Dec १५, २०१५ ११:५५ Asia/Kolkata

अनवरी अबीवर्दी ईरान के सांस्कृतिक प्रभाव वाले क्षेत्र में रहते थे।

अनवरी अबीवर्दी ईरान के सांस्कृतिक प्रभाव वाले क्षेत्र में रहते थे। हमने यह बताया था कि ऊहदुद्दीन मोहम्मद बिन अली अनवरी अबीवर्दी, छठी हिजरी क़मरी के दूसरे अर्ध के मशहूर शायरों में हैं। उन्होंने अपनी जवानी ज्ञान की प्राप्ति में बितायी। वह दर्शनशास्त्र, गणित, संगीत और खगोल शास्त्र में माहिर थे और ज्ञान की विभिन्न शाख़ाओं के शिखर तक पहुंचे। लोग उन्हें बुद्धिमान के नाम से याद करते थे।

 

अनवरी ने शिक्षा प्राप्ति के दौरान ही साहित्य और शायरी में दक्षता प्राप्त की और जवानी में ही राजा सन्जर के दरबारी शायर हो गए और तीस साल तक उनकी प्रशंसा में शेर कहते रहे। तीस साल के बाद उन्होंने दरबारी ज़िन्दगी छोड़ दी और एकांत में रहने लगे यहां तक कि छठी हिजरी क़मरी के अंतिम वर्षों में इस संसार से चल बसे। उनका बल्ख़ में देहान्त हुआ और उन्हें राजा अहमद ख़ज़रविये के मक़बरे में दफ़्न किया गया।

अनवरी के दौर में शायरी में क़सीदा सबसे ज़्यादा प्रचलित शैली थी क्योंकि इसके ज़रिए से शायरों की भौतिक ज़रूरतें पूरी होती थीं। क़सीदे के ज़रिए ही शायर अपने समय के राजाओं और बड़ी हस्तियों के निकट होते थे।

 

 

अनवरी के दीवान में 14700 पद हैं। यह पद क़सीदे, ग़ज़ल और चौपायी के हैं। फ़ारसी साहित्य व भाषा के उस्ताद व समकालीन शोधकर्ता डाक्टर शफ़ीई कद्कनी का मानना है, “अनवरी के शेर पढ़ने से उनके आंतरिक विरोधाभास को समझा जा सकता है। इस दीवान में एक ओर त्याग तो दूसरी ओर धन संपत्ति जमा करने की भी बात की है। कभी बुद्धि की तारीफ़ की है तो कभी बुद्धि की बुराई करते नज़र आते हैं। कहीं शायरी की तारीफ़ करते हैं तो कहीं इससे नफ़रत करते नज़र आते हैं।” अनवरी ने तारीफ़, बुराई, नसीहत, रूपक अलंकार और सामाजिक समालोचना पर आधारित शेर कहे हैं।

अनवरी के बारे में डाक्टर जाफ़र महजूब का कहना है, “सादी से पहले फ़ारसी में ग़ज़ल कहने वाले महाकवि हैं। उन्होंने ग़ज़ल को चरम पर पहुंचाया और वह पहले शायर हैं जिनकी ग़ज़लें उनके दीवान की शोभा बनीं।” वह प्रेम मोहब्बत पर आधारित शायरी के साथ तत्वदर्शिता पर आधारित भी शेर कहते थे बल्कि वे इस प्रकार के अपने शेर को बेहतर समझते थे।

 

 

 

फ़ारसी साहित्य व भाषा के उस्ताद व समकालीन शोधकर्ता डाक्टर अस्ग़र दादबे का मानना है, “अनवरी हालांकि अफ़लातून की तरह शायर हैं लेकिन अफ़लातून ही की तरह शायरों को अपने आदर्श लोक से भगाते हैं।” अनवरी ने दर्शनशास्त्र से बहुत लगाव के कारण अपने शेरों में शायरी के स्रोत का उल्लेख किया है। अनवरी की निगाह में कला का स्रोत, कलाकार में कला की भावना है। अनवरी ने उन बातों को वर्गीकृत किया है जो उनकी शायरी का आधार बनी हैं। उसके बाद तारीफ़, बुराई और ग़ज़ल को क्रमशः लालच, ग़ुस्सा और वासना जैसी प्राकृतिक भावना का नतीजा कहा है। उन्होंने वास्तविकता पर आधारित शेरों के बारे में कुछ कहे बिना, असत्य पर आधारित शेरों की विशेषताओं को गिनाया और तारीफ़ को उसी का भाग कहा है। अनवरी का मानना था कि सच्चा शायर अपने शेर की विषय वस्तु को दूसरों से नहीं लेता बल्कि उसके शेर उसके विचार की देन होते हैं।

         

फ़ारसी शेरों की शैली के विशेषज्ञों का मानना है कि अनवरी की शायरी की शैली, ख़ुरासानी और इराक़ी शैली के बीच माध्यम है।

मोहम्मद जाफ़र महबूब का मानना है कि अनवरी ने अबुल फ़रज रूनी की शायरी की शैली को आगे बढ़ाते हुए इराक़ी शैली के प्रकट होने का मार्ग प्रशस्त किया है।

शायरी में अनवरी की शैली की ज़बान, कल्पना और विषय-वस्तु की दृष्टि से समीक्षा की जा सकती है। अनवरी की शैली की सबसे बड़ी विशेषता, शेर और साहित्य ख़ास तौर पर ग़ज़ल की ज़बान के साथ मुहावरे की ज़बान का इस्तेमाल है।

 

 

समकालीन शोधकर्ता दिवंगत फ़ुरूज़ानफ़र का कहना है कि यह शैली एक सदी तक परिपूर्णतः का मार्ग तय करते हुए सादी शीराज़ी की ज़बान से सबसे अच्छे ढंग से सामने आयी है।

डाक्टर शफ़ीई कद्कनी का मानना है, “अनवरी की शैली फ़ारसी भाषा की सबसे स्वाभाविक शैली है। उनकी ज़बान में अनावश्यक शब्दों का कोई स्थान नहीं है। यह चीज़ क़सीदे जैसे शायरी के आधिकारिक क्षेत्र और चौपाइयों तथा ग़ज़लों जैसे स्वाभाविक क्षेत्र में भी दिखाई देती है।”

अनवरी की शैली की एक अहम विशेषता यह भी है कि वे नई नई उपमाओं और रूपक अलंकार बहुत अच्छे ढंग से पेश करते हैं और इनकी मदद से अछूते अर्थ पेश करते हैं। वह सघन वर्णन करते हैं और यही चीज़ उनकी शायरी को ख़ूबसूरत बनाती है। अनवरी की शायरी में चित्रण, उनके समकालीन और उनके पहले के शायरों की तुलना में ताज़ा दिखाई देता है। क्योंकि उन्होंने काल्पनिक तत्वों की नज़र से अपने पहले के शायरों का अनुसरण किया है और उसे नए ढंग से पेश किया है। इसी प्रकार उन्होंने अपनी शायरी में चित्रण के लिए तत्कालीन ज्ञान से भी फ़ायदा उठाया है। यही कारण है कि अनवरी के शेर को समझने के लिए उनके दौर की विज्ञान की शाखाओं का ज्ञान रखना बहुत ज़रूरी है।

 

 

मिसाल के ज़रिए बात को पेश करना, अनवरी की शैली की एक और विशेषता है। उनकी यह विशेषता इतनी स्वाभाविक है कि उनके बहुत से शेर पूरी तरह मुहावरे के स्वरूप में कहे गए हैं।

 

समकालीन शोधकर्ता व यूनिवर्सिटी के शिक्षक डाक्टर सीरूस शमीसा का मानना है, “नई विषयवस्तु, पवित्र क़ुरआन की आयतों, पैग़म्बरे इस्लाम के कथनों, संकेतों यहां तक कि आम बातों से नए नए अर्थ निकालना, अनवरी की शैली की स्पष्ट विशेषता है।”

पहले की समीक्षाओं में अनवरी को फ़िरदोसी और नेज़ामी के साथ फ़ारसी शायरी के तीन दूत में गिने जाते हैं। उनकी जीवनी लिखने वालों में हर एक ने उनकी तारीफ़ की है और उनकी कला के किसी न किसी पहलु का उल्लेख किया है। अनवरी ने अपनी शायरी की समीक्षा में अपनी शायरी की मौलिकता, ज़बान, विचार, बुद्धि और स्वभाव की दृष्टि से तारीफ़ की है और सनाई और अदीब साबिर जैसे शायरों से अपनी तुलना करते हुए ख़ुद को शायरी की दृष्टि से जादूगर कहा है।

समीक्षा के नए दृष्टिकोण में अनवरी को फ़ारसी साहित्य के तीन या पांच बड़े महाकवियों की पंक्ति से ख़ारिज कर दिया गया है। लेकिन इसके साथ ही सभी नए समीक्षकों ने इस बात को माना है कि अनवरी की ज़बान पाक, सादगी से भरी और हर प्रकार के अनावश्यक शब्दों से ख़ाली है।

 

 

डाक्टर शफ़ीई कद्कनी का मानना है, “ अनवरी की क़सीदा कहने और शब्दों के चयन में दक्षता इस सीमा तक है कि उनके क़सीदों में किसी अनुचित शब्द को बहुत मुश्किल से निकाला जा सकता है। उन्होंने अपने ज़्यादातर क़सीदों में वाक्पटुता की नई शैली को पेश किया है।”

बहुत से समकालीन समीक्षकों का मानना है कि अनवरी अपने समय के महाकवी, फ़ारसी शायरी के स्तंभ और ना ना प्रकार के अर्थ पेश करने में बहुत दक्ष हैं। इन समीक्षकों की नज़र में अनवरी कटाक्ष और खिंचाई से भरी शायरी में पूरी तरह उस्ताद हैं। अनवरी एक माहिर चित्रकार हैं जिन्होंने अपने दीवान में अपने दौर की बुराइयों का चित्रण किया है।

अनवरी ने अपने दीवान में, न्यायधीशों, शासकों, तुर्कों और ग़ज़नवियों के विभिन्न वर्गों की बिला झिझक खिंचाई की है और अपने खिंचाई भरे शेरों से सबको घायल किया है।

 

 

अनवरी ने अपने धार-दार शेरों से अपने समाज की सभी समस्याओं से पर्दा उठाया है। इस प्रकार के उनके शेर, उन कमज़ोर लोगों की आवाज़ हैं जो राजाओं और शासकों के अत्याचार और भ्रष्टाचार के कारण बुरी तरह दबे हुए हैं।

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