Sep ०५, २०१८ १२:२६ Asia/Kolkata

वर्ष 1979 में ईरान में इस्लामी क्रान्ति की सफलता बहुत बड़ी घटना थी कि जिसके नतीजे में न सिर्फ़ यह कि इस देश में शाही शासन का अंत हो गया बल्कि इस घटना ने बहुत से साम्राज्यवादी देशों ख़ास तौर पर अमरीका को ईरान के स्रोतों को लूटने से रोक दिया।

उस दिन से अमरीका की ईरान से दुश्मनी और ईरान में इस्लामी सरकार को गिराने के लिए अमरीकी सरकारों की नाना प्रकार की साज़िशे शुरु हो गयीं। जंग, हत्या, एमकेओ सहित आतंकवादी गुट की पैसों व हथियारों से मदद और नाना प्रकार की आर्थिक व सैन्य पाबंदियां, अमरीका और उसके घटकों की छिपी व स्पष्ट दुश्मनियों के उदाहरण हैं। उन्होंने इस्लामी गणतंत्र ईरान और जनता के मार्ग में विभिन्न मुश्किलें खड़ी कीं ताकि ईरानी राष्ट्र के संकल्प को तोड़ दे और उसे घुटने पर झुकने पर मजबूर कर दें लेकिन अमरीका और उसके घटकों की एक भी शैतानी साज़िश ईरानी जनता को क्रान्ति के मार्ग पर बढ़ने से नहीं रोक सकी। इन दुश्मनियों से ईरानी जनता का इस मार्ग पर चलने का संकल्प और मज़बूत हुआ है।

अमरीका के अनेक राष्ट्रपति विश्व जनमत को धोखा देने के लिए एक मुखौटा जो अपने चेहने पर लगाते हैं, वह उनका तार्किक बातचीत में विश्वास रखने का दावा है। उनका दावा है कि वे बातचीत में विश्वास रखते हैं और समस्याओं के इस रास्ते से हल होने के योग्य समझते हैं। इसलिए उन्होंने ईरान को बदनाम करने के लिए जो दुष्प्रचार का हथकंडा अपनाया वह यह कि ईरान उनके साथ बातचीत करने के लिए तय्यार नहीं है। ईरानी जनता संस्कृति व सभ्यता से समृद्ध है और इतिहास के आरंभ से अब तक उसका स्वाधीनता प्रेमी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध रहा है। ईरान में राष्ट्रपति डॉक्टर हसन रूहानी के नेतृत्व में ग्यारहवीं सरकार ने अमरीकियों के निवेदन पर गुट पांच धन एक के साथ, जिसमें अमरीका, ब्रिटेन, फ़्रांस, रूस, चीन और जर्मनी शामिल हैं, बातचीत के लिए एक वार्ताकार टीम नियुक्त की जो परमाणु मामले पर बातचीत करे। गुट पांच धन एक और ईरान के बीच अनेक बैठकों के बाद परमाणु समझौता जेसीपीओए अस्तित्व में आया। ईरान इस समझौते के प्रति इस तरह पाबंद रहा कि अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी आईएईए भी इस सच्चाई को न छिपा सकी और अब तक वह 12 रिपोर्टों में जेसीपीओए के प्रति ईरान के प्रतिबंध रहने की पुष्टि कर चुकी है। जेसीपीओए के प्रति ईरान के पाबंद रहने के बदले में यह तय पाया था कि अमरीका ईरान के ख़िलाफ़ सभी पाबंदियों को ख़त्म करेगा और ईरानी राष्ट्र पर दबाव डालने से हाथ रोक लेगा लेकिन जैसा कि धौंस धमकी देना और विशिष्टता लेना साम्राज्यवादी देशों की आदत है, अमरीका के चेहरे से वार्ता का मुखौटा उतर गया और मौजूदा अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने परमाणु समझौते जेसीपीओए को पूरी तरह नज़रअंदाज़ करते हुए इससे निकलने का एलान कर दिया। अमरीकियों ने जो बच्चों के हत्यारे ज़ायोनी शासन का हमेशा से समर्थन करते आए हैं, यह दर्शा दिया कि अमरीकी सरकार का बातचीत का नारा एक धूर्ततापूर्ण नारे के सिवा कुछ नहीं बल्कि इस सुंदर सांप की खाल के नीचे ख़तरनाक ज़हर है जिसे वह दुनिया में फैला रहे हैं। अमरीका के रवैये से एक बार फिर न सिर्फ़ ईरानी जनता बल्कि पूरी दुनिया के सामने यह बात स्पष्ट हो गयी कि उस पर किसी तरह से भरोसा नहीं किया जा सकता।        

 

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने अपने भाषण में अमरीका के उल्लंघन की अनेक घटनाओं का उल्लेख किया। उन्होंने अमरीका की वादा ख़िलाफ़ी को सिर्फ़ ईरान से विशेष नहीं बताया बल्कि उनका मानना है कि अमरीका का अपने एजेन्दें जैसे ईरान के पहलवी शासक रज़ा शाह और मिस्र के तानाशाह हुस्नी मुबारक के साथ भी ऐसा ही रवैया था।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने इससे पहले भी अपने भाषण में इस्लामी गणतंत्र ईरान से अमरीका की गहरी दुश्मनी के स्पष्ट होने का उल्लेख करते हुए कहा थाः “हालिया वर्षों की बातचीत और जेसीपीओए के बाद यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो गयी कि परमाणु और मीज़ाईल जैसे विषय, अस्ल विषय नहीं हैं बल्कि अमरीका ईरान की इस्लामी व्यवस्था और ईरानी राष्ट्र का दुश्मन है कि जिसका कारण संवेदनशील क्षेत्र में इस व्यवस्था की सफलता, प्रतिरोध की भावना का मज़बूत होना, अमरीका के अत्याचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना और इस्लामी ध्वज को फहराना है। वे चाहते हैं कि इस्लामी व्यवस्था से उन तत्वों को ख़त्म कर दें जो उसे ताक़त प्रदान करते हैं।”

अब ईरान के संबंध में अमरीका की वादा ख़िलाफ़ी और मौजूदा अमरीकी राष्ट्रपति के दुस्साहसपूर्ण व्यवहार से उनकी गहरी दुश्मनी और स्पष्ट हो गयी है। ईरान बातचीत के ज़रिए परमाणु क्षेत्र में अपनी उपलब्धियों को सुरक्षित करना चाहता था लेकिन अमरीका ने यह दर्शा दिया कि वह अभी भी ईरानी राष्ट्र से बहुत दुश्मनी रखता है।

यह अनुभव ईरानी राष्ट्र और सरकार के लिए बहुत मूल्यवान था क्योंकि इससे ईरान की नई नस्ल भी ईरान से अमरीका की दुश्मनी को समझ गयी। अमरीका की वादा ख़िलाफ़ी से दुनिया के राष्ट्रों की नज़र में ईरान का स्थान ऊपर उठा और अमरीका पहले से ज़्यादा घृणा का पात्र बना।

आयतुललाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई ने अपने मूल्यवान बयान में इस अहम बिन्दु की ओर इशारा किया कि जब भी ईरान ने लचीला रवैया अपनाया उसके मुक़ाबले में अमरीका ने अधिक दुस्साहसपूर्ण रवैया अपनाया। यही वजह है कि अमरीका की वादा ख़िलाफ़ी और अमरीकी राष्ट्रपति के दुस्साहसपूर्ण व्यवहार के बाद इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने 29 अगस्त को मंत्रीमंडल के सदस्यों के साथ हुयी मुलाक़ात में अपने भाषण में बल दियाः “हम अमरीका के साथ किसी भी स्तर पर बातचीत नहीं करेंगे।”

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि इससे पिछली वाली अमरीकी सरकार के अधिकारियों से बातचीत का नतीजा यह निकला, जो कम से कम ज़ाहिरी तौर पर शिष्टाचार का ख़्याल रखे हुए थे, अब अमरीका के मौजूदा बद्तमीज़ अधिकारियों के साथ क्या बातचीत की जाए जिन्होंने ईरानी राष्ट्र के ख़िलाफ़ तलवार खींच रखी है, इसलिए अमरीकियों के साथ किसी भी स्तर पर बातचीत नहीं होगी।

 

ईरान से बातचीत शुरु से अमरीका की ज़रूरत रही है क्योंकि एशिया में मध्य एशिया के हालात पर ईरान का गहरा असर है। अमरीकी अधिकारियों ने विभिन्न बहानों से ईरान के साथ बातचीत की हमेशा कोशिश की। पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस संदर्भ में इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता को ख़त भी लिखा और बहुत ज़्यादा बातचीत पर आग्रह किया। वास्तव में वे अपने इस हथकंडे से दुनिया को यह दर्शाना चाहते थे कि ईरान अमरीका के साथ बातचीत का इच्छुक है। लेकिन गुट पांच धन एक की बैठक में ईरानी वार्ताकार टीम की तर्कपूर्ण बातचीत से स्पष्ट हो गया कि अमरीका अपने वचन का पाबंद नहीं है और दस्तख़त करने के बाद भी पीछे हट जाता है।   

 

अब अमरीका आर्थिक दबाव के ज़रिए ईरान की इस्लामी क्रान्ति को आर्थिक समस्याओं के हल में अक्षम दर्शाने की कोशिश में है। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता हालिया कई वर्षों से दुश्मन के आर्थिक पाबंदियों के हथकंडे से निपटने के लिए स्वदेशी उत्पाद और प्रतिरोधक या ठोस अर्थव्यवस्था की नीति अपनाने पर बल देते आ रहे हैं। उनका मानना है कि आर्थिक क्षेत्र में सही उपाय के ज़रिए स्वदेशी श्रम बल के हाथों आर्थिक क्षेत्र में प्रगति हासिल की जा सकती है।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने अपने हालिया भाषण में आर्थिक मुश्किल को हल करने के लिए अधिकारियों के बीच आपस में एकता व समन्वय को बहुत ज़रूरी बताया और सरकारी मंत्रीमंडल से कहा कि जोश व हिम्मत के साथ एक सक्रिय समूह के रूप में एक के बाद एक मुश्किलों को हल करने के लिए कमर कस लें।

आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने इस बात पर बल देते हुए कि आर्थिक क्षेत्र में मौजूद कमज़ोर पहलुओं के मद्देनज़र दुश्मन ने देश की अर्थव्यवस्था को निशाना बनाया है, कहा कि आर्थिक क्षेत्र में मज़बूत व ज़्यादा काम करने की ज़रूरत है, सभी शून्य को भरना होगा। यह सभी काम संभव हैं। देश की अर्थव्यवस्था के संचालन में हमारे सामने बंद गली नहीं है।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि देश के आर्थिक क्षेत्र के अधिकारियों को दिन रात कोशिश करनी चाहिए। गतिविधियों का ध्रुव प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था की नीति होनी चाहिए कि जो स्वदेशी उत्पाद का आधार है।

प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था स्वदेशी उत्पादन पर निर्भर अर्थव्यवस्था है और इसका स्रोत भीतर है। अगर यह आर्थिक रणनीति सफल हो गयी, तो इसके बहुत से फ़ायदे सामने आएंगे। जवानों को रोज़गार मिलेगा, स्वदेशी उत्पादों की गुणवत्ता बेहतर होगी, निर्यात पहले से ज़्यादा होगा इत्यादि, यह सब प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था की उपलब्धियां हैं। स्वदेशी उत्पाद और इस मार्ग में मौजूद मुश्किलों को दूर करना उन अहम मुद्दों में है जिन पर देश के उच्च अधिकारियों को ध्यान देना चाहिए। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का मानना है कि उत्पादन की मुश्किल का हल मौजूद है कि जिसका हल अर्थशास्त्रियों ने पेश किया है, अगर उस पर अमल हो तो जनता की आर्थिक स्थिति बेहतर होगी।

अमरीका और उसके दुष्ट साथी ईरानी जनता को क्रान्ति की ओर से निराश करने पर तुले हुए हैं और वे ईरानी जनता को इस्लामी क्रान्ति का साथ छोड़ने के लिए उकसाना चाहते हैं। लेकिन उनको पता नहीं है कि ईरानी जनता ने क्रान्ति के पौधे को अपने सपूतों के ख़ून से सींचा है और अब यह पौधा एक मज़बूत पेड़ बन चुका है जिसे वह अपने हाथ से बर्बाद नहीं करेगी बल्कि इस मज़बूत पेड़ से मिलने वाले फल को प्राप्त करेगी। आज के क्रान्तिकारी जवान जिन्होंने विज्ञान व प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बहुत सफलताएं हासिल की हैं, इसी क्रान्ति का फल हैं। इस बात में शक नहीं करना चाहिए कि जवान नस्ल, जनता के विभिन्न वर्ग और इस्लामी व्यवस्था के अधिकारियों की सूझबूझ से अमरीका की ओर से आर्थिक पाबंदियां भी उसके दूसरे शैतानी हथकंडों की तरह नाकाम रहेंगी। प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था प्रगतिशील अर्थव्यवस्था है। जिसके पास पाबंदियों को काटने वाली तलवार है और दुश्मन को एक बार फिर निराश करेगी।

जैसा कि इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने बल दिया कि प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था रक्षात्मक मोर्चा व दुश्मन के मुक़ाबले में सक्षम और आगे की ओर बढ़ने में भी सक्षम बनाने वाली है।

टैग्स