क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-688
क़ुरआन ईश्वरीय चमत्कार-688
قَالَتْ يَا أَيُّهَا الْمَلَأُ إِنِّي أُلْقِيَ إِلَيَّ كِتَابٌ كَرِيمٌ (29) إِنَّهُ مِنْ سُلَيْمَانَ وَإِنَّهُ بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ (30) أَلَّا تَعْلُوا عَلَيَّ وَأْتُونِي مُسْلِمِينَ (31)
(सबा देश की साम्राज्ञी) बोली, हे सरदारो! मेरी ओर एक मूल्यवान पत्र डाला गया है। (27:29) यह सुलैमान की ओर से है और (उसमें) यह (लिखा है कि) अल्लाह के नाम से जो अत्यन्त कृपाशील और दयावान है। (27:30) यह कि मेरे मुक़ाबले में उद्दंडता न करो और आज्ञाकारी बनकर मेरे पास आओ। (27:31)
قَالَتْ يَا أَيُّهَا الْمَلَأُ أَفْتُونِي فِي أَمْرِي مَا كُنْتُ قَاطِعَةً أَمْرًا حَتَّى تَشْهَدُونِ (32) قَالُوا نَحْنُ أُولُو قُوَّةٍ وَأُولُو بَأْسٍ شَدِيدٍ وَالْأَمْرُ إِلَيْكِ فَانْظُرِي مَاذَا تَأْمُرِينَ (33)
साम्राज्ञी ने कहा, हे सरदारो! मेरे मामले में मुझे परामर्श दो कि तुम्हारी उपस्थिति के बिना (अब तक) मैंने कोई (महत्वपूर्ण) काम नहीं किया है। (27:32) उन्होंने कहा, हम शक्तिशाली हैं और हमें बड़ी युद्ध-क्षमता प्राप्त है। आगे मामले का अधिकार आपको है, अतः आप देख लें कि आपको क्या आदेश देना है। (27:33)
قَالَتْ إِنَّ الْمُلُوكَ إِذَا دَخَلُوا قَرْيَةً أَفْسَدُوهَا وَجَعَلُوا أَعِزَّةَ أَهْلِهَا أَذِلَّةً وَكَذَلِكَ يَفْعَلُونَ (34) وَإِنِّي مُرْسِلَةٌ إِلَيْهِمْ بِهَدِيَّةٍ فَنَاظِرَةٌ بِمَ يَرْجِعُ الْمُرْسَلُونَ (35)
(बिल्क़ीस ने) कहा, जब सम्राट किसी बस्ती में घुसते हैं तो उसे तबाह कर देते हैं और वहाँ के प्रभावशाली लोगों को अपमानित कर देते हैं और वे (सदैव) ऐसा ही करते हैं। (27:34) और मैं उनके पास एक (मूल्यवान) उपहार भेजती हूँ; फिर देखती हूँ कि दूत क्या (उत्तर) लेकर लौटते हैं? (27:35)