Apr १८, २०१६ १५:३५ Asia/Kolkata

जैसा कि आपने सुना कि वरिष्ठ नेता जवानी के दौर और जवानों के व्यक्तित्व को बहुत महत्व देते हैं।

 वह न सिर्फ़ ईरान की जवान नस्ल बल्कि पूरी दुनिया के जवानों के संबंध में चिंतित रहते हैं और उन्होंने हमेशा जवानों के सही मार्गदर्शन की कोशिश की है।

वरिष्ठ नेता का यूरोपीय और उत्तरी अमरीका के जवानों के नाम 22 जनवरी 2015 का ख़त उनकी वेबसाइट पर 4 भाषाओं में प्रकाशित हुआ जिसमें पश्चिमी जवानों को सत्य और इस्लाम को सीधे तौर पर समझने की अपील की। इसी प्रकार उन्होंने 30 नवंबर 2015 को पश्चिमी जवानों को एक और ख़त लिखा। ऐसा ख़त जिसमें पिछले वाले ख़त की तरह पश्चिमी जवानों को सत्य तथा उज्जवल भविष्य के निर्माण के बारे में विचार विमर्श का आह्वान किया गया है।

जवानों की एक विशेषता उनमें जिज्ञासा की भावना है। अर्थात उनमें सत्य, भविष्य, अच्छाई और बुराई, सही व ग़लत मार्ग को समझने की जिज्ञासा रहती है।

पहले वाले ख़त में वरिष्ठ नेता ने पश्चिमी जवानों से अपील की कि वे पिछले दो दशक के दौरान इस्लाम के ख़िलाफ़ व्यापक दुष्प्रचार के पीछे छिपी मंशा को समझने की कोशिश करें और दूसरे इस्लाम को सीधे तौर पर बिना किसी माध्यम के ख़ुद से समझें। इसी प्रकार उन्होंने पश्चिमी युवाओं से कहा कि वे झूठी सीमाओं में ख़ुद को सीमित होने से बचाएं।

 

वास्तव में आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने जवानों और इस दौर की विशेषताओं की पर्याप्त पहचान के मद्देनज़र उनसे जिज्ञासा की अपील की क्योंकि सत्य को पाने की कोशिश जवानों की मुख्य विशेषताओं में है। वरिष्ठ नेता का दूसरा ख़त भी पहले वाले ख़त की तरह पेरिस की आतंकवादी घटना के लगभग दो हफ़्ते बाद प्रकाशित हुआ। इस ख़त में सबसे पहले उन्होंने पेरिस घटना पर दुख व्यक्त करते हुए आतंकवाद के विषय पर चर्चा की। इसी प्रकार उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय घटनाओं के संबंध में पश्चिमी राजनेताओं के विरोधाभासी व्यवहार का भी उल्लेख किया और एक सूचि भी पश्चिमी जवानों तक पहुंचायी जिसमें पश्चिमी समाज की समस्याओं, ज़रूरतों और मामलों का उल्लेख था।

अमीरुल मोमनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने बेटे इमाम हसन अलैहिस्सलाम के लिए पिछली पीढ़ी के अनुभव को मूल्यवान बताते हुए भी जिज्ञासा की भावना को नहीं दबाते बल्कि जिज्ञासा पर आगे बढ़ने के लिए कुछ शर्तों का उल्लखे करते हैं जो जवान के लक्ष्य तक पहुंचने में मदद करती है।

आप फ़रमाते हैं, “मेरे जवान बेटे! जान लो कि मेरी अनुशंसाओं में जिस बात पर अमल करने के लिए मैं तुम्हें सबसे ज़्यादा बल देता हूं वह तीन चीज़े हैं, ईश्वर से डर, ईश्वर की ओर से अनिवार्य किए गए दायित्वों को पर्याप्त समझना और उस मार्ग का चयन करना जिसे तुम्हारे ख़ानदान के सदाचारी पूर्वजों ने चुना है।” हज़रत अली अलैहिस्सलाम आगे कहते हैं, “पूर्वजेने अपनी मुक्ति व कल्याण के बारे में सोच विचार किया था।

मार्ग पर चले, आत्मज्ञान हासिल किया और जो उन पर अनिवार्य था उस पर अमल किया। अगर पूर्वजों की शैली पसंद न हो तो अपनी जिज्ञासा का लक्ष्य समझ व ज्ञान अर्जित करना क़रार देना न कि भ्रान्तियों में फांद पड़ना।” हज़रत अली अलैहिस्सलाम आगे कहते हैं, “अपनी जिज्ञासा पर आगे बढ़ने से पहले ईश्वर से मदद की दुआ मांगो क्योंकि इसका मार्ग दुर्गम व ख़तरनाक है।”

जवान समाज के लिए निर्णायक पीढ़ी की हैसियत रखते हैं और उनके मन चूंकि पाक होते हैं इसलिए उनके लिए सत्य को क़ुबूल करना अपेक्षाकृत आसान होता है। वे भलिभांति समीक्षा व सही निर्णय कर सकते हैं।

 वरिष्ठ नेता ने ख़त के ज़रिए जवानों को संबोधित करने के पीछे कारण, उनकी इसी विशेषता को बताया और अपने दूसरे ख़त के लिखने का कारण यूं बयान करते हैं, “ इसलिए कि आपके राष्ट्र व देश का भविष्य आपके हाथ मे देख रहा हूं और आपके मन में सत्य को पाने की जिज्ञासा को अधिक जागृत पाता हूं।” किन्तु “आपके राजनेताओं व सत्ताधारियों को संबोधित नहीं कर रहा हूं चूंकि मेरा मानना है कि उन्होंने जानबूझ कर राजनीति को सत्य के मार्ग से अलग कर दिया।” वास्तव में वरिष्ठ नेता ने नैतिकता व सत्य को पाने की जिज्ञासा जैसी दो विशेषताओं के ज़रिए ये दोनों ख़त लिखे। ये दोनों ऐसी विशेषताएं हैं जो आज की राजनीति व कूटनीति में दूर दूर तक दिखाई नहीं देतीं।

ईश्वरीय दूतों के आचरण पर नज़र डालने से पता चलता है कि सत्य के प्रचार के लिए निमंत्रण देना सबसे अहम शैली रही है। ईश्वरीय दूतों का अहम काम लोगों को सत्य की ओर बुलाना तथा इस मार्ग में संघर्ष करना था। लोगों को आमंत्रित करने के लिए महत्वपूर्ण तत्व संयुक्त बिन्दुओं पर बल देना है। पश्चिमी जवानों को संबोधित करने की वरिष्ठ नेता की ओर से पहल ने ख़तरे को अवसर में बदल दिया।

 उन्होंने उस ख़त में आतंकवाद को संयुक्त पीड़ा बताया और पश्चिमी जवानों से इस्लाम के संबंध में पूर्वाग्रह से बचते हुए निष्पक्ष फ़ैसला करने की अपील की और यह माना कि यह उचित अवसर होगा कि इन सवालों के जवाब से सत्य आपके लिए स्पष्ट हो जाए।

इस संदर्भ में अमरीका के विख्यात समीक्षक डॉक्टर केविन बैरेट कहते हैं, “मेरा मानना है कि हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनई ने बहुत ही अच्छे ढंग से सच्चाई को बयान किया है।” केविन बैरेट कहते हैं, वरिष्ठ नेता ने “जवानों को अपना संदेश पहुंचाने का फ़ैसला किया न कि बुद्धिजीवियों या राजनेताओं को क्योंकि जवान नई जानकारियां हासिल करने के लिए ज़्यादा प्रेरित रहते हैं और जानते हैं कि किस तरह वैकल्पिक व सामाजिक मीडिया को उन संदेशों के पहुंचाने के लिए इस्तेमाल करें जो मेन स्ट्रीम मीडिया में प्रकाशित नहीं होते।”

चूंकि जवानों में रचात्मकता, शक्ति, प्रेरणा और धुन होती है इसलिए उनमें अन्य गतिविधियों की तरह राजनैतिक गतिविधियों की कुशलता को बढ़ाने की बहुत क्षमता पायी जाती है। उनमें आत्मिक भावना सक्रिय है किन्तु वे पश्चिमी व यूरोपीय जगत में विभिन्न प्रकार के मीडिया व सुखि सुविधाओं से संपन्न होने के बाजवूद सत्य को सुनने से वंचित हैं।

 वरिष्ठ नेता की नज़र में इन जवानों की प्रवृत्ति अभी भी पाक है और वे उस मूल प्रवृत्ति से दूर नहीं हुए हैं जो ईश्वर ने उनके वजूद मे रखी है और उन पर बात का असर भी ज़्यादा होता है। इसलिए वरिष्ठ नेता अपने ख़त में एक स्थान पर जवानों से चाहते हैं कि वे सही पहचान व गहरी नज़र के आधार एवं कटु अनुभव से लाभ उठाते हुए इस्लामी जगत के साथ अच्छे संबंध का आधार रखें। वरिष्ठ नेता कहते हैं, “प्रत्येक दशा में आपको अपने समाज की विदित परतों को तोड़ना होगा।

द्वेष को निकालना होगा। मतभेद बढ़ने के बजाए कम होना चाहिए। हम आप जवानों से चाहते हैं कि सही व गहरी पहचान के आधार पर और कटु अनुभव से लाभ उठाते हुए इस्लामी जगत के साथ एक अच्छे संबंध की बुनियाद रखिए। इस स्थिति में आप जल्द ही देखेंगे कि जिस दुनिया का आधार ये चीज़ होगी तो उसके निर्माणकर्ता पर संतोष व भरोसे की छाया होगी, उसे सुरक्षा व शांति का उपहार देगी और उज्जवल भविष्य के प्रति आशा की किरण पैदा करेगी।”

वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई जवानों के नाम संदेश में फ़्रांस सहित दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में घटने वाली आतंकवादी घटनाओं का उल्लेख करते हुए कहते हैं, “अगर आज की पीड़ा अच्छे व सुरक्षित भविष्य का आधार न बनी तो फिर कटु यादें ही बाक़ी रहेंगी। मुझे विश्वास है कि आप जवान आज की कठिनाइयों से पाठ लेकर भविष्य निर्माण के लिए नया मार्ग चुनेंगे और उन मार्गों को बंद कर देंगे जिसने पश्चिम को मौजूदा बिन्दु तक पहुंचाया।”

वरिष्ठ नेता ने सत्य को छिपाने और उसे ग़लत तरीक़े से पेश करने की पश्चिमी सरकार की विरोधाभासी नीतियों का उल्लेख करते हुए दुनिया में अन्याय व नृशंसता के व्यापाक आयाम को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा, “प्रिय जवानो! मुझे आशा है कि आप वर्तमान या भविष्य में धूर्तता से दूषित मानसिकता को बदलेंगे। ऐसी मानसिकता जो असली लक्ष्य को छिपाने और द्वेषपूर्ण नियत पर पर्दा डालने में माहिर है। मेरे विचार में सुरक्षा व शांति स्थापित करने के लिए पहला क़दम इस हिंसक विचार में सुधार करना है।”

वरिष्ठ नेता के ख़त के बारे में न्यूयॉर्क मैग्ज़ीन इस प्रकार लिखती है, “ईरान के नेता ने पश्चिमी जवानों से खुले मन से इस्लाम के बारे में सोचने की अपील की है। उन्होंने अपने खुले ख़त में लिखाः ऐसा न होने दें कि सच्चाई और आपके बीच घटिया व ढोंगी प्रचार ऐसी भावना के पनपने का कारण बने जिससे आपमें निष्पक्ष फ़ैसला करने की संभावना ख़त्म हो जाए।”

उन्होंने अपने ख़त को पश्चिमी जवानों से इस अपील के साथ ख़त्म किया कि वे इस्लाम के ख़िलाफ़ अपमानजनक प्रचार व छवि को अपने और सच्चाई के बीच खाई न बनने दें साथ ही उन्हो।ने आशा जताई की सत्य के प्रति आपकी प्रतिबद्धता के मद्देनज़र आने वाली पीढ़ियां इस्लाम और पश्चिम के बीच मौजूदा संबंध के इतिहास को अधिक सुकून के साथ लिखेंगी।

वरिष्ठ नेता का ख़त पढ़ने वाला एक जवान, इस ख़त के बारे में अपने विचार यूं बयान करता है, “वरिष्ठ नेता का ख़त दुनिया के आज़ादी चाहने वाले लोगों के हाथों में पहुंचा। पश्चिमी मीडिया जिस प्रकार चेहलुम की भव्य रैली को नहीं छिपा सकता, उसी प्रकार इस ख़त का मीडिया में बहिष्कार नहीं कर पाएगा।”

ब्रितानी कार्यकर्ता सैन्ड्रा वैटफ़ा कहती हैं, “भविष्य की लगाम जवानों के हाथ में होगी। वे मौजूदा स्थिति को बदल सकते हैं। मौजूदा दुनिया युद्ध व लड़ाई की दुनिया है और पश्चिमी सत्ताधारी जंग को जेब भरने का साधन समझते हैं किन्तु अगर एक समाज की युवा पीढ़ी जागरुक हो जाए तो उसका भविष्य उज्जवल होगा। मानव समाज को मूल बदलाव की ज़रूरत है।”


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