May ३०, २०१७ १५:१० Asia/Kolkata

हमने उल्लेख किया था कि फ़िलिस्तीन और बैतुल मुक़द्दस की आज़ादी और मुसलमानों के संयुक्त दुश्मन इस्राईल से मुक़ाबला और समस्त इस्लामी देशों की भागीदारी से एक संयुक्त बाज़ार के लिए भूमि प्रशस्त करना, मुसलमानों की एकता के लिए बेहतरीन आइडिया है।

ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ द इस्लामिक कांफ्रेंस या इस्लामी सहयोग संगठन या ओआईसी संयुक्त राष्ट्र संघ के बाद विश्व का सबसे बड़ा संगठन है, जिसके 57 देश सदस्य हैं। इस संगठन के गठन की जड़ें दूसरे विश्व युद्ध की शुरूआत में मिलती हैं। वास्तव में इस युद्ध के शुरू होने से पैन इस्लामी विचार और ख़िलाफ़त को पुनर्जीवित करने का मुद्दा समाप्त हो गया और इस्लामी जगत ने एक नए राजनीतिक चरण में प्रवेश किया।

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अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक घटनाक्रम, 1948 के युद्ध में मुसलमानों की पराजय एवं ज़ायोनी शसन का गठन, पाकिस्तान का गठन, विचारधारा के रूप में राष्ट्रवाद का उदय और साम्राज्यवाद का पतन तथा उपनिवेश देशों की स्वाधीनता ने मुसलमानों को प्रभावित किया। इन समस्त घटनाक्रमों के कारण, इस्लामवादी शक्तियों ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर इस्लामी देशों को संगठित करने का प्रयास किया।

इस प्रकार, बीसवीं सदी के दूसरे अर्ध में इस्लामी देशों के नेताओं ने एक इस्लामी संगठन के गठन की ज़रूरत का एहसास किया, ताकि बिखराव और साम्प्रदायिकता के स्थान पर मुसलमानों को एकजुट और संगठित किया जा सके। हालांकि इससे पहले भी मुस्लिम बुद्धिजीवी संयुक्त चुनौतियों का मुक़ाबला करने के लिए इस तरह के संगठन की ज़रूरत महसूस कर चुके थे।

इस्लामी देशों में आयोजित किए जाने वाले सम्मेलन, जैसे कि जून 1924 में मक्के में, मई 1926 में क़ाहिरा सम्मेलन, जून 1926 में मक्का सम्मलेन, 1931 में बैतुल मुक़द्दस सम्मेलन, 1935 में जेनेवा सम्मेलन, अक्तूबर 1938 में क़ाहिरा में फ़िलिस्तीन की रक्षा के लिए अरब संसदीय बैठक और दूसरे विश्व युद्ध के बाद आयोजित होने वाले अनेक सम्मेलनें में एक अंतरराष्ट्रीय मुस्लिम संगठन के गठन की ज़रूरत पर बल दिया गया।

1969 में मस्जिदुल अक़सा में आग लगने की घटना के बाद, ओआईसी के गठन के लिए भूमि प्रशस्त हुई। मस्जिदुल अक़सा में एक ज़ायोनी ने आग लगा दी, जिसके बाद विश्व भर के मुसलमानों में रोष व्याप्त हो गया। इस्राईल ने इस घटना को एक ऑस्ट्रेलियाई पर्यटक से जोड़ने का प्रयास किया। इस्राईल की एक अदालत ने फ़ैसला सुनाया कि इस घटना के समय वह ऑस्ट्रेलियाई पर्यटक मानसिक समस्या से ग्रस्त था, इसलिए उसे सज़ा नहीं दी जा सकती। इस फ़ैसले से मुसमलानों का ग़ुस्सा भड़क उठा और उन्होंने अपने नेताओं को मजबूर किया कि वे उनके विरोध की आवाज़ को दुनिया भर में पहुंचाएं।

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सऊदी अरब और मोरक्को ने इस घटना की समीक्षा के लिए एक बैठक का आयोजन किया, जिसके परिणाम स्वरूप 1969 में रबात में इस संगठन का गठन हुआ। इस बैठक में 20 इस्लामी देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने भाग लिया और तीन प्रमुख मुद्दों पर विचार विमर्श किया। मस्जिदुल अक़सा में आग की घटना, इस्राईल द्वारा अरब देशों के इलाक़ों पर क़ब्ज़ा और बैतुल मुक़द्दस शहर की स्थिति।

इस बैठक में ईरान के पहलवी शासन के प्रतिनिधि और तुर्क सरकार के प्रतिनिधि ने इस्राईल की निंदा और पीएलओ के समर्थन में पारित होने वाले प्रस्ताव का विरोध किया। इसके बावजूद, इस बैठक में भाग लेने वाले देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक के आयोजन और इस्लामी देशों के बीच अधिक सहयोग के उद्देश्य से एक सचिवालय की स्थापना पर सहमति बन गई। मार्च 1970 में विदेश मंत्रियों की पहली बैठक में एक स्थायी सचिवालय की स्थापना पर विचार किया गया और इसके लिए सऊदी अरब के शहर जेद्दाह का चयन किया गया। इस बैठक में यह तय किया गया कि सचिवालय का कार्यालय जेद्दाह में अस्थायी और बैतुल मुक़द्दस की आज़ादी तक है और उसकी आज़ादी के बाद, इसे वहीं स्थानांतरित कर दिया जाएगा।

विदेश मंत्रियों का दूसरा सम्मेलन पाकिस्तान के शहर कराची में आयोजित किया गया। इस बैठक में मलेशिया के प्रधान मंत्री तूनकू अब्दुर्हमान को महासचिव चुना गया और उनसे अनुरोध किया गया कि वे ओआईसी के नियमों का एक मसौदा तैयार करें और उसे पारित कराने के लिए अगली बैठक में पेश करें। मार्च 1972 में जेद्दा शहर में इस्लामी देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में ओआईसी के मसौदे को पारित करने के साथ ही औपचारिक रूप से इस संगठन की बुनियाद रखी गई।

ओआईसी द्वारा अपनाए गये चार्टर के आधार पर इस संगठन के उद्देश्य इस प्रकार हैः सदस्य देशों के बीच आर्थिक सामाजिक सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में इस्लामी एकजुटता को प्रोत्साहन देना, अंतरराष्ट्रीय संगठनों से जुड़े सदस्यों से परामर्श की व्यवस्था करना, हर प्रकार के उपनिवेशवाद की समाप्ति और जातीय अलगाव और भेदभाव की समाप्ति के लिये प्रयास करना, न्याय पर आधारित अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिये आवश्यक क़दम उठाना, धार्मिक स्थलों की सुरक्षा के प्रयासों में समन्वय स्थापित करना और फ़िलिस्तीन को आज़ाद कराने के लिए फिलिस्तीनियों के संघर्ष का समर्थन करना, विश्व के सभी मुसलमानों की गरिमा, स्वतंत्रता और अधिकारों की रक्षा करने के लिये उनके संघर्षों को मज़बूती प्रदान करना और सदस्य देशों और अन्य देशों के बीच सहयोग और तालमेल को प्रोत्साहित करने के लिये एक उपयुक्त वातावरण तैयार करना।    

ओआईसी के सदस्य देशों ने इन उद्देश्यों पर सहमति के अलावा पांच सिद्धांतों को भी स्वीकार किया। पहला यह है कि इसके सदस्य देशों के बीच समानता की स्थापना की जाएगी। इसका उद्दश्य सदस्य देशों के बीच राजनीतिक एवं आर्थिक भेदभाद को मिटाना था। दूसरा यह कि समस्त सदस्य देशों को जनता के चयन के अधिकार का सम्मान करना होगा और एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने से बचना होगा। तीसरे यह कि एक दूसरे की संप्रभुता का सम्मान करना होगा। चौथे यह है कि किसी भी प्रकार के मतभेद उत्पन्न होने की स्थिति में उसे शांतिपूर्ण ढंग से निपटाया जाएगा। पांचवें यह है कि सदस्य देशों को शक्ति के बल पर एक दूसरे की राजनीतिक स्वाधीनता के लिए चुनौती उत्पन्न करने से बचना होगा। यह सिद्धांत इसलिए थे, ताकि दुश्मनों के मुक़ाबले में सदस्य देशों के बीच समन्वय और एकता की स्थापना की जा सके और सदस्य देशों के लिए इस बात का आश्वासन था कि वे कभी भी अपनी शक्ति को दूसरे साथी देश के ख़िलाफ़ इस्तेमाल नहीं करेंगे।

इस प्रकार, मोटे तौर पर इस्लामी जगत में एकता के उद्देश्य से ओआईसी का गठन हुआ। उद्देश्यों की प्राप्ति और ज़िम्मेदारियों को पूरा करने के लिए ओआईसी को 4 विभागों में बांटा गया है। ओआईसी के राष्ट्राध्यक्षों का विभाग, सबसे प्रमुख विभाग है, उसके बाद विदेश मंत्रियों का विभाग है। तीसरा विभाग सचिवालय है और चौथा विभाग अंतरराष्ट्रीय इस्लामी अदालत है, जिसके मूल नियमों के पारित न होने के कारण, यह अभी अधर में ही है।

इस अंतरराष्ट्रीय संगठन की विभिन्न संस्थाएं एवं समितियां हैं। इससे संबंधित समितियां स्थायी रूप से चैरिटी, सांस्कृतिक मामलों और सूचना प्रसारण के मैदान में सक्रिय हैं। राष्ट्राध्यक्षों का सम्मेलन तीन वर्षों में एक बार किसी भी सदस्य देश की राजधानी में आयोजित होता है। जिस देश में इसका आयोजन होता है, वह तीन वर्ष तक इस संगठन का नेतृत्व संभालता है। अब तक इस प्रकार के 13 सम्मेलनों का आयोजन हो चुका है। राष्ट्राध्यक्षों के अंतिम सम्मेलन का आयोजन तुर्की के इस्तांबूल शहर में हुआ था। संगठन के महासचिव का चयन राष्ट्राध्यक्षों के विभाग की ज़िम्मेदारी है।

इस्लामी सहयोग संगठन की विभिन्न संस्थाएं हैं, जैसे कि व्यापार विकास इस्लामी केन्द्र, इस्लामी संस्कृति एवं कला का अध्ययन केन्द्र, इस्लामी धर्मशास्त्र केन्द्र, इस्लामी एकता कोष, इस्लामी विकास बैंक और वैज्ञानिक, प्रशिक्षण एवं सांस्कृतिक केन्द्र की ओर संकेत किया जा सकता है।               

 

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