Sep २५, २०१६ १६:४६ Asia/Kolkata

ग्यारह दिसम्बर 1946 को राष्ट्र संघ की आर्थिक व सामाजिक परिषद की सिफ़ारिश पर और संयुक्त राष्ट्र महासभा के अनुमोदन पर दूसरे विश्व युद्ध में तबाह हो जाने वाले देशों में बच्चों को आपात स्थिति में आहार और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र संघ बाल कोष या यूनिसेफ़ का गठन किया गया।

अक्तूबर 1953 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने इस संगठन को राष्ट्र संघ के एक स्थायी संगठन के रूप में स्वीकार किया और इसका नाम संयुक्त राष्ट्र संघ बाल आपात कोष से वर्तमान नाम में परिवर्तित कर दिया। यूनिसेफ़ की गतिविधियां मुख्य रूप से विकासशील देशों में बच्चों की सहायता पर केंद्रित हैं। इसका मुख्यालय न्यूयार्क में है और इसका संचालन सरकारों, निजी क्षेत्रों और लोगों की आर्थिक सहायता से होता है।

यूनिसेफ़, अन्य किसी भी संगठन से अधिक पूरे संसार के बच्चों के बारे में सूचनाएं व आंकड़े एकत्रित करता है, इस संबंध में अनुसंधान करता है और बच्चों के स्वास्थ्य और उनके जीवन क्षेत्रों के विभिन्न आयामों पर ध्यान केंद्रित करता है। यह संगठन इसी तरह पूरी दुनिया में आर्थिक दृष्टि से ज़रूरतमंद बच्चों को दी जाने वाली सहायता को उन तक पहुंचाने का काम भी करता है। इस समय यूनिसेफ़ पांच मूल प्राथमिकताओं को दृष्टिगत रखे हुए है। बच्चों के जीवन की रक्षा व परवरिश, बच्चों विशेष कर लड़कियों की बुनियादी शिक्षा, हिंसा, उत्पीड़न से बचाव, एड्ज़ से बच्चों की रक्षा और बच्चों के अधिकारों का समर्थन।

यूनिसेफ़ ने ईरान में अपनी गतिविधियां वर्ष 1963 में बच्चों के स्वास्थ्य और खाद्य स्थिति को बेहतर बनाने के लक्ष्य के साथ शुरू की। धीरे-धीरे उसकी गतिविधियों का दायरा बढ़ता गया और उसमें लड़कियों की शिक्षा, समाज में सक्रियता के लिए महिलाओं का सशक्तिकरण, लोगों को एड्ज़ से जागरूक बनाना और बाल अधिकारों के समर्थक क़ानूनों का प्रचलन भी शामिल हो गया। इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद इस्लामी गणतंत्र ईरान वर्ष 1984 में बाल अधिकार संधि से जुड़ गया और इस देश के साथ यूनिसेफ़ का सहयोग फिर से शुरू हो गया। यूनिसेफ़ ईरान में सरकार के साथ सहयोग के एक समझौते के अंतर्गत काम कर रहा है और यह समझौता एक पांच वर्षीय कार्यक्रम के अंतर्गत है जो वर्ष 2012 में शुरू हो कर 2016 में समाप्त होगा और फिर पांच साल के लिए उसकी अवधि में विस्तार किया जाएगा। यह कार्यक्रम देश में बच्चों को हर प्रकार की सुविधाएं प्रदान करने, दरिद्रता में कमी और युवाओं व किशोरों के लिए रोज़गार सृजन के उद्देश्य से तैयार किया गया है।

इस्लामी गणतंत्र ईरान, यूनिसेफ़ के उन सदस्यों में से है जो बाल अधिकार की अंतर्राष्ट्रीय संधि को स्वीकार करके इस कोष से जुड़े हैं। ईरान ने जब इस संधि को स्वीकार किया था तो एक शर्त रखी थी कि एक अधिकार वह अपने लिए सुरक्षित रखेगा। इस अधिकार के अंतर्गत ईरान को इस बात की अनुमति प्राप्त होगी कि वह संधि के हर उस अनुच्छेद को लागू नहीं करेगा जो इस्लामी शिक्षाओं के ख़िलाफ़ होगा। अलबत्ता इस बात पर ध्यान रहना चाहिए कि इस्लाम धर्म, बच्चे को भी एक संपूर्ण मनुष्य की तरह अधिकार देता है और उसे प्रतिष्ठित मानता है। बाल अधिकार संधि का भी लगभग यही लक्ष्य है और इसके कुछ अनुच्छेदों का जो भिन्न प्रकार से वर्णन किया जाता है उसका अर्थ इस्लाम से उसका विरोधाभासी होना नहीं है।

बाल अधिकार की अंतर्राष्ट्रीय संधि वास्त्व में यूनिसेफ़ के क्रियाकलाप की मार्गदर्शक है ताकि बाल अधिकारों को एक स्थायी नैतिक सिद्धांत के रूप में पेश करके बच्चों के साथ व्यवहार के अंतर्राष्ट्रीय मानकों की आधारशिला रखी जा सके। यूनिसेफ़ इस संधि के आधार पर इस बात के लिए कटिबद्ध है कि युद्ध, प्राकृतिक आपदाओं और दरिद्रता तथा भेदभाव, हिंसा और अत्याचार के मारे सबसे वंचित बच्चों का विशेष रूप से समर्थन करे और जिन देशों में बाल अधिकारों का हनन हो रहा उनके बारे में दुनिया को बताए। यूनिसेफ़ इसी तरह उन बच्चों के बारे में भी जो युद्ध में मारे जाते हैं या बेघर हो जाते हैं, प्रभावी रूप से प्रयास करता है और संघर्षरत पक्षों को बच्चों के अधिकारों के पालन की सिफ़ारिश करता है।

उदाहरण के तौर पर यूनिसेफ़ ने मार्च 2015 में यमन पर सऊदी अरब के हमले शुरू होने के बाद से कई बार इन हमलों में हज़ारों यमनी बच्चों के मारे जाने की पुष्टि की है। यहां तक कि इस संस्था के एक अधिकारी ने कहा है कि यमन के बच्चों को गोलाबारी और बमबारी की भारी क़ीमत चुकानी पड़ रही है। यूनिसेफ़ की ओर से इस प्रकार के बयान सामने आने के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ, सऊदी अरब और यमन युद्ध में उसके घटकों को, बाल अधिकारों के हननकर्ताओं की काली सूचि में शामिल करने पर मजबूर हो गया। अलबत्ता सऊदी अरब के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र संघ की यह कार्यवाही अधिक दिनों तक जारी नहीं रह सकी और रियाज़ की आपत्ति तथा अमरीका सहित उसके पश्चिमी घटक देशों की ओर से दबाव डाले जाने के कारण, राष्ट्र संघ ने उक्त सूचि से सऊदी अरब और उसके घटकों का नाम निकाल दिया।

इस घटना के बाद मानवाधिकार के बीस संगठनों ने यमन में सऊदी गठजोड़ के हाथों बच्चों के जनसंहार के अनेक प्रमाणों की ओर संकेत करते हुए राष्ट्र संघ के महासचिव बान की मून से मांग की है कि वे सऊदी अरब के नेतृत्व वाले गठजोड़ का नाम बच्चों के अधिकारों का हनन करने वालों की ब्लैक लिस्ट में पुनः शामिल करें। इसी परिप्रेक्ष्य में ब्रिटेन की एक मानवाधिकार संस्था के महानिदेशक विलियम्ज़ ने गार्डियन समाचार पत्र में अपने एक लेख में लिखा है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने बच्चों के अधिकारों का हनन करने वालों की ब्लैक लिस्ट से सऊदी अरब का नाम हटा कर आले सऊद को यमन के स्कूलों और अस्पतालों पर बमबारी की छूट प्रदान कर दी है। उनके अनुसार सऊदी सरकार के अमरीका व ब्रिटेन जैसे मज़बूत दोस्त हैं और दोनों ही सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य हैं। वे इसी प्रकार यूनिसेफ़ सहित राष्ट्र संघ के विभिन्न संगठनों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता के कारण, इन संगठनों पर दबाव डाल सकते हैं।

इस बीच संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बान की मून ने, जिन्हें अपने इस फ़ैसले के बाद अत्यधिक आलोचना का सामना करना पड़ा, एक बयान जारी करके अपने इस फ़ैसले का बचाव किया और कहा कि सऊदी अरब की आर्थिक धमकी और सुरक्षा परिषद की ओर से सहयोग न मिलने के कारण उन्हें यह फ़ैसला करना पड़ा। मून ने कहा कि उन्होंने अब तक जितने भी फ़ैसले किए हैं उनमें यह सबसे पीड़ादायक फ़ैसला था लेकिन यह ख़तरा मौजूद था कि अगर संयुक्त राष्ट्र संघ का बजट बंद कर दिया जाता तो फ़िलस्तीन, दक्षिणी सूडान, सीरिया, यमन और अन्य क्षेत्रों में दसियों लाख बच्चे प्रभावित हो जाते। उन्होंने बच्चों के अधिकारों का हनन करने वालों की ब्लैक लिस्ट से सऊदी अरब के नेतृत्व वाले अरब गठजोड़ का नाम हटाने के लिए सऊदी अरब की ओर से डाले जाने वाले दबाव की आलोचना की।

अलबत्ता कुछ अन्य क्षेत्रों में भी यूनिसेफ़ का क्रियाकलाप विभिन्न संस्थाओं और गुटों के हिसाब से स्वीकार्य नहीं है। उदाहरण स्वरूप अफ़्रीक़ा सहित संसार के विभिन्न क्षेत्रों में बच्चों की मृत्यु दर को कम करने में विफलता के कारण यूनिसेफ़ की काफ़ी आलोचना हुई है। यह ऐसी स्थिति में है कि विशेषज्ञों के अनुसार इनमें से साठ प्रतिशत मौतों को रोका जा सकता था। कहा जाता है कि 42 देशों में यूनिसेफ़ की ओर से सहायता बांटने की शैली उचित नहीं रही है। इन्हीं देशों में बच्चों की मौत के आंकड़े 90 प्रतिशत के क़रीब हैं। कुछ समय पहले कैथोलिक चर्च और अभिभावकों के गुटों ने एलसेल्वाडोर के बच्चों को यौन शिक्षा देने के कारण यूनिसेफ़ की आलोचना की थी और विकासशील देशों में उसके क्रियाकलाप और औचित्य पर प्रश्न चिन्ह लगाया था।

यूनिसेफ़ पर जिन अन्य बातों के लिए आपत्तियां की जाती हैं उनमें सूडान में दास प्रथा को रोकने में विफलता और विकासशील देशों के अस्पतालों में मां के दूध के स्थान पर पूरक आहारों के प्रयोग के प्रचार की ओर संकेत किया जा सकता है। अलबत्ता इस बात पर ध्यान रहना चाहिए कि इस अंतर्राष्ट्रीय संगठन पर सबसे अधिक आपत्ति, वैश्विक वर्चस्ववादियों पर इसकी निर्भरता को लेकर होती है जिसने बच्चों के समर्थक इस संगठन के लाभदायक व प्रभावी कार्यक्रमों को प्रभावित कर रखा है।

 

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