Mar ०२, २०१६ १६:३८ Asia/Kolkata

जैसा कि आप जानते हैं कि समाज के लोकप्रिय व प्रतिष्ठित लोगों विशेषकर धार्मिक लोगों के दृष्टिकोणों की समीक्षा बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण और संवेदनशील है।

जैसा कि आप जानते हैं कि समाज के लोकप्रिय व प्रतिष्ठित लोगों विशेषकर धार्मिक लोगों के दृष्टिकोणों की समीक्षा बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण और संवेदनशील है। स्वभाविक रूप से इस्लामी समाज में धार्मिक महापुरुषों के वैचारिक व व्यवहारिक रवैये बहुत अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। मुसलमानों की दृष्टि में पैग़म्बरे इस्लाम दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित व सबसे प्रिय इंसान हैं जो लोगों तक ईश्वरीय संदेश पहुंचने का माध्यम हैं। इस प्रकार से पैग़म्बरे इस्लाम के दृष्टिकोणों की समीक्षा विशेषकर युवाओं के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। पिछले कार्यक्रम में हमने बताया था कि इस्लाम ने अपनी सर्वोच्च शिक्षाओं में युवाओं को विशेष महत्व दिया है और जवानी के इस काल को परिपूर्णता तक पहुंचने का साधन मानता है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने भी जो मानवता के लिए आदर्श थे, युवाओं और युवा पीढ़ी पर ध्यान देने के लिए सदैव बल देते हैं।

 

 

 

पवित्र क़ुरआन के अनुसार पैग़म्बरे इस्लाम (स) ईश्वर के बंदों में शिष्टाचार और नैतिकता में सबसे आगे थे। इसीलिए वह लोगों के व्यक्तित्व के निर्माण में जवानों की भूमिका और उसके प्रभाव पर सदैव बल देते थे। पैग़म्बरे इस्लाम लोगों को अच्छा व्यवहार करने तथा और युवाओं की केन्द्रीय भूमिका की सिफ़ारिश करते थे और कहते थे कि मैं तुम्हें सिफ़ारिश करता हूं कि युवाओं के साथ भलाई और अच्छाई से बर्ताव करें क्योंकि उनके दिल बहुत अधिक नाज़ुक होते हैं। आशा, साहस, पालन पोषण और आत्मविश्वास का आभास, पैग़म्बरे इस्लाम की अमर शिक्षाओं के भाग हैं जो युवाओं को संबोधित करते हुए वह प्रयोग करते थे।

पैग़म्बरे इस्लाम सदैव युवाओं पर विशेष दृष्टि रखते थे। वे युवाओं के बारे में अपनी विभिन्न सिफ़ारिशों में युवाओं के प्रशिक्षण और उनको अधिकार दिलवाने पर बहुत अधिक बल देते थे। शायद यह कहा जा सकता है कि मनुष्य के लिए सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण अधिकार उसका सही और स्वच्छ प्रशिक्षण है। पैग़म्बरे इस्लाम के कथन में आया है कि कोई भी पिता अपनी संतान के लिए अच्छे संस्कार से मूल्यवान कोई भी चीज़ विरासत में नहीं छोड़ता। युवा का दिल वास्तविकता को स्वीकार करने को तैयार रहता है और यदि सही और अच्छा प्रशिक्षण हो तो उसके द्वारा वह वास्तविक कल्याण प्राप्त कर सकता है। पैग़म्बरे इस्लाम एक अन्य स्थान पर कहते हैं कि मैं आप लोगों को किशोरों और युवाओं के बारे में भलाई की सिफ़ारिश करता हूं कि उनका दिल बहुत नर्म और गुणों को स्वीकार करने वाला होता है। ईश्वर ने मुझे ईश्वरीय दूत बनाया ताकि मैं लोगों को ईश्वर की दया की शुभ सूचना दूं और उसके पापों से दूर रखूं। युवाओं ने मेरी बातें स्वीकार की और मुझसे प्रेम पर प्रतिबद्ध हुए।

 

हर देश का भविष्य उस देश के युवाओं के हाथ में होता है अर्थात देश का भविष्य युवा बनाते हैं। इस बात के लिए देश में संचालन की शक्ति हो तो इसके लिए यह करना होगा कि उस जगह के युवाओं और स्थानीय जनशक्ति को ज़िम्मेदारी दे दी जाए ताकि वह अपनी शक्ति से ऐसे लोगों को सामने लाएं जो देश का भविष्य उज्जवल कर सकें। यह काम युवा से बेहतर ढंग से कोई नहीं कर सकता। पैग़म्बरे इस्लाम जिन पर समाज के प्रबंधन की बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी थी, इस विषय को बहुत अधिक महत्व देते थे। उदाहरण स्वरूप उन्होंने मुसलमानों की सेना के सेनापति का संवेदनशील पद, ओसामा बिन ज़ैद नामक 18 वर्षीय युवा को सौंपा। यद्यपि कुछ लोगों के लिए यह नियुक्ति बहुत ही अप्रत्याशित थी किन्तु पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने भाषण में ओसामा बिन ज़ैद का समर्थन किया और उनकी योग्यता, ईमान, ज्ञान, शिष्टाचार, ईश्वरीय भय और साहस को बयान किया और योग्य युवाओं को महा पदों के योग्य बताया।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई पैग़म्बरे इस्लाम द्वारा युवाओं को ज़िम्मेदारियां सौंपे जाने के बारे में कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम ने अपनी आयु के एक संवेदनशील चरण में एक बड़ी ज़िम्मेदारी, एक 18 वर्षीय युवा के हवाले की। युद्धों में स्वयं पैग़म्बरे इस्लाम ही सेनापति हुआ करते थे किन्तु अपने जीवन के अंतिम क्षणों में जब उन्हें यह विश्वास था कि वह दुनिया से जाने वाले हैं, रोम साम्राज्य पर सैन्य चढ़ाई में स्वयं की उपस्थिति को असंभव जानते थे, क्योंकि यह बहुत बड़ा और कठिन काम था, इस काम के लिए सेना का चयन आवश्यक था ताकि रास्ते में कोई रुकावट पैदा न हो। यह ज़िम्मेदारी एक 18 वर्षीय युवा के हवाले की गयी। पैग़म्बरे इस्लाम अपने साथियों में से किसी पचास, साठ साल के किसी युद्ध के अनुभवी व्यक्ति को चुन सकते थे किन्तु उन्होंने एक 18 वर्षीय युवक को चुना और वह ओसामा बिन ज़ैद थे। पैग़म्बरे इस्लाम ने उनके ईमान और शहीद की संतान होने के अतीत से लाभ उठाया। उन्होंने ओसामा बिन ज़ैद को उस स्थान पर भेजा जहां पर दो साल पहले उनके पिता ज़ैद बिन हारेसा शहीद हुए थे। पैग़म्बरे इस्लाम ने इस युवा को मुस्लमानों की सेना का सेनापति बनाया, जबकि सेना में बहुत ही पुराने साथी और अनुभवी सिपाही शामिल थे। अर्थात एक उभरती उम्र के लड़के के नेतृत्व में अनुभवी सैनिकों और वरिष्ठ सैनिकों को भेजा। पैग़म्बरे इस्लाम ने उनसे कहा कि जब उस स्थान पर पहुंचना जहां तुम्हारे पिता जी शहीद हुए अर्थात मौता नामक वह स्थान जो रोम साम्राज्य का केन्द्र था, वहां पर तंबू लगाना और उसके बाद उन्हगें युद्ध के आदेश दिए। पैग़म्बरे इस्लाम की दृष्टि में, युवा सैनिक इतने अधिक महत्वपूर्ण हैं।

 

वे ईरान में इस बात की ओर संकेत करते हुए इस शक्तिशाली ऊर्जा के प्रयोग और क्षमताओं के प्रयोग पर बल देते हैं और कहते हैं कि आज हमारे देश में बहुत अधिक ओसामा बिन ज़ैद हैं, हमारे पास बहुत अधिक युवा हैं, इनमें बड़ी संख्या में महान युवक और युवतियां हैं जो हर मैदान में उपस्थित होने के तैयार हैं, शिक्षा के क्षेत्र में, राजनैतिक के मैदान में, सामाजिक गतिविधियों के क्षेत्र में, निर्धनता उन्मूलन और निर्माण के लिए विभिन्न मैदानों में उपस्थिति, हर क्षेत्र में, हर मैदान जो उनके लिए बनाया जाएगा और उन्हें मौक़ा दिया जाएगा, उपस्थित होंगे।

 

 

पैग़म्बरे इस्लाम, इस्लाम धर्म पहुंचाने और ईश्वरीय शिक्षाएं पहुंचाने के लिए भेजे गये थे। इस बात के दृष्टिगत कि समस्त मनुष्य विशेषकर मुसलमान पूरी स्वतंत्रता और चेतना के साथ अपना धर्म चुनें, सलाह देते हुए कहते हैं कि युवा काल में धर्म की महत्वपूर्ण बातें मुस्लिम को सिखाई जानी चाहिए ताकि वह धर्म के बारे में उचित जानकारी न रखने के कारण पथभ्रष्ट न हो जाए। पवित्र क़ुरआन उन विषयों में से एक है जिसको पढ़ाये जाने के लिए युवाओं पर बल देते हैं। वे कहते हैं कि अपनी संतानों को क़ुरआन सिखाओ क्योंकि यह ईश्वरीय ज्ञान में सबसे शालीन शिक्षा है।

 

पैग़म्बरे इस्लाम ने अपनी पैग़म्बरी के काल में चाहे मक्के में हो या मदीने में, बल्कि उन्होंने अपने पूरे जीवन में, युवावर्ग के साथ एक विशेष संबंध रखा यहां तक कि वह कुछ ग़ैर मुस्लिम युवाओं पर विशेष रूप से ध्यान देते थे, इस प्रकार से उन्होंने उनके दिलों को इस्लाम की ओर मोड़ दिया, कभी कभी जब उनमें से कुछ को नहीं देखते थे तो उनको तलाश करने जाते थे।

 

बताया जाता है कि एक यहूदी युवक था जो सदैव पैग़म्बरे इस्लाम के पास आता जाता था। उसके और पैग़म्बरे इस्लाम के मध्य इतने घने संबंध हो गये कि पैग़म्बरे इस्लाम उसे आस पास संदेश पहुंचाने के लिए भेजते थे। पैग़म्बरे इस्लाम ने उसे कुछ दिन नहीं देखा, अपने साथियों से उसके बारे में पूछा, किसी ने कहा कि वह मृत्युशय्या पर है। मानो उसका दुनिया में आज अंतिम दिन और परलोक में पहला दिन है। पैग़म्बरे इस्लाम अपने कुछ साथियों के साथ उसके घर गये और उसे घर में बेहोश पाया। पैग़म्बरे इस्लाम ने उसे आवाज़ दी , यहूदी युवक ने अपनी आंखें खोलीं और कहा मैं उपस्थित हूं या अबल कासिम। पैग़म्बरे इस्लाम ने उससे कहा कि ईश्वर के एक होने और मेरे उसके पैग़म्बर होने की गवाही दो, उस युवा ने पास खड़े अपने पिता की ओर देखा, और अपने यहूदी पिता के सम्मान में कुछ भी नहीं कहा। पैग़म्बरे इस्लाम ने दूसरी बार उससे यही कहा, फिर उसने अपने पिता की ओर देखा और कुछ भी नहीं कहा। पैग़म्बरे इस्लाम ने तीसरी बार से उससे वही कुछ कहा। पास खड़े उसके पिता ने उससे कहा कि मेरे बेटे, मेरा ख़याल न करो, तुम्हारे पास चयन का अधिकार है। जो चाहो कहो, इसी मध्य युवा ने कहा, मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के अलावा कोई ईश्वर नहीं है और मैं गवाही देता हूं कि आप अल्लाह के पैग़म्बर हैं। उसके बाद उसका निधन हो गया। पैग़म्बरे इस्लाम ने इस ताज़ा मुसलमान युवक की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और उसको दफ़्न करने के बाद अपने घर लौटे और रास्ते में कह रहे थे कि ईश्वर का आभार कि आज मेरी वजह से एक मनुष्य नरक की आग से मुक्ति पा गया।

 

 

 

पैग़म्बरे इस्लाम अपने काल के एक युवा को सिफ़ारिश करते हुए कहते हैं कि हे युवा, तुझे कुछ बातें सिखाता हूं। ईश्वर के अधिकार का ध्यान रखो ताकि ईश्वर भी तुम्हारी रक्षा करे। अपने पालनहार के अधिकारों को बजा लाओ और उससे फ़रार होने का प्रयास न करो, जब भी सहायता मांगों, ईश्वर से सहायता मांगो, यदि पूरी मानव जाति एकत्रित होकर तुम्हें नुक़सान पहुंचाना चाहे तो वह तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता, किन्तु ईश्वर ने जो कुछ तुम्हारे लिए निर्धारित किया है, यदि सब एकत्रित हो जाएं, तुम्हारा कुछ ही नहीं बिगाड़ सकते, किन्तु जो कुछ ईश्वर ने तुम्हारे लिए निर्धारित किया है। (AK)   

टैग्स