड़ा केन्द्र समझा जाता था। इस शहर के बहुत से ज़रतुश्ती तिर्मे की बुनाई के काम में व्यस्त रहते थे जबकि बहुत से पारसी या ज़रतुश्ती भारत पलायन करने के बाद उन्होंने भारतीय कपड़े बुनाई की कला को भी प्रभावित किया। प्राचीन काल में यज़्द की जामे मस्जिद के पूर्वी भाग में नख़रीसान नामक बाज़ार था जहां पर रेशमी धागों, सूत तथा तिर्मे की बुनाई के लिए प्रयोग होने वाले आरंभिक पदार्थ और सामान मिलते थे।

शाह अब्बास सफ़वी के शासन काल में कपड़ों तथा तिर्मे की बुनाई ने बहुत अधिक विकास किया क्योंकि शाह अब्बास ने चीन और अर्मनिस्तान से प्रसिद्ध डिज़ाइनरों को ईरान बुलाया था ताकि वह ईरानियों को अपनी नवीन कला सिखाएं। यही कारण है कि उस काल में तिर्मे बहुत सुन्दर और मनोरम बनता था।

 

तिर्मा किस प्रकार का कपड़ा होता है? इस प्रश्न के उत्तर में यह कहा जा सकता है कि तिर्मा एक प्रकार का सूक्ष्म कपड़ा है जो ऊन या बाल से बुना जाता है। तिर्मा का रंग विशेषकर उसका धरातल अधिकतर लाल, हरा, नारंगी और काले रंग का होता है। उस पर बनी डिज़ाइनें Paisley या दूसरी Persian pickles या आम की कैरी की डिज़ाइनें होती हैं। तिर्मे बहुत महंगा कपड़ा होता है जो बहुत ही सूक्ष्म सूत से बुना जाता है और ईरान की बुनकर कला का एक अद्वितीय भाग समझा जाता है। तिर्मे की बुनाई के लिए लंबे सूत, या अच्छे रेशम या ऊन का प्रयोग किया जाता है। धागों को वनस्पतियों के रंगों या प्राकृतिक रंगों से रंगा जाता है। तिर्मे पर बनने वाली डिज़ाइनें विभिन्न प्रकार की होती हैं जैसे  Paisley, Persian pickles, फूल पत्ती, गुले शाह अब्बासी, बारह सिंगे की सींग की डिज़ाइनें, अमीरी, राह राह, आम की कैरी, और पाम ट्री की डिज़ाइनें होती हैं।

प्राचीन काल में तिर्मे की डिज़ाइनों को उंगलियों के इशारे पर उत्पन्न की जाती थी किन्तु वर्तमान समय में इसके लिए चहारवर्दी नामक यंत्र का प्रयोग किया जाता है। तिर्मे की बुनाई, ईरान में सफ़वी काल के आरंभ में फली फूली और वर्तमान समय में यज़्द, काशान, किरमान और तेहरान में तिर्मे की बुनाई के कारख़ाने मौजूद हैं।

ईरान में तिर्मे की बुनाई सफ़वी काल के आरंभ में शुरु हुआ किन्तु कुछ लोगों का मानना है कि तिर्मे का जन्म मुख्य रूप से केन्द्रीय एशिया और कश्मीर की पहाड़ियों में हुआ है।  कुछ कलाकारों का मानना है कि तिर्मे की बुनाई आरंभ में ईरान में शुरु हुई उसके बाद कश्मीर गयी। बुनाई में ईरानियों की पहल, सूक्ष्मता और दक्षता से दुनिया में ईरानियों की कल्पनाओं पर आधारित डिज़ाइनें बहुत ही कम और अद्वितीय हैं और यह कला सफ़वी शासन काल में अपने चरम पर पहुंच गयी और परिपूर्ण हो गयी और इस प्रकार से यह ईरान से निर्यात होने वाली एक वस्तु में परिवर्तित हो गयी।

 

तिर्मे की बुनाई के लिए सबसे पहले उसके लिए आवश्यक वस्तुओं को एकत्रित किया जाना चाहिए। अधिकतर तिर्मे को ऊन और रेशम से बुना जाता है किन्तु सफ़ेद ऊन, सबसे प्रचलित ऊन है जिसे तिर्मे की बुनाई में प्रयोग किया जाता है क्योंकि इसमें अपनी मनपसंद का कोई भी रंग मिला सकते हैं या उसे अपनी पसंद के किसी भी रंग में रंग सकते हैं। तिर्मे का ऊन सबसे प्रसिद्ध ऊन या ऊंचा सूत होना चाहिए। सबसे अच्छा ऊन बनाने के बाद, सबसे पहले ऊन की सफ़ाई करते हैं और उसमें मौजूद फ़ालतू चीज़ों को निकालते हैं। ईरान में ऊन को सफ़ेद करने के लिए दो शैलियों का प्रयोग करते हैं, सबसे पहले घास पर ऊन को बिछा देते हैं ताकि पूरी रात वैसे ही पड़ा रहे और रात के समय उस पर ओस पड़े और उसमें मिल जाए, दूसरा मार्ग यह है कि ऊन को सफ़ेद करने के लिए उसमें सलफ़र मिलाते हैं। अधिकतर ईरानी तिर्मे का रंग, वनस्पतियों से तैयार किया जाता है और जड, तना, पत्ती, फूल, फल या पेड़ या वनस्पति की छाल से ऊन रंगा जाता है।

तिर्मे की बुनाई के लिए पारंपरिक यंत्र की आवश्यकता होती है। इसके लिए बहुत सूक्ष्मता और दक्षता की आवश्यकता होती है और पारंपरिक यंत्रों की सहायता से एक दिन में बीस से पचीस सेन्टीमीटर का पंसंदीदा तिर्मा बुना जा सकता है। अलबत्ता नये यंत्रों से लगभग चार गुना लंबा तिर्मा बुना जा सकता है।

बुनाई में सबसे संवेदनशील ज़िम्मेदारी, रंगों का चयन और समन्वय है जिसके लिए तिर्मा के बुनकर को अधिक होशियार और अधिक कार्य करना चाहिए। तिर्मे की बुनाई में धरातल सदैव स्थिर रहता है और केवल उसके आसपास और बीच या किनारे पर ही रंगों का चयन किया जाता है। दूसरा बिन्दु उसके ताने बाने बनाने वालों के लिए सबसे महत्वपूर्ण है वह विभिन्न मोटाइ के साथ ताने बानों का प्रयोग है और इसी प्रकार उसकी बुनाई का तरीक़ा है, अर्थात इस ताने बाने को बड़ी बारीकी और सूक्ष्मता से एक दूसरे के किनारे से गुज़ारना हैं, इसलिए कि रंग और उसके तार स्थिर हैं और देखने वाला केवल ताने बाने के रंगों का मिश्रण ही देख पाता है और यही चीज़ काम की कठिनाई को अधिक कर देती है।

प्राचीन काल से तिर्मे की डिज़ाइनों का केन्द्र वही आम की कैरी पर केन्द्रित होती है। इसी से विभिन्न प्रकार की डिज़ाइनें बनाई जाती हैं और विभिन्न प्रकार के रूप दिए जाते हैं, इस प्रकार से कि मशीन से बनाई जाने वाली डिज़ाइनों में भी मुख्य रूप से इस डिज़ाइन को सुरक्षित रखा जाता है। सामान्य रूप से तिर्मे की बुनाई में प्रयोग होने वाला ताना, प्राकृतिक रेशम का होता है और कभी रूई का भी होता है। उसका बाना भी रेशम का ही होता है, कभी विभन्न रंग के धागे और सूत का प्रयोग किया जाता है किन्तु रेशम के लिए रेशम को सही करने के विशेष कारख़ाने या यंत्र ताबी का प्रयोग किया जाता है और इसी प्रकार चरख़े जैसे विशेष प्रकार के यंत्रों की सहायता से रेशम को कातते हैं।

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प्राचीन काल से ही तिर्मे को विभन्न कामों में प्रयोग किया जाता है जिनमें राजा महाराजाओं के कपड़े सिलने, पर्दे और जानमाज़ की ओर संकेत किया जा सकता है। आजकल तिर्मे को सोफ़े और मेज़ के कवर के रूप में सौंदर्य की चीज़ों में प्रयोग किया जाता है। प्राचीन काल से ही तिर्मे के प्रयोग करने वाले अधिकतर पुरुष, राजदरबारी और राज महाराजा प्रयोग करते थे और वर्तमान समय में समाज के विभिन्न वर्ग के लोग इसको प्रयोग करते हैं और इसे ईद, शादी विवाह तथा कार्यक्रमों में उपहार के रूप में एक दूसरे परिवार को देते हैं जबकि इस टुकड़े को महिलाएं और पुरुष रूमाल या बैग में रखने वाले छोटे कपड़े के रूप में भी प्रयोग करते हैं।

बुनाई के कारण तिर्मे का कपड़ा अद्वितीय होता है जिसकी बुनाई घनी और मज़बूत होती है और इस प्रकार यह अन्य कपड़ों से अधिक मज़बूत और अधिक चलने वाला होता हैं। इन सबके बावजूद तिर्मे के रंग उड़ने का मुख्य कारक धूप और सीलन है क्योंकि इसका काला वाला भाग, इसके अन्य भागों की तुलना में प्रकाश और गर्मी के सामने अधिक संवेदनशील होता है और बड़ी सरलता से उसका रंग उड़ जाता है।

इसी प्रकार तिर्मा का सबसे अधिक दुश्मन फतिंगा होता है जिसे फ़ारसी में बीद कहा जाता है। जिस प्रकार से अन्य रेशमी कपड़ों की फतिंगे से सुरक्षा की जाती है वही शैली से तिर्मे की रक्षा की जानी चाहिए। तिर्मे को धोने के लिए किसी भी पाउडर या पदार्थ का प्रयोग कर सकते हैं इस शर्त के साथ कि जब उसका रंग वनस्पति का रंग हो अर्थात पक्का रंग हो।

यज़्द शहर की जनता अपने जीवन में, परंपराओं और कार्यक्रमों में हाथ से बुनी इन चीज़ों का प्रयोग करते हैं जो सदैव महत्वपूर्ण रही है। यहां के लोग अपनी लड़कियों को दहेज में देने के लिए कई प्रकार के तिर्मे बना कर रखते हैं। इसी प्रकार यज़्द शहर की जनता मोहर्रम के दिनों में तिर्मे को अलम के पटके या अलम पर लगाने के लिए भी प्रयोग करती है और मोहर्रम की समाप्ति तक यह तिर्मे अलम में लगे रहते हैं।

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