घर परिवार- 16
क्या आप जानते हैं कि परिवार से प्रेम हर धन- दौलत से महत्वपूर्ण है?
क्या आप जानते हैं कि आप और आपके परिवार के बीच जो संबंध है वह केवल खून के कारण नहीं है बल्कि उस आदर, सम्मान और खुशी के कारण है जो परिवार के सदस्यों के मध्य मौजूद है?
प्रेम न केवल परिवार का स्तंभ है बल्कि दूसरी चीज़ों के बाकी रहने और उनके मध्य संतुलन स्थापित करने में अद्वितीय भूमिका रखता है यहां तक कि कहा जा सकता है प्रेम ही परिवार की जान है। इस आधार पर अकेले न तो पुरुष परिपूर्ण है और न ही महिला परिपूर्ण हो सकती है किन्तु एक साथ और कुछ कानूनों के प्रति कटिबद्ध रहकर दोनों परिपूर्ण हो सकते हैं। दूसरे शब्दों में परिपूर्णता का मार्ग तय करने की दिशा में परिवार आरंभिक बिन्दु है।
इंसान जब एक दूसरे के साथ हों और अच्छी तरह से एक दूसरे के साथ रहें तो वे जीवन के समस्त पहलुओं को अर्थपूर्ण बना सकते हैं। अच्छाई, बुराई, सौभाग्य या दुर्भाग्य, शांति और कटुता वे चीज़ें हैं जो इंसानों के एक दूसरे से लेन- देन में अर्थपूर्ण होती हैं। परिवार ही वह पहला वातावरण और पहली जगह है जहां इंसान रहता है और उसका पालन- पोषण होता है और वह परवान चढ़ता है। यानी परिवार समाज के अस्तित्व में आने की पहली इकाई होता है। इस बात के दृष्टिगत विद्वान कहते हैं कि परिवार इंसान के पालन- पोषण और उसके सामाजिक होने का जहां बेहतरीन केन्द्र है वहीं इंसान एक दूसरे के साथ रहकर और परिवार ने जो संभावनाएं उसे दे रखी हैं उनसे लाभ उठाकर बहुत सी समस्याओं का समाधान कर सकता है। इस नैतिक समरसता के कारण महिला और पुरूष के मध्य जो यौन इच्छा व ज़रूरत है उससे कहीं अधिक दायित्व का आभास महत्वपूर्ण होता है। इस आधार पर महिला और पुरुष प्रेमपूर्ण संबंधों के साथ एक दूसरे के साथ रहकर अपनी संतान के शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक और नैतिक विकास की उचित भूमि प्रशस्त कर सकते हैं।
ईरानी विद्वान और कानून ज्ञाता डाक्टर सैयद मुस्तफा मुहक्किक दामाद इस विषय का विश्लेषण करते हुए कहते हैं कि परिवार के सदस्यों के अधिकारों के संबंध में जिन शब्दों का प्रयोग किया गया है उनमें से अधिकांशतः नैतिक विशेषता लिए हुए हैं। जैसे सेदाक़ शब्द जिसका अर्थ महरिया होता है। यह शब्द सत्यता और पवित्रता को अपने अंदर लिए हुए है।
डाक्टर सैयद मुस्तफा ने “हुकूके खानवादा” अर्थात परिवार के अधिकार नाम की एक किताब लिखी है जिसमें उन्होंने इस बात की ओर संकेत किया है कि इस्लाम में जो विवाह है वह केवल एक कानूनी समझौता नहीं है बल्कि वह प्रेम एवं नैतिकता का समझौता है। इस किताब में उन्होंने लिखा है कि प्राचीन दर्शनशास्त्रियों ने परिवार के गठन में प्रेम की भूमिका पर ध्यान दिया है और उन्होंने परिवार में सरकारों के हस्तक्षेप को हानिकारक और खतरनाक बताया है और उन्होंने परिवारों के गठन में सरकारों की भूमिका को अलग रखा है ताकि सरकारों और परिवारों के मध्य जो प्राकृतिक सीमा है वह अच्छी तरह स्पष्ट हो सके।
डाक्टर सैयद मुस्तफा के अनुसार दार्शनिकों ने परिवारों के गठन में सरकारों की भूमिका को जो अलग रखा है वह सही है यानी यह विभाजन सही है और सच्चाई दार्शनिकों के साथ है क्योंकि अनुभवों ने दर्शा दिया है कि सरकारों विशेषकर सेक्यूलर सरकारों ने जब भी अपने बनाये हुए कानूनों को परिवारों पर थोपने का प्रयास किया है तो इससे परिवारों को नुकसान ही पहुंचा है। सेक्यूलर सरकारों ने परिवारों को नुकसान पहुंचाने का प्रयास किया ताकि परिवारों की जो शक्ति होती है उसे प्रदर्शित होने से रोक सकें। उन्हेंने ऐसा आधार व कानून बनाने का प्रयास किया है जिससे उनकी इच्छा का परिवार गठित हो सके परंतु जो कानून ईश्वरीय धर्मों से लिए गये हैं उनका आधार ईश्वरीय धर्म व शिक्षाएं हैं तो उनका स्वरूप ही कुछ और है।
प्रसिद्ध ईरानी दर्शनशास्त्री शैखुर्रईस अबू अली सीना ने अपनी एक रचना में बच्चों के प्रशिक्षण के लिए एक अच्छे व वांछित परिवार का चित्रण किया है। उनका मानना है कि आंतरिक शांति विवाह की छत्रछाया में प्राप्त होती है। वह कहते हैं कि इंसान को अपनी संपत्ति व पूंजी को सुरक्षित रखने के लिए मकान की ज़रूरत होती है। यह पत्नी है जो इस काम में पति की उचित जीवन साथी हो सकती है। इब्ने सीना के कथनानुसार अच्छी महिला पुरूष की जीवन साथी, भागीदार, उसके माल की रक्षक, घर में उसका प्रतिनिधि और बच्चों के प्रशिक्षण में अमीन है और प्रेम व सुरक्षा के इस केन्द्र यानी परिवार का मूल्य समझना चाहिये।
सुबह सवेरे का समय है। परिवार के सदस्य कोलाहल से उठते हैं। दुल्हन की गाड़ी पुष्पों से सजी घर के बाहर खड़ी है। घर के जिस बड़े आंगन में विवाह समारोह सम्पन्न हुआ था उसमें लाइटें अब भी जल रही हैं। आंगन में मौजूद कुर्सी, मेज़, बर्तन और फल आदि देखकर रात का दृश्य नज़रों में घूमने लगता है। दुल्हे का बाप कुछ लोगों के साथ मिलकर सारे बर्तन और फल आदि को एकत्रित करने और घर को साफ करने का प्रयास कर रहा है जबकि दुल्हे की मां घर का दूसरा काम कर रही है। आज यानी विवाह के अगले दिन को ईरानी परिवारों में "पातख्ती" कहा जाता है। इस दिन निकट संबंधी और नाते-रिश्तेदार अपने- अपने उपहार दुल्हन को भेंट करते हैं। दुल्हे और दुल्हन के नाते- रिश्तेदार अलग- अलग अपने उपहार लाते हैं। उसके बाद कुछ समय तक एक दूसरे के साथ खुशी मनाते हैं। हालिया वर्षों में यह होने लगा है कि बहुत से मेहमान अपने- अपने उपहारों को विवाह की पहली रात ही दे देते हैं। ईरानी परिवारों में विवाह की अंतिम परम्परा दुल्हन की मां को देखने जाना है और इस परम्परा को “मादर ज़न सलाम” कहा जाता है। इस परम्परा में दुल्हन की मां दुल्हे के घर वालों को आमंत्रित करती है और वे सब उसके घर जाते हैं। उसके बाद दुल्हा दुल्हन की मां को अपना उपहार भेंट करता है और इस कार्य से वह दुल्हन की मां का आभार प्रकट करता है कि उसने अच्छी लड़की का प्रशिक्षण किया है जो इस समय दुल्हे की जीवन साथी बनी है।
यहां तक जो कुछ कहा गया उसके दृष्टिगत ईरानी समाज शास्त्री डाक्टर आज़ाद अर्मकी कहते हैं” ईरानी परिवार परंपरा की दृष्टि से पारंपरिक है परंतु अंदर से वह मॉडन व नया है। पारंपरिक है इसलिए कि अब भी उसमें प्राचीन सामाजिक मूल्यों पर ध्यान दिया जाता है। जैसे पहले मंगनी होती है और उसके बाद विवाह समारोह होता है। पिछले दो दशकों के दौरान इसमें कुछ विविधता आ गयी है और इसका आंतरिक रूप नूतन हो गया है? मॉडन इसलिए हो गया है कि लोगों का व्यवहार अधिक सुव्यवस्थित हो गया है। लड़का और लड़की व्यक्तिगत एवं पारीवारिक हितों के दृष्टिगत विवाह करते हैं और उसके हितों के आधार पर सामाजिक परम्परा को अर्थपूर्ण बनाने का प्रयास करते हैं। परिवार गठन और उसकी मज़बूती के लिए प्रयास ईरान में परिवार के महत्व का सूचक है।
समाजशास्त्रियों के अनुसार जब पत्नियां इस बात का आभास करती हैं कि दाम्पत्य जीवन के संबंध ठंडे होने लगे हैं और मतभेद अस्तित्व में आने वाले हैं तो वे उन शैलियों का प्रयोग करती हैं जिससे परिवार में मिठास वापस आ जाती है। इस संबंध में कोई भी चीज़ प्रेम से अधिक प्रभावी व उपयोगी नहीं है जो परिवार में गर्मी, स्नेह और मिठास उत्पन्न कर दे।
कुछ कार्य एसे हैं जो आपको आपके जीवन साथी से अधिक निकट कर देते हैं और आपके बीच मौजूद संबंधों को अधिक घनिष्ठ बना देते हैं। इसलिए आपके लिए ज़रूरी है कि इन चीज़ों को ही अपने कार्यक्रमों में बढ़ा लें ताकि आपका दाम्पत्य जीवन अधिक मीठा बन सके।
घर की जो सजावट है उसमें थोड़े परिवर्तन से वह और अच्छा लगने लगता है। दूसरे शब्दों में इस कार्य से दाम्पत्य जीवन में मिठास बढ़ जाती है। दाम्पत्य जीवन में मिठास लाने के लिए घूमना- फिरना भी एक महत्वपूर्ण चीज़ है जिसकी ओर अध्ययनकर्ता संकेत करते हैं। यह सही है कि संतान के पैदा हो जाने से दाम्पत्य जीवन अधिक परिपूर्ण हो जाता है परंतु उससे जीवन साथी का जो महत्व है वह कम या समाप्त नहीं हो जाता। इस आधार पर यात्रा पर जाने की सिफारिश की जाती है, जीवन की मीठी व अच्छी यादों का स्मरण कीजिये। क्योंकि दाम्पत्य जीवन के संबंधों को मधुर बनाने में इस चीज़ की उल्लेखनीय भूमिका है।
जो चीज़ें पति पत्नी के संबंधों को मधुर बनाती हैं उनमें से एक अप्रत्याशित कार्य हैं। जैसे आप किसी होटल या रेस्तरां में खाना खाने के लिए अपनी पत्नी को ले जायें। यह वह चीज़ है जो बहुत सी समस्याओं के समाधान में सहायता करती है। इसी तरह आप उन स्थानों के सैर -सपाटे पर जायें जहां अब तक नहीं गये हैं और वहां एक साथ अपनी पसंद का खाना खायें। इन सबसे महत्वपूर्ण एक दूसरे से सम्मानजनक शैली में बात करना भी वह चीज़ है जो पति- पत्नी के मध्य संबंधों को मधुर बनाती है।