Oct १६, २०१८ १३:२७ Asia/Kolkata

11 सितम्बर 2001 की घटना के बाद जो अमरीका की विदेश नीति में महत्वपूर्ण मोड़ समझी जाती है, अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने आतंकवाद से वैश्विक संघर्ष के बहाने चढ़ाई की रणनीति अपनाई और अफ़ग़ानिस्तान और इराक़ पर हमला कर दिया।

इराक़ पर क़ब्ज़े के कारण दाइश जैसे बहुत से आतंकवादियों ने जन्म लिया जिन्होंने इराक़ और सीरिया में बहुत अधिक अपराध किए हैं। आतंकवाद के विरुद्ध तथाकथित वैश्विक युद्ध में इराक़, सीरिया, अफ़ग़ानिस्तान और यमन में दस लाख से अधिक लोग मारे गये। अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के काल में भी दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में अमरीका की हस्तक्षेपपूर्ण कार्यवाहियां जिनमें आतंकवाद से संघर्ष के नाम पर ड्रोन हमले और सैन्य कार्यवाही भी शामिल थी, जारी रहीं। इस परिधि में अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने काल में वर्ष 2011 पहली बार आतंकवाद से मुक़ाबले की राष्ट्रीय रणनीति के नाम से एक योजना बनाई और उसे दुनिया के सामने पेश किया जिसमें वाशिंग्टन ने आतंकवाद , आतंकवाद के समर्थकों और आतंकवाद से किस प्रकार संघर्ष किया जाए, इस विषय पर अपने दृष्टिकोण बयान किए थे। इन सबके बावजूद हालिया क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय परिवर्तनों के कारण ट्रम्प सरकार की ओर से एक नई योजना पेश की गयी।

अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने गुरुवार 4 अक्तूबर को आतंकवाद से संघर्ष की राष्ट्रीय रणनीति (National Strategy for Counterterrorism) पर हस्ताक्षर किए। 34 पृष्ठों पर आधारित इस रणनीति में (कट्टरपंथी आतंकवाद) (ईरान, आतंकवाद की सबसे बड़ी समर्थक सरकार) और (आतंकवाद के दूसरे स्वरूपों) के रूप में अमरीका के सामने मौजूद मुख्य ख़तरों का वर्णन किया गया है। अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने इस रणनीत पर हस्ताक्षर करने के कार्यक्रम में परमाणु समझौते से अमरीका के निकलने को इस संबंध में वाशिंग्टन की उपलब्धियों में क़रार दिया।

 

अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने कहा कि मैंने ईरान के साथ ख़तरनाक समझौते में अमरीका की उपस्थिति को समाप्त कर दिया। यह समझौता ईरान और उसके घटक गुटों के लिए धन का भंडार तैयार कर दिया और दुनिया में ईरान के बुरे बर्ताव का वित्तपोषण था। अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने आतंकवाद से मुक़ाबले की राष्ट्रीय रणनीति के महत्व पर बल देते हुए इस रणनीति की भूमिका में लिखा कि मेरी सरकार में आतंकवाद को पराजित करने लिए अमरीकी प्रयास तेज़ हुए, हम अपने महान राष्ट्र की रक्षा के लिए, देश के समस्त शक्ति के साधनों का प्रयोग करेंगे और अपने दुश्मनों को पराजित करेंगे।

 

34 पृष्ठों पर आधारित आतंकवाद से संघर्ष की इस अमरीकी रणनीति को छह बिन्दुओं में विभाजित किया जा सकता है। आतंकवाद के ख़तरों और उसके स्रोतों से मुक़ाबला करना, आतंकवादियों की वित्तीय, भौतिक और सामरिक सहातया बंद करना, देश की रक्षा करने तथा आतंकवाद से संघर्ष के लिए अमरीका के हाथों में व्यापक संसाधन और उपकरण देना और इन उपकरणों का आधुनिकिकरण करना, अमरीका के आधारभूत ढांचों की रक्षा करना और उसकी तत्परता बढ़ाना, कट्टरपंथ और चरमपंथ से संघर्ष करना और इसके विस्तार को रोकना तथा आतंकवाद से संघर्ष के अंतर्राष्ट्रीय सहयोगियों की क्षमताएं बढ़ना जैसे बिन्दु अमरीकी रणनीति में शामिल हैं।

 

अमरीकी सरकार ने जो ट्रम्प के सत्ता में पहुंचने के बाद हर दिन ईरान के विरुद्ध ज़हर उगलती है, इस बार फिर आतंकवाद से संघर्ष की राष्ट्रीय रणनीति योजना में भी ईरान पर आतंकवाद के समर्थन का आरोप लगाया। इस योजना में इस बात की ओर संकेत करते हुए कि अमरीका को कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवादी गुटों का सामना है। बयान किया गया है कि हमें यथावत ईरान अर्थात आतंकवाद के मुख्य समर्थक के ख़तरों का सामना है, हमें ईरान के वैश्विक नेटवर्क और इस देश द्वारा जारी आतंकवादी गुटों के समर्थन का ख़तरा यथावत सता रहा है। इस रणनैतिक योजना में यह बयान करते हुए कि अमरीका फ़स्ट की रणनीति का अर्थ अमरीका अकेला नहीं है, इशारा किया गया है कि अमरीका, ईरान समर्थित आतंकवादी गुटों और इस्लामी कट्टरपंथी आतंकवाद के खत़रों से मुक़ाबले के लिए समर्थन जुटाने और अपने अंतर्राष्ट्रीय सहयोगियों की भूमिकाओं के विस्तार का प्रयास कर रहा है। इस योजना में लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह को ईरान समर्थित एक आतंकवादी गुट के रूप में याद किय गया है और दावा किया गया है कि ईरान इस गुट को और अन्य गुटों को इराक़, लेबनान, फ़िलिस्तीन, सीरिया और यमन में अपने प्रभाव बढ़ाने और प्रतिस्पर्धी देशों को अस्थिर करने के लिए प्रयोग कर रहा है।

 

अमरीकी राष्ट्रपति के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने भी इस सुरक्षा योजना का ब्योरा देते हुए ईरान पर हमले का बेहतरीन अवसर क़रार दिया और दावा किया कि इस्लामी क्रांति के बाद से ईरान, अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के लिए सेन्ट्रल बैंक रहा है। बोल्टन आतंकवाद से संघर्ष की राष्ट्रीय योजना के महत्वपूर्ण दस्तावेज़ का विवरण देते हुए कहा कि यह राष्ट्रीय रणनीति, ईरान पर भी केन्द्रित है। अमरीका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की नज़र में, कट्टरपंथी आतंकवादी गुट अमरीका और उसके हितों के लिए सबसे बड़ा बाहरी ख़तरा है। जान बोल्टन जिन्होंने आतंकवाद से संघर्ष की अमरीकी सरकार की नई रणनैतिक योजना तैयार की है, अमरीका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनने से पहले तक, बारंबार ईरान से युद्ध करने और ईरानी सरकार को बदलने की अपील कर चुके थे और वह ईरान के विरुद्ध ज़हर उगलने को लेकर भी प्रसिद्ध हैं।

जॉन बोल्टन ने आतंकवाद से संघर्ष की अमरीका की नई राष्ट्रीय रणनीति के बारे में बयान देते हुए कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवाद शब्द का प्रयोग किया जिसके बारे में अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने बल दिया कि इस शब्द का प्रयोग न किया जाए क्योंकि उनके अनुसार वह कट्टरपंथी गुटों के हितों में काम करते थे। इसी प्रकार अमरीकी विदेशमंत्रालय ने भी अपनी वार्षिक रिपोर्टों में हमेशा से ईरानी सरकार को दुनिया में आतंकवाद की समर्थक सरकार के रूप में याद किया है। अमरीकी विदेशमंत्रालय ने दावा किया है कि ईरान आतंकवादियों का सबसे बड़ा समर्थक है। वर्ष 2017 में जारी होने वाली रिपोर्ट में अमरीका का कहना है कि ईरान और उसके घटक बल अफ़ग़ानिस्तान, बहरैन, इराक़, लेबनान और यमन में हिंसा की आग भड़का रहे हैं।

वर्ष 2011 में सीरिया में अशांति आरंभ होने के समय से अमरीका ने सीरिया की सरकार को गिराने के लक्ष्य से प्रतिरोध के मोर्च को निशाना बनाया और पश्चिम समर्थित आतंकवादी गुटों का समर्थन किया और अपने दुष्प्रचारों की धार हमेशा ईरान की ओर मोड़े रखी और दावा किया कि ईरान आतंकवाद का समर्थक है। इसके बावजूद ईरान ने हमेशा इस बात पर बल दिया है कि वह देश के संविधान के आधार पर लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह, फ़िलिस्तीन के इस्लमी प्रतिरोध आंदोलन हमास जैसे स्वतंत्रता प्रेमी आंदोलनों के समर्थन को अपना दायित्व समझता है। ईरान ने इसके मुक़ाबले में बारंबार अमरीका और सऊदी अरब तथा ज़ायोनी शासन जैसे उसके क्षेत्रीय घटकों को क्षेत्र में आतंकवाद का मुख्य समर्थक क़रार दिया है और बल दिया है कि मध्यपूर्व में अशांति और स्थिति में वृद्धि तथा आतंकवाद में विस्तार वाशिंग्टन और उसके क्षेत्रीय घटकों की विध्वंसकारी नीतियों का परिणाम है।

महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि इस दस्तावेज़ में जिसे जान बोल्टन ने आतंकवाद से संघर्ष की समग्र और व्यापक रणनीति का नाम दिया है, आतंकवादी गुटो के समर्थन में सऊ दी अरब और उसके घटकों की किसी भी प्रकार की भूमिका की ओर संकेत नहीं किया गया है। यदि आतंकवाद से संघर्ष की चर्चा की जाए तो सऊदी अरब सहित क्षेत्र के कुछ रूढ़ीवादी देशों द्वार दाइश और अलक़ायदा सहित आतंकवादी गुटों की वित्तीय और सामरिक सहायताओं की अनदेखी नहीं की जा सकती।

 

सऊदी अरब की ओर से कट्टरपंथी वहाबी दृष्टिकोण और विचारों का प्रचार व प्रसार और दाइश जैसे आतंकवादी गुटों का समर्थन कोई छिपा हुआ नहीं है जिसने दुनिया के अधिकतर क्षेत्रों में आतंकवादी कार्यवाहियां की हैं। यह ऐसी स्थिति में है कि कुछ अमरीकी मीडिया, दाइश, अलक़ायदा और नुस्रा फ़्रंट सहित आतंकवादी गुटों को मज़बूत करने और उनके विस्तार में कुछ देशों विशेषकर सऊदी अरब की भूमिका को स्वीकार करते हैं। अमरीकी समाचार पत्र बोस्टन ग्लोब इस बारे में लिखता है कि वैश्विक आतंकवाद के बारे में 21वीं शताब्दी के गंभीर शोधों से यह परिणाम निकलता है कि अलक़ायदा, तालेबान, दाइश और इन जैसे समान विचार रखने वाले अन्य आतंकवादी गुटों के समर्थन के लिए अधिकतर पैसे सऊदी अरब से भेजे जाते हैं।

अमरीका और उसके पश्चिमी और अरब घटकों ने दाइश सहित आतंकवादी गुटों को पैदा करने और उन्हें मज़बूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है किन्तु अभी तक ये गुट उन्हें कोई लाभ नहीं पहुंचा सके। पश्चिमी लेखक फ़ेड्रिक पेशोन सीरिया में पश्चिम की ग़लती नामक पुस्तक में लिखते हैं कि कट्टरपंथी विद्रोहियों को सशस्त्र करने की ज़िम्मेदारी पश्चिम के कांधों पर है, इस समर्थन का पहला परिणाम लाखों लोगों के पलायन के रूप में सामने आया, सीरिया, इराक़, अफ़ग़ानिस्तान और कुछ अफ़्रीक़ी देशों में होने वाली हिंसक आतंकवादी कार्यवाही के कारण यूरोप की ओर शारणार्थियों का एक सैलाब निकल पड़ा जिसने पश्चिमी की सुरक्षा के लिए चुनौतियां खड़ी कर दीं।

बहरहाल अमरीका और उसके कुछ अरब व पश्चिमी देश, आतंकवाद के विस्तार में ही अपना हित देखते हैं और यही वह अमरीका जो ईरान पर आए दिन आतंकवाद के समर्थन का आरोप लगाता है और अपने क्रियाक्लापों को छिपाने और दुनिया से वास्तविकताओं को दूर रखने के लिए तेहरान के सिर आरोप मढ़ता है जबकि सीरिया और इराक़ में आतंकवादियों और कट्टरपंथियों से संघर्ष में ईरन की भूमिका और इन देशों की जनता और सरकारों ने ईरान की सराहना पर नज़र डालने से अमरीका और उसके घटक सऊदी अरब की पोल खुल जाती है। (AK)

 

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