May १६, २०१८ १६:१५ Asia/Kolkata

रमज़ान के महीने को ईश्वरीय दावत भी कहा जाता है और इसी लिए विश्व भर में रमज़ान की तैयारी उसी तरह से होती है जिस तरह से किसी महत्चपूर्ण जगह दावत में जाने से पहले की जाती है।

 

जिस तरह से किसी महत्वपूर्ण हस्ती की दावत में जाने के लिए विशेष प्रकार के कपड़े, बात चीत के अंदाज़ और उठने बैठने की शैली होती है उसी तरह से चूंकि रमज़ान ईश्वरीय दावत है इस लिए इस दावत के लिए विशेष तैयारी की जाती है और चूंकि इस दावत पर बुलाने वाला, अलग प्रकार का मेज़बान है इस लिए उसकी तैयारी भी अलग प्रकार की होती है। दावत के लिए जाते समय अगर हमें पता चल जाए कि हमारा मेज़बान रास्ते पर हमारा इंतेज़ार कर रहा है तो हमारे क़दम तेज़ हो जाते हैं। मेज़बान का व्यवहार जितना अच्छा होता है दावत उतनी ही अच्छी होती है तो फिर रमज़ान में ईश्वर के दासों को मिलने वाली दावत का क्या कहना! क्योंकि इस दावत का मेज़बान स्वंय ईश्वर होता है। 

 

 

एक बार फिर आकाश के द्वार , ईश्वर पर आस्था रखने वालों के लिए विशेष रूप से खोल दिये गये हैं ताकि वह एक अवधि तक संसारिक हंगामों से दूर होकर, आत्मज्ञान व ईश्वर ज्ञान प्राप्त करें। आज के युग में मनुष्य को आधुनिकता व भौतिकता के हंगामों में अपने और इस सृष्टि के बारे में सोचने का अवसर कम ही मिलता है लेकिन रमज़ान का महीने उसे यह अवसर प्रदान करता है और इस पवित्र महीने में मनुष्य श्रेष्ठता की ओर बढ़ने की राहों पर विचार करता है, अपने ईश्वर, अपने रचयता के बारे में चिंतन कर सकता है और इस सच्चाई का बोध प्राप्त कर सकता है कि उसकी हर ज़रूरत, को पूरा करने वाली हस्ती ईश्वर है और उसने उसे दावत दी है। रमज़ान का महीना, कुरआने मजीद की आयतों और पैगम्बरे इस्लाम की हदीसों के अनुसार सर्वश्रेष्ठ महीना है इसी लिए इस महीने को ईश्वरीय महीना या " शहरुल्लाह" कहा जाता है। वैसे तो हर महीना, ईश्वर का महीना होता है लेकिन औपचारिक रूप से रमज़ान के ही महीने को अल्लाह का महीना कहा जाता है और वैसे तो हर रात, अल्लाह की रात है लेकिन एक ही रात को " शबे कद्र" कहा गया है। रमज़ान की एक विशेषता यह भी है कि वह एेसी दावत है जिसमें हर एक को बुलाया गया है यह हज की तरह नहीं है कि जो आर्थिक क्षमता रखने वालों के लिए अनिवार्य होता है या खु्म्स व ज़कात की तरह भी नहीं है जो एक विशेष मात्रा में लाभ प्राप्त होने के बाद मालूम होता है और न ही नमाज़ की तरह है कि जो हर हाल में हर  मुसलमान पर अनिवार्य होती है। 

हो सकता है कि कुछ लोगों के मन में यह सवाल पैदा हो कि यह कैसी दावत है जिसमें मेहमानों को खाने पीने से दूर रहने को कहा गया है? इस सवाल के उत्तर में कहना चाहिए कि ईश्वर ने यह दावत , शरीर की आव भगत के लिए नहीं दी है क्योंकि शरीर को हमेशा, ईश्वर की दावत का आनंद उठाते हैं और ईश्वर का दिया हुआ ही खाते और पीते हैं । रमज़ान की दावत में शरीर को आराम दिया जाता है और आत्मा को चमकाया जाता है। रमजान के संस्कार और कर्म पर यदि ग़ौर किया जाए तो यह स्पष्ट हो जात है कि रमज़ान का पवित्र महीना मानवीय इच्छाओं में संतुलन पैदा करने के लिए होता है ताकि वह अपने अस्तित्व के मूल उद्देश्य की ओर बढ़ने की अपनी क्षमता बढ़ा सके । इस तरह से हम देखते हैं कि रमज़ान पूरी तरह से मनुष्य की आत्मा के प्रशिक्षण पर ध्यान देता है । इस महीने में मुसलमान, रोज़ा रखकर, उपासना करके, कुरआने मजीद पढ़ कर, दान दक्षिणा करके और अन्य लोगों की सहायता करके तथा अच्छे कर्मों द्वारा अपनी आत्मा पर जमी मैल साफ करता है और परिपूर्णता की ओर अपनी यात्रा को तेज़ करता है। यह एेसी दावत है कि जिस के महत्व का सही अंदाज़ा ईश्वर के अलावा किसी और को नहीं है। इसके साथ यह भी मालूम होना चाहिए कि यह जो रमज़ान के महीने को ईश्वरीय दावत कहा जाता है वह, यूं ही नहीं है बल्कि यह वह शब्द है जिसका प्रयोग स्वंय पैगम्बरे इस्लाम (स) ने किया है। पैगम्बरे इस्लाम ने " शाबानिया " के नाम से प्रसिद्ध अपने भाषण के आरंभिक वाक्यों में ही कहा है कि " यह वह महीना है जिसमें आप सब लोग अल्लाह की दावत में  बुलाए गये हों । इस लिए सब को इस वाक्य और इसके अर्थ पर ध्यान देना चाहिए। 

 

 

पैगम्बरे इस्लाम ( स) ने रमज़ान से पहले वाले महीने अर्थात शाबान के अंतिम शुक्रवार को एक भाषण दिया और उसमें रमज़ान पर चर्चा की। पैग़म्बरे इस्लाम के इस भाषण का एक हिस्सा इस प्रकार हैः  हे लोगो! अल्लाह का महीना बरकत व रहमत व क्षमा के साथ आप के पास आ गया है। यह वह महीना है कि जो अल्लाह के निकट सब से अच्छा महीना है और उसके दिन, सब से अच्छे और उसकी रातें सब से अच्छी रातें और उसके क्षण सब से अच्छे क्षण हैं। यह वह महीना है कि जिसमें आप को ईश्वरीय आथित्व के लिए बुलाया गया है और आप सब को उन लोगों में  रखा गया है जिन्हें ईश्वरीय सम्मान का पात्र बनाया गया है। इस महीने में तुम्हारी सांसे, ईश्वर का गुणगान और तुम्हारी नींद, उपासना है और तुम्हारे काम इस महीने में स्वीकारीय और तुम्हारी दुआएं पूरी होंगी। इस लिए ईश्वर से सच्ची नीयत और पवित्र दिल से दुआ करें कि इस महीने में वह तुम्हें रोज़ा रखने और अपनी किताब क़ुरआन पढ़ने का तुम्हें अवसर मिले ... हे लोगो! निश्चित रूप से इस महीने में स्वर्ग के द्वार खुले हुए हैं इस तुम सब ईश्वर से दुआ करो कि वह इन दरवाज़ों को तुम्हारे लिए बंद न करे और नर्क के दरवाज़े इस महीने में बंद कर दिये जाते हैं तो अल्लाह से दुआ करो कि यह दरवाज़े तुम्हारे लिए खोले न। शैतानों को इस महीने में जंजीरों में बांध दिया जाता है तो अल्लाह से दुआ करो कि वह इन शैतानों को तुम पर अपना प्रभाव जमाने न दे। 

 

पैगम्बरे इस्लाम के शब्दों में इस महीने में मनुष्य के साधारण कर्मों का भी बहुत अच्छा फल मिलता है और ईश्वर छोटी सी उपासना के बदले में भी बड़ा इनाम देता है। थोड़े से प्रायश्चित से बड़े बड़े पाप माफ कर देता है और उपासना व दासता द्वारा कल्याण व परिपूर्णता तक पहुंचने के रास्ते आसान बना देता है । इस प्रकार से धार्मिक दृष्टि से इस महीने में जिस प्रकार का अवसर मनुष्य को मिलता है वैसा साल के अन्य किसी महीने में नहीं मिलता इसी लिए इन ईश्वरीय विभूतियों से भरपूर लाभ उठाने पर बल दिया गया है और यह भी निश्चित है कि यदि कोई सच्चे मन से इस महीने में रोज़ा रखे, उपासना करे और सही अर्थों में इस दावत से लाभ उठाए तो उसे एेसा आध्यात्मिक लाभ मिलेगा जिसकी उसने कल्पना भी न की होगी। धार्मिक ग्रंथों में बताया गया है कि एक दिन ईश्वरीय दूत हज़रत मूसा (अ) ने कहा कि  हे ईश्वर! मैं कितना भाग्यशाली हूं कि इस प्रकार से तेरे निकट होकर बिना किसी माध्यम के तुझ से बात कर सकता हूं क्या किसी और को इस प्रकार का सौभाग्य प्राप्त हुआ है? ईश्वर की ओर से कहा गया कि हे मूसा! इस समय तुम सत्तर हज़ार पर्दों  के पीछे से मुझ से बात कर रहे हो लेकिन अंतिम युग में कुछ लोग होंगे जो लंबे और गर्म दिनों में मेरे लिए भूख व प्यास सहन करेंगे और यह वह लोग हैं जिनसे इफ्तार के समय मैं इन सत्तर हज़ार पर्दों के बिना उनसे निकट रहूंगा। 

 

इस प्रकार से हम देखते हैं कि रमज़ान, ईश्वर पर आस्था रखने वाले के लिए किस हद तक अहम है। ईश्वर ने इस महीने में लोगों को अपना मेहमान बनाया है और अपने अतिथि गृह में जगह दी है इसी लिए बुद्धिजीवी कहते हैं कि इस ईश्वरीय अतिथि गृह में रहने के अपने नियम हैं जिन का पालन करके ही रोज़ा रखने वाला , आघ्यात्म की चोटी पर चढ़ सकता है। हमें इस महीने में पापों से बच कर ईश्वरीय आथित्य का सम्मान करना चाहिए और इस अवसर को ईश्वर से मन में डर पैदा करने का अवसर समझना चाहिए जैसा कि क़ुरआने मजीद में कहा गया है कि हे ईमान लाने वालो! तुम पर रोज़ा अनिवार्य किया गया है जैसा कि तुम से पहले वालों पर भी अनिवार्य किया गया था ताकि तुम में ईश्वरीय भय पैदा हो। 

 

ईश्वरीय भय या धर्म की भाषा में तक़वा, निश्चित रूप  से धर्म में आस्था रखने वाले के लिए एक बहुत बड़ा चरण है कि जिस पर पहुंचने के बाद उपासना का वह आनंद मिलता है जिसकी कल्पना भी उसके बिना करना संभव नहीं होता। तक़वा अर्थात ईश्वर का भय , अर्थात हमेशा यह बात मन में रखना कि हमारे एक एक काम को एक एक गतिविधि को ई्श्वर देख रहा है और वह एेसा शक्तिशाली है जो उसी क्षण जो चाहे कर सकता है। यदि सही अर्थों में मनुष्य इस पर विश्वास कर ले कि ईश्वर उसे हमेशा देखता है तो फिर निश्चित रूप  से पाप  और भ्रष्टाचार से कोसों दूर हो जाएगा, रमजा़न का एक लाभ यह भी है कि वह मनुष्य को मोह माया और सांसारिक झंझट से छुटकारा दिलाता है और एक महीने के लिए उसे आत्मा के पोषण के आंनद से अवगत कराता है। (Q.A.)

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