Nov २७, २०१८ १७:०१ Asia/Kolkata

फ़ार्स की खाड़ी के ईरानी द्वीपों की जो यात्रा हमने आरंभ की थी अब वह अपने अंत के निकट पहुंच रही है। 

अन्तिम कड़ी में हम आपको फ़ार्स की खाड़ी के जिस द्वीप से परिचित करवाएंगे उसका नाम है, "क़ब्रे नाख़ुदा"  किंतु पहले हम आपको फ़ार्स की खाड़ी से संबन्धित कुछ विशेष बातें संक्षेप में बताने जा रहे हैं।

फ़ार्स की खाड़ी, स्वतंत्र समुद्र जलक्षेत्र है।  यह हुरमुज़ स्ट्रेट और प्रशांत महासागर के माध्यम से ईरान को दूसरे जलक्षेत्रों और दुनिया के देशों से जोड़ती है। फ़ार्स की खाड़ी में बहुत से द्वीप हैं जिनमें से अधिकांश का संबंध प्राचीन समय से ईरान से रहा है। विश्व के बहुत से पुराने नक्शों और मानचित्रों में फ़ार्स की खाड़ी का नाम पाया जाता है। यह नाम प्राचीन समय से लेकर अब तक बाक़ी है। फ़ार्स की खाड़ी के पानी की गहराई में तेल और गैस के बड़े- बड़े भंडार हैं जिसकी वजह से वह व्यापारिक दृष्टि से भी विशेष महत्व रखती है। फ़ार्स की खाड़ी के किनारे- किनारे पर्वत मालायें भी हैं और कुछ क्षेत्रों में पर्वत मालाओं का अंत समुद्र पर होता है जबकि कभी समुद्र से दूर होता है। ईरान में लगभग 78 प्रतिशत मछली का शिकार फ़ार्स की खाड़ी के तटवर्ती क्षेत्रों से होता है।

फ़ार्स की खाड़ी में जो तेल स्रोत हैं वे विश्व के दूसरे क्षेत्रों के तेल स्रोतों से बहुत भिन्न हैं। फ़ार्स की खाड़ी के तेल को निकालना सरल है, उसके उत्पादन की लागत कम है, वहां के तेल की गुणवत्ता उत्तम है, फ़ार्स की खाड़ी के तेल को लादने और उसे दूसरे क्षेत्रों तक पहुंचाना सरल है, फ़ार्स की खाड़ी में मौजूद तेल के कुंओं को खोदना आसान है और इसी तरह फ़ार्स की खाड़ी के विशाल क्षेत्र में ऊर्जा के स्रोतों की खोज भी सरल है। फ़ार्स की खाड़ी में अंजाम दिये गये अंतिम आंकलन के अनुसार लगभग 730 अरब बैरल तेल है और 70 ट्रिलियन घन मीटर से अधिक प्राकृतिक गैस है।

फ़ार्स की खाड़ी के संबन्ध में बहुत सी पौराणिक गाथाएं मौजूद हैं।  ईरान का यह भाग, संसार की कुछ सभ्यताओं की जननी रहा है।  इसके बारे में कई प्रकार की कहानियां और पौराणिक गाथाएं प्रचलित हैं।  जब सासानी राजाओं, समुद्री कहानियों या नाविकों की समुद्री यात्राओं की बात चलती है तो उसमें फ़ार्स की खाड़ी का उल्लेख भी मिलता है।

फ़ार्स की खाड़ी से संबन्धित जितनी भी कहानियां प्रचलित हैं उनमें एक बात संयुक्त रूप में दिखाई देती है और वह है जल से संबन्ध।  कहते हैं कि फ़ार्स की खाड़ी में जो द्वीप स्थित हैं उनके नाम के पीछे भी कोई न कोई कहानी है जो पीढ़ियों से चली आ रही है।  द्वीपों से संबन्धित कहानियों की पुष्टि चाहे इतिहास में न मिले किंतु प्राचीनकाल से इनको पीढ़ियों से इतना सुना जा रहा है कि इनपर विश्वास सा होता है।

जिस द्वीप के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं उसके साथ भी कुछ एसा ही है।  इस द्वीप का नाम है, "क़ब्रे नाख़ुदा" जिसका अर्थ है मल्लाह या नाविक की क़ब्र।  यह द्वीप फ़ार्स की खाड़ी के ख़ूर मूसा के मुहाने पर स्थित है।  यह द्वीप बूने और दारा द्वीपों के उत्तर में स्थित है।  जवार-भाटा के समय इसका क्षेत्रफल 2/4 हेक्टर रहता है।  ज्वार भाटा समाप्त हो जाने पर इसका क्षेत्रफल कई सौ हेक्टर हो जाता है।  क़ब्रे नाख़ुदा नामक द्वीप समतल है।  हालांकि इसका केन्द्रीय क्षेत्र विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों से भरा हुआ है किंतु यहां पर मीठा पानी उपलब्ध नहीं है।  यही कारण है कि क़ब्रे नाख़ुदा द्वीप निर्जन है।

जैसा कि हम आपको बता चुके हैं कि फ़ार्स की खाड़ी में जो द्वीप स्थित हैं उनके नाम के पीछे भी कोई न कोई कहानी है जो पीढ़ियों से चली आ रही है।  यही बात क़ब्रे नाखुदा द्वीप के बारे में भी है।  इसके नाम के बारे में यह भी कहा जाता है कि एक मल्लाह या नाविक की क़ब्र के कारण इसका यह नाम पड़ा है।  इस द्वीप के निकटवर्ती बसने वाले स्थानीय लोगों का कहना है कि प्राचीन काल में जब समुद्री यात्रा पारंपरिक ढंग से की जाती थी तो उस काल में एक नाविक अपने परिवार के साथ समुद्री यात्रा पर निकला।  उसके साथ उसकी एकमात्र बेटी भी थी जो यात्रा के दौरान बीमार हो गई थी।  उसके इलाज की कोई सुविधा नहीं थी और यात्रा भी लंबी थी इसलिए उस अज्ञात नाविक ने अपना पानी का जहाज़ इसी द्वीप पर रोका।  इसी बीच नाविक की बेटी दुनिया से चल बसी जिसे इसी द्वीप पर दफ़ना दिया गया।  इस कथन के अनुसार द्वीप पर नाविक की बेटी की क़ब्र है न कि नाविक की जबकि इसका नाम है क़ब्रे नाख़ुदा।

क़ब्रे नाख़ुदा द्वीप के बारे में एक अन्य कथन यह है कि प्राचीनकाल में एक भारतीय नाविक यहां आया था जिसका यहां पर देहांत हो गया।  इस भारतीय नाविक को यहीं पर दफ़न कर दिया गया।  इस प्रकार से द्वीप का नाम क़ब्रे नाख़ुदा पड़ गया।

एक कथन यह भी है कि हख़ामनशी काल में क़ब्रे नाख़ुदा नामक द्वीप, बंदरगाह की दृष्टि से उपयुक्त स्थल था।  हख़ामनेशी काल में बंदरगाह बनाने से संबन्धित मैटिरियल यहां पर पाया गया जिसके कारण इसे इस नाम से पुकारते हैं।  बहरहाल वह द्वीप जिसके बारे में यह प्रचलित है कि वहां पर कुछ लोगों की क़ब्रे मौजूद हैं वर्तमान समय में समुद्री अबाबील का शरणस्थल है।  यदि आप इस रहस्यमई द्वीप की यात्रा करना चाहते हैं तो आपको ख़ुज़िस्तान प्रांत आना पड़ेगा और फिर इस प्रांत के पूर्व में आपको जाना होगा।  आप कश्ती पर सवार होकर ख़ूरमूसा के मुहाने तक पहुंचेंगे।  माशहर बंदरगाह से नौका के माध्यम से आप डेढ घण्टे की यात्रा करके क़ब्रे नाख़ुदा तक पहुंच सकते हैं।

क़ब्रे नाख़ुदा द्वीप को ख़ुज़िस्तान प्रांत में पक्षियों के संवेदनशील शरणस्थल के रूप में देखा जाता है जो ज्वार-भाटा का साक्षी रहता है।  ज्वार-भाटा, पक्षियों के विश्राम और उनके खाने को प्रभावित करता है।  यह द्वीप रेतीला है जिसपर कीचड़ भी पाई जाती है।  यही कारण है जलचरों के भोजन के लिए यह बहुत ही उपयुक्त स्थल है।  कई प्रकार की जातियों के पक्षियों का यह शरण स्थल है जहां पर वे अंडे-बच्चे देते हैं।  यहां पर इन पक्षियों को बहुत बड़ी संख्या में चारों ओर देखा जा सकता है।

जैसाकि आप जानते हैं कि तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के बीच समुद्र और जल से संबन्धित कई प्रकार की कहानियां प्रचलित होती हैं।  फ़ार्स की खाड़ी भी इससे अपवाद नहीं है।  तटीय क्षेत्रों के रहने वालों में प्रचलित कहानियों में से एक कहानी जलपरी की भी है।  14वीं ईसवी के जानेमाने इतिहासकार व भूगोलवेत्ता "हम्दुल्लाह मुस्तौफ़ी" अपनी एक किताब "नुज़हतुल क़ुलूब" के एक भाग में लिखते हैं कि फ़ार्स की खाड़ी, जलपरियों का निवास स्थल रही है।  ईरानी मल्लाहों के अनुसार जलपरियां शुभ हैं।  मुस्तौफ़ी ने भी लिखा है कि समुद्र में जलपरियों का दिखाई देना, प्रसन्नता का कारण बनता है जो विशेष प्रकार की शांति प्रदान करता है।

निःसन्देह, वे पौराणिक गाथाएं जो समुद्रों के बारे में शताब्दियों से प्रचलित हैं उनमें फ़ार्स की खाड़ी का भी उल्लेख मिलता है।  इससे जहां प्राचीनकाल से फ़ार्स की खाड़ी के अस्तित्व की पुष्टि होती है वहीं पर यह फ़ार्स की खाड़ी के इतिहास को सुरक्षित रखने के लिए प्रेरित करती हैं।

कार्यक्रम श्रंखला फ़ार्स खाड़ी के ईरानी द्वीप की अन्तिम कड़ी अपने अंत को पहुंचती है।  इस कार्यक्रम श्रंखला की 26 कड़ियों के अन्तर्गत हमारा यह प्रयास रहा कि हम आपको फ़ार्स की खाड़ी के इतिहास, वहां की भौगोलिक स्थिति, वहां पर्यावरण, वहां के रहन-सहन तथा वहां रहने वाले जीव-जंतुओं के बारे में विस्तार से बताएं।  हमें आशा है कि हमारा यह प्रयास आपको पसंद आया होगा। 

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