Sep ०४, २०१६ १२:३१ Asia/Kolkata

अबस पवित्र क़ुरआन का 80वां सूरा है।

यह सूरा मक्के में उतरा। इसमें 42 आयते हैं। इस सूरे में वर्णित विषय इस प्रकार हैं, सत्य के खोजी आंखों से मजबूर व्यक्ति के साथ अनुचित व्यवहार, पवित्र क़ुरआन की महानता और इसकी सच्ची शिक्षाएं, ईश्वरीय अनुकंपाओं के संबंध में इंसान का आभार व्यक्त न करना, इंसान और जानवर के खाद्य पदार्थ से संबंधित ईश्वरीय अनुकंपाएं, प्रलय की घटना और इस महान दिन सदाचारियों व नास्तिकों का अंजाम।

अबस सूरे का नाम इसकी पहली आयत के अनुसार है।

एक दिन क़ुरैश क़बीले के कुछ बड़े लोग पैग़म्बरे इस्लाम के पास बैठे हुए थे और उस समय पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम उन लोगों को इस्लाम के बारे में बता और इस ओर उन्हें आमंत्रित कर रहे थे इस उम्मीद पर कि शायद उन पर भी उनकी बात का असर हो जाए। इस बीच पैग़म्बरे इस्लाम के एक अनुयायी अब्दुल्लाह इब्ने मक्तूम जो आंखों से मजबूर थे, कुछ इस्लामी आदेशों के बारे में पूछने उस सभा में पहुंच गए। पैग़म्बरे इस्लाम ने उन्हें बहुत ही सम्मान के साथ उन्हें हज़रत उस्मान से जो पैग़म्बरे इस्लाम के पास बैठे थे, आगे बिठाया। हज़रत उस्मान को यह अच्छा न लगा और वह अब्दुल्लाह इब्ने मक्तूम की तरफ़ पीठ करके बैठ गए। हज़रत उस्मान का यह व्यवहार इस्लाम के ख़िलाफ़ और ईश्वर की प्रसन्नता के विरुद्ध था। उसी समय हज़रत जिबरईल यह आयत लेकर उतरे कि जिसका उद्देश्य अब्दुल्ला इब्ने मकतूम की प्रशंसा और हज़रत उस्मान की तंबीह करना थी। यह घटना इस बात को दर्शाती है कि इस्लाम में सत्य के खोजी लोगों ख़ास तौर पर वंचित लोगों के लिए विशेष सम्मान है। लोगों की अहमियत का आधार ईश्वर पर उनका  ईमान है न कि धन-दौलत।

इसके विपरीत इस्लाम ने उन लोगों को सख़्त फटकार लगायी है जो ईश्वरीय अनुकंपाओं की बहुतायत व धन-दौलत के कारण घमंडी हो गए हैं।

अबस सूरे की आयत नंबर 17 में ईश्वर कह रहा है, इंसान हलाक हो जाए वह ईश्वरीय अनुकंपाओं का शुक्रिया अदा नहीं करता। यह आयत कह रही है कि ईश्वर उस इंसान पर क्रोधित होता है जो उसकी नेमतों का शुक्रिया अदा नहीं करता। चूंकि बहुत सी सरकशी व उद्दंडकता का आधार घमंड की भावना है इसलिए इंसान के इस घमंड को तोड़ने के लिए ईश्वर कह रहा है, ईश्वर ने उसे किस चीज़ से पैदा किया? क्या ईश्वर ने उसे तुच्छ वीर्य से पैदा नहीं किया? तो फिर यह उद्दंडता व सरकशी क्यों है?

अबस सूरे की आयत नंबर 24 में इंसान का ध्यान उसके खाने की ओर ले जाती है। इस आयत में ईश्वर कह रहा है, इंसान अपने खाने को देखे। इसके आगे ईश्वर इंसान और जानवरों के अख़्तियार में दिए गए नाना प्रकार के खाद्य पदार्थ का उल्लेख करते हुए उनके मन में आभार व्यक्त करने की भावना जागृत करता है कि वह इन अनुकंपाओं के देने वाले को पहचानें। खाना वह चीज़ जिसका मनुष्य पर शारीरिक व मानसिक दृष्टि से असर पड़ता है। यही कारण है कि पवित्र क़ुरआन में इंसान के खाद्य पदार्थ की ओर उसका ध्यान ले जाने की कोशिश की गयी है। ये पदार्थ वह वनस्पतियों व पेड़ों से हासिल करता है। स्पष्ट है कि खाने को देखने का अर्थ सिर्फ़ उस पर नज़र डालना नहीं है बल्कि इस पदार्थ के अलग अलग तत्वों और उनके शरीर पर पड़ने वाले आश्चर्यजनक प्रभाव के बारे सोचना है। उसके बाद इन चीज़ों को पैदा करने वाले के बारे में सोचना है। उसे ध्यान देना चाहिए कि उसकी खाने की चीज़ें हलाल हैं या हराम, वैध तरीक़े से हासिल की गयीं या अवैध तरीक़े से।

पैग़म्बरे इस्लाम व उनके पवित्र परिजनों के हवाले से कुछ कथनों में कहा गया है कि यहां खाने से अभिप्राय ज्ञान है जो इंसान की आत्मा के लिए ज़रूरी तत्व है। उसे सोचना चाहिए कि वह ज्ञान किससे हासिल कर रहा है और ज्ञान के रूप में क्या हासिल कर रहा है। उसके ज्ञान का स्रोत कहां से है। ऐसा न हो कि उसकी आत्मा को तृप्त करने वाला ज्ञान दूषित जिससे उसकी आत्मा बीमार हो जाए और उसे तबाह कर दे।

अबस सूरे की कुछ आयतों में प्रलय का चित्रण किया गया है। इस सूरे की 34वीं आयत से आगे की आयत में ईश्वर कह रहा है कि उस दिन इंसान सिर्फ़ अपने बारे में सोचेगा। अपने भाई, मां-बाप और बीवी-बच्चों से फ़रार करेगा। उसे सिर्फ़ अपने अंजाम की फ़िक्र होगी। प्रलय का दिन इतना भयानक होगा कि इंसान अपने सगे संबंधियों को भुला देगा। उस दिन सारे संबंध टूट जाएंगे।

इस्लामी इतिहास में है कि एक दिन कुछ लोगों ने पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम से पूछा कि क्या प्रलय के दिन इंसान अपने सबसे अच्छे दोस्त को याद करेगा? पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया तीन स्थान ऐसे हैं जहां किसी को किसी की याद न आएगी। एक जब इंसान के कर्मपत्र को तौला जाएगा कि उसका कर्मपत्र भारी है या हल्का? दूसरे सिरात नामक बारीक पुल से गुज़रते समय कि उस पर से गुज़र पाएगा या नहीं? तीसरे इंसान के कर्मपत्र को उसके हवाले करते समय कि वह उसके दाहिने हाथ में मिलेगा या बाएं। यह वही स्थिति है जिसके बारे में ईश्वर ने कहा है, उस दिन हर व्यक्ति ऐसी चिंता में खोया होगा जो उसे चिंता में रखने के लिए काफ़ी होगी।   

पवित्र क़ुरआन में अबस सूरे के बाद तकवीर नामक सूरा है। यह पवित्र क़ुरआन का 81वां सूरा है। इसमें 29 आयतें हैं और यह मक्के में उतरा है।

सृष्टि के अंत के समय होने वाले महा परिवर्तन, पवित्र क़ुरआन के उच्च स्थान, इंसान के मन व आत्मा पर उसके प्रभाव, इस सूरे में वर्णित मुख्य विषय हैं। तकवीर का अर्थ लपेटना व अंधकार होना है। इस सूरे का नाम इसकी पहली आयत से लिया गया है।

इस सूरे की आरंभिक आयतों में इस संसार के अंत के समय के भयानक चिन्हों के बारे में उल्लेख है जैसे सूरज को लपेटने और सितारों के बिखरने का उल्लेख है। उस समय इंसान इतना डरा होगा कि अपने सबसे मूल्यवान माल को भूल जाएगा। उस दिन जानवार जो आम तौर पर एक दूसरे से दूर दूर रहते हैं, एक दूसरे के पास इकट्ठा हो जाएंगे मानो अपने इकट्ठा होकर अपने डर को कम करना चाहते हों।

अरब में अज्ञानता के काल की एक बहुत बुरी रीति लड़कियों को जीवित दफ़्न करके मारने की रीति थी। पवित्र क़ुरआन के व्याख्याकर्ताओं के अनुसार, उस समय जब अरब में गर्भवती महिला के बच्चा जनने का वक़्त क़रीब आ जाता था तो उसका पति एक गडढा खोद कर उसी के पास बैठ जाता। अगर शिशु लड़की होती तो उसे गड्ढे में ज़िन्दा दफ़्न कर देता था और अगर शिशु लड़का होता तो उसका पालन पोषण करता। इस अपराध का कारण अरबों में जेहालत और उस समय के जाहिल समाज में औरत का मूल्यहीन होना था। अज्ञानता के कारण अरब लड़की को अपने लिए कलंक समझता था। इसी प्रकार उस समय समाज पर छायी हुयी निर्धनता भी इसका एक कारण थी।

तकवीर सूरे की आयत नंबर 8 में इस बात का उल्लेख है कि प्रलय के दिन जीवित दफ़्न की गयी लड़की से पूछा जाएगा कि उसे किस जुर्म में क़त्ल किया गया। पवित्र क़ुरआन ने इस कृत्य को इतना घिनौना दर्शाया है कि इस मामले को अन्य मामलों से पहले पेश किया है। वास्तव में जीवित बच्ची को गड्ढे में दफ़्न करना मज़लूमियत का प्रतीक है। यह कहा जा सकता है कि हर जीव जिसे अत्याचार के ज़रिए ख़त्म किया जाए, हर योग्यता जिसके दबा दिया जाए और हर अधिकार जिसे बर्बाद कर दिया जाए, उसके बारे में पूछताछ होगी। आज के युग में भ्रूण हत्या को उस समय के अरब समाज से उपमा दी जा सकती है जब वे लड़की को जीवित दफ़्न कर देते थे।

तकवीर सूरे में 15 से 18 तक की चार आयतें महत्वपूर्ण क़सम के साथ इंसान को पवित्र क़ुरआन में छिपे रहस्यों के बारे में चिंतन करने के लिए प्रेरित करते हुए बल देती हैं, उन सितारों की क़सम जो चलते चलते पीछे हट जाते हैं और ग़ाएब हो जाते हैं।

अगर निरंतर कई रात आसमान में देखें तो पाएंगे कि आसमान में तारों का ऐसा समूह दिखाई देगा जो एक साथ उदय होता है और एक साथ डूबता है और उनके बीच आपस की दूरी में कोई भी बदलाव नहीं आता। मानो ऐसे मोती हैं जिन्हें एक कपड़े पर निर्धारित फ़ासले पर सिया गया है। सितारे आसमान में चलते हैं चूंकि हमसे बहुत दूर हैं इसलिए हम उनका चलना महसूस नहीं कर पाते।  सूरज के उदय और डूबने के समय जो हमें सितारे चलते हुए प्रतीत होते हैं उसका कारण पृथ्वी का अपने ध्रुव पर घूमना है।

आगे की आयतों में सुबह और शाम की क़सम के साथ बल दिया गया है कि यह (क़ुरआन) महान फ़रिश्ते द्वारा भेजा गया कथन है। जिबरईल नामक फ़रिश्ता ईश्वर की ओर से पैग़म्बरे के लिए पवित्र क़ुरआन लाए। यह सिर्फ़ और सिर्फ़ ईश्वर का कथन है। तो फिर पैग़म्बरे पर आरोप न मढ़ों। वह पागल नहीं हैं। उन्होंने वर्षों तुम्हारे बीच ज़िन्दगी की है। तुम्हारे बीच रहते थे। तुम्हें उनकी समझ बूझ का अंदाज़ा है। पैग़म्बरे इस्लाम से जिबरईल से ईश्वर का संदेश वही लेने में किसी प्रकार की भूल-चूक नहीं हो सकती। उन्होंने जिबरईल को रौशन क्षितिज पर देखा। तो फिर किस तरह तुम उन्हें पागल कहते हो?

 

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