Apr १७, २०१८ १३:४३ Asia/Kolkata

परिवार समाज की एक महत्वपूर्ण इकाई है जिसे प्रतिदिन और हर क्षण मज़बूत करने के लिए प्रयास करना चाहिये।

जब भी परिवार विशेषकर पति- पत्नी के संबंध अच्छे न हों तो इस बात की आशा कम ही की जा सकती है कि समाज में प्रेम की कोई दूसरी जगह उत्पन्न होगी। इस्लाम ने इस चीज़ पर विशेष ध्यान दिया है और पति- पत्नी के लिए कुछ अधिकार दृष्टि में रखे हैं।

 

पति- पत्नी पहले वे इंसान हैं जिनके आपस में मिल जाने के बाद पारिवारिक संबंध अस्तित्व में आता है। वास्तव में अगर इस दुनिया में कोई महिला और पुरुष विवाह ही न करें तो इंसानों के मध्य जो संबंध है वह नहीं होंगे बल्कि इंसान ही अस्तित्व में नहीं आयेंगे। इस आधार पर समाज की एक महत्वपूर्ण इकाई परिवार है जिसकी मज़बूती के लिए हमेशा प्रयास किया जाने चाहिये। अतः परिवार के सिद्धांतों व दायित्वों को जानना ज़रूरी है।

 

परिवार के सदस्यों के मध्य सहकारिता व समझ- बूझ का वातावरण उत्पन्न करना वह चीज़ है जिस पर इस्लाम ने बहुत बल दिया है। इस सहकारिता के उत्कृष्टतम नमूने को पैगम्बरे इस्लाम की सुपुत्री और उनके दामाद के घर में देखा जा सकता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम हमारे घर आये और फातेमा खाने के डेग के पास बैठीं थीं। मैं भी उनके लिए दान चुन रहा था। पैग़म्बरे इस्लाम मुझे हे अबुल हसन की उपाधि से बुलाते थे। मैंने उनसे कहा पधारिये। उन्होंने कहा मुझसे वह चीज़ सुनो जिसे मैं ईश्वर के आदेश से कह रहा हूं। इसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया” कोई पुरुष एसा नहीं है जो घर में अपनी पत्नी की सहायता करे किन्तु यह कि उसके इस कार्य का पुण्य उस एक साल की उपासना जैसा है जिसके दिनों को रोज़ा रखा हो और रातों को जागकर उपासना की हो। ईश्वर उसे एसा पुण्य देगा जो उसने हज़रत दाऊद, हज़रत याकूब और हज़रत ईसा जैसे पैग़म्बरों को प्रदान किया है। हे अली जो घर के कार्यों में अहंकार के बिना अपनी पत्नी की सहायता करता है तो ईश्वर उसका नाम शहीदों की सूचि में लिखता है और उसे हर दिन और हर रात एक हज़ार शहीदों का पुण्य देता है और हर क़दम जो उठाता है उसके बदले में उसे हज और उमरे का पुण्य देता है। उसके शरीर से जो पसीना निकलता है उस पसीने की हर बूंद के बदले स्वर्ग में एक घर प्रदान करेगा। हे अली घर के कार्यों में एक घंटे पत्नी की सहायता करना एक हज़ार साल की उपासना, एक हज़ार हज व एक हज़ार उमरे से बेहतर है, ईश्वर की राह में एक हज़ार दास स्वतंत्र करने, उसकी राह में एक हज़ार युद्ध करने, एक हज़ार बीमारों का हाल- चाल पूछने, एक हज़ार जुमे की नमाज़ पढ़ने, एक हज़ार शव यात्रा में शामिल होने, ईश्वर की प्रसन्नता के लिए एक हज़ार भूखों का पेट भरने, एक हज़ार निर्वस्त्र लोगों को वस्त्र पहनाने और एक हज़ार घोड़ों को ईश्वर की राह में देने से बेहतर है और इसी प्रकार उसके लिए ज़रूरतमंद मुसलमान को एक हज़ार दीनार दान देने से बेहतर है, तौरात, इंजील, ज़बूर और कुरआन की तिलावत करने से बेहतर है और एक हज़ार दास स्वतंत्र करने और निर्धनों को एक हज़ार ऊंट दान देने से बेहतर है और इसी प्रकार पत्नी की सहायता व सेवा करने वाला दुनिया से नहीं जायेगा किन्तु यह कि स्वर्ग में वह अपने स्थान को देख ले।“

 

अच्छा व्यवहार एक एसी चीज़ है जो परिवार के माहौल को बेहतर व मजबूत बनाने में बुनियादी भूमिका रखता है। परिवार में एक दूसरे के दुर्व्यवहार पर संतोष करना और उसकी अनदेखी कर देना भी एक अच्छी चीज़ है और पति- पत्नी के लिए उसका बहुत अधिक पुण्य है। पत्नियों और महिलाओं के साथ अच्छे व्यवहार से पेश आना वह चीज़ है जिस पर इस्लाम में बहुत बल दिया गया है।

सर्वसमर्थ व महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे निसा की 19वीं आयत में कहता है” उनके साथ यानी महिलाओं व पत्नियों के साथ अच्छा व्यवहार करो और अगर उन्हें पसंद नहीं करते हो तब भी उनके साथ अच्छा व्यवहार करो क्योंकि यह संभव है कि तुम किसी चीज़ को पसंद न करो जबकि वही चीज़ तुम्हारे लिए अच्छी हो।“

पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया है कि जिब्राईल ने महिलाओं के बारे में मुझे इतनी अधिक सिफारिशें की है कि मुझे लगा कि उन्हें तलाक़ देना सही नहीं है किन्तु यह कि बुरा कार्य उनसे स्पष्ट हो जाये।

 

पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” जो भी पत्नियों द्वारा दिये जाने वाले कष्टों को सहन करते हुए  सहनशीलता से काम लेता है चाहे वह कष्ट किसी अप्रिय बात के कारण ही क्यों न हो तो ईश्वर उस इंसान को नरक की आग से स्वतंत्र करेगा। स्वर्ग को उस पर अनिवार्य कर देगा। उसके कर्मपत्र में दो लाख अच्छाइयां लिखेगा। उसके कर्मपत्र से दो लाख बुराइयों को मिटा देगा। उसके स्थान को दो लाख गुना बढ़ा देगा।

इसी प्रकार महिलाओं और पत्नियों की भी ज़िम्मेदारी है कि वे परिवार में अपने अच्छे व्यवहार से घर के माहौल को अच्छा बनायें। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” सच में महिला का जेहाद यह है कि वह अपने पति के जीवन की कठिनाइयों पर धैर्य करे। इसी तरह एक अन्य स्थान पर फरमाते हैं” महिला का जेहाद अपने शौहर का खयाल करना है।

           पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया है कि हर महिला जो अपने पति को ज़बान से कष्ट पहुंचाये उसका कोई प्राश्चित और अच्छा कार्य स्वीकार नहीं किया जायेगा जब तक कि उसका पति उससे प्रसन्न न हो जाये। यद्यपि वह दिनों को रोज़ा रखे और रातों को उपासना करे, दासों को स्वतंत्र करे, अच्छे घोड़ों को ईश्वर की राह में जेहाद के लिए दे फिर भी नरक में जाने वाली वह पहली महिला होगी।“

परिवार व पत्नी की आर्थिक ज़रूरतों को पूरा करना पुरूष की जिम्मेदारी है। इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फरमाया है” पत्नी की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करना, उससे अच्छा व्यवहार करना और उससे दुर्व्यवहार न करना पति की जिम्मेदारी है। अगर कोई मर्द एसा करता है तो पत्नी के मुकाबले में उसने अपने धार्मिक दायित्व का निर्वाह कर दिया है। पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया है जो मर्द मेहनत करे और अपनी पत्नी पर खर्च करे तो ईश्वर हर दिरहम के बदले में उसे सात सौ दिरहम देगा।

पति पर पत्नी के जो अधिकार हैं उनमें से एक उसका खर्च और मकान है। सर्वसमर्थ व महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे तलाक की 7वीं आयत में कहता है” जिनके पास विस्तृत संभावनायें हैं उन्हें चाहिये कि वे इन संभावनाओं से लाभ उठायें और जिनका हाथ तंग है यानी जिनके पास नहीं हैं तो जो कुछ भी उनके पास है उसे खर्च करें। ईश्वर किसी पर भी उसकी क्षमता से अधिक बोझ नहीं डालता है। ईश्वर शीघ्र ही सख्ती के बाद आसानी देता है। महान ईश्वर इस आयत में फरमाता है कि इंसान को चाहिये कि वह अपनी पत्नी के ज़रूरी खर्च के लिए अपनी समस्त क्षमता का प्रयोग करे। इसी प्रकार बहुत अधिक रवायते मौजूद हैं जिनसे इस्लामी विद्वानों ने लाभ उठाया है और महिला के अधिकारों के बारे में उन्हें आधार बनाया है और वे पति द्वारा मकान के प्रबंध को महिला का अधिकार मानते हैं।

 

महिला का एक अधिकार मेहर है जिसका वर्णन पवित्र कुरआन ने भी किया है। महान ईश्वर सूरे निसा की चौथी आयत में कहता है” एक ऋण व उपहार के रूप में महिलाओं के महर को पूरा दे दो और अगर उन्होंने उसमें से कोई चीज़ अपनी खुशी से दी तो वह हलाल है और उसका इस्तेमाल करो।“

पवित्र कुरआन की इस आयत में बहुत ही सुन्दर व सूक्ष्म शैली का प्रयोग किया गया है। पहला यह कि इस आयत में महरिया के लिए “सदोक़ात” शब्द का प्रयोग किया गया है और इसका उल्टा भी रवायतों में आया है यानी मेहर को दान व सेदाक़ कहा गया है परंतु यहां महरिया से तात्पर्य वह दान नहीं है जो निर्धनों को दिया जाता है। पवित्र कुरआन के कुछ व्याख्याकारों ने महरिया को सेदाक़ कहा है। क्योंकि सेदाक़ और सदक़ा दोनों सिद्क़ शब्द से निकले व बने हैं। सेदाक़ अपनी पत्नी के प्रति प्रेम प्रकट करने में मर्द की सच्चाई का सूचक है। इस शब्द का प्रयोग और महरिया के निर्धारण का संबंध विदित रूप से इस्लाम से पहले से नहीं है।

इस आयत में एक रोचक बिन्दु यह है कि महान ईश्वर स्त्रीलिंग उपनाम का प्रयोग करता और कहता है” सदकातेहिन्ना” यानी इस सदक़े व महरिया की मालिकन महिलाएं हैं और इसमें दूसरों का कोई हक नहीं है।

 

यहां इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि कुछ समाजों व संस्कृतियों में शीर बहा जैसे नामों से जो पैसा लड़की के माता- पिता को जो दिया जाता है वह न तो सही है और न धार्मिक। एक रोचक बिन्दु यह है कि सूरे निसा की चौथी आयत में महिला के मेहर के संबंध में नेह्ला शब्द का प्रयोग हुआ है। नेह्ला का अर्थ  उपहार है। वह भी हर उपहार नहीं बल्कि “मुफरदात” नाम की किताब के लेखक रागिब कहते हैं कि नेह्ला यानी छोटा उपहार। वह छोटा उपहार जो दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच प्रेम उत्पन्न करने के लिए पूरी खुशी से दिया जाता है। इस आधार पर हर नेह्ला एक उपहार है परंतु हर उपहार नेह्ला नहीं है क्योंकि उपहार छोटे और बड़े दोनों होते हैं जबकि नेह्ला केवल छोटे उपहार को कहते हैं। नेह्ला शब्द नेहल से लिया गया है जिसका अर्थ मधुमक्खी होता है। जो मीठा व मूल्यवान पदार्थ अर्थात शहद मधुमक्खी से प्राप्त होता है उसे नेह्ला कहते हैं। पवित्र कुरआन इस बारे में कहता है उस शहद में लोगों के लिए शिफा हैं।

 

इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम से संबंधित रिसालये हुकूक नाम की जो किताब है उसमें इमाम पत्नी के हक के बारे में फरमाते हैं” किन्तु तुम्हारी पत्नी का हक यह है कि तुम यह जान लो कि महान ईश्वर ने उसे पैदा करके तुम्हारे आराम व सुकून का साधन उपल्ध कर दिया। तुममें से हर एक मर्द और औरत को चाहिये कि वे एक दूसरे के होने की नेअमत पर ईश्वर का आभार व्यक्त करें और उन्हें जान लेना चाहिये कि यह ईश्वर की नेअमत है। उस पर और तुम पर अनिवार्य है कि ईश्वर की नेअमत का सम्मान करो और उसके साथ रहने में अच्छा व्यवहार करो किन्तु महिला की ज़िम्मेदारी व दायित्व यह है कि वह तुमसे प्रेम करे और आराम व सुकून वह इच्छा है जिससे भागना सही नहीं है और यह बड़ा हक है।“

 

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